मौजूद – डरावनी भूत की कहानी

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कहीं मैंने सुना था कि आत्मा होती है और वह अपने आसपास मौजूद हो सकती है।

दोस्तों यह बात लगभग पन्द्रह साल पुरानी है। हम विठ्लपुर गांव में रहने के लिए आए थे।ऐसे में यहा एक किराये के मकान में रहने वाले थे। पिताजी की नौकरी के लिए हमें हमेशा नयी-नयी जगह पर जाकर रहने का मौका मिला। मेरे पिताजी शिक्षा विभाग में कार्यरत थे। नया गांव, नये लोगों को मिलने का अवसर मिलता।

यह गांव भी कुछ बहोत बडा़ नहीं था। बिचमे गांव और आजू-बाजू सारे खेत थे। गांव हायवे से कुछ चार मील भर की दुरी पर था।सभी यहां किसानी करते थे। यहाँ एक स्कूल था जिसमें मैंने दाखिला लिया। यह स्कुल गांव से बाहर था। खेतों के बीच में ही था। 
हम जब से इस गांव में रहने आए थे तब से भुतो के बारे में बात हमेशा से ही सूनी है। पर कभी देखा नहीं था। इस लिये हम भी उसको मजाक में सून लेते थे। 

अब ठंड चालू हो गयी थी। छोटा गांव होने से लोग जल्दी ख़ाके सो जाते थे। कुछ लोग रात को आग जलाकर रखते ताकि घर को गर्म रख सके। वैसे उस वक़्त स्मार्टफोन नहीं थे और न ही इंटरनेट था। लोगो के पास टीवी के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं था मनोरंजन का।

वो अमावस की रात थी। हम भी जल्दी खाके सोने जा रहे थे। तभी बाहर शोर सुनायी दिया। लोग खेतों की तरफ भागने लगे। हम भी पीछे गए। तभी हमारा घर मालिक आया और बोला, “बाबू , कोई गहरा संकट आने वाला हैं।”
पिताजी बोले, “क्यू? क्या हुआ है वहाँ?”
घरमालिक बोला, “बाबू, तुम पढ़े लिखें हो, नहीं समझ पाओगे.. विश्वास नहीं होगा तुम्हें!

तभी वहाँ किसन राम आया। किसन राम घरमालिक के खेतों पे काम करता था। आके बोला, “पुजारी ने सपने में कुछ देखा और सारे गाव का चक्कर लगा रहा है। सारे गांव को मंत्रो से बाँध दिया है उसने!”
मेरी तो नींद उड़ गयी थी। क्या ऐसे भी कुछ होता है? मतलब मंत्रो से गाँव को बांधना! सुनने में भी अजीब लगता हैं। लेकिन बाहर आकार देखा तो न मानते हुए भी यक़ीन करना पड़ा। देखा की दूर खेतो में से जलती आग जा रही थी। सब लोग डरे हुए थे। न जाने कल क्या होने वाला था। हम सब वापस घर लौट तो आ गए पर मन में एक ही सवाल था की ऐसा क्या हुआ के पुजारी को ऐसे करना पड़ा?

सुबह सब मंदिर गए तो मै भी गया। मंदिर के दरवाजे पे देखा कि पुजारी के पास लोग बैठे हैं। पुजारी बार बार पूछे जाने पर एक ही बात कर रहा था, “स्कूल! स्कुल!” 

स्कूल?……इसका क्या मतलब है? यही सवाल था सबको।
अभी लग रहा था की पुजारी नहीं बचेगा। डॉक्टर को बुलाने कोई गया था पर तब तक देर हो चुकी थी। पुजारी नही रहा। उसका कोई सगा तो था नहीं इसलिए कोई उसको देखने आने वाला नहीं था। तो सब ने मिलके उसका आखरी संस्कार भी कर दिया।उसका क्रियाकर्म कर के सब वापस घर पहुंचे तो शाम हो चुकी थी। सबको एक ही सवाल खाये जा रहा था “की स्कूल का क्या मतलब है, जो पुजारी बोल रहा था?”

ये जो पुजारी था काफी ज्ञानी था। लोगो की बीमारिया जड़ीबूटी से ठीक करता था। कुछ एक लोगो के भुत भी भगाये थे ऐसा सुना था। इसलिए पुजारी की बात सब मन पे ले रहे थे। उसने जो किया था, गांव के भले के लिए था।

दिन बितते गए और पुराणी बातें भूल सब अपने काम में लग गएँ। गर्मी के दिन थे। शाम को स्कूल में साहब लोगो की पार्टी थी। मेरे पिताजी भी जाने वाले थे। मै उनके साथ गया था ड्राइवर बन के। हा! पिताजी को बाइक चलानी नहीं आती थी तो, कही जाना होता तो मुझे साथ ले जातें।

रात बहोत हो चुकी थी। हम सब खाना खाके वहाँ से निकले। चलते चलते किसी ने पुजारी की बात छेड़ दी। सब ने उसको हँस के टालते हुए और खाने की तारीफ करते अपने घरो की ओर चल दिए।

सुबह जल्दी उठना था, स्कूल के लिए। सो मैं भी जल्दी सो गया।
सुबह उठे तो और हल्ला था। कल जिसने हम सब के लिए खाना बनाया वो आदमी रात को अपने सामान के साथ स्कूल में सो गया था। वो मर गया! हमको लगा के स्कूल में होगा। पर उसकी लाश उसके घर के छत पे मिली। वो वहा कैसे पंहुचा पता नहीं। पुलिस आयी, खोजबिन करने के बाद सब चले गए।

इधर स्कूल के मैंन गेट के निचे वाली सीढिये पे खून से लकीर खींची हुई थी। किसीने जानबुझ के किया होगा ऐसे सब बोल रहे थे।पर वो खाना बनाने वाला कैसे मरा ये बात इतने साल बित जाने के बाद भी अभी भी राज ही है।
इस बात को साल बित गया।

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एक रोज हम सब शहर गए थे। मेरे छोटे भाई की तबियत कुछ ठीक नहीं थी। बस स्टॉप पे रात को आखरी बस आके रुक गयी।हम लोग वहां उतर कर कुछ चार मिल पैदल जाने वाले थे। वैसे ये कोई पहली बार नहीं था, हम पहले भी यहाँ उतर कर पैदल गांव तक जा चुके थे। पर आज बारिश हो रही थी, बिजली नहीं थी। यहाँ बिजली जाना बहोत आम बात थी। पिताजी ने छोटी टोर्च सामने पकड़ के मुझे, मेरी माँ को चलने को कहा। हम सब पिताजी के पीछे चल रहे थे।

अमावस की रात थी और मुझे याद है जब पुजारी मरा था, वो भी अमावस की ही रात थी। कहते है की अगर अमावस की रात और रात की कुछ घडियो का बहोत गहरा सम्बन्ध होता है। इसीमे भूत, पिशाच बहोत ताकतवर होते है।अपनी अधूरी इछा को पूर्ण करने वो निकल जाते है और उनके रास्तें में जो आड़े आता है उनको वो नुकसान पहुचातें है। लेकिन ये सब बातें सुनी सुनाई है। मेरी दादी भी ऐसे ही हम सब को कहानियों में सुनाती थी।

तो, अँधेरे में रास्ता निकलते हम आगे बढ़ रहे थे। रास्ता कीचड़ से भरा था। शायद रास्ते का काम चालू था। स्कूल आते ही पिताजी चौक गए!
माँ ने पूछा, “क्या हुआ?”
पिताजी- धीरे से बोले, “वो देख! आवाज मत कर!!”
देखा की एक सफ़ेद कपडे में लिपटी हुई किसी की रूह थी वो। जमीं के ऊपर जैसे तैर रहा था वो। पैर नहीं दिख रहे थे।
जैसे ही वो हमारे पास आया उसको देखते ही मेरे होश उड़ गए। उसका चेहरा इतना भयानक था की साँसे अटक गयी मेरी। माँ पिताजी साथ में थे इसलिए शायद मै होश में था वर्ना मैं तो मर ही गया था। लगा के हम सब अब मरने वाले है।
पिताजी माँ  भगवन का नाम ले रहे थे। छोटा भाई रो रहा था और मै भी। कुछ समझ नहीं आ रहा था।
हम आगे जाने की कोशिश कर रहे थे की यहाँ से जैसे तैसे भाग जाये। पर जा नहीं पा रहे थे। हमको बांध दिया था वहाँ। हम सब चींख रहे थे पर उस अँधेरे में हमारी सुनने वाला कोई नहीं था। आगे जैसे मौत दिख रही थी। थोड़ी देर में हमारी चींख भी निकलना बंद हो गयी।अचानक सब शांत हो गया था और बिजली आ गयी। रास्ते की बत्तियां जल चुकी थी। हम सब की जान में जान आयी। शायद भगवान ने हमारी सुन ली थी।

वैसे ही वो आत्मा स्कूल के तरफ चली गयी। हमने भगवान का शुक्रिया किया और वहाँ से गांव की तरफ चल दिए। गांव में पहुंचते ही सारी हकीकत घरमालक को बतायी। लोग भी जमा हुए थे। शायद हमारी मौत नहीं आयी थी इसलिए हम सब बच गए थे। 
भूतों के बारे में कोई बताये तो सब उनपे हसतें है। यकीं कोई नहीं करता। वैसे ही हाल आज हमारा था। हम सब को सब कुछ सही बता रहे थे तो कोई हस रहा था।और कोई हम सब को डरपोक कहके मन ही मन में मुस्कुरा रहे थे।लेकिन जो हमारे साथ हुआ ये हम ही जानते है।

अगले ही साल मेरे पिताजी का वहां से तबादला हुआ पास के शहर में। हम सब ने सामान बांधना चालू किया। मेरे सारे पुराने दोस्त मुझे अलविदा कहने आये थे। रोते हुए मैंने सब को अलविदा कहा और सामान से भरी गाड़ी वहा से निकली। हम सब ने उस स्कूल को आखरी बार गाड़ी से ही देखा और उस जगह को भी जहा हमारे साथ वो घटना हुई थी।

हम सब ने अपनी आँखों से मौत को करीब से देखा था।
वो रात हम  जब भी याद करते है तो रौंगटे खड़े हो जाते है।

(नोट- दी गई कहानी काल्पनिक है, इसका किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु से कोई संबंध नहीं है। हमारा उद्देश्य अंधश्रद्धा फैलाना नहीं है। यह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से बनायी गयी है।)

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