वो अजनबी मुलाकात | एक अनजान दोस्ती पर कविता
डूबते हुए सूरज को,
शायद मैं रोक लेती।
वो अजनबी मुलाकात,
कभी खत्म ना होती।
हिंदी के लिए हमे डायल करे
डूबते हुए सूरज को,
शायद मैं रोक लेती।
वो अजनबी मुलाकात,
कभी खत्म ना होती।
कभी किलकारियां गूंज उठती थी,
रोज कानोमें जगाने को।
आज शाम भी दस्तक नहीं देती,
बत्तियां लगाने को।
गली के उस कोने से आवाज आयी,
सुना है किसी के नाम की चिट्ठी आयी।
मन मोर बन के नाचने लगे,
लगा जैसे बिन बादल बरसात आयी।
सुना है किसी के नाम की चिट्ठी आयी।