धक् ….धक्…..धक्……बुलेट चालू हो गयी। सतीश काफी देर से परेशांन था की ये चालू क्यों नहीं हो रही है? पिछले हफ्ते में ही तो इसका सर्विसिंग किया था। बाइक जैसे ही चालू हो गयी उसमे थोड़ी सी हिम्मत और बढ़ गयी। सुनसान जंगल और रास्ता ख़राब उसमे किसीका साथ न हो लेकिन गाड़ी की आवाज से मन में डर की जगह नहीं बनती। लगता हैं की कोई साथ में हैं। रास्ता, दोनों तारफ से जंगल और बहोत ज्यादा टर्निंग। उसकी वजह से गाडी चलाना मुश्किल हो रहा था। अब सतीश गाड़ी चला के थक चूका था। थोड़ी देर कही आराम करना चाहता था लेकिन यहाँ कोई चाय की टपरी या ढाबा भी नहीं था, जहा थोडा रुक के फिर आगे का रास्ता पूरा किया जाये। ऐसा सोचते ही जैसे भगवान ने उसकी सुन ली। सामने एक मोड़ पे छोटा सा ढाबा दिखा। सतीश ने सोचा क्यों न आराम से चाय पीया जाये और कुछ बिस्कुट खाया जाये। वो सामने जाके गाड़ी पार्क करता है और ढाबे के अन्दर जाता हैं।
ढाबा बहोत पुराना था। यहाँ वहाँ जलने की कालीख लगी थी। शायद जो चूल्हा जलता है उसकी थी। टूटे से लकड़ी के टेबल थे। छोटा सा दिया जल रहा था। उसकी रोशनी में सतीश ने बैठने की जगह ढूंड ली। लाइट नहीं थी। वैसे जंगल में कहा से होगी लाइट। ऐसे अपने ही मन में वो खुद से बातें कर रहा था।
“बोलो साहब, क्या लोगे?” एक बुढा आदमी सतीश के पास आकर पुछता है।
“चाय मिलेगी?” सतीश जोर देते हुए बोला।
वो बुढा चाय लाने के लिए अन्दर चला गया तभी सतीश ने साथ में लाये बिस्कुट अपनी बैग से निकाल कर टेबल पर रख दिए। बुढा चाय लेकर आया और सतीश ने बिस्कुट खत्म किये और अब बिल देने काउंटर के पास गया।
“साहब,आप कही दूर से आए लगता है। और आगे भी जाना हैं क्या आपको?” बुढा जरा धीमी आवाज में बात कर रहा था।
“हां… वैसे मुझे आगे और शहर तक जाना हैं। शायद सुबह हो जाएगी पहुचते हुए। इसिलिए यहाँ रुक के चाय पिने का सोचा था। वैसे चाय अछी थी।” सतीश ने बूढ़े बाबा की थोड़ी तारीफ की।
“ये तो मेरा रोज का काम हैं साहब। लेकिन आप अब आगे का सफ़र इतनी रात को अकेले मत करना साहब” बुढा जरा सहम के बोला।
“क्यों क्या हुआ?” कोई जंगली जानवर हैं क्या जंगल में या कोई आदमखोर शेर?” सतीश ने सहजता से पूछा।
“नहीं साहब। उससे भी बुरा। और भयानक। सामने जंगल में एक मोड़ पे सब कहते की वहां कोई हैं जो लोगो को अचानक गायब करता हैं और उसके बाद मार डालता हैं।”
“जंगल के उस मोड़ पे कभी, रामदास का ढाबा हुआ करता था साहब। एक बार वो अपना ढाबा बंद कर रहा था की अचानक एक बडा सा ट्रक उसके ढाबे में घुस गया। ढाबा और वो ट्रक धू धू कर के जलने लगे। रामदास और ट्रक ड्राईवर और उसका साथी तीनो की वही मौत हो गयी। ढाबा जल के राख हो गया। उसको मरे हुए कई साल हो चुके हैं। वहा कोई ढाबा नही है साहब लेकिन रात को जाने वालो को वो चाय पे रुकने को बोलता है और बाद में उनकी लाश वही पहाड़ी में कही मिलती है दुसरे दिन” बुढा कहानी बता रहा था।
“कुछ भी न आप भी। आजकल कहा भुत प्रेत पे यकींन करता है कोई। दुनिया चाँद पे पहुच गयी है। आपको यहाँ ढाबे पे कैसे पता चलेगा? बाहर निकलो तो पता चलेगा।” सतीश ने उनको थोडा ज्ञान दिया।
“नहीं साहब, आप मेरे लड़के की उम्र के हो इसलिए बता रहा हु। आप आगे मत जाओ। यहाँ मेरे ढाबे पे रहने का इन्तेजाम हैं। पैसे भी मत दो,लेकिन आप उस रास्ते अभी मत जाओ” वो बुढा गिडगिडाते हुए कह रहा था।
सतीश मन में सोचने लगा की ये बूढ़े की एक्स्ट्रा पैसे कमाने की चाल लग रही हैं। वो आगे बोला, “नहीं,मुझे नहीं रुकना। आप अपने पैसे ले लो और मेरी छुट्टी करो।” पैसे देके सतीश बाहर निकला। ठंडी हवा चल रही थी और बाहर घना अँधेरा था। गाड़ी पे बैठते हुए उसने ढाबे की ओर एक नजर डाली। वो बुढा आदमी सतीश की तरफ आशा भरी नजर से देख रह था। एक बार सतीश के मन में भी आया की शायद उस बूढ़े की बात में जरा भी सच्चाई हुई तो आज मेरी एक भुत से मुलाकात होने वाली थी। उसने बाइक की चाबी लगायी और चालू की। और अपने रास्ते चल पड़ा। लेकिन उसके मन के एक कोने में कुछ डर सा बैठ गया था।
सतीश अब घने जंगल में पहुच गया था। रास्ता ख़राब था इसलिए गाड़ी जरा धीरे चला रह था। उसको लगा की सामने कोई रोड पे बैठा हैं। वो चौक गया। डर ने जैसे उसको अपने कब्जे में कर लिया था। धड़कने तेज हो चुकी थी। ठंडी हवा में भी उसको पसीना आने लगा। लेकिन यह क्या…..वो सफ़ेद कपडे में जो बैठा था वो उसकी तरफ ही आ रहा था। सतीश ने अपनी गाड़ी स्टैंड पे लगायी और भागने की तयारी कर रहा था, की अचानक सामने से आवाज आयी।
“ भाई साहब ………”
अब सतीश रुक गया। उसका डर थोडा कम हो गया। वो सफ़ेद कपडे में एक २५-३० साल का लड़का था। उसके कपडे पे खून के दाग थे और कपडे कई जगह फट चुके थे। वो सामने आया और बात करने लगा।
“मेरी बाइक का एक्सीडेंट हो गया हैं। अँधेरे में देख नहीं पाया और सीधा जाके मैं गढ़े में जाकर गिर गया। मुझे बहोत चोट आयी हैं। क्या आप मुझे शहर तक पंहुचा सकते है?”
सतीश गाड़ी से उतर के सामने देखने गया। उसकी बाइक निचे गिर चुकी थी और बहोत पुरानी लग रही थी। नंबर प्लेट भी नहीं था। आग में जैसे झुलसती है वैसे लग रही थी। सतीश को उसपर तरस आया। सोचा, की चलो एक पार्टनर मिल जायेगा तो डर लगने की कोई बात ही नहीं होगी।
सतीश ने उसको अपनी गाड़ी पे बिठाया और दोनों शहर की तरफ चल दिए।
सतीश ने पूछा,“क्या नाम हैं तुम्हारा? क्या काम करते हो?”
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“जी मेरा नाम रोहन हैं। मैं मार्केटिंग का काम करता हु।” रोहन ने एक झटके में सब बोल दिया। उसका आवाज जरा दबा सा था। जैसे धुल मिट्टी में काम किया हो और गला बैठ सा गया हो वैसे।
रोहन ने पीछे से अपने जेब में से सिगरेट निकाली। और सतीश को भी देने को हाथ आगे किया। उसका हाँथ जला हुआ था। और उसके हाँथ में जो सिगरेट थी वो एक बहोत पुराना ब्रांड था जो अब बंद हो चूका था। सतीश ने पुछा, “यह हाँथ कैसे जला तुम्हारा? और ये सिगरेट काफी पुरानी लग रही है और बंद भी हो चुकी हैं। ये तुमको कहा से मिली?
रोहन ने जरा हडबडाते हुए कहा, “ये वो मैंने एक ढाबे वाले से लि थी। यही पीछे में पड़ता हैं। सस्ते में दे रहा था तो मैंने खरीद लिया।
सतीश ने फिर से सवाल किया, “ये जो तुम्हारी बाइक थी, काफी पुरानी लग रही थी। सच में चल रही थी या कही से ऐसे ही उठाई और लेके भाग आये हो? सही सही बताओ।”
रोहन अब थोडा हिम्मत जुटा के बोल रहा था, “अरे नहीं,भाई। वो मेरी ही हैं। थोड़ी पुरानी है लेकिन अछी चलती थी।”
अब सतीश जरा चुप हो गया और अँधेरे में से रास्ता देख के गाड़ी चलाने लगा। उसके मन में अचानक आया की, रोहन की गाड़ी जैसे लग रही थी की वह कितने सालो से वहाँ पड़ी है। वो अभी चलने वाली बाइक तो नहीं लग रही थी। उसके हाँथ में सालों पुराना सिगरेट का ब्रांड का पैकेट। वो उसको कहा से मिला होगा। और वो पिछले ढाबे की बात कर रहा था तो किस ढाबे की बात कर रहा था। कुछ सोच के सतीश के मन में एकदम से एक भयंकर तरह की डर की तस्वीर सामने आयी। कही उसने किसी भुत को तो नहीं बिठाया अपने पीछे। वो एकदम से ठंडा पड गया। धीरे से उसने पीछे मुड़कर देखना चाहा,पीछे रोहन बैठा था। सतीश ने गाड़ी रोकी और यूरिन के लिए कह के उतर गया।
जैसे वो गाड़ी की तरफ मुडा……. उसके मुह से चींख निकल गयी। वो बहोत डर गया। रोहन के पैर देखा तो उलटे थे। लेकिन ऊपर देखा तो रोहन उल्टा बैठा था।
सतीश की जान में जान आयी। उसने रोहन को डांटा, “तुम्हारा दिमाग तो सही हैं? मैं कितना डर गया तुम्हारे पैर उलटे देख कर। तुम उलटे क्यों बैठे हो?”
रोहन ने माफ़ी मांगी, “अरे भाई,माफ़ करो। मैं पीछे से कोई आ रहा क्या ये देखने की कोशिश कर रहा था। इतने में तुम आ गए। तुम भूतों से डरते हो क्या?”
“क्यों? तुम्हे डर नहीं लगता?” सतीश ने जवाब देते हुए गाड़ी चालू की।
दोनों बैठ गए। रोहन को चुपके से देख के लग तो रहा था की सब कुछ ठीक हैं।
सतीश में थोड़ी हिम्मत आ गयी। अब वो धीरे धीरे रोहन से बातें करने लगा। “रोहन तुम हमेशा इस रास्ते से गुजरते हो तुम्हे कभी वो भूतों से मुलाकात नहीं हुई? वो रामदास ढाबे वाले का भुत। उस मोड़ पे जंगल में वो एक ढाबेवाला कह रहा था की वहां कोई हैं। जो लोगो को मार डालता है।”
रोहन एकदम से चुप हुआ। फिर बाद में बोला, “हां,मैंने भी सुना हैं। आप भी वो ढाबेवाला अगर चाय पे रोकेगा तो मत रुकना। वहाँ पे मौत हैं भैया।” और रोने लगा। सतीश ने उसको चुप करते हुए कहा, “क्या तुमने उसको देखा है कभी?” तभी,
“सरर……..” सामने से एकदम एक टेम्पो वाला पास से गुजरा। और सामने जाकर रुक गया। टेम्पो से एक आदमी उतरा। लेकिन सतीश का दिमाग चलाना बंद हुआ। ये वही ढाबेवाला बुढा आदमी था। वो सामने से आगे जाकर जंगल में गायब हो गया। सतीश को लगा की शायद उसके ढाबे पे नहीं रुका इसलिए नाराज हुआ है।
कुछ आधा घंटा बाइक चलाने के बाद देखा के सामने एक मोड़ पे बहोत रोशनी दिख रही है। और वो मोड़ पे लिखा हुआ बोर्ड दिखा, रामदास का ढाबा। लेकिन वो ढाबे को देखने के चक्कर में सतीश वो बोर्ड पढ़ नहीं पाया।
वहा देखा तो एक बड़ा सा ढाबा था। दूर से देखा तो कुछ लोग वहां बैठे थे। लेकिन सन्नाटा था वह बहोत। सतीश ने थोडा रुकना ही बेहतर समझा। साथ में रोहन था तो अब सतीश को डर नहीं लग रहा था।
सतीश ने अपनी बाइक साइड में लगायी और उतर कर पीछे देखा तो रोहन गायब था। सतीश को लगा के उसको भी जल्दी की यूरिन आयी होगी इसलिए भागा होगा वो। एक आदमी उसको पुछने आ गया, “साहब,चाय पिओगे?”
सतीश ने कहा, “नहीं,मैं अभी पीके आया हु।”
तभी वो आदमी जरा घुस्से से बोला, “क्यों साहब, उस ढाबे वाले ने रामदास ढाबेवाले के बारे में बताया क्या? वो हमेशा मेरी बदनामी करते रहता है। और मेरे ग्राहक भगाता हैं। आप आओ साहब,बैठो।”
सतीश को अब कुछ समझ नहीं आ रहा था। रोहन और वो ढाबे वाला सच बोल रहा था या झूठ। रामदास का ढाबा तो यहाँ हैं फिर वो दोनों उसकी बुराई क्यों कर रहे थे। यहाँ तो सब कुछ ठीक हैं।
सतीश को अब बहोत बड़ा झटका लगा। मानो उसकी जान ही निकल गयी थी।
जैसे ही वो अन्दर गया। अन्दर एक कोने में उसको एक सफ़ेद कपडे में बैठा हुआ एक लड़का दिखाई दिया। वो रो रहा था। और उसके कपडे फटे हुए थे। कुछ जगह से जले हुए थे। सतीश ने थोडा और गौर से देखा तो वो थोडा पहचाना सा लग रहा था।
“अरे!……ये तो रोहन था। ये यहाँ कहा से आया। वो तो बाहर था। सतीश रोहन के पास जाकर बैठ गया। रोहन पूरी तरह आग में जैसे झुलसते है वैसे दिख रहा था। यह सब देख के अब सतीश को समझते देर नहीं लगी की अब वो फस चूका था। रोहन जो मिला था रास्ते में वो भी रामदास के ढाबे का ही शिकार था। सतीश ने भागना चाहा, तभी वहां रामदास आ गया।
“साहब, चाय पीना हैं या नहीं? या इरादा बदल दिया?”वो अब जबरदस्ती पे उतर आया।
सतीश जैसे कुछ भी नहीं हुआ ऐसे जताके वही एक टेबल पे बैठ गया। उसके सामने एक और आदमी बैठा था। उसने अपना सर उठाया। डर से सतीश के हाथ का कप उसके शर्ट पे गिर गया। वो कांपने लगा। यह देख के रामदास बोला, “रुको, मैं दूसरी चाय लेके आता हु।”
सामने वो टेम्पो वाला आदमी था। वो और कोई नहीं …..वो वही ढाबे वाला था। जिसने सतीश को अपने ढाबे पे रात को रुकने को कहा था। अब जैसे पैरो से जमींन खिसक गई थी। रामदास को अन्दर जाते ही सतीश वाहा से भाग खड़ा हुआ। और ढाबे के पीछे जाकर छिप गया। उसने जो कुछ भी सुना था वो सच था। वो ढाबे वाला और रोहन अब भुत बन चुके हैं। दोनों भी उसको बचाना चाहते थे। लेकिन अब क्या? वो तो अब फस चूका था। क्या करे यह सोच रहा था की रामदास की चिल्लाने की आवाज आयी। “कहा भाग गया? तुम्हारा वक़्त हो चूका हैं। वो आतें ही होंगे।”
इतने में बहोत जोर की आवाज करते हुए एक बड़ी सी ट्रक रास्ते से आ रही थी। वो ऐसे आ रही थी की जैसे उसको किसी का कण्ट्रोल नहीं हैं। ट्रक तेजी से ढाबे की तरफ आया और सीधा ढाबे में घुस गया। और जोर का धमाका हुआ, पूरा ढाबा जलने लगा। ट्रक की जोर की टक्कर से सतीश जो पीछे छुपा बैठा था वो कही दूर जाके गिर गया।
कुछ समय के लिए सब शांत हो गया। ढाबा आग में झुलस गया।
सुबह होने वाली थी। सतीश को होश आ रहा था। उसके बगल में कुछ लोग खड़े थे और एक एम्बुलेंस। लोगो ने सतीश को एम्बुलेंस में रखा और वो जोर का आवाज करते हुए निकल गयी। वहा रामदास का ढाबा नहीं था।
थी तो बस वो खाली जगह…… जहा रामदास की रूह लोगो फसाकर,उनको मार डालती थी।
लोग आज भी यही कहते हैं, “वहां ….कोई हैं” जो बहोत ही डरावना हैं,कातिल हैं। लेकिन कुछ ही बचते हैं …सतीश जैसे नसीबवाले।
(नोट- दी गई कहानी काल्पनिक है, इसका किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु से कोई संबंध नहीं है। हमारा उद्देश्य अंधश्रद्धा फैलाना नहीं है। यह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से बनायी गयी है।)