अब रमेश शांत है.. डर ने उसको हमेशा के लिए चुप कर दिया है.. अब सब पहले जैसा कहा था..ऐसा लगता है मानो डर हमेशा के लिए घर कर चूका था.. रमेश के सीने में, दिमाग में, उसकी आँखों में! रोज डॉक्टर के चक्कर बंद हो गए है अब तो.. सब ने हार मान ली थी !
पर केदार के जाने से पहेले ऐसा नहीं था.. सब कुछ नार्मल था| रमेश आज जैसा है वैसा नहीं था.. बिलकुल नहीं था|
ये तब की बात है जब रमेश एक स्टील प्लांट में नौकरी करता था | प्लांट काफी बड़ा था, जॉब करने वाले लोग भी बोहोत थे.. आसपास के लोगो के लिए ये प्लांट रोजी रोटी देता था|
इसी के चलते रमेश भी शादी के बारे में सोचने लगा था| पिछले ही साल उसने अपना पुराना मिटटी का घर तोडके पक्का मकान बनाया था |
रमेश और केदार साथ में आते जाते थे | कभी साथ में उनकी शिफ्ट भी होती थी! केदार उसके चाचा का लड़का था| वो पास में ही रहेता था | केदार भी बोहोत मिलनसार लड़का था|
वो गर्मी के दिन थे.. आज दोनों दोपहर की शिफ्ट में काम कर रहे थे| केदार रमेश से “अरे! रमेश तू कण्ट्रोल रूम जा, मै साईट पे देख के आता हु.. देखता हु सब ठीक है क्या वहा!”
रमेश बोला- “हा यार ये लेबर ध्यान नहीं देते, और बॉस हमको गाली देगा.. इसीलिए खुद से देख लो सब कंवेयेर बेल्ट सही तो है!” इतना बोलके केदार हेलमेट पहेन के साईट पे चला जाता है और रमेश कण्ट्रोल रूम में आता है | रमेश के कण्ट्रोल रूम पोहोचते ही वहा मिश्राजी भी आ जाते है| मिश्राजी केदार और रमेश के सिनिअर है पर रहते दोस्तों जैसे है|
“अरे बाबु रमेश, पहले मिठाई खाओ यार!” मिश्राजी मिठाई का पैकेट खोलते हे |
रमेश –“मिश्राजी, क्या बात हे ? बोहोत खुश हो आज ..कोई लॉटरी तो नहीं लगी?”
मिश्राजी –“अरे बाबु, मेरी गुडिया है न वो क्लास में फर्स्ट आयी है, वो डॉक्टर बनेगी कहती है इसलिए में बोहोत खुश हु| ”
बातों में दोनों इतने गुम हो जाते है की स्क्रीन पे अचानक एक बटन दब जाता है.. वहा साईट पे केदार जहा खड़ा था वहा का गरम डस्ट का चेंबर खुल जाता है और डस्ट निचे गिरती है.. केदार भागता है पर डस्ट उसको अपने आगोश में ले लेती है | लोग पानी लेके दौड़ते है पर बोहोत देर हो जाती है | केदार का शरीर पूरा गल जाता है .. उसको दबे हुवे डस्ट से बाहर निकलतेही उसका गला हुआ शरीर देख रमेश बेहोश हो जाता है .. केदार के बॉडी से चमड़ी गायब रहेती है और बाकि सिर्फ कंकाल रहेता है | ऐसे हादसे यहाँ अक्सर होते थे पर आज ऐसा होगा पता न था!
इधर हॉस्पिटल में रमेश को होश आता है.. मिश्राजी और रमेश के घरवाले वहा होते है, उनको देखते ही रमेश रोने लगता है “मुझे माफ़ कर दो.. ये मेरी गलती से हुवा.. मुझे माफ़ कर दो केदार!”
काफी दिनों तक केदार का हादसा रमेश भुला नहीं पाता… डॉक्टर को दिखाना चालू था| हसमुख रमेश अब गुमसुम रहने लगा था| प्लांट जाता था पर वो बात याद आती थी तो डर जाता| वो अब हनुमान चालीसा पढ़ने लगा था क्यूँकि नाईट शिफ्ट में उसका सामना उस जगह से होता था जहा वो हादसा हुआ था| हनुमान चालीसा वो अपने सीने के पास, अपनी जेब में रखता था|
एक दिन नाईट शिफ्ट चल रही थी| रमेश को आज शिफ्ट संभालना था| उसको एक ऑपरेटर के साथ काम करना था| ऑपरेटर को रूम में रख के वो साईट पे देख रहा था| रमेश घूमते घूमते एक ऊँचे टावर पे गया, यहाँ से प्लांट पूरा दिखता था| लाइट की वजह से सब कुछ साफ़ दीख रहा था| अचानक कुछ हिला.. रमेश संभला.. तो फिरसे हिलना चालू हुआ.. देख के विश्वास नहीं हुआ, पर इतने बड़े लोहे के पोल हिल रहे थे.. न हवा थी न भूकंप!
रमेश दौड़ता हुआ निचे आया| सब वाक्या अपने साथी को बताया.. वो हँसने लगा.. डर के मारे रमेश रात भर साईट पे गया ही नहीं|
दुसरे दिन भी नाईट शिफ्ट थी.. आज साईट पे क्लीनिंग चल रहा था| पूर्णिमा की रात थी.. आज चाँद खुल के निकला था| रात कुछ १:०० बजा रहेगा, इस वक्त टि ब्रेक होता है पर आज मेनेजर ने ब्रेक बादमे लो बोलके रोक लिया सबको| अचानक अजीब सी आवाज आयी, और वहा का लोहे का ढांचा हिल गया.. और देखते ही देखते वो लोहे का ढांचा लेबर के ऊपर गिर गया.. ४ लोग दब के मर गए.. सब की चींखे रमेश के सामने निकली थी.. खून बाहर बेहेने लगा था.. और ऊपर देखा तो क्या?? ऊपर केदार का साया था, मानो हवा में लटक रहा था| ये देख के तो रमेश की जुबां सुख गयी.. वो हिल भी न पाया.. केदार की प्रेत आत्मा का चेहरा देख के रमेश की आँखों में खून जम गया|
केदार की आत्मा ने जोर से चींख निकाली.. ऐसा लगा जैसे कान फट जायेंगे.. जोर से हवा चलने लगी.. कुछ दिख भी नहीं रहा था.. ऐसा लग रहा था की आज सब का अंत आ गया, इतने में मिश्राजी आ गए वहा.. वो भी शिफ्ट में थे आज.. अब केदार की आत्मा ने अपना रुख मिश्राजी की तरफ मोड़ा.. मिश्राजी कुछ करते की उनके ऊपर बड़ा सा लोहे का रॉड आके लगा.. वो वही ख़तम हो गए.. उनके खून से रमेश पूरा गिला हो चूका था| इतने में वहा सिक्यूरिटी वाले आ गए.. वो खुनी मंजर देख के उनकी भी सांसे रुक सी गयी.. उन्होंने रमेश को वह से उठाया और उसे अन्दर ले गए .. बादमे पुलिस पोहोंच गयी|
केदार की रूह अब लोगो को मारने लगी थी.. वो बोहोत गुस्से में था| उस रात शायद रमेश का नंबर था पर बच गया वो.. और बेचारे लेबर मारे गए! मौत का साया मंडरा रहा था सब पर!
रमेश को अब दुसरे दिन होश आया तो खुद को हॉस्पिटल में पाया| अब रमेश काम पे ज्यादा नहीं जाता.. उसकी डर के मारे नींद उड़ गयी थी| उस रोज के बाद से हादसे चालू होने लगे थे प्लांट में! केदार की रूह किसी को चैने से रहेने नहीं दे रही थी.. मिश्राजी को भी उसने नहीं छोड़ा, शायद केदार की रूह सबको उसकी मौत का जिम्मेदार मानती थी|
अब प्लांट बंद है.. सुना है वहा होम हवन चल रहा था.. पूरा ७ दिन चला पूजा पाठ! पर उसके बाद भी वह काम न हो सका!! कुछ दिन बाद ही मालिक की अचानक मौत हो गयी.. लोगो का केहेना है की उसको भी केदार की रूह ने मारा.. कुछ सुराग हाथ नहीं लगा अभी तक!
रमेश अब पागल सा हो चूका है.. कुछ बोलता नहीं.. डर हमेशा उसकी आँखों में होता है.. मानो उसने खुदकी मौत देखी हो!!!
(नोट– दी गई कहानी काल्पनिक है, इसका किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु से कोई संबंध नहीं है। हमारा उद्देश्य अंधश्रद्धा फैलाना नहीं है, यह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से बनायी गयी है।)
Great initiative… Wish to see more such lovely stories/ article…
Thanks a lot! we will be having more such stories/poems soon.. keep reading and enjoy!
Bahut hi badiya tarike se prastut kiya h.. 😄
धन्यवाद! आपका बहुत स्वागत है!
अच्छा लिखा हैं, पढते पढते वाचक को वह भयानक मंझर नजर आता है । लिखते रहिये 👍
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Very well done…. While reading I got goosebumps 🥶🥶🥶😰….. Share more stories like this👍👍👍
धन्यवाद। आपके कॉमेंट्स हमें मोटीवेट करते है। भविष्य में आपको ऐसी ही रोचक कहानियां पढ़ने मिलेगी। पढ़ते रहिए।
Nice story .
धन्यवाद। आपका बोहोत स्वागत है। पढ़ते रहिए।