हिंदी हॉरर स्टोरी – वो वापस आ गयी हैं

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“विनोद……..ऐसे मत करो……पहले बच्चो को बाहर निकालो पानी से और तुम भी जल्दी निकलो। सर्दी हो जाएगी तो मुझे मत बोलना। फिर रहना नाक को रुमाल बांध कर” सीमा साथ में सब के लिए तौलिया लेकर आयी।

विनोद का कंस्ट्रक्शन का बिज़नस था और सीमा उसकी बीवी। बड़ा ही सुखी जीवन बिता रहे थे दोनों। उनके जीवन में इतनी खुशिया नहीं थी। जब तक ये दोनों बच्चे नहीं थे। देर से सही लेकिन सीमा की गोद भर गयी। एक लड़का और एक लड़की। दोनों बहोत प्यार से रखते थे अपने बच्चों को। लेकिन छोटी लड़की रिंकू सबकी बहोत चहेती थी। अपने पापा की जान थी वो। और अपने दादा दादी की भी। सारा परिवार मिल-जुल कर रहता था।

विनोद और बच्चों का नहाना हो गया था। सब खाने के टेबल पर आ गए थे। खाना हुआ और सब अपने रूम में चले गए। विनोद बाहर ही बैठा था। तभी उसके पिताजी वहां आये।

“क्या बात हैं विनोद? क्या सोच रहा हैं?” पिताजी ने उसके कंधे पे हाँथ रखा और बगल में आकर बैठ गए।

“कुछ नहीं पिताजी। अपना वो नदी का जो पुल बन रहा हैं ना। उस प्रोजेक्ट के लिए मुझे शायद वहाँ जाकर रहना होगा। यहाँ से आना जाना मुश्किल होगा। वैसे काम रात दिन का हैं तो आजकल सामानों की चोरी भी बहोत हो रही हैं। मैं वहां रहूँगा तो सब पे मेरी नजर रहेगी।” विनोद जरा चिंता में बोल रहा था।

“तो क्या हुआ? आखिर काम हैं तो करना ही हैं। कब जा रहे हो?” पिताजी ने उसको सहारा देते हुए बोला, “तुम यहाँ का टेंशन मत लो। यहाँ तुम्हारे लोग हैं और मैं भी तो हु। मैं भी ऑफिस में जाकर बैठा करूँगा।”

“पिताजी ,मैं बच्चो को यही रख कर जाऊंगा। वहाँ कैसा इन्तेजाम होगा,मुझे नहीं पता। आपको अकेला छोड़कर जाने का मन नहीं कर रहा मेरा।” विनोद जरा दुखी होकर बोल रहा था।

“तुम जाओ और काम में ध्यान दो। यहाँ बच्चो के बारे में मत सोचो।” पिताजी उसको पीठ थपथपाते हुए बोले।

जाने का दिन आया। सीमा और विनोद को लेने एक गाड़ी आयी। साथ में मैनेजर था। उसका नाम रघु था। रघु एक ड्राईवर के साथ आया था। सब ने मिलकर नाश्ता किया और सामान गाड़ी में डालकर चले गए।

ये कंस्ट्रक्शन साईट घर से काफी दूर थी। कुछ दो घंटे का लम्बा रास्ता था। रास्ते में हरीभरी झाडिया, खेत और कभी जंगल। सीमा को ये सब देख कर काफी अच्छा लग रह था। बहोत दिन हुए थे वो भी बाहर निकली नहीं थी। मैनेजर ने वहां के एक जमीदार की हवेली किराये सी लि थी। बंद थी तो सस्ते में मिल गयी। गेट के अन्दर जाते ही नंदू और कमला दोनों भागते हुए आये। नंदू यहाँ सफाई का काम करता था और कमला रसोई और घर की सफाई करती थी।

वो दोनों हवेली के गेट के पास बने घर में रहते थे। नंदू भागते हुए आया और गाड़ी से सामान निकल कर अन्दर ले गया। कमला कुछ सामान हाथ में लेकर सीमा को घर दिखाने ले गयी। सीमा को घर बहोत पसंद आया। शहर में रहने वालो को वैसे ऐसी जगह बहोत अच्छा लगता है।

आते ही विनोद को फ़ोन आया। वो मैनेजर के साथ उसी गाड़ी में बैठकर साईट पे चले गए। यहाँ सीमा पूरा घर देख कर बहोत ही खुश हुई। उसने और कमला ने मिलकर खाना बना लिया था। अब वो शाम को विनोद का इंतेजार कर रही थी। विनोद आने के बाद पहले नहाने चला गया और बाद में खाना खाके बरामदे में नंदू और कमला के साथ आग जलाकर बाते करने लगे। काफी देर बाद सब सोने चले गए।

सीमा और कमला की बहोत अछे से बनने लगी। नंदू को जैसे बड़ी बहेन मिल गयी। वो भी दीदी करके बुलाने लगा था। ऐसे कुछ आठ दस दिन बाद सीमा ने घर में एक तहखाना ढूंड लिया। कमला को पूछा तो उसको इस बात की कोई खबर नहीं थी। लेकिन कमला ने सीमा को बोला, “दीदी, ऐसे पुराने तहखाने में आत्माए होती हैं। मैंने टीवी में देखा हैं।”

इसपर सीमा जोर से हँस पड़ी, “धत पगली, भुत प्रेत कुछ नहीं होते। चलो देखकर आते है।” दोनों अन्दर गयी। वहाँ बहोत धुल थी। लेकिन काम का कुछ भी सामान नहीं था। सिवाय एक के। एक कंगन मिला था पुराने ज़माने का। सीमा को बहोत पसंद आया। वो यहाँ के जमीदार के बहु का था ऐसा कमला ने कहा। कमला ने पहले तो सीमा को रखने से मना किया। लेकिन सीमा की जिद के आगे वो कुछ न कर सकी। उसने वो कंगन सोनार से साफ करवा के सीमा को दे दिया।

बस उसी दिन से विनोद और सीमा के जीवन में भूचाल आ गया।

विनोद कभी कभी रात को देर से आने लगा था। वहाँ काम जोर से चल रह था। उसको काम के अलावा अब कुछ सूझ नहीं रहा था। एक बार विनोद को रात को आते हुए देर हो गयी थी। उसने सीमा को फ़ोन कर के खाना खाकर सोने को कहा। वो जब घर आया तो रात के कुछ १२.३० बज रहे थे। नंदू ने गेट खोला और वो जाकर सो गया।

घरके अन्दर जाते ही विनोद को उसके बाथरूम में से चूड़ियों की आवाज आने लगी। उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। वो फ्रेश होने गया तो वहा कोई नहीं था। बादमे उसने खाना खाया और अपने रूम में चला गया। अन्दर जाकर देखा तो सीमा अपने जगह सोयी थी। उसने उसे बिना जगाये खुद सो गया।

लेकिन अचानक उसकी नींद खुली। उसको दर्द से चिल्लाने की और रोने की आवाज आने लगी। उसने आंख खोली तो सीमा बेड पे नहीं थी। आवाज बाथरूम से आ रहा था। देखा की सीमा वहाँ निचे गिरी थी। दर्द से चिल्ला रही थी। विनोद ने उसको उठाकर बेड पर रखा। वो एक हाँथ में वही पुराना सा कंगन पहने थी। विनोद को जरा अजीब लगा। सीमा कभी कंगन नहीं पहनती थी।

सुबह होने के बाद विनोद ने सीमा से कल के बारे में बात की। लेकिन सीमा को रात का कुछ भी याद नहीं था। लेकिन वो जरा बीमार सी लग रही थी।

विनोद ने पूछा, “सीमा तुम ठीक हो? डॉक्टर के पास चलना हैं क्या?”

सीमा ने ना कहते हुए अपना मन कम में लगाया।

दुसरे दिन गाव में बाजार लगता था। विनोद ने कहा, “ कमला, दीदी को बाजार लेकर जाना। उनका मन भी बना रहेगा और तुम्हे भी कुछ चाहिए तो वो दीदी से मांग लेना। वो तुम्हे खरीद कर दे देगी।”

कमला ने हसते हुए हां कहा। विनोद अपने काम पे चला गया लेकिन उसको सीमा का मुड थोडा अलग लग रहा था। साईट पे जाकर भी उसका मन काम में नहीं लग रह था। वो एक जगह बैठ कर सोचने लगा, की वो रात को मुझे वहम हुआ था या वो सब सच था?

इधर सीमा तयारी कर के कमला के साथ बाजार चले गयी। विनोद ने ऑफिस की गाड़ी भेजी थी। नंदू को घर की रखवाली में रख के गए थे। सीमा ने गाव का बाजार देखा नही था। उसने ढेर सारा सामान ख़रीदा। कमला के लिए चूड़ी, और कुछ कपडे ख़रीदे। दोनों ने मिलकर भुनी हुई मूंगफली हाथ में ली और अपनी गाड़ी के लिए इंतेजार करने लगे। तभी कमला को कुछ याद आया, “दीदी, मैं वो अभी आती हु। हमने धनिया तो लिया नहीं। उसके बिना खाने में मजा नहीं आयेगा ना। मैं लेकर आती हु। आप कही जाओ मत। यही पे रहो।”

कमला जैसे ही धनिया लेकर वापस आई, देखा की बहोत भीड़ लगी हैं। हल्ला हो रहा था। कुछ औरते जमा होकर जोर से चिल्ला रही थी।

“कैसी डायन हैं ये? मेरी बच्ची चुरा रही थी। मारों इसको।”

कमला को सीमा कही दिखी नहीं तो वो पास में जाकर देखने लगी। उस औरत के बाल खुले हुए थे। धुल मिटटी से कपडे भी गंदे हो गए थे। जब चेहरा सामने आया तो……..

“हे भगवन……दीदी आप? अरे मत मारों इनको। ये हमारी दीदी हैं। बहोत बड़े घर की हैं। दूर हो जाओ। दीदी…..दीदी….ओ….दीदी…… क्या हुआ? ये सब आपको क्यों मर रहे हैं?

“अरे ऐसी औरत को मारना ही चाहिए। मेरी लड़की को अपनी कहकर उठा के भाग रही थी।” एक औरत घुस्से से बोल रही थी।

सीमा अपने मुह में कुछ बोल रही थी, “मेरी बच्ची मुझे दे दो………”

कमला के पल्ले कुछ नहीं पड़ा। उनकी गाड़ी आयी और वो दोनों वहां से घर वापस आये। कमला ने ये बात किसीको नहीं बताई।

शाम होते हुए सीमा को बहोत बुखार हुआ। लेकिन वो घर में ही रुकी रही। नंदू ने डॉक्टर बुला कर लाया। उसने दवाई दी और चला गया। विनोद आज जल्दी आया। साथ में खाना भी खाया। सीमा बिलकुल ठीक थी अब। लेकिन रात को आज भी जब विनोद को दर्द भरी चींखे और चूड़ियों की आवाज आयी तो उसने मुड कर देखा। आज भी सीमा बेडपर नहीं थी। सीमा बाथरूम में थी। लेकिन जब विनोद उसको लेने गया तो सीमा ने एकदम डरावनी आवाज में पलटकर जवाब दिया।

“ऐ…… दूर होजा। अगर मेरी बच्ची को हाथ लगाया तो तेरा खून पी जाउंगी।” उसका ऐसा रूप देख के विनोद तो एकदम से डर गया। उसको अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसने चींखना चालू किया।

“नंदू!……… जल्दी आओ।”

नंदू और कमला भागते हुए आये। सीमा का वो डरावना रूप देख कर उनकी भी साँस रूक गयी। उसके बाल खुले हुए थे। आंखे खून सी लाल, चेहरा इतना भयानक, उसपर कटने के,जलने के निशान।

“कमला अक्का तू इसमें मत आ। तुझसे और नंदू से मेरी कोई दुश्मनी नहीं। मुझे मेरी बेटी देदो। मैं यहाँ से चली जाउंगी।” ऐसे बोल कर सीमा रोने लगी। और बेहोश हो गयी।

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कमला यह देख के एकदम से सुन्न हो गयी। वो बाहर भागी। नंदू और विनोद भी साथ में भागे और दरवाजा बंद कर दिया।

“यह सब क्या हैं? कमला,मुझे कुछ बताओगी? तुम्हे वो अक्का क्यों बोली?” विनोद ने जरा घुस्से से पूछा।

“वो वापस आ गयी साहब…….वो वापस आ गयी हैं……..अपना पुराना बदला लेने। मैं बोलू की मुझे अक्का कोई दूसरा नहीं बोल सकता। एक ही थी। वोही थी। वो आ गयी साहब….. अपनी लड़की की मौत का बदला लेने आ गयी। वो अब किसी को नहीं छोड़ेगी। कल बाजार में भी दीदी कह रही थी की मेरी बच्ची मुझे दे दो” ऐसा कहकर कमला रोने लगी। नंदू कमला के पास जाकर बैठ जाता हैं।

विनोद तो पूरा पागल हो चूका था। कमला क्या बोल रही थी कुछ समझ नहीं आ रहा था।

कमला ने बताना चालू किया।

“साहब, ये जो हवेली हैं ना, वो जमीदार बड़ा ही निर्दयी आदमी हैं। उसने अपनी बहु और बेटी को अपने हांथो से मार डाला। हम दोनों गवाह हैं साहब। लेकिन गरीब की कौन सुनता है। डर और गरीबी के कारण हमने अपना मुह बंद रखा”

विनोद को थोडा शांत हो रहा था। कमला आगे बता रही थी। “उस जमीदार का एक लड़का था। रौनक नाम का। साहब नाम जैसा उसका स्वाभाव था। अपने पिता से और माँ से अलग। जहा माँ बाप गरीबो को दूर करते रौनक सबके साथ उठता बैठता। उसका ये स्वभाव घरवालों को बिलकुल भाता नहीं था। रौनक को शांति पसंद थी। जो एक मजदुर की लड़की थी। वो शादी करना चाहता था। घरवालो के खिलाफ जाकर उसने शांति से शादी कर ली। लेकिन उसके घरवालो ने लोगो के सामने तो ये सह लिया। लेकिन उस बेचारी पर बहोत जुल्म किये साहब।”

विनोद ने बिच में कहा, “लेकिन इसमें मेरी सीमा की क्या गलती? उसके साथ ये सब?” विनोद बड़ा हैरान था।

कमला आगे बताने लगी, “हा साहब। इसमें सीमा दीदी की कोई गलती नहीं हैं। लेकिन अब वो शांति की आत्मा वापस आ गयी साहब। अपना बदला पूरा करने। उस शांति को एक लड़की हुई। बेचारी सारी तकलीफे सहती लेकिन कभी घर की बात बाहर जाने नहीं दी। रौनक को भी ये सब पता था। उसने अपने माँ बाप को समझाने की बहोत कोशिश की। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। और एक दिन हाथा पाई में शांति की लड़की बहोत जखमी हुई। डॉक्टर न मिलने से बेचारी बच नहीं पाई। साहब, बच्चे का दर्द क्या होता हैं हमसे पूछो साहब। हमको बच्चा नहीं हैं। आप नहीं समझोगे” इतना बोलकर कमला रोने लगी।

खुद को संभालकर वो आगे बोलने लगी, “अपना बच्चा सामने दम तोड़ दे तो कैसा लगता है साहब? शांति पागल सी हो गयी। लेकिन उस जमीदार ने बच्ची की लाश को आपका जहा बाथरूम हैं ना वहाँ जमींन में गाढ़ दिया। शांति ये सब सह नहीं पाई और बेचारी तड़प के मर गयी। कहते हैं न साहब, जो तड़प के मरते हैं उनकी रूह भटकती रहती हैं। रौनक ये सबसे अभी भी बाहर नहीं आ पाया है। वो पागल हो चूका हैं। उसको एक खोली में बंद रखता हैं वो जमीदार। बहोत प्यार करता था रौनक अपनी शांति से और बच्ची से। उस बेरहम जमीदार ने शांति की लाश को भी कही गायब कर दिया। उसकी लाश किसीको नहीं मिली साहब।”

ये सब सुन के विनोद सुन्न सा रह गया। कैसे है ये लोग? और अब मैं अपनी बीवी को कैसे बचाऊ? यही सोच में पड़ गया।

सुबह होते ही नंदू एक तांत्रिक बाबा को ले आया।

उन्होंने समस्या का हल बताया। शांति की आत्मा को मुक्ति देने के लिए पहले शांति को कहा गायब किया हैं वो देखना पड़ेगा। विनोद ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज की। विनोद ऐसे लोगो को ठीक करना जानता था। पुलिस ने जमीदार और उसकी बीवी को नंदू और कमला के बयांन पे हिरासत में लिया। शांति को उसने खेत में दफनाया था। उस तांत्रिक ने खेत में खुदवाके शांति की अस्थियाँ बाहर निकलवाई। बादमे हवेली में जाकर बाथरूम में खुदाई करवाई।

शांति और उसकी बच्ची की अस्थिया साथ में अग्नि के हवाले किया। उन दोनों को मुक्ति मिल चुकी थी।

इधर सीमा कमरे में बंद थी। उसको धीरे धीरे होश आ रहा था। शांति की रूह अब सीमा को छोड़ चुकी थी।

(नोट- दी गई कहानी काल्पनिक है, इसका किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु से कोई संबंध नहीं है। हमारा उद्देश्य अंधश्रद्धा फैलाना नहीं है। यह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से बनायी गयी है।)

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