वो अजनबी मुलाकात | एक अनजान दोस्ती पर कविता

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जिंदगी में ऐसे बहोत से चेहरे सामने आते हैं। लेकिन कुछ अजनबी चेहरे और अनजान मुलाकात कभी अपनी याद इस दिल में छोड़कर जाते हैं……. ऐसी ही कोई मुलाकात जब होती हैं तो दिल खुद से बातें करता हैं…… कुछ ऐसे।

तुम शायद वोही हो ना?
चुपचाप से लाइब्रेरी में बैठते थे,
वो लास्ट बेंच,विंडो सीट,
कही देखा हैं मैंने तुम्हे…….

हम शायद कही तो मिले थे,
मैं तुमसे टकराई थी।
और मेरी किताबे गिरी  थी,
तुमने साफ़ करके दी थी।

या शायद मेरी चुनरी,
तुम्हारी घडी में अटक गयी थी।
वो… फिल्मो में होता वैसे,
तुमने निकाल के दी थी।

उसके बाद तुम कही नहीं मिले,
शायद मिलते तो कुछ बात होती।
कोई मुलाकात के बाद,
अपनी भी कोई स्टोरी होती।

हम भी कभी लड़ झगड़ लेते,
मैं रुठती, तुम मनाते।
थिएटर की कार्नर वाली सीट लेके,
हम एक ही टब में पॉपकॉर्न खाते।

समुंदर के किनारे दूर तक घूम आते,
रेत का छोटा सा घर हम वही बनाते।
वो ठंडी हवा की हलकी सी चुभन,
महसूस कर तुम अपने आगोश में लेते।

डूबते हुए सूरज को,
शायद मैं रोक लेती।
वो अजनबी मुलाकात,
कभी खत्म ना होती।

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