हमारे यहाँ भुत प्रेत, जादू टोना,पिशाच ये सब बाते बहोत आम हैं। शायद शहरों में ये सब न सुना जाये या फिर इस बात पे कोई गौर नहीं करता लेकिन कुछ गाव आज भी ऐसे हैं जहा भूतों का राज चलता हैं, प्रेतों को मनाया जाता हैं और बुलाया भी जाता हैं। कुछ जगह पे तो भूतों का डेरा होता है वहां आम इन्सान का जाना मतलब कभी वापस न आने के बराबर हो जाता हैं। कुछ खंडहर और हवेली आज भी वीरान पड़े हुए हैं क्यूकी वहा भूतों का डेरा हैं। प्यासी आत्माओ का वास होता है वहा।
ऐसी ही एक हवेली थी चन्दनगढ़ में। खुनी हवेली के नाम से सब जानते थे।गाव में सबको पता था की वहा भूतों का डेरा हैं इसलिए वहा आसपास भी कोई नहीं जाता था। भेड़ बकरिया चराने वाले भी उसके पास नहीं भटकते थे।जानवर भी दुबक के भाग आते थे। इस हवेली में एक बहोत ही जालिम शिकारी रहता था। वो जानवरों का शिकार करते करते कभी इंसानों को भी मार देता और जानवरों ने शिकार की ऐसी खबर फैला देता। लोगो को जब ये बात पता चली तो सारे गाव वालों ने उसको मिलकर मौत के घाट उतार दिया। लेकिन बात यहाँ खत्म नहीं हुई। उस शिकारी की आत्मा उसी हवेली में वापस आयी और उसकी खुद की तस्वीर में जाके छुप गयी। जब उस शिकारी के हवेली के हिस्से मांगने वाले उसके रिश्तेदार वाहा आये तो उस जालिम शिकारी की आत्मा ने सब को मौत के घाट उतारा और सब के कटे हुए सिर को बाहर रास्ते पे फेंक दिया ताकि सब लोग समझ जाये की शिकारी अब लौट आया है।
इस बात को कई साल बित गए। अब तो वहाँ न कोई हवेली थी न कोई शिकारी। इतने साल बित जाने के बाद सब कुछ तहस नहस हो गया था। बस कुछ पत्थर और टूटी हुई दीवारे उस हवेली की मौजूदगी बता रही थी। लेकिन गाव वालों का मानना है की जिसकी कुन्डली में वो योग होता है वो हवेली उसको नजर आती हैं। ये बात कहा तक सही थी ये तो वोही लोग जानते थे। हवेली अब तक न तो किसीको दिखी थी न वो डरावने शिकारी का खुनी भूत।
अमावास की रात थी। बारिश भी बहोत जोरो की हो रही थी। शहर से कुछ लोग चन्दनगढ़ के रास्ते शहर जा रहे थे। बारिश इतनी ज्यादा थी की सामने का कुछ दिख नहीं रहा था। उन की गाडी उस खुनी हवेली के सामने से गुजरी। सामने पूरा अँधेरा था। बिजली नहीं थी। बिजली जैसे ही आसमान में चमक रही थी वो हवेली और भी ज्यादा भयानक लग रही थी। एक बिजली जोर से कड़की। उसकी आवाज से गाड़ी में ब्रेअक्स लग गया। ड्राईवर बोला, “साहब वो सामने कोई घर दिख रहा है। वहां थोड़ी देर रुक कर फिर सामने चलते हैं। वैसे भी बारिश बहोत ज्यादा हैं। मुझे गाड़ी चलाने में तकलीफ हो रही है। और रास्ता भी नया हैं। कुछ और परेशानी न हो इसलिए यही रुक जाते हैं।”
सब राजी हो गए तो ड्राईवर ने गाड़ी उस हवेली की तरफ घुमाई। बहोत ही शानदार थी वो हवेली। गाड़ी में तीन लोग थे। गाड़ी से उतर कर सामने पार्किंग में खड़े हो गए थे की हवेली का बड़ा सा दरवाजा खुल गया। अन्दर धीमी सी रोशनी थी और ऊपर सीढियों से एक बुढा सा आदमी हाथ में लालटेन लिए उतर रहा था। उसको आते ही सागर ने पुछा, “भैया, क्या यहाँ हम थोड़ी देर रुक सकते है क्या? बारिश बहोत है। और हम यहाँ नये है।”
उसने बिना कुछ बोले सिर्फ अपनी गर्दन हिलाकर हामी भरी। वो तीनो लोग अपना जरुरी सामान साथ में लेकर बाकि का गाड़ी में छोड़ कर उसके साथ हवेली के अन्दर चले गए। बहोत ही सुंदर हवेली थी। जैसे बाहर से वैसे अन्दर से। दरवाजे के अन्दर जाते ही सामने ही सीढियों के पास एक बड़ी सी तस्वीर लगा रखी थी। बड़ी सी मुछे और हाथ में तलवार और एक हाथ में पुराने ज़माने की बन्दुक। जैसे कोई महाराजा। रहा नहीं गया तो सागर ने पूछ ही लिया।“ये जो तस्वीर है कोई महाराजा है क्या? क्या ठाट से खड़े है। और बाबा क्या तुम यही हवेली में रहते हो और वो भी अकेले?”
वो बूढ़े ने सागर की आँखों में आंखे मिलाकर कहा, “हा ,ये इस हवेली का मालिक था। कई सालो पहले इसकी मौत हो चुकी है। मैं यहाँ देखभाल के लिए आता हु। आज बारिश की वजह से मैं भी जा नही पाया।”
सागर ने फिर से एक सवाल किया, “वैसे मुझे ये बताओ, जब हम सब बाहर दरवाजे पर खड़े थे तो हमने देखा के तुम सीडिया उतर कर आ रहे थे। तो फिर ये दरवाजा किसने खोला?”
वो बुढा जैसे चौक गया। लेकिन उसने जवाब नहीं दिया। उसने कहा, “चलो मैं तुम सब को कमरा दिखा देता हु।”
वो लोग सीढी से जैसे सामने गए ऐसे लगा कि कोई उन्हें देख रहा है। बहोत ही घुस्से से। एकदम से सब की नजर उस तस्वीर पर पड़ी। लगा की उस की आंखे हिली थी थोड़ी देर के लिए। शायद सब का वहम था या सच,पता नहीं। वो थोड़े डर गए थे।
वो सब को सीढियों के बगल में एक कमरे में लेके गया। वो लोग बहोत थक चुके थे। ड्राईवर गाड़ी में ही सोता बोल रहा था सो उसको किसीने नहीं बुलाया। उनको आदत होती है। लेकिन हम तो गाड़ी में बिलकुल भी नहीं रुकने वाले थे। रमेश, सागर और शिरीष। तीनो ने अपना सामान अन्दर कमरे में रख दिया।
वो इतने थक चुके थे की लेटते ही आंख लग गयी। जगह नयी थी लेकिन बाहर बहोत ठण्ड थी और अन्दर काफी गर्म था कमरा। शायद आधी रात का समय हुआ होगा। शिरीष एकदम से चिल्लाने लगा। बाकि दोनों दोस्त जग गए। शिरीष को कोई सपना आया था। शिरीष बता रहा था की उसने सपने में उस फोटो वाले आदमी को देखा और वो हम तीनो को मारने आया था। बाकि दोनों को ये मजाक लगा इसलिए उन्होंने शिरीष को समझाके शांत किया। लेकिन फिर बादमे बिलकुल वही सपना रमेश को भी आया और सागर को भी। उसके बाद सब डर गए। इतना तो समझ आ गया था की एक ही सपना सबको नहीं आ सकता। कुछ तो गड़बड़ हैं।
बाहर निकलने के लिए आवाज लगायी तो उस बूढ़े ने दरवाजा बाहर से बंद किया था। लग रहा था की सबको जानबूझ के फसाया गया। अब समझ नहीं आ रहा था की आखिर क्या करे? डर के मारे सबको बड़ी जोरो की प्यास लग रही थी। साथ में पानी लाया था जो एक ही घूंट में खाली हो गया। खिड़की से बाहर आवाज लगायी लेकिन कोई जवाब नहीं आया। उनका ड्राईवर उनको सामने दिख रहा था लेकिन उसको उनकी आवाज जा नहीं रही थी। फिर शिरीष ने अपना मोबाइल उठाकर फ़ोन करना चाहां,तो नेटवर्क ही नहीं था। सब कुछ बहोत अजीब सा हो रहा था। अब उनके साथ आगे क्या होने वाला था ये कोई नहीं जानता था। लेकिन वो किसी बुरी जगह फस चुके थे ये समझ आ गया था।
पूरा एक दिन और रात बित जाने के बाद उनके रूम का दरवाजा खुलता हैं। बाहर पूरा सन्नाटा फैला था। जो बुढा उनको मिला था उसक भी कोई पता नहीं था। तीनो दोस्त पागलो की तरह सारी हवेली छानने लगे लेकिन बाहर जाने का कोई दरवाजा था न कोई खिड़की। सब लोग ऊपर चले गए। वाहा से कूदने का सोचा लेकिन इतना ऊँचा था की हिम्मत नहीं हो पाई। ये सब क्या हुआ यह सोचके वो आपस में झगड़ने लगे। बादमे सभी निचे आ गए।
सबको बहोत प्यास लगी थी। नल था लेकिन उसमे पानी नहीं आ रहा था। सब जगह देखा। न खाने का कुछ था न पानी।
अब सब थक के एक जगह बैठ जातें हैं। क्या करे यही सोच के खुद पागलो जैसे बर्ताव करने लगते हैं। शाम होने लगती हैं। और उस हवेली के अन्दर एक शैतानी माहोल बनना चालू होता हैं। तभी तीनो दोस्त आपस में लड़ने लगते हैं। उनका रात का फेंका हुआ,सडा हुआ खाना ढूंड के खाने लगते हैं।
रात बित जाती हैं। सवेरा होता होता हैं। सबेरे सबको बहोत प्यास और भूक लगी होती हैं। सुबह फिर से सब लोग पानी को खोजते। लेकिन अचानक सागर का पैर सीढियों से फिसलता है और उसका हाँथ दीवाल से टकराके खून निकलना चालू होता हैं।
खून देखते ही शिरीष और रमेश जैसे पागलो की तरह खून को चाटने लगते हैं। तभी सागर, “अरे ,पागल हो गए हो क्या तुम? क्या कर रहे हो? जानवर हो क्या?”
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सागर की बात का कोई ध्यान नहीं देता। लेकिन खून चाटने से उनकी प्यास कुछ थम सी गयी। लेकिन अब भूक की वजह से जान निकल रही थी। रात हो चुकी थी। शिरीष और रमेश में न जाने शैतान समां गया था उनके अन्दर। वो दोनों सागर पर टूट पड़े। और उसको काटने लगे। खुनी खेल चालू हो गया था। शैतान ने उन दोनों को अपने वश में कर लिया था। उस शिकारी की आत्मा ने दोनों को सागर का शिकार करने का जैसे आदेश दे दिया था। वो उसको काट रहे थे और खून को पी रहे थे। सागर की जान बची ही कितनी थी। इतने दिन का भूका दोनों से बच नहीं पाया।
सागर की मौत हो गयी। शिरीष और रमेश अब उसके पास बैठ के उसका मांस खाने लगे। जैसे कोई भेड़िया मरे हुए जानवर का मांस नोच रहा हो। वो मंजर बहोत ही डरावना दिख रह था। खून पीना और मांस खाके वो दोनों आदमखोर बन चुके थे। अब दोनों को शांति की नींद आयी।
सुबह सारी हवेली में सड़े मांस की गंध फ़ैल चुकी थी। सुबह उठ कर फिर से दोनों ने सागर की लाश में से खाना चालू किया। जैसे उनके अन्दर का इन्सान मर चूका था।
रात होते होते अब उस लाश में कीड़े घुमने लगे थे। अब वो शिरीष और रमेश बगल के कमरे में जाके सो गए। लेकिन प्यास और भूक उनका पीछा कहा छोड़ने वाली थी। अब दोनों एक दूसरे का शिकार करने की सोचने लगे।
रमेश ने चालाकी से दरवाजे के बाहर खड़ा रहकर पीछे से शिरीष के ऊपर वार किया। शिरीष का सिर किसी नारियल की तरह फट चूका था। और जमींन पे खून ही खून था। रमेश जानवरों की तरह कभी फर्श चाटता तो कभी शिरीष की लाश का मांस खाता। हैवानियत अपने चरम पर थी। शैतान उसके ऊपर हावी हो चूका था। शैतान ने रमेश को कोई सोचने का मौका नहीं दिया। वो अपनी भूक मिटाके अब आराम करने लगा।
सुबह होने वाली थी। पहली किरण हवेली के अन्दर पहुची और…….
दरवाजा खुल गया हवेली का।
कर्र….र..र…… जैसे सालो से बंद पड़ा था।
रमेश अब ठीक से चल नहीं पा रहा था। बाहर निकल कर देखा तो बारिश रुक चुकी थी। उसने उनकी गाड़ी देखि। वहां तक जैसे तैसे चल कर गया। दरवाजे पे जोर से हाँथ मारा, “ऐ, ड्राईवर।”
ड्राईवर हडबडा के उठता है। “ज …जी साहब” दरवाजा खोल के बाहर आता हैं।
वो रमेश को उठाके गाड़ी में बिठाता हैं।
“साहब, बाकि लोग कहा हैं?” ड्राईवर ने रमेश से पूछा।
रमेश रोने लगता हैं, “वो दोनों उस हवेली में……” और जैसे ही गाड़ी की खिड़की से बाहर देखता हैं, पूरा चौक जाता हैं। वहाँ कोई हवेली नहीं थी। सिर्फ कुछ टूटी हुई दिवाले थी और मिटटी के ढेर थे। सब कुछ समझ के परे था। खुद पागलो जैसे महसूस करने लगा था रमेश।
तभी, “हम लोग यहाँ इतने दिन से फसे थे उस हवेली में,तूने हमको ढूंडा क्यों नहीं ड्राईवर? शंकर चिल्लाके ड्राईवर पे चढने लगा।
“साहब,हम सब कल रात को ही तो यहाँ आये थे। सिर्फ बारिश के लिए रुके थे।” ड्राईवर डर के बोल रहा था।
अब मानो शंकर का खून सुख गया। उसके साथ पिछले चार दिन से जो हो रहा था वो क्या था। सपना या कोई छलावा? हवेली गायब और उसके दोनों दोस्त का क्या हुआ था वो तो बस शंकर ही जानता था। वो बर्फ की तरह एक जगह जम गया। हिल भी नहीं रहा था।
ड्राईवर ने जरा डर के शंकर को हाँथ लगाया, “ साहब…”
शंकर गाड़ी की सीट पे ही गिर जाता हैं। वो सदमा सहन नहीं कर पाता और उसकी मौत हो जाती हैं।
उस हवेली में क्या हुआ था? उनके साथ क्या हुआ? दोस्त कहा गए? किसीको कोई पता नहीं चला।
ये सारे राज शंकर की मौत के साथ ही दफ़न हो चुके थे।
(नोट- दी गई कहानी काल्पनिक है, इसका किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु से कोई संबंध नहीं है। हमारा उद्देश्य अंधश्रद्धा फैलाना नहीं है। यह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से बनायी गयी है।)