शापित सिक्का | एक काले जादू की कहानी

Shapit sikka

कर्र……”गाड़ी दवाखाने के सामने आकर रूकती हैं। उसमे से एक जोड़ा बहोत ही परेशांन से होकर उतर रहा था। न जाने उनके साथ क्या हुआ था? लेकिन बहोत उदास और लाचार लग रहे थे। ये दवाखाना दिमागी मरीजो का था।

उनके साथ में एक ५-६ साल की एक लड़की भी। वो अपनी माँ का हाथ पकड़ कर साथ में चल रही थी।

जैसे ही वो दवाखाने में अन्दर गए और सीधा वो रिसेप्शन में एक नर्स से बात करते हैं।

“डॉ साहब हैं क्या? हमारा नंबर कब आयेगा जरा चेक करो तो।”

नर्स ने उनका नाम पूछा।

“मैं मंदार और मुझे मेरी बच्ची को दिखाना हैं। उसका नाम त्रिशा हैं।” मंदार ने जवाब दिया।

“सर,आपका ४था नंबर हैं। आप थोड़ी देर बैठिये। जैसे आपका नंबर आएगा मैं आपको आवाज दूंगी।”नर्स ने ऐसे बोल कर मंदार को और उसकी बीवी को इशारे से बैठने को कहा।

मंदार अपनी बीवी स्नेहा और त्रिशा के साथ एक जगह जा कर बैठ गया।

वक़्त बित रहा था और इधर मंदार और स्नेह जरा परेशांन हो रहे थे। मंदार उठ कर बार बार डॉक्टर के केबिन के पास जाकर देख के आ रहा था।उससे रहा नहीं गया और फिर से एक बार वो नर्स से जाकर पूछता हैं, “जरा देखिये ,और कितना वक़्त लगेगा। मुझे जरा जल्दी हैं। हम परेशांन हैं।”

नर्स ने अब जरा घुस्से से उसको जाकर बैठने को कहा।

थोड़ी ही देर में नर्स ने आवाज लगायी।

“त्रिशा मंदार……..आप जाइये।”

इधर स्नेहा और मंदार जैसे उस चीज का इन्तेजार कर रहे थे। वहां से झट से उठ कर खड़े हो गए और त्रिशा को पकड़ कर डॉक्टर के केबिन में चले गए। वहा खुर्सी राखी थी तो मंदार ने स्नेहां को बैठने को कहा और साथ में त्रिशा भी वही बैठ गयी।

डॉक्टर ने सामने रखा पेपर पढ़ा और पूछा, “मंदार …..आप ही हो ना? ओके। तो बताईये क्या हुआ हैं?”

मंदार बोलने लगता हैं, “डॉक्टर साहब,ये मेरी लड़की हैं, त्रिशा। ६ साल की हैं। कुछ दिन से घर में अकेले ही बैठ कर बाते करने लगी हैं। समझ नहीं रहा क्या हुआ है। बोला तो कहती हैं वो अपने दोस्त से बात कर रही है। वो दोस्त उससे खेलता हैं। दिन तो छोडो,रात को भी वो बैठ कर बाते करते रहती हैं। नींद भी पूरी नहीं हो पाती उसकी।” इतने में स्नेहां मतलब मंदार की बीवी रोने लगती हैं। उसको चुप करते हुए मंदार आगे बोलना चालू करता हैं। “हमने उसको समझाने की बहोत कोशिश की। वो ये भी कहती हैं की उसका दोस्त दरवाजे के निचे से आया। और उसने त्रिशा को एक सिक्का भी दिया। पता नहीं ये सिक्का कहा से आया घर में। हमने उसको अपने दोस्तों के साथ खेलो ऐसे कहा लेकिन कुछ ख़ास फर्क नहीं हुआ। इसलिए आपके पास आये हैं। अब आप ही बताईये की क्या करे?”

मंदार और स्नेहां का चेहरा देखा कर डॉक्टर को ये पता चल गया था जी बात जरा सीरियस हैं। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं कहा उनको। डॉक्टर कुछ सोचने लगे फिर मंदार और स्नेहा को बाहर जाकर रुकने को कहा। और स्नेह के साथ केबिन में अकेले रुक गए।

डॉक्टर ने त्रिशा को पूछा, “बेटा,तुम्हारा नाम क्या हैं?” त्रिशा को देख के लग रहा था की वो परेशान तो हैं। लगता था उसकी नींद भी पूरी नहीं होती। उसकी आँखों के पास काले घेरे बने थे। और उम्र के हिसाब से ज्यादा थकी हुई लग रही थी वो। डॉक्टर ने समझ लिया की बच्ची तकलीफ में हैं। उन्होंने उसको पूछा “तुम्हारे पापा बता रहे थे की,तुम्हारा कोई दोस्त नहीं हैं। तुम अकेली खेलती हो।”

त्रिशा बोली, “हैं न मेरा दोस्त। वो मुझसे मिलने आता हैं। और मुझे ये सिक्का भी दिया था।” उसने अपने जेब में रखा सिक्का डॉक्टर को दिखाया। वो सिक्का बहोत ही पुराना सा लग रहा था। सोने जैसा लग रहा लेकिन वो सिर्फ उसका रंग था। अंदर से जंग लगे जैसा लग रहा था। और टेढ़ा मेढा सा था। बच्चे अक्सर ऐसी चीजे संभल कर रखते है जो उनको अछि लगती है।

डॉक्टर ने पूछा, “अच्छा ये बताओ,तुम उस दोस्त से रोज खेलती हो क्या?”

“हां मैं रोज खेलती हु। और मैं जहा जाती हु वो मेरे साथ आता हैं। स्कूल में भी” त्रिशा ने बताया।

“क्या वो यहाँ भी हैं? तुम्हारा दोस्त।” डॉक्टर ने पूछा।

“हा!!!” त्रिशा ने कहा। ऐसे अकहते ही डॉक्टर को थोडा अजिब महसूस हुआ। उसने अपने आसपास नजर दौडाके देखा। उनको सब कुछ नार्मल ही लग रहा था।

“फिर मुझे तो नहीं दिख रहा हैं। क्या वो सिर्फ आपको दिखता है? डॉक्टर उसको प्यार से पूछ रहे थे। और मंदार और स्नेहा केबिन के बाहर से सब देख सुन रहे थे।

“नहीं अंकल, वो मेरा दोस्त तो आपके पास खड़ा हैं। आपको देख कर हंस रहा है। वो ऐसे नहीं दिखता। ये सिक्का आपको हाथ में रख कर कहना हैं, “मुझे मरना हैं”,तभी वो दिखेगा।”

डॉक्टर को थोडा अजीब लगा लेकिन त्रिशा की बात सुन कर उनको भी लगा की उनके केबिन में कोई हैं। लगा जैसे एक ठंडी हवा का झोंका उनको छू कर गया हो। वो मन में ही मुस्कुराये और त्रिशा के पेरेंट्स को अंदर आने को कहा। “मिस्टर मंदार ,त्रिशा को थोडा प्रॉब्लम तो हैं। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं। ये आटिज्म की केस हैं। ऐसे बहोत से पेशेंट यहाँ आते है। इसमे जो लोग अकेले होते हैं वो अक्सर अपने मन में जो सोचते हैं वो सच्चाई में महसूस करते हैं और उनसे बाते करते हैं । ये बीमारी धीरे धीरे ठीक हो जाती हैं। चिंता की कोई बात नहीं। ये दवाई मैं देता हु। आप देना चालू करो और कुछ हो तो मुझे आकर मिलो। और हा…त्रिशा को खुश रखो और उसको मनपसन्द चीजे करने दो। उसको घुमाओ लेकिन अकेला मत छोड़ो।” मंदार और स्नेहा बस हां बोलकर वहां से निकलते हैं। वो सब घर जाते हैं।

इधर जैसे ही ये लोग जाते हैं डॉक्टर कोई पेशेंट न होने से वो भी थक कर आराम करने के लिए वाशरूम की तरफ जाते हैं हाथ मुह धोने के लिए। अचानक उनके दिमाग में त्रिशा की वो बात याद आती है। वो सिक्का त्रिशा वही छोड़ जाती हैं। सिक्का हाथ में उठा कर वो मन में ही बोलते हैं की, “क्या सच में “मुझे मरना हैं” यह कहने से वो बच्चा दिख सकता हैं?” और ऐसे बोल कर वो सिक्का बेसिन के ऊपर रख कर अपना चइश्मा निकाल कर चेहरे के ऊपर पानी लेते है। और जैसे ही वो अपना सर ऊपर करते हैं…..

शीशे में कुछ दिखता है धुन्दला सा। वो ठीक से देख नहीं पाते। रुमाल से चेहरा पोछ कर अपना चश्मा चढ़ा कर देखते हैं तो शीशे में कोई नहीं दीखता। उनको लगा की यह वहम होगा। और जैसे ही वो पीछे मुड़ते हैं, उनके बिलकुल पीछे……एक बेहद डरावना, जला हुआ बच्चा बैठा हुआ था। और वो उनको घुर रहा था।

डॉक्टर को सोचने तक का और आवाज देने का भी मौका नहीं मिला। वो इतना भयंकर था की एक बिजली सी उनके सीने में दौड़ गयी। और एक जोर का दिल का दौरा पड़ा और वो जमींन पर ही गिर गए। और जगह पर ही मौत हो गयी।

इधर वो सब चीजो से बेखबर, शाम को मंदार और स्नेहा,त्रिशा के पसंद का खाना आर्डर करते हैं और खाके सो जाते हैं।  

सुबह सुबह स्नेहा,मंदार के ऑफिस की तयारी में लग जाती हैं। मंदार को एक फ़ोन आता हैं। वो आँखे मूंदे ही फ़ोन उठाता हैं। और उसकी नींद जैसे एक झटके से उड़ जाती हैं। वो कुछ समझ पाता की स्नेहा वहा आ जाती हैं।

“स्नेहा त्रिशा के डॉक्टर की कल मौत हो गयी। दिल का दौरा पड़ा था। यार,ये क्या हो रहा हैं? समझ नहीं आ रहा।” मंदार ने उसको देख के कहा। त्रिशा अभी भी सो रही थी।

“मंदार,अब कैसे करेंगे?’ स्नेहां को अब चिंता होने लगी। “मुंबई में डॉक्टर्स की कोई कमी हैं क्या? हम दूसरा डॉक्टर देख लेंगे त्रिशा के लिए।” मंदार ने स्नेहा को समझाते हुए कहा।

मंदार को ये सब सुन कर अब ऑफिस जाने का मन नहीं था। वो ऑफिस में फ़ोन कर के आज की भी छुट्टी लेता है। सुबह का काम निपटा कर वो खाना खाने के बाद मंदार त्रिशा को बोलता हैं, “त्रिशा,बेटा आज मेरा मन आज घुमने का हो रहा हैं और आइसक्रीम खाने का हो रहा हैं। चले क्या ?” त्रिशा को आइसक्रीम बहोत पसंद थी। वो एकदम से तैयार होती है।

त्रिशा और मंदार जाते हैं और स्नेहा घर में ही रूकती हैं। आज उसको घर में बहोत काम थे। सफाई करनी थी और ये घर उनका किराये था। और यहाँ वो अभी शिफ्ट हुए थे। तो नए घर में काम तो रहता है। कल सारा दिन उनका दवाखाने में गया थे इसलिए आज काम थोड़े ज्यादा थे। वो यहाँ नए थे तो खास किसि से पहचान नहीं थी। एक ऑफिस वाला पहचान का था “शर्मा” जो पास में रहता था। जहा कभी त्रिशा खेलने जाती थी। उनकी लड़की लगभग एक उम्र के थे।

मंदार और त्रिशा गाड़ी में बैठ कर बाहर जाते हैं और स्नेहा अपना काम चालू करती हैं। स्नेहा को ये घर बहोत पसंद नहीं था लेकिन मंदार के ऑफिस के लिए उनको पास का कोई घर चाहये था। वो सफाई करते करते घर के पीछे जाती हैं तो वहा एक दरवाजा दिखता हैं। खोलकर देखा तो वहां सब पुराना सामान और कबाड़ रखा था। वो वहां जाती है तो हर तरफ धुल और मिटटी होती हैं। लगता है यहाँ सालो से कोई सफाई नहीं हुई थी। स्नेहा जैसे ही अन्दर जाती हैं उसको बड़ी ख़राब बदबू आती हैं। उसको लगता है की कोई बिल्ली ने चूहा तो नहीं मारा हैं यहाँ। हर जगह देखने के बाद धुल के सिवा यहाँ कुछ नहीं था। वो कुछ और धुंडने लगती हैं और उसको एक सिक्का मिलता हैं और एक पुराणी ट्रंक मिलती हैं।

उसको जैसे ही खोलती है,एक झटके से वो खुल जाता हैं और उसमे से कुछ निकालता हैं जो उसको धक्का मार कर उस रूम से बाहर भागता हैं। उसके पैरो के निशान निचे पड़ी धुल में साफ़ दिख रहे थे। स्नेहा भी उसके पीछे भागती हैं। वो घर के अन्दर जाता हैं। पैरो के निशान देख कर लग रहा था की वो एक बच्चा था। तभी त्रिशा की बात याद आति हैं की वो उसका दोस्त जो उसको मिलने आता हैं। अब स्नेहा घर के अन्दर थी। निशान अब ऊपर छत की तरफ गए थे। वो ऊपर भागती हैं। तभी कुछ एकदम ठंडा हवा का झोका उसको छु कर जाता है। और उसके बाद वो बच्चा उसको सीढियों के निचे दिखता हैं तो वो उसको झुक कर देखती हैं। वो बहोत ही डरावना था। एक बाजु से जला हुआ और आँखों से खून गिर रहा था। स्नेहा बहोत डर गयी लेकिन कुछ करती उसको बहोत जोर का धक्का लगता हैं और वो सीधा सीढी से जमींन पर आ गिरती हैं। सर से खून निकाल कर वो वही मर जाती हैं।

ये सब चीजो से बेखबर मंदार त्रिशा को आइसक्रीम दिला कर पूछता हैं, “त्रिशा, मुझे बताओ,तुम जिस दोस्त की बात करती हो,वो दोस्त आज तुम्हारे साथ नहीं आया। क्या उसको आइसक्रीम नहीं पसंद?’

“नहीं पापा,उसको तो आज खून पिने का मन हो रहा था। इसलिए वो आज घर में ही रुक गया।” त्रिशा ने जैसे ही ऐसा कहा, मंदार के जैसे होश ही उड गए। उसको स्नेहा की चिंता होने लगती हैं। वो त्रिशा को गाडी में बिठा कर अपना आइसक्रीम फेंक देता हैं। गाड़ी चालू कर घर के लिए भागता है। घर आते ही देखते है की घर का सामने का दरवाजा खुला हुआ है। और बाहर कोई नही हैं। मंदार भागते हुए अन्दर गया तो देखा, तो जैसे उसके पैरो के निचे से जमींन सरक गयी। वो थर थरा रहा था। सामने स्नेहा खून में लिपटी पड़ी हैं। मंदार एम्बुलेंस को फ़ोन लगाता हैं और सभी दवाखाने भागते हैं। ऑपरेशन रूम में जाते ही डॉक्टर बाहर आकर मंदार को कहते हैं, “सॉरी, ये पहले ही मर चुकी हैं। उनकी मौत तो लगभग दो घंटे पहले ही हो चुके हैं।”

मंदार एकदम टूट सा जाता हैं। अभी लड़की के तबीयत के सवाल उसके दिमाग में थे की उसको अपनी बीवी की मौत ने पूरा हिला कर रख दिया। उसकी मौत के तीन दिन बाद भी मंदार उस सदमे से बाहर नहीं आ पाया।  त्रिशा भी कुछ नहीं खाती थी। तभी शर्मा जी आते हैं। कुछ बाते होने के बाद शर्मा जी कुछ बताना चालू करते हैं।

“सुनो मंदार,तुम शायद मानते नहीं लेकिन त्रिशा की हालत बहोत ख़राब हैं। मैंने बताया नहीं लेकिन जिस दिन भाभी की मौत हुई उस दिन वो हमारे घर थी। तुम सब क्रियाकर्म में थे। यहाँ तृशा ने मेरी लड़की को हाँथ पर काँटा। काफी खून निकला और टांके भी लगे उसको। मैंने तुम्हे नहीं बताया। लेकिन जब मैंने उसको पूछा तो त्रिशा ने साफ मना किया और कहा की उसके दोस्त को त्रिशा का किसी और के साथ खेलना पसंद नहीं आया इसलिए उसने ये किया।”

“मंदार,मेरी सुनो तो अब डॉक्टर तो तुम कर रहे हो। लेकिन एक आदमी हैं जिसको मैं जनता हु जो ये ना समझने वाली चीजे कर लेता हैं। तुम कहो तो मैं बुलाऊ।” शर्मा जी की बीवी भी मंदार को यही दोहराती हैं।

मंदार अब राजी हो जाता है।

“निकोलस” नाम था उनका। वो एक चर्च में प्रीस्ट थे। घर में आते ही उनको ये बात तो पक्की हो गयी की घर में कुछ तो हैं। जो बहोत ही बुरी आत्मा हैं और उसके इरादे बहोत ही खतरनाक और डरावने हैं।

उन्होंने सब बात समझ ली और फिर त्रिशा से मिलने उसकी रूम में जाने लगे। त्रिशा अन्दर सो रही थी। उन्होंने जैसे उसका दरवाजा खोला,एक बच्चा जो पूरा जला हुआ था उसका गला दबा कर दीवाल के ऊपर घसीट रहा था। उसको फांसी लग रही थी। सब लोग डर गए। लेकिन निकोलस ने अपने गले से भगवान का क्रॉस निकाला और उसके सामने किया। वैसे ही उसने त्रिशा को छोड़ दिया और वहां से भाग गया। आज सब ने उस लड़के को देख लिया था। और अब त्रिशा की सब बाते समझ आने लगी। जो की सभी सही थी।  

निकोलस ने अब ये तो समझा की कोई साया हैं यहाँ जो बहोत डरावना हैं। लेकिन उसको क्या चाहिए ये समझ नहीं आया। वो धुंडने के लिए उसने इस घर की सारी चीजे देखना चालू किया। वो देखना चाहता था की ये जो सिक्के हैं वो आ कहा से रहे हैं। क्यों की अभी जब त्रिशा के रूम में ये सब घटना हुई थी तो वहां सिक्के पड़े हुए थे। हो न हो कुछ तो रिश्ता था इन सिक्को का और उस बच्चे का हैं।

पूरा दिन और आधी रात जागकर धुंडने के बाद सब लोग घर के पीछे बने उस रूम में जाते हैं। रात के कुछ १:३० बज रहा था। सब लोग साथ में मिलकर उस पीछे वाली रूम में जाने के लिए आते हैं। निकोलस सबसे आगे था। उस रूम में बिजली थी लेकिन कोई बल्ब नहीं था।

अँधेरे में निकोलस ने टोर्च से रूम के अन्दर देखने की कोशिश की। सब कुछ शांत था। वो सब अन्दर गए। लेकिन जब निकोलस को वो अलमारी दिखाती हैं,वो उसकी तरफ बढ़ता हैं। और जैसे ही उस अलमारी का दरवाजा खोलने की कोशिश करता हैं, उसकी नजर अलमारी के ऊपर जाती हैं,वैसे ही,…..

“ओह्ह्ह्हह…..माय …….गॉड…….”

वो जला हुआ बच्चा उसके ऊपर कूद जाता हैं  और उसका गला पकड़ लेता हैं। निकोलस भी डर जाता हैं। लेकिन जल्दी होश में आकर अपने हाथ में रखा क्रॉस सामने धर देता हैं। वो जला हुआ बच्चा चिल्लाते,रोते हुए वहा से गायब हो जाता हैं।

इस बात से ये पता चला की उसको वश में लाया जा सकता हैं। थोडा संभल ने के बाद वहा उनको वोही बक्सा मिलता हैं जो त्रिशा की माँ को यानि स्नेहा को मिला था। वो बक्सा खोलते ही बड़ी अजीब सी कपकपी महसूस हुई थी निकोलस को। वहा और भी सिक्के थे। अब समझ आया के ये यहाँ से आये थे।

यह सब देख कर निकोलस ने मंदार से कहा, “ये घर आपका हैं क्या? ये बक्सा और यह अलमारी यहाँ कहा से आयी। हमें ये सब जल्दी पता करना पड़ेगा। क्यों की आज हमने त्रिशा के साथ जो होते हुए देखा इसका मतलब के वो बच्चा त्रिशा से खेलने नहीं उसकी जान के पीछे पड़ा हैं।”

सुबह होते ही मंदार ने घर जिस एजेंट ने दिलाया था उसको फ़ोन किया। उसने उस घर के पुराने ओनर का नाम और नंबर दिया। उनको जैसे ही फ़ोन किया सब बाते पता चली। जो ओनर थे उनको ये कहानी उनके दादा ने बताई थी।

ये अलमारी और बक्सा काफी साल पुराना था। लगभग १०० साल पुराना। एक जमीदार खुदाई कर रहां था खजाने के लिए। उसके लिए एक डायन ने बच्चो की बलि मांगी थी। उस डायन ने ३ बच्चो की बलि मांगी थी। एक बलि देकर हो गया था। दूसरी बलि देनी थी। लेकिन कोई बच्चा नहीं मिला इसलिए डायन ने उसी जमीदार के बच्चे की बलि मांगी। पहले तो उसने मना किया लेकिन फिर धन की चाहत में उसने हा कहा।

लेकिन ये बात गाव वालो को न जाने कहा से पता चली। जब बलि देने की बारी आई तब सभी गाव वाले मशाल लेकर वह पहुच गए। उन्होंने उस डायन को जलाना चाह लेकिन उसको काला जादू आता था। वो काले जादू की बहोत बड़ी साधक थी। वो धन कमाना तो एक बहाना था। वो बच्चो की बलि से अपनी काले जादू की ताकद बढ़ाना चाहती थी। जैसे ही वो मरने लगी उसकी काली रूह उस जमीदार के बच्चे में चली गयी। तो लोगो ने उस बच्चे को भी जलाना चाहां। लेकिन ऐसे हो न सका। और वो बच्चा बिना जले रह गया। उस बच्चे को इन्ही सिक्को के साथ दफ़न कर दिया गया।

इस तरह वो धन जो मिला था वो शापित हो गया। वो शापित सिक्के सालो तक जमींन में गढ़े रहने के बाद भी वो शाप उनपे रह गया था।

लेकिन उस डायन की रूह तो उस बच्चे में रह गयी। और जैसे ही उस जमींन पर कुछ सालो बाद घर के पुराने मालिक ने काम चालू किया तो ये बक्सा मिल गया। जिनमे वो शापित सिक्के थे। उन्होंने इसको छुपाना चाहां। कुछ दिन के बाद वो खुद पागल से हो गए। और कहते हैं की उनको भी बच्चा दिखता था। बादमे वो सब ये घर छोड़ कर चले गए। लेकिन अब वो डायन वापस आ गयी हैं और उसको अपना ३ रा बलि चाहिए। इसलिए वो त्रिशा के पीछे पड़ी हैं।

ये सब बाते समझ आने के बाद अब निकोलस कोई गलती नहीं करना चाहता था। इधर देखा तो त्रिशा अब सिर्फ जिन्दा लाश बन चुकी थी। और जमींन पर गिर चुकी थी। निकोलस ने अपनी बैग में से पवित्र जल निकाला और उसके गले का क्रॉस हाथ में लेकर कुछ बोलने लगा। उसने पवित्र जल उस शापित सिक्को पर और उस अलमारी पे डाला।

जैसे ही उसने ऐसा किया, वो बच्चा सबको दिखने लगा। वो भाग रहा था। यहाँ वहां। अब उसका आवाज बहोत ही भयानक लग रहा था। वो अब खुद जलने लगा था। और वो शापित सिक्के भी एक एक कर के मिटटी हो रहे थे। वो डायन जो बच्चे में थी अब जलकर राख हो चुकी थी। और वो सिक्के भी।

अब त्रिशा को भी होश आ रहा था। वो उठी जैसे कुछ हुआ ही नहीं। अपने पापा को देख कर भागकर लिपट गयी। निकोलस का काम पूरा हुआ था। उसने उस डायन को मुक्त किया और त्रिशा को नयी जिंदगी मिली। लेकिन ये सब में त्रिशा को माँ की जुदाई सहनी पड़ने वाली थी।

निकोलस ने जाते हुए त्रिशा से पूछा , “ मुझसे दोस्ती करोगी त्रिशा?” लेकिन मैं सिक्का नहीं दूंगा। आइसक्रीम और चोकलेट दूंगा। चलेगा।”

त्रिशा सिर्फ मुस्कुरा रही थी।

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