हमारे यहाँ पुराने ज़माने से भुत,पिशाचों के बारे में कई कहानिया सुनी सुनाई जाती है। हम कुछ बातों को गौर करते है तो किसीको मजाक में लेके भूला देते है। पर कुछ ऐसे ही भुला दी हुई पिशाचों की बात जब अचानक से सामने आती है तो डर क्या होता है, पता चल जाता है।
मेरा नाम राजन है। मैं मार्केटिंग में एक जगह काम करता हु।मेरी नौकरी की वजह से मुझे हमेशा यहाँ वाहा घुमना पड़ता है। रात के समय बहोत बार लॉज,होटल में रुकना होता है। वैसे तो उसका पैसा कंपनी देती है। लेकिन कुछ पैसे बच जाये इसलिए मैं छोटे होटल में रुक कर ज्यादा का बिल बनवा लेता था। ताकि वो जोड़ के कुछ ऊपर की कमाई हो सके। पर कभी सोचा नहीं की ये सब मेरी जान पर बन आयेगा।
मैं एक बार शाहपुर नाम के छोटे से शहर के लिए अपनी बाइक से निकला था। कंपनी का काम था और वहा से आर्डर भी लेने थे। शाम तक काम हो जायेगा इसलिए मै जरा आराम से था। लेकिन सारे आर्डर लेते हुए रात के आठ बच चुके थे। अब अपने घर जाना मुश्किल था। सोचा की यही कही सस्ता सा लॉज देख लेता हु सो रात के ठिकाने का बंदोबस्त हो जाये।
एक दुकान वाले से पूछा, “अरे भाईसाहब,यहाँ कोई लॉज है क्या? कोई सस्ता हो तो बताओ।”
उसने मेरी और देखा और अनदेखा कर के बोला, “यहाँ कोई लॉज नहीं है। हा! लेकिन यहाँ से दो मिल पे एक छोटा ढाबा है। वाहा तुम खाना खाओ तो वो रुकने का इंतेजाम कर लेते है।”
मैं उसको मन में ही ठीक है बोल के निकला। तभी उसने आवाज लगायी। पीछे वही दुकानदार आ रहा था।
मेरे पास आके वो रुक गया और बोला, “हाईवे पे यहाँ से सीधे जाना। कही रुकना मत। सीधे वो ढाबे पे ही जाना। रास्ते में भूतोंका डेरा है। तुम नये हो पाता नहीं होगा। कोई रोके तो भी नहीं रुकना।”
मैं गर्दन हिलाके वहा से चला गया। मैंने ऐसी बाते सुनी तो थी पर यकीन कौन करता है आजकल।
थोड़ी ठंडी हवा चल रही थी। हेलमेट के अन्दर भी मुझे महसूस हो रहा था। मुझे ठंडी से जुकाम होता है इसलिए जैकेट पहना था मैंने। शहर से जैसे बाहर निकला घनी सी झाडिया चालू हुई। एक बड़ा सा मोड़ आया तो मैंने गाड़ी जरा धीरे की और हॉर्न बजाया। तभी एक पेड़ के निचे एक आदमी सोया दिखा। मैंने सोचा कोई भिकारी होगा या कोई दारू पीके पड़ा होगा। मैं बिना रुके वहा से चला गया। थोड़ी दूर जाने के बाद एक रोशनी दिखी। मुझे लगा के वही ढाबा होगा जो वो दुकानदार बोल रहा था।
पास जाके देखा तो एक छोटा सा घर था।बाहर लिखा था – “होटल माया”
एक दिया जल रहा था। और बाहर एक कोने में आग भी जल रही थी। पास में कोई दिख नहीं रहा था तो मैंने बाहर से ही आवाज लगाई, “कोई है?”
काफी देर के बाद एक दिया लेके एक बुढिया आयी। वो काफी उम्र की लग रही थी। लकड़ी के सहारे चल रही थी। देखने से सब कुछ ठीक लगा तो मैंने उस बुढिया से पूछ लिया – “अम्मा, यहाँ रात के लिए रुकने के लिए कोई कमरा मिलेगा? जो बनता है वो किराया दूंगा।”
मैंने सोचा की ये क्या किराया लेगी। सौ पचास देके निकल जाऊंगा और सुबह पांचसौ का बिल बनाके ऑफिस में दे दूंगा।ऊपर का अपना फायदा ही होगा।
वो बोली “हा। अगर खाना चाहिए तो वो भी मिलेगा।”
मैंने साथ में कुछ बिस्कुट और चिप्स के पैकेट्स रखे थे। ये सब मैं हमेशा साथ में रखता हु। सोचा के इसको रात को दीखाई देता होगा के पता नहीं। खाना बनाने में कितना टाइम लगे,क्या पता।
मैं बोला, “नहीं अम्मा, मैं शहर से निकला तो खाके आया था वहा से। तुम कमरा दिखा दो, सुबह जल्दी निकलना है।”
वो इशारे से चलने को बोली। मैं उसके पीछे चला गया। घर अन्दर से काफी साफसुथरा था। भीतर जाते ही दाहिनी तरफ दो कमरे थे। एक में मुझे छोड़ कर वो चली गयी। मै भी थका हुआ था।थोड़े बिस्कुट खा लिए और साथ में लाया पानी पीके खटिया पे लेट गया। खटिया जरा छोटी थी। मेरे पैर बहार लटक गए। मै पैरों को थोडा मोड़ के करवट लेके सो गया।
थका हुआ था तो जल्दी नींद भी लग गयी। मेरी आँख खुली तो बारा बज चुके थे। मैंने अपना मोबाइल उठाया तो पता चला। मुझे कुछ कुतरने की आवाज आयी। मोबाइल की टौर्च लगायी तो देखा चूहा था। उसको भगाया और सोने की कोशिश करने लगा।
तभी बहार से रोने की आवाज आयी और साथ में कुछ तोड़ने की भी। मैं जरा चौक सा गया। मोबाइल लेके मैं दरवाजे के पास गया, आवाज बाहर से आ रही थी।
मैंने धीरे से बहार झाकने की कोशिश की पर वहा कुछ दिखाई नहीं दिया। सोचा बुढिया को आवाज लगाऊ लेकिन वो इतनी रात में कहा जागने वाली है, यह सोच के चुप रहा।
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हिम्मत कर के धीरे से दरवाजा खोला। डर तो मैं भी गया था। एक तो अँधेरा था और ऊपर से वहा बिजली नहीं थी। रात को अचानक ऐसे आवाज आएगी, डर तो लगता ही है न!
मैंने मोबाइल का टौर्च ऊपर कर के बहार निकला। आवाज बाजु के कमरे से आ रही थी। मैंने अन्दर झाकने की कोशिश की पर कुछ देख नहीं पाया। मुझे पहले लगा के मेरे जैसे कोई मुसाफिर होगा जो रात के लिए रुका होगा और अपनी बीवी से झगडा हुआ होगा। क्यू की रोने की आवाज औरत की थी।
मैंने दरवाजा खटखटाया – “खट खट!”
एक झटके से दरवाजा खुल गया। मेरी धड़कने एकदम से तेज़ हो गयी।
अन्दर पूरा अँधेरा था। कोने में एक दिया जल रहा था।उसकी रोशनी में वो बुढिया बैठी थी। अभी वो बुढिया बहोत ही भयानक दिख रही थी। वो मेरी ही तरफ अपनी लाल आँखों से देख रही थी।
मैंने जैसे मोबाइल का टौर्च पुरे कमरे में घुमाया, मैं चकरा गया।एक आदमी सफ़ेद कपडे पहन के था। पुरे कपडे खून से रंगे हुए थे। और वो लकड़ी के लट्ठे पर कुछ काट रहा था। वो जो आवाज आ रही थी काटने की, वो यही से थी।
ये वही आदमी था शायद जो मुझे रास्ते पे पड़ा दिखा था। वो किसी औरत को काट रहा था। और वोही दर्द की वजह से रो रही थी।
मेरा दिमाग एकदम से सन्न हो गया। पसीने से मैं तरर हो गया था। भागना चाहता था लेकिन हिल नहीं पा रहा था। मैं चक्कर आके गिर गया। लेकिन निचे गिरते ही संभाला खुद को।
निचे खून में गिरा था मैं। मेरे गिरते ही मेरे ऊपर चिपचिपे से कीड़े रेंगने लगे।उस बूढी के ऊपर भी कीड़े चढ़े हुए थे। हर तरफ सड़ने की बु आ रही थी।
बुढिया अचानक से खूंखार हो गयी। वो हथियार लिए मेरी तरफ बढ़ने लगी। मैं तड़प रहा था। वो जैसे ही मेरे करीब आयी मैंने दरवाजे को उसके मुह पर दे मारा।
वो निचे गिर गयी।मैंने पूरी ताकत लगा के खुद को खड़ा किया।और भगवान का नाम लेके जैसे भागा मानो ओलम्पिक की रेस हो। मैं चिल्ला रहा था। बुढिया और वो आदमी मेरे पीछे दौड़ रहे थे। मैं रास्ते पर आ चूका था। वैसे ही नंगे पैर जान बचा के भागा। पता नहि कहा लेकिन जहा रास्ता दिखे वहा।
कुछ देर दौड़ने के बाद मैं थक गया। अब और भागना मुश्किल था। थोड़ी दूर पर फिर से एक रोशनी दिखी।
लेकिन…… इस बार वो ढाबा था।
मैं जान मुट्ठी में लेके भागा। जैसे वहा पंहुचा जोर से चिल्लाने लगा। वहा काम करने वाले लोग उठ के आ गए और मैं बच गया।उन्होंने मुझे पानी पिलाया तब मेरी जान में जान आयी।
सारी हकीकत बताने पर एक आदमी बोला, “बेटा, तेरी तक़दीर में जिंदगी लिखी है। इसलिए बच गया तू। यह सालो से चलता आया है। वहा जो भी फसा, कभी वापस नहीं आया।”
“वो होटल सबको नहीं दिखता। शापित होटल है वो। लेकिन जिसको दिखता हैं वो वहा फसता है। और उन खुनी पिशाचों का शिकार हो जाता है। शायद भगवान तेरे साथ है।तुझे जिंदगी मिली।”
रात को मैं वही रहा ढाबे वालों के बिच में।सुबह होते ही उन्हीके साथ में अपनी बाइक और सामान तलाश करने उसी जगह गए थे।
मेरी बाइक वही थी। मेरा सामान भी था। लेकिन वो खुनी होटल नहीं था वहाँ। पूरी जगह सुनी थी। लग रहा था के कुछ था ही नहीं वहा।
वो एक शापित होटल था। मैंने वही काम करने वालों से सुना। कई लोगों की जान ली थी उस होटल ने।
मैंने रब से दुआ मांगी और अपनी बाइक लेके वहा से घर के लिए निकल गया।अपने सीने के अन्दर उस शापित होटल की वो खूंखार रात की याद को लिए।
(नोट– दी गई कहानी काल्पनिक है, इसका किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु से कोई संबंध नहीं है। हमारा उद्देश्य अंधश्रद्धा फैलाना नहीं है, यह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से बनायी गयी है।)