शमशान- एक अविश्वसनीय डरावनी आत्मा की कहानी

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दूर तक शांत नीले समुंदर के किनारे और ठंडी हवा में झूमते नारियल के पेड़। ऐसी जगह पे कौन नहीं रहना चाहता। सबका सपना होता हैं। ऐसे ही किसी सपनो की दुनिया में राजेश और कल्पना ने अपना कदम रखा था। अभी अभी दोनों की शादी हुई थी। और दोनों ने एक बड़ा सा घर किराये से लिया था। पैसे की कोई कमी नहीं थी राजेश के पास। गाव में पुरखो की जमींन और यहाँ खुद एक कंपनी में मैनेजर। जिंदगी की हर ख़ुशी वो कल्पना को देना चाहता था। ये जो घर लिया था वो बिलकुल समुंदर के सामने था। सामने नीला समुंदर और बाजु में फैले रेत का किनारा। रोज ये नया जोड़ा दूर तक टहलने निकल जाते थे। अपने सपनो में ही जैसे वो जी रहे थे। लेकिन कहते हैं की जहा बहोत सारी खुशिया हो वहाँ किसी की नजर जल्दी लग जाती हैं। ऐसे ही हुआ इन दोनों के साथ। उसके बाद जैसे इनकी सपनो की दुनिया बिखर सी गयी। जब एक अनजान,काले साये ने इनकी सपनो की दुनिया में कदम रखा। जिसका राजेश और कल्पना को अंदाजा भी नहीं था की उनके साथ अब क्या होने वाला था।

“राजेश,मुझे तंग मत करो न प्लीज……आज तो सोने दो। आज ऑफिस नहीं हैं तुम्हारा।” कल्पना अपना मुह तकिये में छुपाते हुए बोली। राजेश ने खिड़की के परदे हटा दिए। सूरज की किरने उनके बेडरूम में आने लगी थी। और जोर की हवा भी। राजेश ने कल्पना को अपने पास लिया और उसको सिर्फ देखता रहा।

“क्या देख रहे हो?” कल्पना ने आंखे बंद करके ही पूछा।

“अब हम आपको देखे भी नहीं? हम अपना सपना खुली आँखों से देखना चाहते हैं। आप हमारा सपना हों। जो पूरा हुआ है। आप जैसी लड़की हमारे जीवन में आना हमारे लिए सपने से कम थोड़ी न हैं।” राजेश ने बहोत प्यार से कहते हुए कल्पना के बाल सवारे।

“ह्म्म्म ……आज जनाब का क्या इरादा हैं? कहा घुमाने लेके जाओगे मुझे? आज खाना भी बनाने का मन नहीं मेरा। सुबह का भी बाहर से मंगाते हैं और रात को कही बाहर ही खाके आते हैं।” कल्पना ने अपनी मन की सुनाई।

“जो हुकुम मेरी रानी” राजेश ने भी उसकी हा में हा मिलाया। दोपहर का खाना खाकर दिन भर टीवी देखते रहे दोनों। राजेश को नींद आयी तो वो थोडा सो गया। शाम को उठ के दोनों बाहर घुमने चले गए। खाना खाकर घर वापस आये तो रात के ग्यारह बज चुके थे। आते ही दोनों ने सोने की तयारी की और सो गए।

रात के कुछ १.३० बजा होगा।

“खाट……टक….खाट….टक…..”

अचानक ही उनकी बेडरूम खिड़की खुल गयी और बहोत जोर की हवा अंदर आने लगी। कल्पना की आँख खुल गयी। देखा की राजेश तो मजे सोया पड़ा हैं। उसने उठते हुए खिड़की बंद की। लेकिन जैसे कल्पना अपने बेड की तरफ मुड़ी, खिड़की फिर से खुल गयी। कल्पना को थोडा अजीब लगा। लेकिन वो फिर से खिड़की बंद करने गयी। तभी उसको लगा की खिड़की के पास कोई हैं। उसने आवाज लगायी,

“कौन हैं वहां?”

लेकिन कोई जवाब नहीं आया। खिड़की का पर्दा हवा से उड़ने लगा। कल्पना ने फिर से हिम्मत जुटा कर खिड़की बंद की और जैसे ही वो पीछे मुड़ी………

“आ…..आ……..भूत…….भूत…….राजेश……. भूत”

कल्पना की चींख ने राजेश की नींद तोड़ दी। राजेश उठ के कल्पना के पास भागा।

“क्या हुआ? क्यों चिल्ला रही हो?” कल्पना राजेश से लिपट कर रोने लगी।

“राजेश…..राजेश…..तुमरे बगल में भूत था। मैं न यहाँ खिड़की बंद करने आयी थी। मुझे लगा की यहाँ कोई है। लेकिन जब मैं बेड पे सोने आयी तो……तो……”वो आगे कुछ बोल नहीं पायी और रोने लगी। उसके हाँथ पैर कांप रहे थे।

राजेश ने उसको बेड पे बिठाया और एक हाँथ से पानी का गिलास उसको दिया। पानी पिने के बाद कल्पना को अब थोडा ठीक लगने लगा।

“राजेश, मैंने देखा के तुम्हारे बगल मे एक भयंकर,काला साया था। जो मेरी जगह सोके था। मैंने उसको देखा तो वो भी मुझे ही देख रहा था। वो किसी औरत जैसे दिख रहा था। मुझे बहोत डर लगा रहा हैं राजेश। प्लीज मुझे अकेला मत छोड़ना।” कल्पना फिर से रोने लगी।

राजेश ने उसको अपने पास बिठाया और कहा, “अरे नहीं पगली, मैं तो तुम्हारे साथ में ही तो हु। तुम्हे छोड़कर कहा जाऊंगा भला?”

वो रात कैसे तो भी बित गयी। सुबह हुई लेकिन कल्पना सोके थी। आज नाश्ता और टिफिन भी राजेश ने खुद से ही बनाया। उसने नाश्ते की एक प्लेट तैयार की और साथ में कॉफ़ी लेके बेडरूम में चला गया। कल्पना अब भी सो रही थी। उसने कल्पना को उठाया और उसको अपने हांथो से नाश्ता करवाया।

“अब कैसा लग रहा हैं कल्पना?” राजेश ने तयारी करते हुए पूछा।

“राजेश,क्या तुम आज घर रूक नहीं सकते? मुझे यहाँ बहोत अकेला महसूस होता हैं।” कल्पना ने एक गुजारिश की।

राजेश उसके पास आकार बोला, “कल्पना,डरो नहीं। कल जो हुआ वो शायद तुम्हारा वहम था। ऐसे होता है,थकान के कारण। मैं जल्दी वापस आऊंगा। फिर शाम को कही बाहर चलते हैं…ह्म्म्म।”

राजेश अपने ऑफिस चला गया। उसको दूर तक जाते कल्पना निहार रही ही। आज घर में कुछ करने लायक नहीं था। खाना भी राजेश ने बनाया था। सोचा अब बाहर लॉन में बैठकर कुछ किताबे पढ़ लू।

कल्पना ने दोपहर का खाना खाया और लॉन में बैठकर किताब पढ़ने लगी। उसको कल वाली बात याद आ रही थी। लेकिन उसने कल के बारे ना सोचने का फैसला किया। लेकिन जैसे ही उसने किताब का दूसरा पन्ना पलटा…….वही काला साया ….वही भयंकर चेहरा उसको किताब में दिखा। उसकी लाल आंखे…जैसे खून था आँखों में। उसने झट से किताब दूर फेंक दी और बाजु में जाकर कड़ी हो गयी।

उनके घर के बगल में एक घर था। कल्पना की सारी हरकते एक औरत देख रही थी। वो बाहर आकर कल्पना को आवाज लगायी।

“क्या हुआ बेटा? कोई परेशानी हैं क्या? तुम नये आये हो क्या?”

आवाज सुन कर कल्पना होश में आयी। अब वो भी उस औरत से बात करने लगी। वो बूढी सी औरत अब कल्पना के लॉन के बगल में बने दीवाल के पास आकार बाते करने लगी।

“एक बात कहू बेटा? बुरा मत मानना। लेकिन यह घर काफी दिनों से बंद था। यहाँ पहले एक फॅमिली रहते थे। लेकिन कुछ ही दिनों में उन्होंने घर खाली किया। पता नहीं यहाँ कोई टिकता ही नहीं। तुम लोगो ने सब पूछ के ही लिया न घर?” उस औरत ने जानकारी देते हुए कहा।

“हा आंटी। मेरे पति ने सब देख लिया होगा। घर उन्होंने ने ही देखा था। हमारी तो अभी शादी हुई हैं” कल्पना ने अपने बारे में ज्यादा बताना सही नहीं समझा।

उस आंटी के पति ने आवाज लगायी तो वो औरत चली गयी लेकिन कल्पना कुछ सोच में गिर गयी। ये सब मुझे क्यों दिख रहा हैं। वो घर में अन्दर गयी लेकिन अपने बेडरूम में जाने का उसका मन नहीं था। वो सोफे पर ही लेट गयी। उसकी आँख कब लगी कुछ पता नहीं चला।

दरवाजे की घंटी बजी। वैसे ही कल्पना की नींद खुली। वो दरवाजा खोलने गयी। दरवाजे पर राजेश था।

“राजेश …..अच्छा हुआ तुम आ गए। मेरा बिलकुल भी मन नहीं लग रहा था। सारा दिन मैं सोके थी।” कल्पना ने राजेश के हाथ से उसका बैग लिया और एक जगह रख दिया।

शाम को घूम कर आने के बाद खाना बाहर से ही मंगवाया। दोनों खाना खाकर सो गए। रात को राजेश को प्यास लगी तो वो किचेन में पानी पिने चला गया। तभी बाहर रास्ते के कुछ कुत्ते उनके घर की तरफ देख कर भौक रहे थे। राजेश को लगा की कोई चोर तो नहीं घुस आया। उसने इधर उधर देखा। सब ठीक लगा तो वो अपने बेडरूम की तरफ गया। उसने आते वक़्त रूम का दरवाजा खुला रखा था। लेकिन अब वो बंद था। राजेश जैसे ही अन्दर गया। अन्दर का नजारा देख के उसको चक्कर ही आगे। कल्पना अपने बेड पे नहीं थी। वो हवा में झूल रही थी। उसके खुले बाल और लाल आंखे राजेश को घूर रही थी। वो ये सब देख एकदम से निचे गिर गया। कल्पना अब धीरे धीरे दिवार पर चढने लगी और उलटी छत को जाकर चिपक गयी। राजेश की तो जैसे साँसे रूक गयी थी। यह सब क्या था ये सोचने का उसके पास मौका नहीं था। वो चिल्लाता हुआ बाहर भागा और बेडरूम का दरवाजा बाहर से लॉक किया। वो रातभर सोफे पर ही बैठा रहा। अपनी बीवी को ऐसे छोड़ के कहा जाता। लेकिन राजेश के मन में अब सेकड़ो सवाल घुमने लगे।

सुबह हुई। राजेश ने हिम्मत कर के दरवाजा खोला। कल्पना बेडपर सो रही थी। एकदम नार्मल। जैसे कुछ हुआ ही नहीं। राजेश ने उसको उठाया। लेकिन कल के बारे में कुछ भी बात नहीं की। अपने सारे काम करके वो ऑफिस चला गया। शाम को घर आने की उसमे हिम्मत नहीं थी। उसने बेल बजायी। कल्पना आज बहोत बदली हुई नजर आयी। उसके बाल खुले हुए थे। और बिलकुल चुप। खाने पर भी कुछ नहीं बोली और अपने रूम में जाकर सो गयी।

राजेश बहोत देर तक सोफे पर ही बैठा सोच रहा था। लेकिन हिम्मत जुटा कर बेडरूम में जाने के लिए जैसे उसने अन्दर कदम रखा।

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कल्पना का वो भयंकर रूप देख कर राजेश जैसे पत्थर बन गया। भयंकर काली डायन बन चुकी थी वो। जैसे कल्पना ने काला साया बताया था, बिलकुल उसके जैसे। उसके बाल खुले हुए थे। और लाल आंखे। मुह से लाल खून बह रहा था।

राजेश अब बहोत डर गया था। वो बाहर भागा। तभी कल्पना बाहर आयी। और बाहर का दरवाजा खोल के समुंदर के किनारे से भागकर एक पुराने घर की तरफ चली गयी। बहोत अँधेरा था वहां। एक पेड़ के पास जाकर जमींन पे सिर रख कर बहोत ही अजीब आवाज में बोल रही थी। राजेश मदत के लिए यहाँ वहाँ भाग रहा था। क्या करे उसको खुद समझ नहीं आ रहा था। तभी वो बगल वाली आंटी एक आदमी को साथ में लेकर के आयी। उसको राजेश ने कभी देखा नहीं था।

“आप कौन हो?” राजेश ने पूछा।

“बेटा, तुम मुझे नहीं जानते। लेकिन तुम्हारी बीवी मुझे जानती हैं। मैं तुम्हारे बगल वाले घर में रहती हु” आंटी ने आगे कहा, “मैंने तुम दोनों को बाहर भागते हुए देख लिया था। तभी मैंने अपने पहचान के मान्त्रिक को बुला लिया।”

मान्त्रिक बोलने लगा, “यहाँ पहले शमशान हुआ करते थे। बाद में लोगो ने यहाँ घर बना लिए। ये कोई दुष्ट आत्मा का काम लगता है। आत्माए अँधेरा जब ज्यादा हो तब यहाँ वहां घुमती हैं। जब अमावस्या हो तब उनकी ताकत बढ़ जाती हैं। इस बिच वो अपनी ताकत बढाने के लिए कोई इंसानी शरिर खोजती हैं। और जिससे वो टकराए आत्माए उसपे अपना कब्जा कर लेती हैं। और वो उनके खून से अपनी प्यास बुझा कर खुद ताकदवर बन जाती हैं। अभी अमावस्या ही चल रही हैं। इन दिनों में वो तुम्हारी बीवी को अपना शिकार बनाएगी और अमावस्या के दिन उसकी मौत के साथ वो दुष्ट आत्मा अमर हो जाएगी।”

राजेश बहोत डर गया। वो हाँथ जोड़ कर उस मान्त्रिक से कल्पना को बचाने की बिनती करने लगा। “आप प्लीज कुछ कीजिये बाबा। मेरी बीवी को बचाईये।”

उस मान्त्रिक ने अपनी झोली में से थोड़ी राख निकली। “ ये शमशान की राख है। हम वहाँ साधना करते हैं। ये उसके सर पर लगा दो। वो काबू में हो जाएगी।”

राजेश ने वैसे ही किया। बहोत जोर की चींख के साथ कल्पना निचे गिर पड़ी। अब राजेश ने अपनी गोद में उसको उठा कर घर की तरफ चला गया। साथ में वो मान्त्रिक और बूढी आंटी भी थी। घर पहुचते ही मान्त्रिक ने घर को अपने मंत्रो से बांध दिया। कल्पना को सुला कर वो सब बाहर आये।

“उसको एक काला साया दिखा था हमारे बिस्तर पर। बस उसी दिन से कल्पना बदल गयी।” राजेश ने बताया।

मान्त्रिक ने घर की दीवाल को हाँथ लगा कर अपनी आँखे बंद की। “ये काला साया तुम्हारी बीवी को लेने आया है। उसको अमर होना हैं और वो उसको मारकर ही दम लेगा। ये बहोत शक्तिशाली है। इसको बांधना मेरे बस की बात नहीं। मैं अपने गुरुजी को लेकर आता हु। तब तक तुम उसको रूम के अन्दर बंद रखो।”

वो मान्त्रिक और आंटी चले गये। राजेश को अब बहोत बेचैनी हो रही थी। उसको कल्पना की चिंता हो रही थी। सुबह से शाम तक वो बाहर चक्कर काट रह था। शाम को अचानक रूम में से रोने की आवाज आयी। “राजेश,मुझे बचालो प्लीज। ये मुझे क्या हो गया है? मुझे मरना नहीं हैं। मुझे बचालो।”

राजेश से रहा नही गया और उसने दरवाजा खोला। कल्पना एकदम से वो शैतानी आवाज में बाते करने लगी। और अपने भयंकर रूप में आ गयी। राजेश ने उसको पकड़ना चाहां। लेकिन कल्पना ने अपने हाथ में एक बर्तन लेके राजेश के सर पर मारा। राजेश बेहोश होकर गिर गया।

रात होने के बाद वो मान्त्रिक अपने गुरूजी के साथ राजेश के घर आया। राजेश को बेहोश पाकर वो समझ गए की शैतान ने अपनी चाल चली और कल्पना को लेकर कही भाग गया।

राजेश को पानी मारकर होश में लाया। और गुरूजी ने वो रूम देखा जहा कल्पना को कैद किया था। उनको कुछ समझ आया। वो बोले, “ बेटा, समय कम हैं। यह साया कोई मामूली साया नहीं हैं। कई सालों के बाद इसको कोई मनुष्य शरीर मिला हैं। अगर वो साया अमर हो गया और उसने इंसानी रूप धारण कर लिया तो वो अपनी कोई भी इच्छा पूरी कर सकता हैं। हमें तुम्हरी बीवी को किसी भी हालत में बचाना ही होगा,नहीं तो क़यामत होगी। चलो मेरे साथ।”

वो दोनों राजेश को लेकर शमशान में आये। वहा एक हवन जल रहा था। दोनों मान्त्रिक बैठ गए। और मंत्रो का पाठ चालू किया। रात काली होती गयी। चाँद अब बिलकुल भी नहीं दिख रहा था। अब अमावस्या अपने चरम पर थी।

तभी जोर से चिल्लाते हुए कल्पना वहा आ गयी। वो बहोत भयंकर रूप में थी। उसके आने से वहा खून की बदबू फ़ैल गयी। मंत्रो का जाप चालू था। गुरूजी उठे और कल्पना के पास जाकर मंत्र पुकारा और शमशान की राख उसपे मारी। कल्पना शांत हो गयी और उसमे से एक काला साया बाहर निकला। वो देखने में बिलकुल कल्पना जैसा ही लग रहा था। अब उसने कल्पना का रूप ले लिया। पहचानना मुश्किल था की कौन कल्पना हैं और कौन वो साया।

गुरूजी ने अपना हाँथ आगे किया और त्रिशूल उनके हाथ में प्रकट हुआ। इतने में वो डरावनी आत्मा ने अपनी चाल चली और गुरूजी के साथी मान्त्रिक को मार डाला। अब उसने गुरूजी को भी मारना चाहां। लेकिन उनके मंत्रो के सामने वो टिक नहीं पाया।

ये सब हड़बड़ी में वो मंत्रो वाला त्रिशूल कही निचे गिर गया। वो ढूंडने गुरूजी जैसे झुके वैसे डायन ने गुरूजी को बहोत बुरी तरह घायल किया। उन्होंने राजेश को इशारे से वो त्रिशूल से साये का खात्मा करने को कहा। गुरूजी की मौत से मानो वो काला साया ख़ुशी से कूदने लगा। इतने में वहां हर तरफ चींखे गूंज उठी। वो काला साया अब अपने मुकाम पे जाने वाला था। उसको मानव शरीर मिलने वाला था। वो साया झूम उठा। तभी राजेश ने उठ कर मंत्रो वाला त्रिशूल से उसका अंत करना चाहां। लेकिन उसने वही त्रिशूल से राजेश को अपना शिकार बनाया। बुरी तरह घायल होकर राजेश निचे गिर पड़ा।

ये देख कल्पना अपना पूरा जोर लगा के राजेश की मदत को गयी। अपने पति को वो मरता हुआ कैसे देख सकती थी। वो साया और कल्पना आपस में भीड़ गए। अब कौन कल्पना और कौन साया समझ नहीं आ रहा था।

राजेश ने वो त्रिशूल उठाया। कल्पना ने इशारा किया और वो मंत्रो वाला त्रिशूल राजेश ने उस खूंखार साये के सीने में दे मारा।

उसको तड़पता देख के राजेश ने अपनी बीवी का हाँथ पकडा और उस शमशान से बाहर भागा। वो दोनों जैसे तैसे घर पहुचे।

घर के अन्दर जाते ही राजेश सोफे पे लेट गया। उसके सीर से खून बह रहा था। कल्पना ने राजेश को मरहम लगाया और राजेश को बेडरूम में सुलाया। इतने दिनों से वो ठीक से सो भी नहीं पाया था।

उसको सुला कर कल्पना नहाने चली गयी।

उसके बाल खुले हुए थे। वापस आकर उसने कंघी उठाई और…………

आईने में देखा……..

सिर्फ कंघी दिख रही थी…..कल्पना गायब थी।

(नोट- दी गई कहानी काल्पनिक है, इसका किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु से कोई संबंध नहीं है। हमारा उद्देश्य अंधश्रद्धा फैलाना नहीं है। यह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से बनायी गयी है।)

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