“दो किनारे” ये कविता नदी के किनारों जैसे दो जिंदगी को बयां करती है| ऐसा बहोत बार होता है की अपने लोगों के साथ हमेशा होते हुए भी कई रिश्तें, कोई साथी नहीं बन पाता और सारी जिंदगी इसी कशमकश में निकल जाती है।
संग हमेशा रहते,
किसी से न कहतें।
दो किनारे हैं,
ये कभी न मिलतें।
किसी मोड़ पर,
कभी करीब आतें।
पर, जिंदगी को अपनी,
कभी बया न करतें।
पानी के सहारे,
एक दुजें को छुतें।
सदियों की जुदाई को,
पल भर भूल जातें।
एक दुसरें से दूर,
पर सामने हर पल।
इसी ख़ुशी सें,
जिंदगी बसर कर जातें।
दो किनारे है…ये कभी न मिलते…
सुंदर कविता आहे 👌👌👌👌👌
Thanks a lot!