खुश नसीब होते हैं वो,जहा जनम होता है,वही बसर करते है जिंदगी।अरे! कभी उन बेचारे बूढ़े माँ बाप से पूछो,उनके बच्चो के घर से जाने के बाद क्या होता है।
सुने आंगन में ,दिल रोता है और साथ में आँखे भी।
ऐसे ही किसी घर की कहानी……
कभी किलकारियां गूंज उठती थी,
रोज कानो में जगाने को।
आज शाम भी दस्तक नहीं देती,
बत्तियां लगाने को।
झूले कई बार,
युही बज उठते सुने आंगन में।
शायद उनको भी,
बच्चों की याद आती होगी।
पंछी उड़ के चले गए,
बनाने घोसला नया।
अब पुराने आशियानों में,
ख़ामोशी मंडराती है।
कभी हर तरफ थे,
बिखरे खिलौने और सामान।
आज सजाया घर,
काटने को दौड़ता है।
उम्र ढलती गयी,
और कब शाम हो गयी।
यादों को सिमट के,
इंतजार!…..अब रात का हैं।