पिशाचीनी – भूत की कहानी

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हमारे जंगलो में ऐसे बहोत से राज दफ़न हैं जिनको अगर खोला जाये तो कयामत आ जाये। ऐसे कुछ राज चाहकर भी कभी दफ़न नहीं हो पाते और वो जब बाहर आते है तो लोगोका जीना मुश्किल हो जाता हैं।

महाराष्ट्र के पुर्वीय प्रदेश जहा बहोत घना जंगल हैं ये बात वही की हैं। बड़े शहरों में तो समाज काफी सुधर चूका हैं लेकिन यहाँ आदिवासी जमात के लोग अब भी पूजा पाट, बलि देना ये सब बातो में बहोत यकीं करते हैं और उनका फायदा लेने वाले उनको इसी में डूबाके रखते हैं। जहा शिक्षा और ज्ञान की कमी हो वहां फिर और क्या होगा!

घने से जंगल में बसा एक गाँव …….. उमरिया। यहाँ न डॉक्टर का कोई अतापता हैं न कोई ज्ञान का। यहाँ का ज्ञान सारा के सारा बाबा लोगो के पास हैं। वही लोगों को बहला फुसला कर लूट रहे थे। लेकिन कुछ ऐसे हुआ की इस गाँव में एक के बाद एक मौते होने लगी या यु कहो की लोग गायब होने लगे। न कोई खबर और न कोई पता ठिकाना। घरवाले लापता लोगो को ढूंडते और थक कर उसको भूल भी जाते। ऐसा कुछ चल रहा था उमरिया गाँव में।

शशि की लड़की बहोत बीमार थी। महीने हो गए वो खटिया से उठी नहीं थी। क्या हुआ था ये तो बस वो वैद ही जानता था। लेकिन खुलके कभी बोलता नहीं था। घर का जो भी बचा कुचा सब दाव पर लग चूका था लेकिन शशि की लड़की में कोई बदलाव नहीं आया था। वो जैसे अब मरने का इंतेजार कर रही थी। एक दिन शशि, उसकी बीवी और बेटी वैद के घर गए थे। वैद बोला, “शशि, तेरी लड़की को कोई भयंकर बीमारी है। मुझे लगता है ये सारे गाँव में फ़ैल जाएगी। तुम दोनों भी दूर रहो इससे। तुम दोनो भी मर जाओगे।”

ऐसे सुनते ही शशि की बीवी रखमा अपनी बेटी को सीने से लगा के रोने लगी। शशि को भी अब रोना रोका नहीं जा रहा था। वो मुंह छूपाके रोने लगा। बेचारे करते भी क्या? वैद आगे कहता है, “मुझे तो लगता है, ये अब कुछ दिन की मेंहमान है। लेकिन ये जल्दी मर जाये तो गाँव का कल्याण होगा। वरना ये महामारी फैला देगी। मेरे पास एक दवाई है जो इसको देते ही कुछ ही समय में ये मर जाएगी। तुम भी बचोगे और सारा गाँव भी। कहो तो मैं दे दू इसको।”

ऐसा सुनते ही शशि अपनी लड़की को गोद में उठा लेता है। “ अरे हैवान वैद, तुझे अकल हैं क्या? मैं खुद अपनी बच्ची को मार दू क्या? ये पाप लेकर मैं कैसे जिऊंगा? तू कोई वैद नहीं कसाई है, कसाई।” इतना बोल के शशि और उसकी बीवी घर की और चल दिए।

आँखों से बहते आसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। बारा साल की बच्ची बीमारी से बिलकुल आधि हो गयी थी। न कुछ खाती थी न उसका वजन बढ़ता। शशि उसको लेकर घर की तरफ जाने लगा। बिचमे घना जंगल पड़ता था। वहां से रास्ता निकालते हुए वो शाम होते अब घर पहुचने वाले थे। सुरज अब डूब चूका था लेकिन उनका घर नहीं आया था।

अचानक शशि के कान में कोई फूंक मार के चला गया ऐसे लगा… वो थोड़ी देर के लिए रुका, फिर कुछ नहीं है सोच के आगे बढ़ा। अँधेरा हो चूका था। ऊपर आसमान की तरफ देख कर रास्ता खोज रहे थे। तभी एक अजीब सी आवाज आई लेकिन उसे सिर्फ शशि ही सुन सका।

“अपनी बच्ची को ठीक करना चाहता है?” वो आवाज बहोत ही डरावनी सी थी। मानो कितने सारे कौवे एक साथ चिल्ला रहे हो। “अगर हां हैं तो कल रात को सामने के टीले के पास आ जाना।” और वो आवाज अचानक से गायब हुई। शशि ने अपनी बीवी से पुछा, “तुमने कुछ सुना?” उसने ना में जवाब दिया।

घर जाकर शशि उसी के बारे में सोच रहा था। क्या ये सच था या मेरा कोई वहेम था? लेकिन अगर ये सच हुआ तो? यही सोचा में वो डूब चूका था।

सुबह हुई लेकिन शशि को तो रात का इंतेजार था। वो यहाँ वहाँ घूम रहा था। उसके मुह से शाम का निवाला भी नहीं उतर रहा था। उसको अपनी लड़की की तबियत ठीक करनी थी। वो थैला उठा के जंगल की तरफ जाने लगा। उसको पता था की ये जंगल शापित हैं। यहाँ नरभक्षी पिशाचीनी का ठिकाना हैं। लेकिन अपने लड़की की तबियत के सामने उसको कुछ भी नहीं दिख रहा था।

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उसकी बीवी ने उसको रोकते हुए बोला, “इतनी रात को कहा जा रहे हो?” शशि ने कहा, “ मैंने सुना है, उस पहाड़ी पे कोई नया बाबा आया है। बहोत पहुँचा हुआ है। उससे मिलकर आता हु शायद कुछ फायदा हो।” और वो सीधे अँधेरे की तरफ चलने लगा और सामने से जंगल में कही गुम हो गया। वो सीधा कल वाली जगह तलाशने लगा। वो उस टीले के पास पंहुचा और उसने आवाज लगायी, “मैं आ गया हूँ, मेरी लड़की को ठीक करने का कोई उपाय बताओ??”

“मुझे पता था तू आयेगा” वही भयंकर आवाज अब बहोत ही ज्यादा जोर से सुनाई दे रही थी। अब वो सामने प्रकट हो गयी। वो भयंकर रूप में जमीं के ऊपर ही उड़ रही थी। सड़े मांस कि गंध आने लगी थी। उसका डरावना काला रूप देख कर शशि को पसीने छूटने लगे। हाथ पाव कांपने लगे। क्यों की वो एक ……

पिशाचीनी” थी।

“तू डर मत। मैं तेरी लड़की को ठीक कर दूंगी, लेकिन मेरा एक काम हैं वो तुझे करना होगा। बोलो मंजूर है तो मैं आगे बोलूंगी।”
पिशाचीनी की ये बात सुन कर शशि बोल पड़ा, “अगर मेरी बच्ची ठीक हो जाये तो मैं सब कुछ करने को तैयार हूँ।”

पिशाचीनी आगे कहती है, “कल यहाँ एक बकरे की बलि देनी होगी। तू उसको माँरेगा और यहाँ जमीन में गाढ़ के चला जायेगा। इतना तुझे करना है, तेरी बच्ची ठीक हो जाएगी।”

इतनी सी बात हैं इसलिए शशि वहां से भागता हुआ घर पहुचता है, और दुसरी रात को सब सो जाने के बाद घर का एक बकरा अपने कंधे पे लाद के जंगल में चला जाता है। वहां जाकर उस बकरे की बलि देकर गढे में दफ़न कर घर चला जाता है।

यहाँ घर पहुचते ही देखकर चौंक जाता है। उसको अपनी आँखों पर यकीं नहीं होता। उसकी लड़की उठकर खाना खा रही होती है। वो ये देख कर ख़ुशी से झूम उठता है। वो भी साथ में बैठ कर खाना खाता है। सुबह फिर से शशि उस जंगल में जाकर उस पिशाचीनी का शुक्रिया करने का सोचता है। वहां पहुंचते ही, वो पिशाचीनी एकदम से प्रकट होती है। भयंकर मांस के सड़ने की गंध और कौवो का चिल्लाना।

“आ गया तू। मैंने अपना काम कर दिया। लेकिन अगली अमावस्या को मुझे एक बलि चाहिए। यही पर। लेकिन इस बार……इन्सान की।”

शशि सुन के डर जाता है और हकलाते हुए कहता हैं, “मम….मैं इन्सान को नहीं मार सकता। मुझे माफ़ कर दो।”
“सुन शशि, तेरी लड़की मेरी वजह से ठीक हुई है। अगर तू मुझे बलि लाकर नहीं देता है तो मैं तुझे मार दूंगी या फिर तेरी बच्ची को। बलि तो तुझे देनी ही होगी। सोच ले।” पिशाचीनी चिल्लाकर गायब हो गयी।

शशि घर आकर सोच में पड जाता है। अपनी बच्ची को चलते फिरते देख कर वो अपने सारे ग़म भूल जाता है। देखते देखते अमावस्या की रात आती है। नरबली देना कोई खाने कम नहीं है ये शशि जानता था।

किसीको गाँव में खबर न हो इसलिए गाँव में आये एक भिकारी को खाने का लालच देकर वो वहां जंगल में लेके जाता है और कुल्हाड़ी के एक ही घाव में उसको मौत के हवाले कर देता है। वही गड्ढा कर के उसको गाढ़ देता है। इधर वो घर आकर देखता है की उसकी लड़की एकदम से ठीक हो गयी हैं। शशि की ये सब हरकते उसकी बीवी से छुपी नहीं थी। वो सब जान चुकी थी। लेकिन कुछ बोलि नहीं। उसकी लड़की ठीक हो गयी थी। उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था।

लेकिन दिन प्रति दिन शशि बदल रहा था। सीधा इन्सान!! अब हर अमावस को वो इंसानों को मार रहा था। लोगो को शक न हो इसलिए दुसरे गाँव से लोगों को गायब कर रहा था। आसपास के सभी गाँव में लोगो के गायब होने का सिलसिला सा चालू हुआ। शशि ऐसे लोगों को मारता था जो समाज के लिए खतरा थे या जो लोग दूसरों को परेशान करते थे। इस वजह से लोग भी जरा शांति से थे की दुष्ट लोग मर रहे थे। और इधर शशि भी मैं समाज की मदत कर रहा हु इस ख़ुशी में जी रहा था। ऐसे करते महीनो और साल बीत गए। अब शशि की लड़की की शादी की उम्र हो चुकी थी।

नरभक्षी पिशाचीनी को अब हमेशा से नये शिकार को खाने की आदत सी पड गयी थी। लेकिन जैसे ही शशि की लड़की की शादी की खबर उसको लगी वो घुस्से से तिलमिला उठी। वो सीधा शशि के घर पहुची। सब उसको देख कर घर के बाहर निकल गए। उसका भयंकर काला रूप और सड़े मांस की गंध ने सबको वहा से भगा दिया। लोग अब शशि को शक की निगाह से देखने लगे। ये कौन है ये पुछने लगे।

घर पहुचकर पिशाचीनी ने शशि से कहा, “तेरी लड़की मेरी अमानत है। तू इसको किसी और को नहीं दे सकता। उसकी शादी हो गयी तो उसपे मेरा वश नहीं चलेगा। मैं ऐसा होने नहीं दूंगी। उसको मार दूंगी” पिशाचीनी को पता था की अगर शादी हो गयी तो शशि उसको शिकार देना बंद कर सकता हैं।

शशि उसके सामने रोता हैं और लड़की की जान की भिक मांगता है। उसपे पिशाचीनी कहती है, “मुझे एक नौजवान की बलि चाहिए। ये जो तेरा जमाई है न होने वाला, उसकी बलि चाहिए। ये अच्छा आदमी नहीं है उससे तेरी लड़की की शादी मत कर। वो उसको मार डालेगा। मैंने भविष्य देख लिया है।”

शशि उसकी बातों में आ जाता हैं और पूजा करने के बहाने से अपने होनेवाले जमाई को जंगल में लेके जाकर कुल्हाड़ी से उसपे वार कर मार डालता है। उसको मारते हुए उस लड़के का बाप देख लेता हैं। इतने में वो नरभक्षी पिशाचीनी वहां आ जाती है। “शशि, आज तक तूने सभी बुरे लोगो को मारा था। लेकिन सबसे पहली बलि वो भिकारी जो की बेगुनाह था और ये तेरा जमाई भी बेगुनाह था। लड़की के प्यार में तू अँधा था। और अब तू पाप कर के पापी बन गया है। अब तू शैतान बन गया है। हा…हा…हा….” वो शैतानी दर्दनाक हँसी चारो तरफ गूंजने लगती हैं।

पीछे से जमाई का बाप शशि पे टूट पड़ता हैं। ये देख के पिशाचीनी जमाई के बाप के शरीर में प्रवेश करती हैं और शशि को मार डालती है। और शशि के मरने के बाद उसके शरीर से निकल जाती है। ये सब देख के जमाई का बाप कुछ समझ नहीं पाता। क्या हुआ ये सोचते रहता है। वो अब खुनी बन गया था। अपने लडके की लाश के पास बैठ के रोने लगता है। तभी पिशाचीनी की आवाज आती है।

“तू अपने लड़के को जिन्दा देखना चाहता है?”
“अगर हा, तो शशि की लाश को गड्ढे में डाल के दफ़न कर दो और मुझे हर अमावस की रात को एक इन्सान की बलि लाकर दो। अगर मंजूर है तो बोलो।”
लड़के का बाप मजबूर हो जाता है। सामने लड़के को मरा देख कर पिशाचीनी को हाँ कहता है। उसके हाँ कहते ही लड़का जिन्दा हो उठता है…

(नोट- दी गई कहानी काल्पनिक है, इसका किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु से कोई संबंध नहीं है। हमारा उद्देश्य अंधश्रद्धा फैलाना नहीं है। यह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से बनायी गयी है।)

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