मौत का चौराहा | Horror Story In Hindi Real

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मौत का चौराहा – मैं अभी अभी नये शहर शिफ्ट हुआ हु। मेरी एक सीमेंट के प्लांट में जॉब पक्की हुई थी तो पहले जाके रहने का जुगाड़ किया और फिर बाद में सामान लेके जाने का सोचा था। मेरा नाम “कार्तिक” हैं। मैं एक पॉवर प्लांट में जॉब करता था। वहा मैं लैब में जॉब करता था। यहाँ सीमेंट प्लांट में भी मैं लैब में ही जॉब करता हु। “भिवापुर” नाम का बड़ा सा शहर है ये। मेरे गाव से पास होने के कारन यहाँ काफी पहचान के लोग भी थे तो मुझे रहने का जुगाड़ करने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी। मेरा किराये की रूम और प्लांट के बिच में कुछ बीस मिल का फासला था। जहा प्लांट था वहा रहने का कुछ इन्तेजाम नहीं था तो सब ने कहा की यही भिवापुर में ही रह जाओ। सब की मान कर मैंने यही रूम ले ली|

मैं जहा रहता था वो घर मालक एक ऑटो का मालिक था। उनका नाम था “हरी काका”। सब लोग उनको इसी नाम से बुलाते थे। उम्र में बड़े होकर भी वो हमेशा दोस्ताना अंदाज में ही मुझसे बात करते। मुझसे उनका लगाव बेटे जैसा था। रोज मुझे “खाना खाया क्या?” ये जरुर पुछते और बातें चालू करते। वो हमेशा देर रात तक ऑटो चलाते थे। और सुबह भी जल्दी उठ कर काम पे चले जातें थे। उनका घर इसी एक ऑटो की कमाइपे चलता था। मुझे पकड़ के एक और किरायेदार थे। जैसे तैसे उनका गुजारा इन सब पैसों से हो जाता था। इसलिए वो देर रात तक ऑटो चलाकर कुछ ज्यादा के पैसे कमाना चाहते थे। लेकिन उनको क्या पता, उनका ये काम एक दिन उनकी जान पे बन आयेगा|

मुझे हरी काका के यहाँ रहने आये कुछ छह महीने हो गए थे। मेरा प्लांट का काम भी ठीक चल रहा था। मैं जहा रहता था उसके पास से हाईवे जाती थी। सबका कहना था की उस चौराहे पर बहोत बार एक्सीडेंट से लोगो की जाने गयी है। रात को मैं भी आता था प्लांट से, मुझे भी हरी काका ने आगाह किया था। मैंने उनसे युही पूछ लिया, “हरी काका, वहा क्या है ऐसा? कुछ भूतों की बात है क्या?”

“हाँ कार्तिक बेटे! वहा बहोत सालो से ये जो पुल बना हैं न, सुना है ये जब बन रहा था तब कई लोगो की इसमे बलि दी गयी थी। अब वही यहाँ मौत का तांडव कर रहे हैं।” काका ने समझाते हुए कहा।

मैं थोडा डर गया। मुझे सहमा सा देख काका बोले, “अरे, डरो नहीं बेटा। यहाँ घर मे कोई टेंशन लेने की जरुरत नहीं हैं। मैं इतने सालो से ऑटो चला रहा हु। मुझे तो कोई भुत नहीं दिखा।”

हमारी बात हुए अभी कुछ ही दिन हुए थे की उस चौराहे के पास फिर एक एक्सीडेंट हो गया। समझ नहीं आया कैसे। जब सब लोग देखने गए तो मैं भी साथ में चला गया। एक कार वाला था। चौराहे से आगे जाके एक खम्बे से जाके टकराया था। उसकी मौत जगह पर ही हो गयी थी। लेकिन रात को हाईवे इतना चालू रहता है, फिर भी किसीने उसको वहा देखा कैसे नहीं? यही सवाल सब कर रहे थे। उसका एक्सीडेंट हुआ ये बात सुबह सब को पता चली। पुलिस वालों को भी ये हमेशा का रोड एक्सीडेंट लगा। लेकिन काका घर आने के बाद सब को यही कह रहे थे की ये रोड एक्सीडेंट नहीं था। उस आदमी को भी उन भूतों ने ही मारा हैं।

ऐसे ही दिन बितते गए। मुझे यहाँ अब साल होने को आया। मैं भूतों पे वैसे तो यकीं नहीं करता लेकिन सब बोलते है तो मन न चाहते हुए भी मानने को तैयार होता हैं। मेरे दादू का कहना था,आदमी ने निडर रहना अछी बात है पर थोडा सा डर भी होना चाहिए। डर से इन्सान आने वाले खतरे के लिए तैयार होता हैं। अचानक आया खतरा निडर संभल नहीं पाता और दुर्घटना होती है।मुझे जब भी कभी रात को अकेले में कही सुनसान जगह जाना होता, मेरे दादू की यही बात मैं हमेशा अपने मन में रखता था। जब ये किस्सा मेरे साथ हुआ उसके बाद से तो मैं बहोत डर गया था।

वो बारिश की अँधेरी रात थी। अमावस्या थी की पता नहीं लेकिन बाहर बहोत अँधेरा था। घने बादलों की वजह से रात और भी काली लग रही थी। मैं कुछ रात के १२:३० को उस चौराहे पे उतरा। मुझे मेरे प्लांट की बस छोड़ के आगे चली गयी। आज प्लांट में शटडाउन था इसलिए सभी ने ओवरटाइम किया था तो लैब वालो को भी रोका गया। एक दो लोगो के लिए अलग से गाड़ी नहीं भेज सकते थे तो मुझे बेवजह बिठा के रखा। बारिश बहोत हो रही थी। छाता नहीं था मेरे पास। भीगते हुए जा रहा था। घर उस चौराहे से कुछ बीस मिनिट की दुरी पर था। मैं बिना पीछे देखे जल्दी घर जाने के लिए चल रहा था। चौराहा पीछे रह गया लेकिन ऐसा लगा की चौराहे से मेरे पीछे कोई चल रहा है। पीछे मुड़ने की मेरी इच्छा थी पर मुड ही नहीं पाया। बस चल रहा था मैं। ऐसे लग रहा था की अभी घर आ जायेगा लेकिन मैं पहुच नहीं पा रहा था। घर सामने दिख रहा था लेकिन क्या हो गया था मुझे? मैं घूम ही रहा था। मुझे समझ रहा था की कुछ तो हुआ है मुझे लेकिन इसमे से मैं बाहर निकल नहीं पा रहा था। मेरे पीछे से कोई मुझे धकेल रहा था। मैं डर जाऊंगा पीछे देख के इसलिए मुड के देखने की हिम्मत नहीं थी मुझमे।

अब मैं थक चूका था। चलना नहीं हो रहा था। अब वो मुझे खिंच के लेके जा रहा था। मैं खुद को उससे छुड़ा नहीं पा रहा था की अचानक एक ट्राली वाला मेरे पास से हॉर्न मारते हुए गया। लगा मैं जैसे सपने से जाग गया। बारिश भी रुक गयी थी। और मैं एक जगह रुक गया। अब मेरे आस पास कोई आहट नहीं थी। घडी देखि तो सुबह के ४:०० बज रहे थे। मैं अब और नहीं चलना चाहता था। वही बैठ गया। सुबह का इंतेजार करने लगा। जैसे ही थोडा उजाला हुआ, देखा मेरा घर सामने ही था। पता नहीं मैं कहा घूम रहा था और मेरे पीछे कोन पड़ा था।

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रूम पे जाने के बाद मैं सीधा अन्दर जाके कपडे बदल कर सो गया। डर की वजह से मुझे बुखार हो गया था। हरि काका रूम में आये। खैरियत पूछी। उनको मैंने सब बता दिया। उन्होंने समझाया की शायद कोई प्रेतात्मा पीछे पड़ी होगी। उन्होंने आगे कहा की, “मैंने ऐसा भी सुना है की ये आत्मा पीछा कर के थका देती है बाद में अगर कोई पीछे मुड के देखे तो उसको अपने वश में कर लेती है। फिर वो उसपे हावी हो जाती हैं।”

मैंने कहा, “हरी काका, मैं आखिर तक पीछे नहीं मुडा लेकिन मुझे अब बहोत डर लग रहा हैं।”

हरि काका बोले, “जो होना था वो अब बित चूका। अब डरो नहीं। कुछ नहीं होगा।”

शाम को मेरी तबियत ज्यादा ख़राब हुई तो मैं अपने घर चला गया दोस्तों के साथ। वही मेरा इलाज चलता रहा।

कुछ एक हफ्ते के बाद मैं वापस रूम पे आया। वहा का नजारा देख के तो मेरे होश ही उड़ गए। हरि काका एकदम बीमार से हो गए थे। पलंग पर लेटे थे। उनको भी काफी तेज बुखार था। मुझे देख कर उन्होंने पास आने का इशारा किया। मैं उनके पास गया।

काका बोले, “ कार्तिक बेटा, तू जिस दिन यहाँ से गया उसी रात को एक हादसा मेरे साथ भी हुआ।”

मैंने उनको सहमते हुए पुछा, “क्या हुआ काका?”

काका ने बोलना चालू किया, “मैं उस रात…रातभर ऑटो चलाने का सोच के गया था। मुझे नींद नहीं आ रही थी और सवारी भी मिल रही थी। यहाँ चौराहे से कुल तीन सवारी मुझे कुछ बारा बजे के आस पास मिली थी। सबको नाके तक जाना था। अन्दर बैठने के बाद कोई कुछ नहीं बोला तो मैंने ही पूछ लिया, “भाई, इतनी रात को कहा जा रहे हो नाके पे। उस जगह आत्मा घुमती है। मेरे किरायेदार को भी डराया था उसने।”

इतना बोलने के बाद उनमे से एक बोला, “तू अपना काम कर। तुझे भूतों से डर नहीं लगता क्या?”

काका बोले, “ लगता है न भाई। लेकिन इस पेट के लिए रात को काम करता हु।”

नाका आया था। मैंने ऑटो रोका। एक ही सवारी उतरी। उसने पैसे दिए। लेकिन जैसे वो चलने लगा मेरे होश ही उड़ गए। कार्तिक बेटा, उसके पैर पीछे की तरफ थे। मैं पसीने से तरर हो गया था। दिल जोर से धड़क रहा था। लेकिन ऑटो में दो लोग और थे इसलिए मैं खुद को संभाल पाया। मैंने बाकि दो सवारी से कहा, “देखो भाई, उसका पैर देखो। दोनों उलटे है। वो क्या था? तुम्हारे साथ बैठा था। कोई भूत था क्या?”

इतने में दोनों सवारी जोर से हँसने लगे। दोनों की आंखे खून की तरह लाल हो गयी थी।

उनमे से एक ने कहा, “हमारे कौन से सीधे है देख” उनके भी पैर उलटे थे।

बस इतना ही याद हैं मुझे। आगे क्या हुआ पता नहीं।

घरवाले कहते हैं की मैं वहा बेहोश था ऑटो में। लोगों ने मुझे घर लाया।

मैं सुन्न सा रह गया। ये सब हमारे साथ ऐसे कैसे हुआ समझ नहीं पाया।

मैं रूम में गया और प्लांट जाने की तयारी करने लगा। आज भी मुझे रात होने वाली थी। डर तो था लेकिन काम था तो करना ही था। मैं काका को मिलके चला गया। उस दिन के बाद से काका कभी ठीक नहीं हुए। बुखार कम ही नहीं हुआ उनका। डर से वो अन्दर से टूट गए थे। कुछ दिनों में खाना पीना भी बंद हो गया उनका। और एक दिन जब मैं प्लांट से वापस आया तो काका हम सब को छोड़ के चले गए थे।

घरवाले रो रहे थे। उसी दिन एक मान्त्रिक को बुला के घर में शांति के लिए हवन भी हुआ।

मुझे भी कुछ सहज नहीं लगा तो मैंने वो घर बदल दिया। लेकिन मेरे साथ जो हुआ वो क्या था इसका जवाब किसी के पास नहीं था। उन प्रेतात्मा ने काका की जान ले ली थी। मैं बच गया था। भगवान का शुक्रिया करता हु रोज और अपने काम पे चला जाता हु|

(नोट- दी गई कहानी काल्पनिक है, इसका किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु से कोई संबंध नहीं है। हमारा उद्देश्य अंधश्रद्धा फैलाना नहीं है। यह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से बनायी गयी है।)

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