ख़ुशी की तलाश | Best Motivational Story For Kids In Hindi With Moral

khushi ki talash

कभी बहोत पैसा, चैन की सब चीजे होने के बावजूद कुछ लोग दुखी ही रहते है। किसी को पैसे चोरी होने का डर,या किसीको और कुछ। इसी बिच लोग अपनी जिंदगी जीना भूल जाते है। और करते रहते हैं…..ख़ुशी की तलाश।

सब कुछ हो अगर हाथ में पर अगर मन खुश नहीं तो उस जीवन का क्या फायदा?

दुर्गापुर नाम का एक बड़ा सा शहर था। उस शहर में सीताराम नाम का बहोत धनि व्यापारी रहता था। बहोत पैसा और सुख होने के बावजूद भी वो खुद को कभी खुश नहीं समझता था। वो अपनी ख़ुशी को तलाशता रहता। लोग उसको कई सुज्हाव देते पर उसको एक न भाता।

उसने अपने शहर में एक फरमान जारी किया। जो भी मुझे खुश कर पायेगा उसे बहोत से पैसे और जमींन इनाम में दी जाएगी।

लोग ये सुन के दूर दूर से शहर में आने लगे। लोगो के आने से वहा का व्यापार भी खूब तेज हुआ। कोई उसको नाच के,गा के या कोई चुटकुले सुना के ख़ुशी दिलाने का प्रयास करता। लेकिन बात नहीं बनी। सीताराम दुखी का दुखी ही रहा।

एक दिन वो अपने कमरे में सोने की कोशिश कर रहा था। उसको नींद नहीं आ रही थी। उसने सोचा के जरा निचे बगीचे में थोडा घूम के आता हु। निचे पहुचते ही चौकीदार मिला, “मालिक, इतनी रात को ? कही जा रहे हो क्या आप ?”

सीताराम बोला, “नहीं, थोडा घुमने निकला हु, नींद नहीं आ रही थी।”

सीताराम घुमते हुए अपने बगीचे से बाहर देखता है। रास्ता पूरा सुनसान दिखता है। छोटे कुत्ते के बच्चे खेलते हुए दिखते है। उनको देखने वो घर से बाहर आता है।और थोड़ी दूर चलने के बाद कही से रोने की आवाज आती है। वो उस आवाज की तरफ चलता है। एक झोपडी में से ये आवाज आती रहती है।

जरा पास जाके आवाज लगाता है। “कोई है? क्या बात है? क्यू रो रहे हो?”

एक औरत बाहर आती है। कहती है, “मेरी बच्ची तीन दिन से बीमार है। घर में न दवाई के लिए पैसे है न खाने के लिए। उसको ऐसे मरता नहीं देख सकती। इसलिए रो रही हु।”

सीताराम पूछता है, “इसके पिता नहीं है क्या?”

“दो साल पहले इसके पिता का देहांत हुआ है। मैं घरों में साफसफाई का काम कर घर चलाती थी। पर इसकी बीमारी के चलते काम पे जाना बंद हो गया।”

ये सब सुन के सीताराम की आँखों में एकदम से चिंता आ गयी। वो झट से अपने घर की तरफ मुडा। घर पहुचते ही अपने नौकर को लेके अपने गाड़ी में उस झोपडी की जगह पंहुचा।

लड़की को उसकी माँ की मदत से गाड़ी में बिठाके शहर के अस्पताल लेके गया। उसका अछा इलाज कराया और उसकी माँ को अपने घर में काम भी दिलाया। साथ में उस लड़की की आगे की पढाई और उसकी शादी तक की सारी जिम्मेदारी खुद लेता हु ऐसे उसकी माँ को वचन भी दिया।

सीताराम जैसे ही अस्पताल से बाहर निकला और अपनी गाड़ी की तरफ बढ रहा था,उसको बहोत अछा लग रहा था। दिमाग का बोज़ कम हुआ लग रहा था। उसको एक अजीब सी शांति का एहसास हो रहा था।

वो जिस ख़ुशी की तलाश में था,वो ख़ुशी उस बच्ची को मदत करने के बाद उसको मिल चुकी थी।

सिख:- हमेशा लोगोंकी मदत करनी चाहिए। इससे मन को शांति मिलती है

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