मौत का राज – एक अनसुलझा रहस्य

maut ka raaj

दोस्तों , आज मैं आपको एक ऐसी कहानी बताने वाला हु जिसको आपने कभी सोचा तक नहीं होगा। हा,सही सुना आपने। सोचा तक नहीं होगा। ऐसी डरावनी कहानी जो आपको सोचने पे मजबूर कर देगी, की “क्या ? सच में ऐसे भी हो सकता हैं?”

हाँ दोस्तों ,ये कहानी मैंने भी कही सुनी हुई थी। बहोत दिनों बाद भी मुझे याद हैं। उसका कारन भी वो कहानी ही हैं जिसने मुझे उसको याद करने पर मजबूर कर दिया था।

यह कहानी है बहोत साल पहले की। जब हमारे ज़माने जैसे कंप्यूटर ,मोबाइल नहीं हुआ करते थे। लिखने का काम कलम से,और कागज पे लिखाई होती थी। बात करने का जरिया था,वो लैंडलाइन फ़ोन जो कभी लगता था या कभी आउट ऑफ़ सर्विस होता था। दूर दराज के ठिकानों में तो बहोत मुश्किल होती थी दोस्तों।

ऐसे ही किसी दूर, सुनसान ठिकानों की खोज में एक लेखक निकाल पड़ा था। उसको अपनी कहानी लिखने के लिए शांति और अकेलापन चाहिए था। वो अपने बीवी और अपने बच्चे को अपने घर में रख कर चला गया। ये उसका हमेशा का काम था सो घर वालो को इसकी आदत हो चुकी थी। उस लेखक का नाम था अशोक।

अशोक बहोत ही काबिल लेखक था। वो किताबे लिखता था,नाटक भी लिखता था। अपने जिल्हे में उसका बड़ा नाम था। उसी पर उसकी रोजी रोटी चलती थी। काफी पैसा उसने बना लिया था। अब उसके पास मोटरसाइकिल भी थी और पक्का घर भी।

लेकिन दोस्तों, कहते हैं न, जब कुछ मिल जाता हैं जिंदगी में तो कुछ और पाने की चाहत जनम लेती हैं। वैसे ही कुछ अशोक के साथ भी हुआ। उसको कामयाबी मिल चुकी थी लेकिन वो और ऊपर पहुचना चाहता था जहा से ये दुनिया उसको छोटी लगे।

अशोक एक गाव में पहुच जाता हैं। वहां के डाक खाने में पहुच के किसी की पहचान बताता हैं। वो उसको एक पता देकर जाने का रास्ता बता देता है।

उसकी मोटरसाइकिल चलते हुए एक घने जंगल में चली जाती हैं। हर तरफ पहाड़ और वहा से गिरते झरने की आवाज उसको सुनाई दे रही थी। एक मोड़ आने के बाद उसको कुछ घर दिखाई देते है। वहां पे फारेस्ट वालो का एक गेस्ट हाउस था। जहा पे अब कोई नहीं रहता था। जो अब अशोक के दोस्त ने खरीद लिया था। अशोक का  कुछ दिन वहां रहेने का इन्तेजाम हो गया था।

बाहर से वो गेस्ट हाउस पूरा लकड़ी का बना था। लेकिन वो अंग्रेजो के ज़माने का था। तो उसकी बनावट में वो विदेसी झलक साफ़ दिख रही थी। बाहर बड़ा सा बरामदा और वहां रखी एक मेज और खुरसिया। उसके बाजू में लकड़ी के खम्बे लगे हुए थे। उसके ऊपर मोटा सा गेरुहा रंग पोत दिया था। अशोक के सामान रखते ही वहा का चौकीदार भागते हुए आया और सामान उठाने लगा।

अशोक ने उसको रोका और कहा, “तुम घनशाम हो क्या?मुझे बताया था तुम्हारे साहब ने।”

“हा साहब, मुझे मेरे मालिक ने यहाँ टेलीफोन कर के बताया था की एक बहोत बड़े साहब आने वाले हैं।” घनश्याम ने बड़े ही सादगी से अशोक की तारीफ कर डाली।

अशोक को बड़ा सुकून मिला, उसने हंसते हुए कहा, “अरे, मैं कोई साहब नहीं हु। तुम्हारे साहब और मैं साथ में पढाई करते थे। मैं लेखक हु। कविता,कथा और कुछ नाटक भी लिखता हु। तुम्हे नाटक पसंद हैं?” अशोक ने उसकी पसंद पूछ ली।

अक्सर गाव में नाटक देखने आज भी लोग दूर से आया करते है। अपने रिश्तेदारों के यहाँ पहले दिन से ही पहुच जाते है। लेकिन उस ज़माने में नाटक होना आम बात नहीं थी। लोग सिनेमा सिर्फ शहरो में ही देखते थे। नाटक वहां लोकप्रिय था।

शाम का खाना होने के बाद घनशाम औए अशोक बाहर बरामदे में बैठ के बाते करने लगे। बाहर आग जल रही थी। दूर से जंगली भेडियों की आवाज आ रही थी। घनशाम अपने आसपास के जगह के बारे में बता रहा था। और अशोक कभी उसके ऊपर ध्यान देता तो कभी उन सब चीजो को अपनी कहानी में रखने की कोशिश करता।

बाते करते करते कब ग्यारह बज गए समझ नहीं आया। घनशाम बोला, “साहब, रात को अकेले बाहर मत निकलिए। बाहर जंगली सूअर ,भेडिये और तो कभी शेर भी आ जाता हैं यहाँ। कोई भरोसा नहीं।”

उसको हाँ बोल कर दोनों अपने अपने रूम में सोने चले गए। अशोक को थकान होने के बाद भी नींद नहीं आ रही थी। अब वो खिड़की खोल कर एक खुर्सी पे बैठ गया। जंगलो से बहोत ही डरावनी आवाजे आ रही थी। कभी शेर की दहाड़ तो कभी उल्लू की आवाज बहोत ही भयानक लग रहा था। उसको लग रहा था जैसे वो सब उसके आसपास घूम रहे हो।

वो अब लिखने का सामान खोजता है। “अरे ! मैं तो कलम लाना ही भूल गया। लगता है सामान में से गिर गया कही पे। या फिर मेरे बच्चे ने निकाला होगा लग रहा है।” उसके सामान में बस एक स्याही की बोतल मिलती हैं। आज उसका दिन बेकार जायेगा ऐसे सोचते हुए वो वहां रखी अलमारी खोजने लगता है।

अशोक को अचानक पुराने से कपडे में लपेटा हुआ एक बक्सा मिलता हैं। वो बड़े ही आश्चर्य से उसको खोलता हैं।

“अरे वाह! मेरा काम तो बन गया। पेन भी हैं और एक बढ़िया सी डायरी भी। शायद मेंरे दोस्त ने मेरे लिए लाकर रखी होगी। उसको पता हैं मैं लेखक हु।” अपने दोस्त का शुक्रिया अदा कर वो उस पेन में स्याही डालता हैं और वो डायरी खोलता हैं। वो डायरी बाहर से बहोत पुराणी थी लेकिन अन्दर से एकदम नयी जैसे लग रही थी।

अशोक घर के अन्दर था लेकिन दूर से झरनों के पानी की आवाज वहाँ तक पहुच रही थी। उसने डायरी के पन्ने खोले और उसमे उसने वो पेन से लिखा ,

मौत का राज”

जैसे ही उसने ये लिखा,जंगल में कोई शिकार हो गया। बहोत जोरो की आवाज आने लगी। पंछी इतनी रात को उड़ने लगे थे। सारे जंगल में हलचल होने लग गयी। अशोक को भी बड़ा मजा आया। ये जगह उसके लिखने के लिए बिलकुल सही थी। वो अब लिखना चालू करता है।

वो अपनी कहानी में एक राज के बारे में लिखता है जो अभी तक किसीको नहीं पता था। कोई मनहूस साया अचानक से लोगो की बस्ती में आता हैं और एक एक कर के लोगों को मौत के घाट उतरता है। किसीको कुछ भी समझ नहीं आता की ये सब क्या हो रहा हैं। लोग भगवान को याद कर के सोते और सुबह वही बाहर मौत के हवाले हो जाते थे। हर जगह मौत ही मौत।

वो अपनी कहानी में ये लिखता हैं के अब वो कहानी ख़तम करने वाला हैं। अशोक कहानी का आखरी हिस्सा अगले दिन लिखेगा ऐसे सोच कर सोने की कोशिश करता हैं।

तभी …….खाट…..खटक…..खाट……

अचानक उसको लगता हैं की उसकी पीछे की खिड़की से कोई अन्दर झांक रहा है। खिड़की तेज हवा से एक दुसरे पर लग के आवाज कर रही थी।

कुछ देर के लिए अशोक एक ही जगह सुन्न होकर खिड़की की तरफ देखता रहता है। एक पल के लिए वो सोचने लग जाता हैं। वो दरवाजा खोल के घनशाम का दरवाजा देखता हैं। उसक दरवाजा बंद था।

अशोक ने वहा खिड़की में किसीको तो देखा था। लेकिन अपना वहम मान कर वो सो जाता है।

अगले दिन सुबह वो घनशाम के साथ जंगल और खेत घुमने निकाल जाता है। दोपहर खेतो में खाना खा कर एकदम शाम को वो गेस्ट हाउस वापस आते है। शाम का खाना खा कर दोनों सोने के लिए जाते हैं।

आज उसको कल की कहानी का किस्सा ख़तम करना था। वो डायरी खोलता हैं। रात काफी हो चुकी थी। लेकिन उसको तो काम करना था।

लेकिन आज जैसे ही उसने कलम उठाई

खाट…..खटक….

खिड़की जोर से खुल गयी। अब अशोक डर गया। उसने जोर से आवाज लगायी…..

“घनशाम………”

घनशाम दौड़ के आ गया। अशोक ने दरवाजा खोला…. “अभी मैं यहाँ बैठा था, तो मैंने किसी को खिड़की से झांकते हुए देखा। जैसे कोई आदमी हो।” अशोक थोडा सहम कर बोल रहा था।

“साहब, आप को शायद वहम हुआ होगा। यहाँ तो कोई नहीं। और मैंने बाहर के दरवाजे पर ताला लगाया हैं। कोई कैसे अन्दर आ सकता है।” घनशाम इधर उधर घूम कर देख रहा था।

उसको ऐसा करते देख अशोक को भी लगा की शायद वो उसका वहम ही था। घनशाम के जाने के बाद वो लिखने बैठ जाता हैं लेकिन वो खिड़की बंद कर के।

अशोक लिखने में मगन हो जाता हैं…..लेकिन उसका ध्यान खिड़की पे नहीं होता। वहां एक बहोत ही खूंखार साया या कहो कोई बुरी आत्मा खिड़की के बाहर से उसको देख रही होती है।

अशोक को कहानी में मजा नहीं आता तो वो उसको बढाने में लग जाता। वो कहानी में थोडा घुमाव लाने की कोशिश में अपने कहानी में एक आत्मा के बारे में लिखता हैं।

दोस्तों, ये और कोई नहीं, यह वही आत्मा होती हैं जो अब कहानी से बाहर आ चुकी है।

अब लग रहा था जैसे ये आत्मा ही अशोक से सब लिखवा रही थी।

लेकिन इसकी किसीको कोई खबर नहीं थी। वो अशोक भी इस बात से अभी बेखबर था की उसकी लिखी कहानी में क्या होने वाला था।  

अब वो कहानी में लेखक के दोस्त की मौत के बारे में लिखता हैं।

सुबह उठते ही उसको एक फ़ोन आता हैं की अशोक का जो दोस्त था जो इस गेस्ट हाउस का मालिक था,उसकी कल अचानक रात में मौत हो गयी।

पता चलते ही वो पास के गाव में जाते है। वो अशोक के दोस्त का गाव था। उसको आखरी क्रियाकर्म के लिए वही लेके आने वाले थे। मौत मानो एक बंद लिपाफे में थी। किसीको कोई घबर नहीं थी। पुलिस भी हैरान और परेशांन थी।

अशोक को बहोत बुरा लगा। अब उसको गेस्ट हाउस में रुकने का मन नहीं था। लेकिन अब उसका काम होने को था। वो कहानी को ख़तम करना चाहता था।

आज वो उस पेन से लिखता हैं की उसके गेस्ट हाउस का नौकर जो उस कहानी में था उसको जंगल में कोई जंगली जानवर मार डालता हैं।

दुसरे दिन सुबह घनशाम का कोई अता पता नहीं था। दोपहर तक राह देखने के बाद अशोक अपने साथ बाजू के लोगो को लेकर खोजने निकल जाता हैं।

शाम को एक चरवाहा वहा आता हैं …. “बाबूजी…..बाबूजी……,जल्दी चलो।”

अशोक उसके साथ जाता हैं, एक पेड़ के निचे घनशाम की लाश मिलती हैं। बहोत ही बुरी हालत में। जानवरों ने उसको पूरी तरह फाड़ दिता था। देखने लायक नहीं था। पुलिस ने उस लाश को पोस्ट मार्टम के लिए भेज दिया।

अब अशोक को कुछ अजीब और बहोत ही भयानक होने वाला हैं ऐसा लग रहा था।

अशोक भी बहोत थक चूका था। गेस्ट हाउस आकर वो अपनी कहांनी ख़तम करना चाहता था। इतना सब होने के बाद अब उसका मन नहीं लग रहा था।

आते ही उसने डायरी निकाली और वो पेन से उसने लिखा, के अब वो कहानी वाली आत्मा लेखक के परिवार को भी ख़तम करती हैं। लेकिन किसिको ये खबर नहीं होती हैं। ये सब लिखने के बाद वो पानी पिने बरामदे में जाता हैं।

वापस आता हैं तो वो अन्दर का मंजर देख कर उसके पैरो के निचे की जमींन खिसक जाती हैं।

उसकी डायरी के पास एक बहोत ही डरावनी आत्मा खडी थी। अशोक की तरफ देख रही थी। अशोक चिल्ला उठा। बाजु के घर वाले भी आये। उन्होंने भी उस आत्मा को देखा। कुछ देर वही रुक कर वो अचानक गायब हो गयी।

अशोक ने अपनी कहानी वाली डायरी उठाई और उसको गौर से देखने लगा। उस पेन से लिखी हर चीज उसके सामने जैसे जनम ले रही थी। उसको यकीं नही हुआ। लेकिन उसने उस कहानी में जो लिखा था वो सब हो चूका था। दोस्त और नौकर की मौत।

अशोक ने लेखक के परिवार की मौत के बारे में लिखा था। लिखा हुआ तो वो मिटा नही सकता था। इसलिए अपनी गाड़ी लेकर बहोत तेज घर पहुचने निकल जाता हैं।

कही न कही उसको यह एहसास हो गया था की उस डायरी या पेन की वजह से ये सब मौते हो रही थी। अब वो जो भी लिखता वो सब असलियत में हो रहा था।

लेकिन……… देर हो चुकी थी।

घर के बाहर अशोक के रिश्तेदार थे। बहोत भीड़ थी।

अशोक को सदमा लग गया। उसको चलना नहीं हुआ। एक जगह गिर गया वो। उसको बीवी और बच्चे की तस्वीर सामने दिखने लगी। उसका हँसता खेलता परिवार खो गया था। एक ही झटके में उसका सुख छीन गया था।

अशोक खुद को संभाल नहीं पा रहा था। अपनी लिखी कहानी पे उसको बहोत घुस्सा आ रहा था। उसने अपनी पत्नी की चिता में वो डायरी फेंक दी,जिसमे वो कहानी थी।

शाम को सब रिश्तेदार जाने के बाद वो अपने आप को कोसते हुए रात तक रोता रहा।

लेकिन रात को अचानक खिड़की में……

वही डरावना, खूंखार साया दिखाई दिया…….

और उसको एकदम से याद आया……

उसने डायरी तो जलाई लेकिन गेस्ट हाउस से निकलने के पहले ही उसने अपनी कहानी का अंत लिख लिया था।

उस लेखक की मौत….एक राज…..

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