शोर । अधूरे सपनो की कविता

shor

कभी कभी इन्सान न चाहते हुए भी कुछ ऐसी चीजे करने लगता हैं ,वो शायद करना न चाहता हो। लेकिन जरूरतें उसको ये सब करवाती हैं।

उसके अन्दर का इन्सान भले ही बाहर से किसी को न दिखे लेकिन वो खुद उसको देख सकता है।

वो अन्दर का शोर!!!! उसकी ख़ामोशी तोड़ना चाहता हैं।

सब कुछ पास होकें भी,
मेरे दिल में कोई आस हैं।
कुछ पाना बाकि रहा जैसे,
मन में सुलगती प्यास हैं।

ऐ खुदा!!! आज पूछता हु तुझे,
मेरे मन में ये कैसा शोर हैं?
दिल आज भी भटकता हैं,
जैसे मेरी मंजिल कही और हैं।

बता दे अगर तू जानता है,
मैं खुद को नहीं ,लेकिन तू मुझे पहचानता हैं।
हंस कर मुझ पे,
मेरे खुदा ने मुझे पुकारा और कहा।

तू खुश,नहीं परेशान हैं,
इसमे तेरी गलती बेशुमार हैं।
चाहते तेरी कुछ और थी,
लेकिन करता आज कुछ और है।

मन की करने वाला तू,
उसको संभालना भूल गया।
तन को सवारने में जुट गया,
जो होता पल भर का मेहमान हैं।

खुला आसमान,चाँद ,तारे,
बंद कमरों में नहीं मिलते।
फिजाओं से इश्क कर ले,
यही तेरी दुनिया हैं।





यही तेरी दुनिया हैं।

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