सूखे गुलाब – आज अचानक से बारिश चालू हो गयी। वैसे नवम्बर में हमारे यहाँ बारिश होना आम बात नहीं है। मैंने खिड़की से आती बारिश की बूंदों को देख लिया था। वैसे ही मैं खिड़की बंद करने चला गया। एक दौर वो था जब मैं बच्चा था तो जहा मिले वहा पानी के साथ खेलता था। मन भर के बारिश में भीगता था। लेकिन आज जरा सा बारिश का पानी क्या घर में आया मैंने अपनी खिड़की बंद कर ली। शायद अब हम बड़े हो गए और हमारा बचपन कही पीछे छुट गया..कही खो गया।
शाम होने को थी तो मैंने रूम की लाइट्स जला दी। सारा कमरा रोशन हो उठा। मैंने घडी की तरफ देखा। शाम के पांच बजने वाले थे। मैंने सोचा जरा बारिश रुक जाये तो मैं बाहर हो आता हु। काफी दिन हुए मैं अपने घर से बाहर गया नहीं था।
थोडा लेटने के लिए मैंने अपने पलंग का तकिया उठाया तो उसके नीचे रखी मेरी डायरी फर्श पर आ गिरी। मैंने डायरी उठाई और ऐसे ही कुछ पन्ने उलट पुलट किये। बिच के पन्नो में सीधा जाके डायरी मुड गयी। वहा एक गुलाब का फुल था। सुखा हुआ!
उस सूखे गुलाब के फुल ने सारी यादें ताजा कर दी।
एक मशहूर शायर ने क्या खूब लिखा है यार,
गुलाब जो अब मुरझा चूका है,
समां हसीन जो गुजर चूका है।
तुम्हारी यादों की खुशबू से,
आज भी वो महकता है।
ये वही पहला गुलाब था जो मुझे उसने दिया था। हमारी मोहब्बत का इजहार था वो। सबके सामने दिया था। वाह्ह! वो दिन भी क्या दिन थे। लगता है कल की ही तो बात है। इतने साल बीतने के बाद भी वो पुरानी बाते जैसे ताजा हो गयी।
वो दिन क्या आए मेरी जिंदगी मैं जैसे सावन लौट आया। हर तरफ बसंती मौहोल था। हर सुबह मुझे एक बहाना देती थी की जल्दी उठ जाओ। आज फिर से उससे मिलने जाना है। उसको जी भर के देखना है। बातें जो करनी है हजार।
उसके आने से जैसे सुनहरी हो गयी थी सुबह मेरी। और रातें गुलाबी सपनों से भरी। वो दिन क्या आये……लगा की मैं फिर से जीने लगा हु। उसके आने से जैसे मेरी शामें रंगों में डूब गयी। उससे मिलके जब मैं अपने घर जाता तो बस उसी के ख्यालों में खोया रहता। मेरे दोस्त भी मुझे प्रेमी, आशिक नाम से बुलाने लगे थे। सबके सामने मैं तो उनपे खूब चिढ़ता। कहता रहता की ऐसे मत बुलाओ। लेकिन मन ही मन में मैं भी यही चाहता था। मैं पूरा डूब चूका था उसके प्यार में।
मैंने उसको पहली बार देखा था जब जोर की बारिश हो रही थी। हमारे कॉलेज का वो गेट, वो ऑटो से उतरी और बारिश चालू हो गयी। उसके पास छाता नहीं था। मैंने झट से अपना छाता खोला और उसके ऊपर पकड़ लिया। अचानक से आसरा पाकर वो चौंक गयी।
उसकी आँखों ने एक सवाल किया, “कौन हो तुम?”
मैंने भी मुस्कुराके उसको जवाब दिया, “तेरा दीवाना”।
हम बिना कुछ बोले कॉलेज के अन्दर तक चले गए। कोई भी बात नहीं हुई। थोडा मैं भीग रहा था तो थोडा वो भी। छाते में उसकी खुशबू मुझे दीवाना कर रही थी। मेरे सारे दोस्त मुझे देख के हस रहे थे। लेकिन मैंने ध्यान नहीं दिया।
वो लड़की नयी आयी थी कॉलेज में। आज तक देखा नहीं था। उसके पायल की झनकार से मैं अपनी सांसे गिन रहा था और धड़कन भी। मैं वो दो मिनट की मुलाकात में उसका हो गया था। मेरा कोई ठिकाना भी है ये मैं भूल गया था।
उसकी क्लास रूम आ गयी, लेकिन मैं उसके साथ छाता लेके खड़ा था। मानो वो राजकुमारी और मैं उसका सेवक। कॉलेज के छत के निचे पहुँचने पर भी ये ख्याल नहीं आया। उसने मेरी और देखा। मैंने भी। और सब हँसने लगे। अन्दर बारिश कहा हो रही थी। मैं पागलो जैसे हाथ में छाता लेके खड़ा था। मुझे समझ आ गया था, मैं जरा शरमा के वहा से चला गया। ये हमारी पहली मुलाकात थी।
शाम को घर जाने के बाद भी मैं वो मुलाकात भुला नहीं था। अपनी डायरी में मैंने मुलाकात का सारा किस्सा उतार लिया। शाम को राजेश का फ़ोन आया। वो मेरा खासम खास दोस्त है। “जय, कैसा है यार? ठीक तो हैं ना? बुखार तो नहीं आया? हा हा हा …..” ऐसे कहके वो मेरा मजाक उडाने लगा।
“नहीं यार राजेश। मैं ठीक हु, तू बता” मैंने टालते हुए जवाब दिया।
“तेरे काम की बात है मेरे पास। बोलो तो बताऊ?” राजेश बोला।
“अरे यार ,पहेली मत बुझा। जो कहना है साफ बोल न यार। ”मैंने जोर देके कहा।
“वो जो सुबह वाली है ना, जिसको तूने अपने छाते में आसरा दिया। वो मेरे घर के पास में रहती है मेरे भाई। अब बोल। ”राजेश हस के बोल रहा था।
अब मुझसे रहा नहीं गया, “क्या सच में? तू सच बोल रहा हैं?”
राजेश बोला, “तू कल सुबह घर आजा, फिर मिलवाता हु। ”
मेरा ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा । उससे बात कैसे करूँगा इसकी प्रैक्टिस चालू कर दी मैंने। आईने के सामने खड़ा हो कर खुदसे बातें करने लगा। जैसे मेरा कोई इंटरव्यू हो कल।
उससे मिलने की चाहत से और बेचैनी बढ़ने लगी। रात करवटों में कब बित गयी पता ही नहीं चला। सुबह जल्दी नहाके मैं राजेश के घर भागा। घर वालों को भी अजीब लगा होगा। मैंने आज ठन्डे पानी से नहाया था वो भी बारिश में। सोचो जरा! शक तो होना ही था।
सुबह राजेश के घर पंहुचा। राजेश भी तैयार बैठा था। उसने बाहर निकलने के बाद उसका घर दिखा दिया। हम बाहर उसका इंतेजार कर रहे थे और वो आयी। पायल की झनकार से मेरा दिल और उड़ने लगा। राजेश ने मेरी पहचान करवाई उससे। उसने मुझे देख के कहा, “मैं पहचानती हु। इसने मुझे कल अपने छाते में क्लास रूम तक छोड़ा था। कल मैं तुम्हे शुक्रिया कहना भूल गयी थी। शुक्रिया…..।”
मैंने मन में ही कह दिया, “तुम हुकुम करो। बारिश क्या, मैं तुफानो में भी तुम्हारे लिए भागा चला आऊंगा।”
दोस्तों माफ़ करना, मैं उसका नाम नहीं लेना चाहता। अगर नाम लूँगा उसका तो क़यामत होगी। और मैं अपने मेहबूब को बदनाम नहीं करना चाहता।
और फिर दौर शुरू हुआ रोज मिलने का, बाते करने का। एक दिन मैंने उसको एक चिट्ठी लिखी। तुम मुझे अछी लगाती हो, ऐसा लिखा उसमे। उसने भी हा में जवाब दिया। बस फिर क्या था। मन बावरा हवा में उडता चला गया। वो रोज मिलने की तड़प, बेचैनी का आलम और वो जुनूनी ख्वाहिशे। एक झलक पाने को उसकी दिनभर सराबोर होना और उससे मिलने को सुबह के इंतेजार मैं करवटे बदलना। चुपके से उसे चिठिया लिखना और उसके जवाब में दिन रात याद में बिताना। हम दोने एक दूजे के प्यार में डूब चुके थे।
एक दिन वो मेरे लिए गुलाब का फुल लेके आयी थी। वो उसकी तरह ही सुंदर था। नाजुक था। उसने मुझे देने के लिए अपना हाथ आगे किया। मैंने कहा,
“मैं इसका क्या करू? जब की मेरे पास तुम हो।”
उसने भी मुस्कुराके कहा, “अगर क्या हो जब मैं न रहूं तो। इसको देख लेना। मेरी याद दिलाएगा।”
“तुम मुझे अकेला छोड़ के कहीं जा रही हो?” मैंने युही पूछ लिया।
“अरे नहीं बाबा। मैं तो बस मजाक कर रही थी।” वो हँसने लगी।
लेकिन कहते है ना की जहां आग लगी वहां धुआ भी उठता है। हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उसके घर वालो को बात पता चली। जमाने के सारे सितम सह कर भी वो मुझसे एक आखरी बार मिलने आयी थी। उसके हाथो में मेरी चिट्ठियों का पुलिंदा था। मैं न चाहते हुए भी समझ गया था। ये शायद हमारी आखरी मुलाकात हैं।
उसके बिना कुछ बोले मैं सब कुछ समझ गया था। वो कुछ बोल नहीं पायी। मुझे देख के बस रोती रही। उसने शायद समझोता कर लिया था अपने नसीब से। जो शायद उसके घर वालों ने लिखा हुआ था। वो बिना बोले ही मुझे सब कुछ अपने आंसुओ से समझा रही थी। मैं एक बेजान पत्थर जैसे उसको देखता रह गया।
उसने मेरे लिखे सारे ख़त पास के टेबल पे रखे और दरवाजे की तरफ मुड़ी। फिर मुझसे रहा नहीं गया। मेरी आँखों से आंसू निकलने लगे। मैंने उसको आवाज लगाई। वो मेरी तरफ मुड़ी। और कहां,
“मुझे माफ़ करो ऐसे कैसे बोलू? मैं खुद तुमसे दूर नहीं जा रही हूं, लेकिन एक भरोसा जितने के लिए एक भरोसा मैं कैसे तोडू?”
मैं और भी रोने लगा। मेरी नजर मैं वो और भी महान बन गयी थी। मैं उसको कैसे रोकता। मेरा हक़ उसके माँ बाप से कम था उसपर। उसपे हक जताकर मैं उसको कमजोर नहीं करना चाहता था।
वो जा रही थी.. दूर और दूर ..और मैं उसको देखता रहा। लगा की वो मुड़कर देखेगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और वो मुझे छोड़ के हमेशा के लिए चली गयी।
उस रात मैंने अपनी डायरी में सारा किस्सा उतारा था। आज भी आंसुओ की बूंदों के निशान पन्नो पे मौजूद है। कुछ लब्ज बिखर चुके है आंसुओ के सैलाब में। पन्ने भले ही पुराने है, लेकिन यादें अभी भी दफ़न है उस डायरी के पन्नो में और उस हर एक गुलाब की की पंखुड़ी में। वो गुलाब जो मैंने युही रख लिए थे।
आज बारिश ने फर्श तो गिला किया और मेरे मन को भी। कितने साल बित गए। उसकी कोई खबर नहीं। मैं अपनी डायरी के पन्नो पे गिरे आंसुओ को तो सुखा पाया लेकिन अपने दिल को नहीं।