मुर्दाघर और जिन्दा लाश

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इन्सान …..जब तक जिन्दा होता है तब तक उसको बड़े प्यार से रखा जाता है। लकिन जब वो मर जाता हैं तो उसका नाम और उसकी पहचान खो जाती हैं …..और वो सिर्फ मुरदा कहलाता हैं…….।

मुर्दाघर…..एक ऐसी कहानी हैं जहा जिंदगी आते आते ख़त्म हो जाती हैं और वहाँ मुरादो का राज चलता हैं।

जब खुदपे लाचारी और बेबसी हो और जिम्मेदारी सर पर हो तो इन्सान अपने लोगो के लिए क्या नहीं करता। ऐसा एक लड़का था……शेखर।

ज्यादा पढालिखा ना होने के वजह से उसको कही नौकरी नहीं मिली। दर दर की ठोकरे खा कर वो अब थक चूका था। उसको जिल्लत सहने की अब आदत हो चुकी थी। लेकिन मज़बूरी ने उसके हाँथ बांध दिए थे।

एक दिन वो काम की तलाश में निकल पड़ा। उसक एक दोस्त पास ही के सरकारी दवाखाने में सफाई का काम करता था। उसने अपनी कहानी शम्भू जो दोस्त हैं उसको बताई। शम्भू ने कहा की मैं जहा काम करता हु वहाँ चल मेरे साथ , शायद कोई काम मिल जाये।

शम्भू, शेखर का बहोत पुराना दोस्त था। कभी एक गाव में साथ घुमा करते थे। शहर आने के बाद से वो दोनों कभी मिले नहीं थे। फिर भी शम्भू ने शेखर की मदत की।

शेखर को सफाई का काम मिल गया।

मरता क्या न करता?

शेखर को काम की तलाश तो थी ही। वो अब पूरी हुई। और काम घर के पास में था तो अब उसको ज्यादा तकलीफ नहीं थी। वो रोज सुबह सफाई के लिए दवाखाने आता और शाम को चला जाता। ऐसे उसका काम चालू हुआ। शम्भू से भी अब रोज की मुलाकात होने लगी थी।

अब शेखर को महिना होने को आया था। पगार का दिन था। पगार हाँथ में आते ही शेखर को बड़ा अच्छा लगा। भले ही कम सही लेकिन जरुरत के लिए पैसा मिलना बहोत बड़ी बात होती हैं।

उसके बाद शम्भू का पैसे लेने का नंबर था। उसको शेखर से भी दोगुनी पगार मिली। ये देख कर शेखर हैरान रह गया। ये कैसे हुआ? दोनों साथ में काम करते है। दोनों कॉन्ट्रैक्ट वर्कर थे। फिर भी उसकी पगार इतनी ज्यादा कैसे?

घर वापस जाते वक़्त शेखर सोच रहा था लेकिन उसने पुछा नहीं। शाम को शम्भू के यहाँ खाना था सभी दोस्तों का। सोचा की वही जाकर पूछता हु।

शाम होते हुए शम्भू ने खाने का सामान, मुर्गी और दारु साथ में रख लिया। उसके घर वाले कही बाहर गए थे तो उसने अपने बाकी दोस्तों को भी बुलाया। शेखर को नहीं पता था की शम्भू अब दारु पिने लग गया हैं। खाना हुआ अब शम्भू के सभी दोस्त पिने बैठ गए। शेखर को छोड़ कर।

शेखर ने शम्भू को पूछा, “अरे शम्भू, तू तो कभी दारु पिता नही था यार। अब तो बहोत पिने लग गया। कैसे?”

शम्भू ने हँसते हुए कहाँ, “हम्म्म्म,हा..हा..हा… अरे शेखर। तू भोला के भोला रह गया रे। पैसा हैं इसलिए ये सब शौक कर लेता हु कभी कभी। अपने लिए जी लेता हुआ यार। ले …..तू भी ले। शर्मा मत।”

“नहीं शम्भू। मैं शराब नहीं पिता। मुझे माफ़ कर दे” शेखर ने उसको रोकते हुए कहा। “अच्छा मुझे ये बता, तू और मैं एक ही जगह काम करते हैं। फिर तुझे मुझसे ज्यादा पगार कैसे। तू कोई एक्स्ट्रा काम करता है क्या? सच बता।”

शम्भू ने शेखर को एक कोने में ले जा कर बताया, “शहर में पैसे कमाने के हजारो तरीके हैं मेरे भाई। बस तू तैयार हो तो सेकड़ो रास्ते खुल जाते हैं।”

“मैं समझा नहीं” शेखर ने फिर से उसको पूछा।

“मैं रात को उसी दवाखाने के मुरदा घर में नाईट शिफ्ट करता हु” शम्भू ने कहा।

मुरदाघर का नाम सुन के शेखर डर गया। उसको सहमा देख के शम्भू बोला, “येही वजह से मैं पैसे कमाई कर रहा हु। सभी लोग डरते हैं वहां जाने को। इसलिए कोई नहीं मिलता काम करने को। मैं करता हु तो मुझे पैसा भी बढ़िया मिलता हैं। मैं दारु लेके जाता हु और पीके सो जाता हु। मुरदों के साथ, मुरदा घर में।”

ऐसे बोल के हंसने लगा। पार्टी ख़त्म होने के बाद सभी लोग घर चले गए और शम्भू रात की मुरदा घर वाली ड्यूटी पे चला गया।

शेखर अपने घर जाकर रात भर मुरदा घर के बारे में सोचने लगा। अगर वो भी ये काम कर सके तो उसके कितने सारे अधूरे अरमान पुरे हो जायेंगे। पैसा आयेगा। सबको, घरवालों को वो खुश कर सकेगा।

शेखर रात भर उसी सोच में पड़ा रहा। सुबह अपने काम ख़त्म कर के दवाखाने अपने ड्यूटी पे चला गया। शम्भू भी उसको रास्ते में मिल गया।

दिन भर काम कर के शाम को जाते वक़्त शेखर ने मुरदाघर वाली एक्स्ट्रा ड्यूटी के बारे में पूछा, “शम्भू, तुझसे तो मेरी हालत छुपी नहीं हैं। पैसे की जरुरत मुझे भी है। क्या मैं भी मुरदाघर…….”

इतना बोलते ही शम्भू हस पड़ा। “अरे शेखर मेरे भाई, तू मुर्दों के बिच में कैसे रहेगा? तू तो दारु भी नहीं पिता मेरे यार। मुर्दों के बिच में रात भर रुकना कोई खाने का काम नहीं हैं, समझा?”

शेखर ने एक बार शम्भू की तरफ देखा और कहा, “मुझे पता हैं, लेकिन मैं ये कर सकता हु।”

दुसरे ही दिन शम्भू ने अपने साहब से बात करवाके शेखर को वो एक्स्ट्रा ड्यूटी दिलवा दी। लेकिन अब शम्भू भी साथ में रहने वाला था तो कोई डर की बात नहीं थी।

दुसरे ही दिन से शेखर की एक्स्ट्रा ड्यूटी चालू होती हैं। शम्भू रात को मुरदाघर में पिने के लिए दारु लेकर आया था। मुरदाघर में आते ही शम्भू ने बताया, “ये दरवाजा ठीक से लगता नहीं हैं। इसलिए इसको लकड़ी फसाकर रखना। अगर ये बंद हुआ तो अन्दर से नहीं खुलेगा। और जब तक कोई बाहर से नहीं खोलता हमको अन्दर ही इन मुरदो के बिच में रहना पड सकता हैं।”

शेखर के सामने उसने दारु लगा ली और सो गया। शेखर बेचारा मुर्दों के बिच अकेला पड़ा हुआ था।

पहली रात थी। उसको बहोत अजीब लग रहा था। एकदम सन्नाटा। वो बिलकुल दरवाजे के पास बैठा रहा। मुरदाघर में लाइट तो थी लेकिन इतने मुरादो में थोड़ी सी भी हलचल हो जाये तो आवाज हलख से बाहर न आये और जान चली जाये।

पहली रात कट गयी। और शेखर को थोड़ी हिम्मत आ गयी।

अब दोनों रोज मुर्दाघर में ड्यूटी करने लगे। कुछ रोज बीत जाने के बाद यहाँ काम करना शेखर को बहोत आम लगने लगा। दिन गुजरते गए। पैसा आने लगा तो शेखर के बहोत से काम होने लगे। उसके घरवाले भी बहोत खुश थे। सब कुछ सही चल रहा था।

एक रात उस मुरदाघर में एक आधा जला हुआ मुरदा आया। उसको एक पलंग पे लिटाके सब चले गए। वो देखते हुए बहोत ही भयानक दिख रह था। उसकी लाश को एक जगह लगा कर शेखर आराम कर रहा था। इतने में बाहर हल्ला सुनाई दिया। शोर सुन कर शेखर बाहर देखने लगा। उसने शम्भू को उठाया। शम्भू दारु पीकर सोया हुआ था। रात का करीब १:०० बज चूका था। उसकी दारु अब उतरनी लग गयी थी। वो उठकर बैठ गया। लेकिन वो बाहर नहीं आया। कोई उसको दारु पीकर पकड़ लेगा तो नौकरी जाने का खतरा था। शेखर दरवाजे को लकड़ी फसा कर चला गया।

बाहर दवाखाने के ग्राउंड में भीड़ थी। इधर शम्भु उठकर बैठ गया। उसको बिलकुल खबर नहीं थी की कोई नया मुरदा आया हैं। एकदम से जोर की हवा सामने की खिड़की से आयी और……

“सर्रर्रर……..धडाम…….”

दरवाजे की लकड़ी सरक गयी और दरवाजा बंद हो गया।

अब शम्भू की दारू पूरी तरह से उतर गयी। वो डरने लगा। एकदम से एक पलंग से कुछ हिला ऐसे महसूस हुआ। शम्भू पूरा पसीने से तरर हो गया था। वो उठकर देखने लगा। मुरदाघर बहोत बड़ा था। उसने चारो तरफ देखा। कुछ भी दिखा नहीं। अब कुछ ज्यादा ही हलचल दिखने लगी। और वो जला हुआ मुरदा पलंग पर बैठ गया।

वो भयानक आवाज सुनकर इन्सान की रूह तक काप जाये। उसके शरीर से खून निकल रहा था। फर्श पर खून गिरने लगा। बहोत जलने की वजह से चमड़ी लटक रही थी। उसकी एक आंख भी फुट चुकी थी। वो इतना जल चूका था की कई जगह हड्डी तक दिख रही थी। ऐसा डरावना रूप देखकर शम्भू के होश ही उड़ गए। वो सब कुछ दिल दहला देने वाला था।

शम्भू चिल्लाने लगा। जोर से दरवाजा ठोकने लगा। लेकिन उसकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं था।

वो मुरदा उठा और चलकर शम्भू तक आते ही उसको सीने में बहोत तेज दर्द होने लगा। साँस फूलने लगी। और डर के कारण जगह पर ही उसकी मौत हो गयी।

इधर शेखर इस बात से बेखबर। वाहा एक आदमी आया था। सब उसको सुन रहे थे। वो पागल जैसा था।

“साहब, अभी जो लाश यहाँ आयी हैं वो लाश नहीं एक जीता जागता शैतान हैं। वो लाश जिन्दा हैं साहब। उसमे शैतान समां गया हैं। वो जहा जाती हैं वहाँ मौत होती हैं साहब।”

वो बिनती कर रह था। लेकिन पागल दिखने के कारण उसपे किसीने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। और उसको भगा दिया।

शेखर को एकदम से याद आया की शम्भू अन्दर हैं। वो जल्दी से मुरदा घर पंहुचा। दरवाजा बंद था। उसने झट से खोला और……

सामने देखा की शम्भू निचे गिरा हुआ हैं। वो लाश अपने पलंग पर ही थी। उसने शम्भू को उठाना चाहां लेकिन, वो उठा नहीं सका। शेखर ने डॉक्टर को बुलाया। उसको देखने के बाद डॉक्टर ने कहा, “शायद, इसको दिल का दौरा पड़ा था। ये मर चूका है।”

शेखर एकदम सुन रह गया। उसका दिल भी जोर से धड़क रहा था। वो जो बाहर पागल आदमी चिल्ला रहा था शायद उसकी बात सही थी।

बादमे उसका पोस्ट मार्टम किया गया। दो वार्ड बॉय शम्भू की लाश मुरदाघर में लेकर आये। शेखर डर से सहम कर दरवाजे के पास ही खड़ा था।

जैसे ही शम्भू की लाश को एक बेड पे रखा जाने लगा …..तभी उसकी गर्दन शेखर की तरफ मुड़ी।

शम्भू की आंखे खुल चुकी थी। उसने शेखर को एक नजर देखा और एक शैतानी मुस्कान उसके चेहरे पे आयी।

(नोट- दी गई कहानी काल्पनिक है, इसका किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु से कोई संबंध नहीं है। हमारा उद्देश्य अंधश्रद्धा फैलाना नहीं है। यह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से बनायी गयी है।)

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