मुसाफिर | Hindi poem on Musafir | Musafir par Hindi Kavita

Musafir

मैं हूँ राही रास्तों का,
चलना मेरा काम।
हर दम यही गाता हूँ,
हैं मुसाफिर मेरा नाम।

फ़िक्र कल की क्यों करूँ,
जिक्र फासलों का।
हर लम्हा धुआँ सा,
उड़ाता चलू परिंदों सा।

साहारे क़िसी चलता चलूँ,
मैं मगन बैरागि।
कौन ठीकाना, क्या आशियाना,
कोई ना रोक पाये।

थक कर पहुँच मंजिल तू,
कर हासिल कुछ नाम।
निशाँ बने तेरा,
किसी मुसाफिर का मुक़ाम।

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14 Comments on “मुसाफिर | Hindi poem on Musafir | Musafir par Hindi Kavita”

  1. फ़िक्र कल की क्यों करूँ,
    जिक्र फासलों का।
    हर लम्हा धुआँ सा,
    उड़ाता चलू परिंदों सा।
    Hi line khup chan ahe

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