मैं हूँ राही रास्तों का,
चलना मेरा काम।
हर दम यही गाता हूँ,
हैं मुसाफिर मेरा नाम।
फ़िक्र कल की क्यों करूँ,
जिक्र फासलों का।
हर लम्हा धुआँ सा,
उड़ाता चलू परिंदों सा।
साहारे क़िसी चलता चलूँ,
मैं मगन बैरागि।
कौन ठीकाना, क्या आशियाना,
कोई ना रोक पाये।
थक कर पहुँच मंजिल तू,
कर हासिल कुछ नाम।
निशाँ बने तेरा,
किसी मुसाफिर का मुक़ाम।
14 Comments on “मुसाफिर | Hindi poem on Musafir | Musafir par Hindi Kavita”
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Nice words about the life…..
धन्यवाद! आपका बहुत स्वागत है!
Wow …. Bohat khub
Nice one of them 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
धन्यवाद! आपका बहुत स्वागत है!
👏👏👏
मुसाफिर हूं मै।🤩✨✨
Nice …
फ़िक्र कल की क्यों करूँ,
जिक्र फासलों का।
हर लम्हा धुआँ सा,
उड़ाता चलू परिंदों सा।
Hi line khup chan ahe
हमें प्रोत्साहित करने के लिए धन्यवाद्!
👌👌👌
Amazing! You just paint such vivid pictures with your words.
हमें प्रोत्साहित करने के लिए धन्यवाद्!
Nice move snehal and nice poem also
Thanks a lot.. keep reading!