संदूक – बचपन की यादों पे कविता

sanduk

सब के घरों में एक कोना या कोई अलमारी या कोई संदूक तो जरुर होता है। जिसमे कई यादो भरी चीजे रखी होती है। ऐसा ही कोई संदूक जब मिला तो बरसो पड़ी उम्र की धुल जैसे हवा हो गयी।

दोस्तों,आप भी कभी अपने बचपन को याद करते होंगे। कही ढूंडते होगे वो कोना,वो संदूक। जहा यादों का खजाना पड़ा हो।

ऐसे ही कोई संदूक मुझे मिला मेरे घर में। जो मेरी बचपन की कीमती यादों से भरा पड़ा था।

घर के बरामदे में,
जहा रखा था कुछ सामान।
वही पड़ा था धुल में,
वो संदूक पुराना सा।

आज अचानक याद आयी,
चिटकनी अपने हाथो से हटाई।
करर्र आवाज कर के मुझसे बोला,
इतने साल से मुझे क्यू नहीं खोला?

पुराणी किताबे और कपडे,
मेरी टूटी बैट और झूले।
कुछ कांच की गोटिया,
मोतियों के लिए ढूंडी सिम्पिया।

मेरे बचपन का सारा खजाना,
संभाले रखा था उसने पूरा।
वही निचे कुछ बांध के रखा था,
शायद वो मेरी माँ का कुछ सामान था।

गठरी में दादी का बनाया,
मुलायम सा बिस्तर था।
सुना था,जिसपे मेरी माँ मुझे सुलाती थी,
कई रातें जाग कर,लोरिया गाती थी।

बिस्तर पे बनी चौकड़ी पे,
मैंने अपना सर रखा।
मुलायम धागों ने मुझे सुलाया,
लगा मेरी दादी से मिलाया।

सालो से पड़ी उम्र की धुल को,
एक झोंके में उडा दिया।
शुक्रियां ऐ संदूक,
तूने मेरी यादों से मिला दिया।

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