जब ख़त और चिट्ठी का दौर था।वो भी कुछ और ही था।कितना लगाव,चाव से ख़त लिखे जाते थे।ख़त में भी सबकी लिखने की जगह होती थी।हर कोई अपने मन की बात उसमे लिखता था भेजने को।
वो दौर अब चला गया।चिट्ठी आना भी बंद हो गयी।
लेकिन उस दौर में भी कोई ख़त आता था तो सब के मन में यही बात आती….
जब किसी के नाम की चिट्ठी आती।
गली के उस कोने से आवाज आयी,
सुना है किसी के नाम की चिट्ठी आयी।
मन मोर बन के नाचने लगे,
लगा जैसे बिन बादल बरसात आयी..
सुना है किसी के नाम की चिट्ठी आयी।
लिखा होगा किसीने कैसे हो तुम,
या हाल सुनाया होगा अपना।
शायद कभी किया होगा वादा पुराना,
लौट कर करने वो पूरा,ये कहने आयी..
सुना है किसी के नाम की चिट्ठी आयी।
होगा इंतज़ार किसी अपने का,
राह ताकते ख़त की कई शामों से।
ओझल होती आशाओं को,
नये से जगाने को है आयी..
सुना है किसी के नाम की चिट्ठी आयी।
कभी होता प्यार का इजहार,
कोई करता मिन्नतें बार बार।
किसी दिल को सुकून तो,
कही पे मरहम लगाने वो आयी..
सुना है किसी के नाम की चिट्ठी आयी।
कही पूछा होगा अपने माँ बाप का हाल,
दूर कही बसा होगा उनका वो लाल।
मायके को तरसती उस दुल्हन को,
शायद लेने का संदेसा वो है लायी..
सुना है किसी के नाम की चिट्ठी आयी।