हम इन्सान रोज की भाग दौड़ वाली जिंदगी में खुद को इतना उलझा देते है की अपना खुद का कोई वजूद भी है ये भूल जाते है।
ये मेरी कविता “मैं जीना चाहता हूँ” उन लोगो के लिए है, जो सच में चाहतें है की कभी एक बार हम खुद के लिए जिये।थोडा सा क्यों न हो, अपने लिए वक़्त निकालना चाहिए
ये जिंदगी हमे जो मिली है, यही वो मौका है।
ऊँचे आसमानों में,
उड़ना चाहता हूँ।
दूर किसी पहाड़ों पे,
घर बनाना चाहता हूँ।
मैं खुद के लिए जीना चाहता हूँ…
पहली बारिश की बूंदों से,
प्यास बुझाना चाहता हूँ।
गरजती घटाओं से,
फिरसे बातें करना चाहता हूँ।
मैं खुद के लिए जीना चाहता हूँ …
झील का पानी होना चाहता हूँ,
लहरों पे बहना चाहता हूँ।
शायद मोती ना बन सकू,
पर समुंदर की रेत होना चाहता हूँ।
मैं खुद के लिए जीना चाहता हूँ…
बिखरें हुए पन्ने,
सिमटना चाहता हूँ।
भुली हुई यादों में,
फिरसे बसना चाहता हूँ।
मैं खुद के लिए जीना चाहता हूँ…
बहोत भाग लिया,
अब थोडा रुकना चाहता हूँ।
सबकी सोचता था,
अब जरा मतलबी होना चाहता हूँ…..
मैं बस एक बार …खुद के लिए जीना चाहता हूँ…
सुंदर कविता ,💐💐💐👌👌👌
Thanks a lot
manatalya bhawnanna moklik karnara ani tyanna sangitat dolwinari kawita …so beautiful!
Lovely…..
Thank you so much
Superb 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
Thanks a lot..
वा क्या बात है,🎉🎉🎉🎉💐💐💐💐💐👌👌👌👌👌सही मे बोहत खुब लिखा है.
आपका बोहोत स्वागत है !
मैं जीना चाहता हूँ .💐💐💐💐💐👍👍बोहत बढीय
आपके कॉमेंट से हमें लिखने की प्रेरणा मिलती है। पढ़ते रहिए और अपने दोस्तो से शेयर कीजिए 🙏👍
कविता में बहुत से लोगों की मन की बात को लफ्जों में पिरोया हैं। सब की आरजू हैं इस मे।
धन्यवाद् ! आशा है आपको हमारी कविताये पसंद आती है.. पढ़ते रहिये|
Sunder
Thanks a lot!
exacty so…true..👍
Thanks a lot! Keep reading and encouraging us.