शोर । अधूरे सपनो की कविता
ऐ खुदा!!! आज पूछता हु तुझे,
मेरे मन में ये कैसा शोर हैं?
दिल आज भी भटकता हैं,
जैसे मेरी मंजिल कही और हैं।
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ऐ खुदा!!! आज पूछता हु तुझे,
मेरे मन में ये कैसा शोर हैं?
दिल आज भी भटकता हैं,
जैसे मेरी मंजिल कही और हैं।
तुम से जुदा होकर
कहा जी पाएंगे हम,
सांसे गिनते रहेंगे …
तुम्हारी यादों के संग।
मान मिले कभी अपमान सही,
करता सब का स्वीकार रे,
झोली मेरी सदा रहे खाली,
मन भर के लेकिन जीता रे।
मैं फ़क़ीर कहलाता रे…….
हाँ! मेरा पुराना इश्क चाहता हु।
शायद दबा सा,डरा सा सही,
लेकिन सच्चा हमदर्द चाहता हु।
हाँ! मैं आज भी मुहब्बत,
पुराने ज़माने वाली चाहता हु।
तुम नहीं हो मेरी जिंदगी में,
लेकिन एक आस लगाये बैठे है।
कभी तो वो मोड़ पे तुम फिर से मिलोगी,
ये शमा दिल में सुलगाये बैठे हैं।
सोचते हैं की दुनिया में कुछ ही कर सकते हैं,
ऐसे कुछ….. सोचने वालो के लिए कर ऐसा।
तेरे हौसलों में तू इतनी ताकद भर दे,
की हर कोई बनना चाहे तेरे जैसा।
तुम मेरे लिए क्या हो,
ये तुम जानते नहीं।
जिक्र सारे जहा से हैं,
लेकिन तुम्हे इसकी कोई फिक्र नहीं।
डूबते हुए सूरज को,
शायद मैं रोक लेती।
वो अजनबी मुलाकात,
कभी खत्म ना होती।
आज कॉलेज का आखरी दिन था,
हमेशा की मस्ती आज नहीं थी।
जहां हर दिन कदम खुद मुडते थे,
वो कॉलेज आज हमसे छूटने वाला था।
धुप की चिलचिलाहट से,
मिली राहत सबको।
खिलखिलाता गुनगुनाता,
मुबारक हो सावन सबको।