हम इन्सान जन्म से लेके मरने तक किसीका साथ चाहते है। पर कुछ नसीब के मारों को वो भी नहीं मिलता।
वो हमेशा किसी साथी,दोस्त की तलाश में रहते है।घडियां बितती जाती है और थक हार के हम अपने अकेलेपन से समझोता कर लेते है।
ऐसे ही किसीके अकेलेपन को दर्शाती मेरी नयी कविता…..आपके लिए।
ना किसी से कोई शिकायत,
ना गम दिल टूटने का है।
मत कर ऐ दिल कोई गुजारिश,
अब दोस्ती तनहाई से है।
चार कदम साथ कोई देता,
आखरी सफ़र खुद तय करना है।
तेरा भी मुकाम हासिल होगा,
सब्र जरा सा करना है।
चुभती है तनहाई
अब, डर हर आहट से है।
कभी दस्तक पड़े दरवाजे पे,
नजर हर और झाकती है।
तनहाई मौत से कम नही,
इंतज़ार उस पल का है।
कभी शिकायत थी जिंदगी से,
अब मोहब्बत अकेलेपन से है।
Very nice 👍
Thanks a lot! Keep reading..
Nice poem
Thank you!
super …..dil chu lene wali poem hai…nice
सही बात भाऊ
Nice poem