मोड़ – भूत की डरावनी कहानी | Horror Story In Hindi For Reading

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रात का शायद दूसरा पहर चल रहा था। इतनी रात को न जाने कहा से एक गाड़ी बहोत ही ज्यादा स्पीड से आती हुई दिखाई दे रही थी। वो गाड़ी उस मोड़ से अब गुजरने वाली थी,की अचानक ब्रेअक्स के लगने की आवाज आयी।  

“कर्र…. र….र…….।  

गाड़ी दूर तक आवाज करती गयी और कही पे जाके टकराई। वो हादसा इतना भयानक था की मुझे सिर्फ लोगो की चींखे सुनाई दी। जब तक वहा जाते सब की चींखे एक भयानक ख़ामोशी में बदल गयी थी। हर तरफ खून ही खून था और उसमे पड़ी मासूम लोगों की लाशे। ये बताते हुए वो बुढा किसान रो रहा था। और हम सब पुरे मन लगाके उसकी बाते सुन रहे थे। यह सब वो बुढा हम सब दोस्तों को अगर पहले बताता तो शायद हम उसपे यकीं नहीं करते थे। लेकिन जब ये सब हमारे साथ हुआ तब यकींन तो करना ही था।

मेरा नाम कैलाश है। मैं वैसे तो एक सिविल इंजिनियर हु लेकिन मुझे घुमने का बहोत शौक है। जब भी मौका मिलता मै अपने दोस्तों के साथ गाड़ी लेके निकल जाता । कभी मेरी तो कभी उनकी गाड़ियों में,या फिर किराये की। किराये की तभी करते जब कही दूर जाना हो तो।ऐसे ही हम सब दोस्त प्लान कर रहे थे की कहा जाये और सब ने एक जगह पे अपनी हा भरी। वो जगह थी शहर से दूर घाटियों में बसे बेलापुर की। नाम सुन के हम सब हस पड़े। ये किसी हिंदी मूवी के गाव के नाम जैसा लग रहा था। मैंने कहा, “ऐसा सच में कोई गाव है या बस ऐसे ही बोल रहे हो तुम शशांक?”

शशांक ने सीधा मुझे वहा के फोटो दिखाए। हम सब देखते ही रह गए। बहोत ही खुबसूरत पहाड़िया थी। और बादलो से घिरा हुआ गाँव बेलापुर। अब तो मेरा मन भी वहा कब जाऊ ऐसे कर रहा था।

मैं,राहुल और शशांक तीनो ने शनिवार का प्लान बनाया और हम सब शशांक की ही गाड़ी से निकल गए। सुबह जल्दी उठ के सामान बाँधा और बिना कुछ खाए हम निकल गए। सोचा रास्तें में कुछ खा लेंगे। सुरज अब काफी ऊपर आ गया था। सब को बहोत भूक भी लग रही थी तो सोचा कही रुक के पेट पूजा कर ली जाये। हाइवेज पर आजकल इतने छोटे मोटे ढाबे है की खाने पिने की कोई टेंशन नहीं। और हमारे जैसे घुम्मकड़ो के लिए तो ये सोने पे सुहागा है। एक जगह शशांक ने गाड़ी रोकी। हम सब उतर कर जरा फ्रेश होकर नाश्ता करने लगे।

नाश्ता करने के बाद हम सीधा बेलापुर के लिए निकल पड़े। बेलापुर शायद शाम तक पहुचने वाले थे। रास्ते में और भी कुछ अच्छी वाली जगह शशांक को पता थी। सो वहा से होकर जाने वाले थे। गाड़ी चल रही थी और मंजिल जैसे आने को थी। सब लोग बहोत ही बेचैन थे। वैसे तो ये सब नार्मल था लेकिन कुछ होने वाला हो तो इन्सान को उसकी एक पूर्व सूचना भगवान देने लगता है। ऐसा सुना था मैंने अपने बुजुर्गो से। जो भगवान को मानता है और उनमे आस्था रखता है वो इस बात को जरुर मानेगा। ये मैंने बहोत बार सुना है। कुछ होने से पहले हम सतर्क रहे या कोई अनहोनी ना हो,या होने वाली हो। इसका अंदेशा थोडा सा तो लग ही जाता है।

लेकिन हमने इन सब बातों को नजरंदाज किया। और मस्ती में निकल पड़े। मेरी थोड़ी आँख लग रही थी तो मैंने राहुल को आगे बैठने को बुलाया और मैं पीछे जाके लेट गया। शशांक को बहोत घुस्सा आया की ट्रिप का मजा ये सो के ले रहा है। लेकिन मुझे बहोत नींद आ रही थी। अभी तक हम आधे दूर तो आ चुके थे। रास्ते में रुकने का सोचा था लेकिन रास्ता ख़राब होने के कारन शशांक ने कुछ और जगह दिखाने का प्लान कैंसिल किया। शाम हो रही थी। मैं अब काफी अछा महसूस कर रहा था। पहाड़ों का रास्ता चालू हो गया था। घना जंगल और पहाड़। दोनों को काटता हुआ रास्ता हर मोड़ पे लग रहा था की जैसे ये आखरी हो।

अचानक शशांक ने ब्रेअक्स लगाये। मेरा सर सीट से टकराया। “क्या हुआ रे शशांक?पगले मेरा सिर फुट जाता। क्या जरुरत थी जोर से ब्रेअक्स लगाने की?”

शाम होने से हेडलाइट चालू थी गाड़ी की। सामने से एक औरत आते हुए दिखी। उसने हम से बेलापुर के रास्ते में एक गाव तक लिफ्ट मांगी। हम सब एक दुसरे की तरफ देख रहे थे।  

कुछ बोलते इससे पहले वो औरत बोली,”भाईसाहब,मेरी मदत करो। मेरी बच्ची घर में अकेली है। उसको देखने वाला कोई नहीं। मैं पास के गाव में बाजार के लिए आयी थी। अब वापस जाने को पैसे नहीं है इसलिए पैदल जा रही हु।”

शशांक ने सीधा नहीं कहा तो वो रोने लगी। राहुल मेरी तरफ देख रहा था। किसी औरत को लिफ्ट और वो भी गाँव में। ये बात हम सब को हजम नहीं हो रही थी।

वो औरत गाड़ी के सामने आके बैठ गयी। रोके मदत की भिक मांग रही थी। इंसानियत के नाते हमने उसको सामने शशांक के साथ बिठाया। राहुल मेरे साथ पीछे आ गया। राहुल से राहा नहीं गया तो उसने पूछ ही लिया।

“बहेनजी,आपको ऐसे किसीको लिफ्ट मांगते देख हुम सब चौक गए। क्यू की ये गाव का इलाका है। ऐसे सब शहर में होता है। ”

वो बोली “भैया,जरुरत हैं इसलिए। हम हमेशा बाजार कर के इसी रास्ते पैदल ही जाते है। ये रास्ता नया नहीं है। लेकिन कुछ दिन से यहाँ एक आदमखोर शेर घूम रहा है। इसलिए थोडा डर लगा रहता है। आप शायद नहीं जानते। संभल कर रहिएगा। ”

गाड़ी चल रही थी और हम सब उस औरत की बाते सुन रहे थे और उस पर भरोसा भी कर रहे थे। की उस आदमखोर शेर ने लोगो को कैसे मारा। उसकी बातों से लग रहा था की ये लोग तो डर के माहोल में जी रहे है और इन सब चीजों की आदत हो गयी है। गाड़ी चल ही रही थी। हम सब उसकी बातों में सब भूल गए थे की राहुल का मोबाइल बजने लगा। कोई कॉल था। सब को अचानक से लगा जैसे नींद से उठ गए। अँधेरा काफी हो गया था। हम जा ही रहे थे। रास्ता था जो खत्म ही नहीं हो रहा था। अबतक तो उस औरत का गाव भी आना चाहिए था।

अचानक मेरे मन में ये बात आयी की उस औरत ने बोला था की उसका गाव तो पास में है। लेकिन अभी तक आया नहीं। और खास बात ये थी की हमने उसको गाव का नाम भी पुछा नहीं। मैंने राहुल को इशारा किया। शशांक से सीधे बात नहीं कर सकता था। वो औरत कुछ गलत मतलब निकलती। मैंने शशांक से गाड़ी रोकने को कहा। उसने बाजु में गाड़ी रोक दी। हम अपने पैर दर्द कर रहे है बोलके निचे उतर गए। शशांक अभी भी गाड़ी में ही था। रात के ग्यारह बज चुके थे किसी ने ध्यान नहीं दिया था। बाहर घना जंगल लग रहा था। और बाजु में खेत भी थे शायद।

दूर से कोई आते हुए दिखा। तभी झाडी में से भेडियें की चिल्लाने की आवाज आयी।

आ…..उ ……ऊ ……..

हम को पसीने छुट गए। सामने से कोई साइकिल वाला आ रहा था। उसने हम को देख के अपनी टौर्च हमरी तरफ की और बोला ,“अरे,कौन है?यहाँ क्या कर रहे हो?”

“बाबा,हम शायद से रास्ता भटक गए है। काफी देर से घूम रहे है लेकिन बेलापुर तो नहीं आया और ना ही उस औरत का गाव”राहुल ने देखा की वो आदमी काफी बुढा था। इसलिए उसने उनको बाबा कहा।

बुढा बोला, “कौन औरत बेटा?”

इतने में शशांक आया। और बोला, “वो औरत जो हमारे गाड़ी में बैठी है। ”

वो बुढा आदमी गाड़ी के पास जाके देखने लगा। हम भी पास में गए। अब सब की नींद उड़ गयी। अरे भाई वहा तो कोई औरत नहीं थी।

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अब शशांक को संभालना पड़ा। उसको मानो झटका लगा। वहा कोई औरत नहीं थी। हम कुछ समझ नहीं पाये। तभी वो आदमी ने पूछा, “तुम सब को वो औरत कहा मिली थी?”

राहुल ने कहा, “अभी कुछ दो घंटे पहले। रास्ते पे मिली तो मदत चाहिए बोल के रो रही थी। तो हमने उसको गाड़ी में बिठा लिया। लेकिन हम बस घूम रहे थे। उसका गाव भी पास में था बोल रही थी। लेकिन उसका गाव तो आया नही और न हमारा। और गाड़ी रुकते ही खुद गायब हो गयी। शायद उतर के चली गयी। ”

बाबा ने अपने हाथ से कुछ निकाला और हम सब के सर के ऊपर से घुमाया और कहा, “बेटा,तुम लोगो ने एक भूत को अपनी गाड़ी में बिठाया। वो और कोई नहीं यहाँ उस मोड़ पे जो मौते होती है ये वोही है। तुम सब का नसीब अच्छा था इसलिए कोई हादसा नहीं हुआ। अभी तुम सब आगे मत जाओ। मेरा खेत पास में है। वहा चलो। आगे जाओगे तो तुम सब को शायद खतरा है। तुम सब अभी अभी मौत के साथ सफ़र कर के आये हो। ”

वो बुढा हम सब को खेत में लेके गया। वहा एक झोपड़ा था। वहा आग भी जल रही थी। हम एकदम सदमे में थे। क्या हो रहा था कुछ समझ नहीं आ रहा था। आग के पास बैठ के थोडा अछा लग रह था। बाहर अभी ठण्ड बढ़ गयी थी। वो बुढा हम सब को देख के बोलने लगा।

“तुम सब बहोत नसीब वाले हो। वो चुड़ैल ने आज तक बहोत जाने ली है। वो ऐसे ही किसी को रास्ता रोकती है और बादमे उसकी मौत सामने वाले मोड़ पे होती है। ये किस्सा सालो से चलता आया है। मौत पे किसका बस चलता है भला। ”

“लेकिन हमने किसी का क्या बिगाड़ा है?”मैंने कहा।

“वो उसको कहा पता है?उसको तो बस बदला लेना है। उसको किसी ने मदत नहीं की सुना है। रास्ते से जा रही थी और उसका बच्चा घर में अकेला था। वो भागती रही लेकिन रात होने तक वो घर नहीं पहुच पाई थी। उसका बच्चा मर गया। लोग कहते है की वजह कोई और थी लेकिन वो रास्ते से जाने वालों को दोषी मानकर जो उसके झासे में फसा उसको मारती है। ”

“हम सब को भी उस औरत ने यही कहानी बताई थी की उसका बच्चा घर में अकेला है। ”हम सब एक साथ में बोल पड़ें।

वो बुढा बता रहा था, “अभी कुछ दिनों पहले की बात है। मैं यहाँ खेत पे आता हु रोज। उस रात भी था। उस डायन ने एक पुरे परिवार का नाश किया। मैं कुछ कर नहीं पाया था। आज जैसे तुम लोग बच गए ऐसी किस्मत नहीं थी उन सबकी। जब मैं पास में गया तो सारे लोग मर चुके थे। बच्चो तक को नहीं छोड़ा उस डायन ने। ”

बुढा किसान रो रहा था। उसकी बेबसी और लाचारी पे तरस तो आ रहा था लेकिन हम कुछ कर नहीं पा रहे थे। सबसे पहले तो हम बच गए थे इसी बात का शुक्र मना रहे थे। और उस बूढ़े बाबा का भी। अगर वो नहीं आते थे तो शायद वो अनहोनी हमारे साथ भी होती उस मोड़ पे।

चार बज चुके थे। सुबह होने वाली थी। थोड़ी देर में पहाड़ो से नारंगी सी लकीर आसमान पे दिखने लगी थी। हमारी जिंदगी में एक नया सवेरा लेके आयी थी ये सुबह। हमने बाबा के पैर छुए। और एक याद दिल में लेके वहा से सीधा घर की और वापस मुड़े।

बेलापुर सामने था लेकिन किसी का वहा जाने का मन नहीं था। हम जैसे ही घर की तरफ मुड़े,खिड़की से हम सब ने रुक के पीछे की और देखा।

वो मोड़ था।

जहा पे न जाने कितनी जाने गयी थी।

(नोट- दी गई कहानी काल्पनिक है, इसका किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु से कोई संबंध नहीं है। हमारा उद्देश्य अंधश्रद्धा फैलाना नहीं है। यह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से बनायी गयी है।)

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