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दो घड़े
दूर किसी पहाड़ों में एक किसान रहता था। उसके गाव का नाम था रामपुर। रामपुर में हमेशा से पानी की बड़ी किल्लत रहती थी। लोगों को दूर पहाड़ों में जाके नदी से या झरनों में से पानी लेके आना पड़ता था। बारिश तो हर साल अछी होती थी। लेकिन गाव ऊपर की ढलान पे होने के कारण सारा पानी बह जाता। और तालाब भी जल्दी सुख जाते। इस बात से सब चिंतित थे लेकिन कोई कुछ नहीं कर पाता था।
एक साल बहोत कम बारिश हुई। खेत सुख गए। पिने को पानी नाही था। लोग गाव छोड़ के जाने लगे थे। जो बच गए थे वो किसी तरह पहाड़ो से जाके पानी लेकर आते और अपनी जरुरत पूरी करते।
इसी गाव में शामू नाम का एक किसान रहता था। उसको अपने बगीचे से और अपने जानवरों से बहोत लगाव था। गाव में जब लोग पानी की कमी से जानवर बेच रहे थे तो शामू ने अपने जानवर बेचने से साफ मना कर दिया। उसकी बीवी ने कहा, देखो कही तुम्हारी वजह से जानवर बिना पानी के मर गए तो? भगवन हमे कभी माफ़ नहीं करेंगे।
लेकिन शामू को अपने ऊपर भरोसा था। वो रोज सुबह पहाड़ो से जाके घडो में पानी भरता और ला के अपने जानवरों की प्यास बुझाता। एक दिन पानी भरते वक़्त अचानक एक घड़े को पत्थर लग गया। और उसमे एक छेद हो गया। शामू को इस बात का अंदाजा नहीं था। वो वैसे ही दोनों घड़े उठा के चल दिया। रास्ते भर में घड़ा आधा खाली हो गया था। घर पहुचने पर शामू ने घड़े को देखा। लेकिन कुछ सोच के उसको बिना ठीक किये वैसे ही छोड़ दिया। शामू रोज वोही दोनों घड़े लेके जाता और पानी भर के लाता। एक घड़ा भर के तो एक घड़ा आधा खाली। ऐसा काफी दिनों तक चलता रहा।
एक दिन पानी से भरे घड़े ने आधे खाली घड़े को आवाज लगायी।
अरे भाई,तुम्हारा भी कोई जीना है? बोलो तो? रोज अपना मालिक दूर पहाड़ों से पानी भर के लता है। इतनी मेहनत कर के। और तुम हो की बस आधे भरे हुए आते हो। मुझे देखो मैं रोज भरा हुआ आता हु।ऐसा कहते जोर से हँसाने लगा।
खाली घड़े को बहोत बुरा लगा। वो मायूस रहने लगा। उसको ऐसे देख के शामू ने उसको पुछा, अरे क्या हुआ भाई? बहोत दिनों से देख रहा हु। उदास रहते हो। क्या बात है?
खाली घड़ा बोला, मालिक,मेरे जीने का क्या फायदा,जब की आप इतनी मेहनत से दूर जाकर पानी लेकर आते हो लेकिन मैं रोज आधा खाली हो जाता हु?आपका नुकसान होता है। मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता।
शामू मुस्कुराया और बोला, इसका जवाब मैं कल सुबह दूंगा।
सुबह होते ही शामू दोनों घड़े लेके घर से निकला। टुटा हुआ घड़ा सोच रहा था की मालिक ने अभी तक जवाब नहीं दिया। वो बोल पड़ा, मालिक,मैं रात भर सोच रहा था की जवाब क्या होगा। और आप है के बस मुस्कुराके चल दिए।
शामू बोला थोडा रुको तो। और शामू चलता रहा। पानी भर के लौट के घर वापस चल दिया। खेतों से चलते हुए आगे जाने के बाद उसने घड़े को आवाज लगायी। अरे ओ घड़े,देख रहे हो आगे।
घड़ा झुक के निचे देखने लगा। जिस तरफ से टुटा हुआ घड़ा लटक के था, उस तरफ से हरीभरी घास उग चुकी थी। वो पुरे रास्ते होकर घर तक पहुच गयी थी। रंगिबिरंगी फुल खिले थे घास के ऊपर। तितलिया उड़ रही थी वहां।
ये देख कर घड़ा बहोत ही खुश हुआ। मालिक ये कैसे हुआ? उसने शामू से पूछा।
शामू बोला, मुझे पता था,की पानी की जरुरत सिर्फ मुझे नही बल्कि सबको है। थोडा पानी देकर अगर मेरे जानवरों को हरी घास भी मिल जाती है तो इसमे क्या नुकसान होगा भला? इसलिए मैंने तुम्हे टुटा हुआ ही छोड़ दिया। देखो तो तुम्हारी वजह से आज यहाँ कितनी हरियाली हैं।
टूटे हुए घड़े को बहोत ख़ुशी हुई। वो ख़ुशी से झूम उठा। उसने अपने साथी घड़े को आवाज लगायी, भाई देखो तो, मेरा जीना किसी और को भी खुश कर रहा है। इससे बड़ी क्या बात होगी?
साथी घडे को अपनी गलती का एहसास हुआ। वो बोला, मुझे माफ़ कर दो मेरे दोस्त। तुमने मुझे सही बात समझाई। तुम महान बन चुके हो।और दोनों घड़े खूब हँसने लगे।
मूर्ख कौआ और चालाक लोमड़ी की कहानी
सुंदरबन नाम का एक बहोत ही सुंदर जंगल था। यहाँ सारे जानवर एक साथ मिलजुल कर रहते थे। यहाँ अब दिवाली का माहौल खत्म हो चूका था। सारे जानवर दिवाली की तयारी,धूमधाम से काफी थक चुके थे। अब तो बस आराम ही करना चाहते थे। अब ठंडी भी चालू हो गयी थी। सभी जानवर अब ठंडी के लिए लकडिया और ढेर सारा खाना जमा करने में जुट चुके थे। ताकि ठंडी में खाने के लिए बेवजह घुमना न पड़े और शेरखान का सामना न करना पड़े। शेरखान ने बेवजह घुमना मना किया था। अगर कोई बाहर का शेर अपने सुंदरबन में आ गया तो कोई मासूम शिकार न बन जाये।
इसी जंगल में एक चालाक लोमड़ी रहती थी। उसका नाम था रिंकी। वो बहोत ही चालाक और चतुर थी। पलक झपकते किसी को भी उल्लू बना देती थी। इस बात में उसका हाथ कोई नहीं पकड़ सकता था। अरे,एक बार तो उसने भोलू उल्लू को भी उल्लू बना दिया था। अब बोलो?
एक दिन कोलू कौवा भूक के मारे मरा जा रहा था। घूम घाम के थक चूका था। लेकिन खाना कही नहीं मिला। वो सोच रहा था की आज खाना नहीं मिला तो उपवास हो जायेगा। उड़ते हुए वो जंगल के बाहर खेतो में जा पंहुचा। वहां कुछ किसान खाना खा रहे थे। कुछ खाना बच गया था सो उन्होंने अपने खेत के कोने में डाल दिया। कोलू की दूर तक नजर थी। जैसे ही वहा से सब किसान चले गए लपक के उसने वहा से रोटी का टुकड़ा उठा लिया और जंगल की तरफ उड़ चला। मन में वो सोचने लगा, आज अगर मुझे खाना नहीं मिलता तो मैं रात को सो भी नहीं पाता। भला हो उस किसान का।
जंगल के अन्दर जाकर कोलू एक पेड़ की शाख पर जाके बैठ गया। थक चूका था सो अब खाना खाके आराम करना चाहता था। अचानक उसको रिंकी दूर से आते हुए दिखी। रिंकी ने कोलू को दूर से देख लिया था और उसकी पारखी नजर ने उसके चौंच में रखे रोटी के टुकडे को भी। उसने मन में ही रोटी चुराने का प्लान बना लिया था। पेड़ के निचे आते ही रिंकी सुर में गाने लगी। उसका बेताल सुर का गाना सुन के कोलू को हसी आने लगी। लेकिन उसको ये पता था की ये सब उसकी चाल है। ये पैतरा काम नहीं आने पर लोमड़ी ने एक तरकीब लगायी।
रिंकी बोली, कोलू भाई, मैंने सुना है तुम बहोत अच्छा गाना गाते हो। क्या तुम मुझे गाना गाके सुनाओगे?
इस बात पर भी कोलू कुछ भी नहीं बोला।
रिंकी फिर बोली, क्या हुआ कोलू भाई? नाराज हो क्या? मैंने सुना है सारे सुंदरबन में तुमसे सुरीला कोई नहीं। मैं सच बोल रही हु। सबको बोलते हुए सुना मैंने। तुम कोयल से भी मीठा गाते हो।
अब कोलू कौवे से रहा नहीं गया। रिंकी लोमड़ी के उकसाने से वो चने के पेड़ चढ़ चूका था। उसको लगने लगा की वो बहोत बड़ा गायक है। कोयल से भी अछी आवाज है उसकी। और ऐसा मन में सोचते ही वो गला फाड़ के गाने लगा।
कॉव….कॉव…..कॉव……।
जैसे ही कोलू ने अपना मुह खोला,उसके मुह में जो रोटी दबाये रखी थी वो जमीं पे जा गिरी। रिंकी लोमड़ी इसी फ़िराक में थी। लपक के उसने वो रोटी खा ली। और जंगल में भाग गयी।
इधर बेचारा कौवा भूका ही रह गया और अपनी गलती पे पछता रहा था,खुद को कोस रहा था।
पत्थर की खिचड़ी
आनंदपुर नाम का एक बड़ा सा गाव रहता है। गाव नदी के किनारे बसा होने के कारण यहाँ खुशहाली थी। हर तरफ हरे भरे खेत खलिहान और एक तरफ नदी का बहता पानी। किसी बात की कमी नहीं थी यहाँ।
इसी गाव में गौरी नाम की एक बुढिया रहती थी। वो सारे गाव में दुनिया की कंजूस बुढिया के नाम से मशहूर थी। अगर कोई भिकारी भी उसके दरवाजे पर जाता तो वो उसको भिक तो छोडो लेकिन दो बाते सुना के भेज देती। वैसे खाने पिने की कोई कमी नहीं थी उसके यहाँ। खेती भी खूब थी। बड़ी आमिर होने के साथ साथ वो बड़ी कंजूस भी थी।
एक दिन गाव में जोरो की बारिश हो रही थी। सुबह से शाम तक। नदी में पानी भरने की वजह से बाढ़ आ गयी थी। रास्ते से जाने वाले कितने लोग उसी गाव में अटक गए थे। आगे जाने का कोई रास्ता नहीं था इसलिए सब लोग जहा असरा मिला वही डेरा जमा के बैठ गए।
इन्ही लोगो में मुन्ना नाम का बड़ा ही होशियार और चालाख मुसाफिर था। उसको भूक लगी थी सो वो यहाँ वहां भटक रहा था। दूर से बुढियां का घर दिखा ,वैसे वो खुद को बारिश से बचाते हुए वहां पहुच गया। बुढियां ने उसको आते हुए खिड़की से देख लिया था। वैसे ही वो बाहर आयी और बोली, ऐ…..यहाँ क्या घूम रहा है? कौन है तू?चोर है क्या?
अरे ! नहीं अम्मा,मैं ….मैं हु,मेरा नाम मुन्ना है। मैं बारिश की वजह से यहाँ रुका हुआ हु। घर देखा तो चला आया। कुछ खाने को मिल जाता तो? मुन्ना ने थोडा हिचकिचाते हुए कहा।
जैसे ही उसने बोलना खत्म किया,बुढिया चिल्ला उठी, कोई आसरा नहीं है यहाँ। ये कोई धरमशाला है? चल भाग यहा से।
अरे,कोई नहीं अम्मा,नाराज मत हो। मुन्ना ने उसको शांत करते हुए कहा। और किसी तरह वहां असरा मांग लिया। उसने मन में ही भाप लिया था की बुढिया जरा कंजूस है। घी सीधी उंगली से नहीं निकलेगा। जरा होशियारी से काम करना होगा।
चलो अम्मा,आज पत्थर की खिचड़ी बना लेता हु। एक बरतन मिलेगा क्या पकाने के लिए। मैं थोड़ी लकडिया ढूंड के लाता हु। इतना तो उपकार करो। मुन्ना उठते हुए बोला।
हा हा हा……अरे बेटा,तुम्हारा दिमाग तो ठीक है? कभी पत्थर की खिचड़ी बन सकती है क्या? अम्मा हँसते हुए बोली।
अरे अम्मा,तुम्हे नहीं पता। पत्थर की खिचड़ी बहोत मजेदार बनती हैं। तुम खा के देख ना आज।
अम्मा ने सोचा की,चलो इसी बहाने पत्थर की खिचड़ी सिख जाउंगी तो मेरा अनाज भी बच जायेगा। वो कंजूस थी सो वो इस बात को राजी हो गयी। वो अन्दर जा के बरतन ले आयी और कुछ लकडिया भी। ये देख के मुन्ना मन में मुस्कुराया। तभी अम्मा बोली, ज्यादा हँस मत, चल जा पत्थर ले के आ। चूल्हा बनाने के लिए।
मुन्ना तीन पत्थर ले आया। आग जलाई, ऊपर बरतन रखा, और उसमे पानी डाला। बाजु में एक पत्थर था। उसको अच्छा साफ कर के अन्दर रख दिया और पानी चढ़ाया। इतने में अम्मा बोली, कितनी देर लगेगी पकने को।
अम्मा,जरा सब्र करो। मैं बाहर जाकर थोड़े चावल और दाल लेके आता हु मुन्ना बोला।
इतनी रात को कहा जाओगे। रुको मेरे पास दाल और चावल होंगे,मैं देती हु अम्मा बोली।
ऐसा कहते वो अन्दर जा के सब ले आयी। मुन्ना भी होशियारी से सब चीजे खिचड़ी में डलवाता गया। अब खिचड़ी पकने को आ गयी थी। मुन्ना अपने कपडे झाड़ते हुए उठा और बोला, अपनी खिचड़ी बस पक गयी समझो, मैं थोडा घी लेके आता हु।
रुको,मेरे पास देसी घी हैं,लेके आती हु ऐसा कहते जैसे ही वो उठी और घर के अन्दर चली गयी, मुन्ना ने मौका देख के वो पत्थर निकाल के दूर फेंक दिया।
अब अम्मा को सब्र नहीं था वो बोली, अरे तेरी खिचड़ी बनी या नहीं?
बन गयी अम्मा। आओ मिलकर खातें हैं मुन्ना ने कहते हुए दोनों थाली में परोसा।
अम्मा ने खिचड़ी खाते ही बोली, अरे वाह! बढ़िया बनी है खिचड़ी। मुझे पता ही नहीं था की पत्थर की खिचड़ी भी इतनी अछी बनती है।
इधर मुन्ना मन ही मन मुस्कुराया और खिचड़ी खाने लगा। साथ में खुदको शाबासी दे रहा था।
नन्हा जादूगर
गंगापुर नाम का एक गाव था। वहा एक बहोत ही महशूर जादूगर रहता था उसका नाम था जादूगर तेजा। वो जब भी जादू दिखाने निकलता लोग उसकी कला देखने दूर दूर से आते थे। वो मशहूर होने के साथ एक अछा इन्सान भी था। अपने पास बचे पैसे से वो गरीब लोगो को खाने पिने का सामान और जरुरी चीजे खरीद के बांटता था। इस बात से भी वो मशहूर था। उसका एक लड़का था, राजन वो भी जादू दिखाने में अपने पिताजी की मदत करता। इतने दिनों में राजन भी बहोत सी चीजे सिख गया था। अब उसको भी लग रहा था की वो भी एक दिन बड़ा जादूगर बन जाये। वो नयी नयी जादू की चीजे सिखने की कोशिश करते रहता था। ये सब देख उसके पिताजी को बड़ा फक्र होता।
एक दिन जब गाँव में मेला लगा था। लोग तो बस जादूगर तेजा का खेल देखने आने लगे। रोज रोज खेल दिखाके जादूगर की तबियत ख़राब होने लगी। एक दिन सुबह जादूगर को बहोत बुखार था। उसने अपने बेटे राजन को पास बुलाया।
बेटा राजन,सुनो तो जरा।
राजन आता हैं।
बेटा,आज मैं शायद अपना जादू दिखाने मेले में जा ना सकूँगा। बुखार कुछ ज्यादा है। क्या तुम जा कर खेल दिखा पाओगे।
राजन के लिए ये एक मौका था खुद को साबित करने का। उसने झट से हा कहा।
देखो बेटा, ये जो सामान है बहोत कीमती है,इसको खोना नहीं। और खास कर के ये जादू की टोपी। जादूगर राजन से कहता है।
राजन अपने पिताजी को तसल्ली दे के खेल दिखाने निकल जाता है। वो बहोत अछा खेल भी दिखाता हैं। नन्हे जादूगर को ऐसे पहली बार देख कर लोग बहोत खुश होते है। और तालियों के साथ साथ राजन को खूब पैसे बक्षीश भी मिलते है। राजन खुश होता है। दिन भर थक कर अब वो खाना खाने एक पेड़ के पास बैठ जाता हैं। खाना खाते देख पेड़ पे बैठा बन्दर उसकी जादुई टोपी लेके भाग जाता हैं। उसको देखते ही राजन उसके पीछे भागता हैं। बन्दर भागते हुए जंगल में चला जाता है। एक पेड़ पे वो रुक जाता है तभी वो टोपी उसके हाथ से छुट के निचे बैठे भालू पे गिरती है। वो भालू देखते ही देखते एक चूहे में बदल जाता है। अब भालू जो चूहा बन चूका था, चिल्लाने लगता है।
अरे! ये क्या हुआ? मैं इतना छोटा कैसे बन गया? मैं तो चूहा बन गया हु। अब मुझे तो कोई भी मार सकता है। ये सब इस टोपी की वजह से हुआ। ऐ बन्दर,मुझे पहले जैसा कर दे। ये क्या किया तूने?
मुझे माफ़ करना भालू भाई। मुझे पता नहीं था ये टोपी जादुई है। वरना मैं ऐसा कभी नहीं करता बन्दर डरते हुए बोला।
ये सब राजन चुपके से सुन रहा था। वो झाड़ियो से बाहर आता हैं। और कहने लगा, ये टोपी मेरी हैं। मैं एक जादूगर हु। मुझे मेरी टोपी दे दो। मैं तुम्हे बिलकुल पहले जैसा कर दूंगा।
बन्दर राजन को उसकी टोपी उठा के देता है। राजन कुछ जादुई मंत्र बोल के छोटे चूहे को वापस भालू बना देता है। साथ में दोनों के लिए ढेर सारी खाने की चीजे भी दिलाता है।
बन्दर और भालू बहोत खुश होते है। उस नन्हे जादूगर का शुक्रिया भी करते है। नन्हे जादूगर,तुम बहोत अछे हो। अगर तुम्हे कभी हमारी जरुरत पड़ी तो हम भी तुम्हे मदत करेंगे।
तब राजन बोलता है, क्या तुम दोनों मेरे साथ मेरे जादू के खेल में काम करना पसंद करोगे।
बंदर और भालू दोनों एक साथ कहते हैं, हा….हम तुम्हारे साथ जरुर चलेंगे, नन्हे जादूगर।
तभी से नन्हा जादूगर का खेल बन्दर और भालू की वजह से और भी मशहूर हो जाता है।
सच्ची सेवा
उमरिया नाम का एक गाव था। उस गाव में एक लालची साहूकार रहता था। वो लोगों को ठगता था और उनको लुट के उनकी जमीने अपने नाम करता था। सारा गाव उसका कर्जदार बन चूका था। इतने से उसकी भूक नही मिटती तो आजकल वो गाव के लोगो को बेवजह नौकरों जैसे काम करवाने लगाता । सब लोग बोलते थे की तेरे कर्मो का एक दिन हिसाब होगा।
ठंडी के दिन चालू हो गए थे। रात के वक़्त अचानक साहूकार के बड़ी सी हवेली का दरवाजा कोई खटखटाता है।
साहूकार अन्दर से ही, कौन? क्या काम है?
जी मैं मुसाफिर हु। मुझे पास के गाव जाना था। रात बहोत हो चुकी है इसलिए मैं सोच रहा था आपके यहाँ मुझे थोड़ी रुकने के लिए जगह मिल जाती तो आपका बड़ा उपकार होता मालिक मुसाफिर बोला।
अरे वाह! ये कोई धरमशाला है जो तुझे रुकने के लिए जगह दे दू। चल निकल यहाँ से। कोई जगह नहीं हैं यहाँ।
मुसाफिर नाराज होकर वहां से चला जाता हैं। रास्तें में उसको एक झोपड़ी दिखती है तो वो वहां चला जाता है।
ये एक गरीब मजदुर का घर होता हैं। मूसाफिर की बात सुन के गरीब मजदुर उसको कहता है, देखो भाई,मेरा घर बहोत छोटा है। जैसा है उसी में तुम्हे रहना पड़ेगा। मेरी माँ ने कहा था की मेहमान भगवन का दूसरा रूप होता हैं। मेरे लिए तुम भगवन से कम नहीं हो।
गरीब मजदुर और उसकी बीवी उस मुसाफिर की बहोत सेवा करते हैं। खाना खाने के बाद मुसाफिर को सोने के लिए एक कमरे में खटिया का इंतजाम कर देता है। और खुद मजदुर और उसकी बीवी जमींन पर सो जाते हैं।
सुबह उठने के बाद जब वो गरीब मजदुर उस मुसाफिर के पास आता हैं तो वो मुसाफिर एक मायावी रूप में प्रकट होता है। और कहता हैं, मैं तुम्हारी सच्ची सेवा और भक्ति से बहोत प्रसन्न हु। मांगो,क्या मांगते हो।
गरीब मजदुर ये सब देख के एकदम चौक गया, बाद में बोला, हे प्रभु, मेरी सेवा और भक्ति से आप प्रसन्न हुए यही बहोत हैं मेरे लिए। मैं हमेशा आपकी सेवा करता रहू यही आशीर्वाद दे दीजिये। आपके दर्शन हो गए जीवन सफल हुआ मेरा। और मुझे कुछ नहीं चाहिए।
तुम्हारा हमेशा कल्याण हो ये कहते वो मुसाफिर गायब हो गया।
देखते ही देखते वो मजदुर का घर एक शानदार महल में बदल गया। बाहर बड़ा सा बगीचा बन गया। और वो गाँव का सबसे अमिर और धनवान बन गया।
ये बात जब उस साहूकार को पता चली तो वो अपने नसीब को कोसता रह गया। उसने भगवन का अपमान किया था। उसको बहोत बुरा लगा। वो भागते हुए उसी मुसाफिर को खोजने लगा। बहोत दूर जाकर वो मुसाफिर फिर से उस साहूकार को मिल गया। उसने उनसे माफ़ी मांगी और घर चलने का आग्रह किया।
मुसाफिर ने साफ मना किया और कहा, मैं तेरे घर आया, लेकिन तूने मुझे अपमानित कर के बाहर का रास्ता दिखाया। अगर मुझे घर में रखता तो आज जो उस गरीब मजदुर को मिला वो धन तेरा होता।
साहूकार को अपनी गलती पे बड़ा अफ़सोस हुआ। उसने मुसाफिर से माफ़ी मांगी।
लेकिन उस दिन से उसको सच्ची सेवा का मतलब समझ आ गया। उसने लालच छोड़ दिया और गाव वालों को उनकी जमीने वापस देके साधारण सा जीवन जीने लगा।
सोच
हम इन्सान जिस किसी के साथ भी अपना ज्यादा वक़्त बिताते हैं उनका अपने विचारों पर,अपने आचरण पर असर देखते हैं। परवरिश हमारे जीवन में बहोत ज्यादा महत्व रखती हैं। हमारी सोच भी उसी प्रकार होती है। हम जैसा सोचते हैं अपने आप को उसी में ढालते जाते हैं।
एक गाँव में हरिदास नाम का बड़ा धान का व्यापारी रहता है। उसके दो बेटे होते है। एक का नाम शंकर जो बड़ा बेटा होता है और दूसरा जो छोटा होता हैं उसका नाम होता है रवि। दोनों ही बेटे स्वभाव में अछे होते हैं। अपने पिता को दोनों ही मदत करते। लेकीन शंकर जो होता है जरा अलग सोच विचार वाला होता है। उसको किसी को दान धर्म करना अच्छा नहीं लगता। जब कोइ भिकारी या बुढा इन्सान दरवाजे पर आता है उसको वो भला बुरा कहके बिना दान दिए भगा देता हैं। इसके विपरीत छोटा रवि शांत और सयमी होता है। बड़े बुढो का आदर और सम्मान करता है। ये बात शंकर को बिलकुल पसंद नहीं आती है। और इस बात को लेकर दोनों में कभी नोकझोक भी होती रहती हैं। हरिदास इस बात से हमेशा चिंता में घिरा रहता है। उसको अपना व्यापार बच्चो के हवाले करने में कठिनाई हो रही थी। वो करे तो किसको उसका उत्तराधिकारी? इस सोच में सदा वो रहता है।
एक दिन हरिदास अपने दोनों बच्चो की परीक्षा लेने की सोचता हैं। वो अपने बीमार होने का नाटक करता हैं। इसमें उसका साथ उसी गाव का हाकिम भी देता है। ये बात सिर्फ इन दोनों को ही पता होती है। हरिदास दोनों बेटों को बुलाता हैं, सुनो तो,अब मुझसे काम संभाला नहीं जाता। मैं कुछ दिन आराम करना चाहता हु। तुम दोनों काम आपस में बाट लो। शंकर तुम दुकान का काम संभालो और रवि तुम खेत और मजदुर को संभालो।
दोनो ही लड़के दुसरे ही दिन से काम पे लग जाते हैं। शंकर दुकान का काम देखता और शाम को सारा हिसाब अपने पिताजी को दे के खाना खाके सो जाता। वो एक बार भी अपने पिता को उनकी तबियत के बारे में नहीं पूछता। लेकिन रवि ऐसा नहीं था। वो खेती के काम और शाम तक मजदूरों का पगार दे के सारा हिसाब अपने पिताजी को देने आता। लेकिन घर आने के बाद अपने पिता के पास बैठ कर उनसे दिन भर की खैरियत पुछता, उनको खाना अपने हाथोसे से खिलाता, उनके पैर दबाता, और अपने पिता के सोने के बाद वो खाना खाता और सोता। ये कई दिनों तक चलता रहा।
एक दिन हकिम जो इस नाटक में शामिल था वो भेस बदल कर हरिदास के घर आता हैं। शंकर उसको भिकारी समझ के भगा देता हैं। वो मदत की भिक मांगता है लेकिन शंकर उसकी एक न सुनता और सोने चले जाता है। ये बात रवि को बिलकुल भी अछी नहीं लगती। वो उस बूढ़े भिकारी को पुरे सम्मान के साथ घर में लेकर आता हैं। उसको खाना खिलाता हैं और उसके सोने का भी इंतजाम करता हैं। दुसरे दिन रवि उस भिकारी को अछे कपडे पहनने को देकर उसको अपने खेत में काम भी दिलाता हैं।
ये सब हरिदास देख रहा होता है। शाम को जब सब घर आते हैं तो दोनों बेटों को वो बुलाता हैं, शंकर और रवि….. जरा इधर तो आना।
जी पिताजी दोनों साथ में कहते है और उनके पास जाते हैं।
हकिम भी वही होता हैं। लेकिन भेस बदल के। शंकर उसको देख के चिढ़ता है और रवि एकदम शांत।
हरिदास आगे कहता है, मैंने अपनी बीमारी का नाटक किया था। मैं एकदम ठीक हु। ऐसा कहते ही हरिदास के दोनों लड़के एक दुसरे की तरफ देखते हैं। हरिदास आगे कहता है, मुझे अपना व्यापार संभालने वाला चाहिए था। इसलिए मैंने तुम दोनों की परीक्षा ली। शंकर ये भिखारी और कोई नहीं तुम्हारे हकिम चाचा है। तुम गरीब लोगो का अपमान करते हो और उनकी मदत भी नहीं करते। अरे बेटा, ये इतना बड़ा खेत और ये व्यापार हम अकेले नहीं संभाल सकते। इन मजदूरो की वजह से आज हम यहाँ तक पहुच पाये हैं। ये काम तुम अकेले का नहीं हैं। हरिदास रवि की तरफ देख के, रवि ने अपनी सोच से मुझे बहोत ही प्रभावित किया हैं। उसने गरीब मजदूरो को मान सम्मान ही नहीं दिया बल्कि एक गरीब भिकारी को अपने घर रख कर उसको काम दिलाया, उसका जीवन सुधारा।
शंकर को अपनी गलती का एहसास हो चूका था। वो अपने पिता के पैरो में गिर गया। मुझे माफ़ कर दो पिताजी।
हरिदास आगे कहता है, रवि, तुमने अपनी सोच से ये बता दिया की कोई छोटा बड़ा नही होता। उसकी सोच बड़ी और छोटी होती हैं। तुम अपनी सोच से अपने बड़े भाई से बड़े हो गए हो। मैं अपने व्यापार का उतराधिकारी तुम्हे ही चुनता हूँ।
शंकर अपनी गलती मानता हैं और आगेसे अपने छोटे भाई का काम में हमेशा हाँथ बटाता हैं।
लालची मिठाईवाला
संगमपुर नाम का एक गाव था। वहा, हर सोमवार को बाजार लगता था। लोग पास के गाव से आते थे और सब्जी भाजी,किराणे का सामान और भी जरुरी चीजे लेके जाते थे। सोमवार के दिन ही यहाँ भीड़ रहती थी ऐसा नहीं था। इसी गाव में एक मिठाईवाला भी था। वो इतनी अछी मिठाई बनाता की लोगो की बड़ी सी क़तार लगती। वो जितनी भी मिठाई बनाता वो सब खत्म हो जाती। उसको शादी के भी आर्डर रहते थे। वो अपने काम से बहोत ही खुश था और उसकी पत्नी भी। ये सब कई सालों से चल रहा था। उसके पास धन और पैसे की कोई कमी नहीं थी। उसने इस पैसे से बड़ा सा घर और जमींन भी खरीदी थी।
एक दिन वो आराम से बैठा था और उसके मन में आया के क्यों न अब ज्यादा धन कमाया जाये? ये रोज रोज का मिठाई बनाकर बेचना कितने दिन तक चलेगा? आखिर मुझे भी अमीरों जैसे जीना है। बस उसी दिन से वो अपनी मिठाई में मिलावट का सामान मिलाने लगा। ये बात उसकी बीवी से छुपी नहीं थी। उसकी बीवी को ये बात बिलकुल भी अछी नहीं लगी। वो एक दिन अपने पति के पास गयी और बोली, अजी सुनते हो?
बोलो,क्या है? क्यु चिल्ला रही हो? वो चिढ़ते हुए बोला।
मैं क्या बोल रही थी, भगवान का दिया हमारे पास क्या कम हैं जो आप ये मिलावट का काम कर रहे हो। जिस दिन पकडे गए आप की खैर नहीं। वो जरा धीरे आवाज में बोली।
मिठाई वाला बोला, तुम चुप रहो। और अपना काम करो। मुझे पता हैं मुझे क्या करना है। ज्यादा होशियार न बनो।
उसकी बीवी बोली, हमारी भी लड़की हैं, अगर ये मिलावट वाली मिठाई हमारी बच्ची ने खा लिया तो क्या होगा? कभी सोचा है?
मिठाईवाला बोला, अरे! मिठाई खाके क्या होगा भला? तुम बेकार में मुझसे बहस मत करो।
ऐसे ही दिन जाते रहे और मिठाई वाला अपने मिठाई में खूब मिलावट करने लगा। उसको पैसे भी बहोत बच रहे थे। वो अपने इस होशियारी से बहोत खुश था।
लेकिन एक दिन वही हुआ जिसका डर था। मिठाई वाला अपनी खाने की मिठाई हमेशा बाहर अलग से रखता और बेचने की अलग। उसकी लड़की अपने स्कूल गयी और वहा बटने वाली उसके दोस्त के सालगिरह की मिठाई उसने खा ली। वो मिठाई उसके पिता के दुकान से ली गयी थी। शाम को घर आने पर उसको जोरो की उलटी और बुखार होने लगा। घरमे मिठाई वाला और उसकी बीवी बहोत डर गए। वो दोनों अपनी लड़की से बहोत प्यार करते थे। उसको ऐसे देख के क्या करे क्या न ऐसे हो गया था।
दोनों अपनी लड़की को लेके डॉक्टर के पास अस्पताल भागे। वहां डॉक्टर ने कहा, इसने कुछ खाया है जिसकी वजह से इसको उलटी हो रही हैं। बाहर का कुछ खाती है क्या ये?
मिठाईवाला अपनी बीवी को देखता है और बोलता है, नहीं साहब,ये बाहर का कुछ खाती नहीं। पता नहीं क्या हुआ।
तभी उसके क्लास टीचर वहा आते हैं। डॉक्टर साहब, आज स्कूल में किसी बच्चे ने मिठाई लायी थी। सबने खायी थी। शायद इसने भी खायी हो।
मिठाईवाले की लड़की ने अपनी गर्दन हिलाकर अपने क्लास टीचर को हाँ कहा।
ये देख के मिठाईवाले की बीवी रोने लगती है, मैंने कहा था की मिलावट का धंदा बंद करो। कभी अपने ही ऊपर आ जायेगा। मेरी कहा सुनते हो तुम।
मिठाईवाला भी रोने लगा, उसको अपनी गलती का एहसास हो चूका था। उसने अपनी लड़की को गले से लगाया और कहा, बेटा,तेरे बापू को माफ़ कर दो। आगे से कोई मिलावट नहीं होगी। जो भी काम करूँगा पूरी ईमानदारी से करूँगा। मैं लालच में डूब गया था। अपना पराया भी देख नहीं पाया। मैं भूल गया था की ऊपर भगवान हैं और मेरे कर्मो का फल मुझे मिल गया।
इस तरह मिठाईवाले का लालच खत्म हो गया और वो पूरी ईमानदारी से व्यापार करने लगा।
चतुर भिकारी
दूर कही पश्चिम में एक बड़ा ही समृद्ध और धनवान राज्य था। उसका नाम था वैशाली नगर। उसका राजा बड़ा ही दिलदार था। उसने अपने राज्य में सुविधाओ की कोई कमी नहीं रखी। सारी प्रजा का वो सही से ध्यान रखता। धन धान्य की कोई कमी नहीं थी राज्य में। बस एक समस्या थी। राज्य के बीचो बिच से एक नदी गुजरती थी। उसमे काफी बड़े और छोटे पत्थर थे। जब बारिश होती थी तो बाढ़ का पानी नदी में बहते हुए राज्य की सीमाओ में घुस जाता और खेतों के लिए बड़ी मुश्किल पैदा करता। हर साल का यही रोना था। राजा हमेशा यही सोचता की कैसे इस बात का हल निकालू।
एक दिन परेशां हो कर राजा ने सारे मंत्री को सभा में बुलाया। राजा सभा की और देख के, यहाँ एक से एक होशियार मंत्री है लेकिन राज्य में जो बाढ़ की वजह से हर साल का जो नुकसान होता हैं उसके लिए कोई सुझाव कोई क्यू नहीं देता? प्रजा की परेशानी हमसे देखि नहीं जाती।
सारे मंत्री चुप खड़े थे। एक मंत्री ने राजा को एक सुझाव दिया की, राजा पुरे राज्य में ये फरमान निकले की जो भी इस समस्या का समाधान करेगा उसको हजार स्वर्ण मुद्रा दी जाएगी। राजा को ये बात सही लगी। उसने एक फरमान निकाला की जो भी राज्य की इस नदी की समस्या का समाधान करेगा उसको हजार स्वर्ण मुद्रा बक्षीश दी जाएगी।
हर बस्ती में ये ढोल बजा के बात फैलाई गयी। सब लोग सोचने लगे की काश हमे ये सुझाव मिल जाये तो स्वर्णमुद्रा हमे ही मिल जाएगी। वैशाली नगर में एक भिकारी रहता था। वो बड़ा चालाक और चतुर था। उसने ये फरमान सुना। वो भी सुबह राजा से मिलने वालों की कतार में जाके खड़ा हो गया।
उसको देख के, ऐ! खाना यहाँ नही बंट रहा। तू बाद में आजा। ये राजा से मिलने की क़तार हैं।
भिखारी बोला, मैं भी राजा से मिलने जा रहा हु। ये सुन के सब हंसने लगे। ये सब देख के सेनापति ने सब को चुप होने का आदेश दिया। और कहा की सबको राजा से मिलने का अधिकार हैं।
अब भिखारी की बारी आयी। राजा बोला, बोलो,क्या काम है? कोई मदत चाहिए?
राजा मेरे पास एक सुझाव हैं अपने राज्य की समस्या पे,कहो तो बोलू? भिखारी बोला।
सब मंत्री एक दुसरे की तरफ देखने लगे। तभी राजा ने कहा, बोलो, क्या सुझाव हैं?
भिखारी बोला, राजा, मेरा सुझाव ये है की मुझे मेरे बक्षीश की हजार स्वर्ण मुद्रा हैं वो अभी दी जाये। ऐसा सुनते ही सारी सभा में हँसी फ़ैल गयी। लेकिन वो भिखारी आगे बोला की, मैं ये सबके सामने करूँगा इसलिए मेरे साथ आपको नदी पर चलना पड़ेगा।
भिखारी का ये अजब सुझाव किसी को पसंद नहीं आया। लेकिन राजा ने उसकी बात मान ली।
राजा ने हुकुम दिया की भिखारी को हजार स्वर्ण मुद्रा दी जाये।
और सब मंत्री और समेत राजा भी उस भिखारी के साथ में नदी की ओर चल दिए। भिकारी ने राजा को और बाकि सब को दूर ही रुकने का इशारा किया। वो खुद अपनी स्वर्ण मुद्रा लेके नदी के पास पहुच गया। नदी में पानी कम था। नदी पे काफी लोग थे। कोई कपडे धो रहे थे,कोई पानी भरने आये थे और कोई जानवरों को चराने। भिखारी ने अपनी स्वर्णमुद्रा वाली झोली को निचे से थोडा फाड़ दिया। उसमे से स्वर्णमुद्राए एक एक करके गिरने लगी। ये सब राजा दूर से देख रहा था। किनारे पे खड़े लोग स्वर्णमुद्रा देख के उठाने के लिए भागे। अब वो भिखारी जहा पे बड़े पत्थर थे उनपे चढ़ गया। वहां पे कुछ सिक्के गिराए। और वैसे ही गिराते हुए पुरे पत्थरों में घुमा। फिर बाद में नदी के दुसरे किनारे पहुच गया।
राजा को भिकारी की सोच पे थोडा यकींन हुआ। अब ये खबर सारे नगर में आग की तरह फ़ैल गयी की नदी में स्वर्णमुद्रा गिर गयी है। लोग पत्थरों को निकालने में जुट गए। देखते ही देखते कुछ ही दिनों में सारे पत्थर नदी के बाहर थे। लोग भी खुश थे की उनको उनकी खोज का इनाम स्वर्ण मुद्रा मिली और इधर राजा अपनी नदी की समस्या का समाधान पाकर।
राजा ने भिखारी को सभा में बुलाया। उसको सम्मान के साथ बिठाया। और उसका सत्कार किया। यही नहीं बल्कि उसको बक्षीश में हजार मुद्राए भी दी जो तय हुआ था। भिखारी की चालाकी और होशियारी को देख के सभा में उसको सुझाव के लिए काम भी दिया गया।
इस तरह भिकारी ने अपनी सुझबुझ से मान सम्मान प्राप्त किया।
भाग्य बदल सकता है
दुनियां में ऐसे बहोत से लोग होते हैं जो जीवन को भाग्य से जोड़ते है। जिसका भाग्य अच्छा उसका जीवन सुखी। लेकिन कुछ ऐसे भी लोग है जो अपनी किस्मत,अपना भाग्य खुद लिखते हैं। अपनी मेहनत से, लगन से।
कमलापुर नाम का एक गाव था। उस गाव में सभी खेती और मजदूरी करते थे। मजदूरी गाव में न मिलने पर वो कभी पास वाले शहर भी जाते थे। गाव में एक साहूकार भी था। लोगो को जब भी कर्जा लगता तब वो होशियारी से उनकी जमीनों पर कब्ज़ा जमा लेता। इसी गाव में शंकर नाम का एक किसान था। वो साहूकार की इस चालाकी को भलेभान्ति जानता था। जब सब लोग खेती का काम खत्म होने के बाद शहर में मजदूरी के लिए जाते तब शंकर अपने खेत में सब्जी उगाता और पास के उसी शहर बेचने जाता जहा गाव के लोग मजदूरी करते। साहूकार को पता था की शंकर बहोत मेहनती हैं वो अपनी अपनी जमींन उसको नहीं बेचेगा। इसलिए साहूकार उसको अपने यहाँ काम करने का आग्रह करता हैं। लेकिन शंकर उसको साफ मना करता हैं।
शंकर को अपनी मेहनत पे भरोसा होता हैं। उसको पता हैं की जहा रोज अपनी सब्जी बिक सकती हैं वहाँ दूध भी बिक सकता हैं। वो रात दिन काम करके दो गाय और एक भैस खरीद के लाता हैं। उनका अछा ख्याल रखता हैं। अब उसको दूध भी मिलने लगता हैं। वो रोज सुबह उठकर दूध और सब्जी लेके शहर जाता हैं। जहा लोग मजदूरी के लिए भटक रहे थे वहा शंकर एक छोटा सा व्यापार चला रहा था। देखते ही देखते अब शंकर के पास बहोत सारी गाय और भेंसे हो गयी थी। वो अब गाव वालों को ही रोजगार दे रहा था। शंकर ने अब दूध डेअरी चालू की थी। वो अब गाव का सबसे अमिर आदमी बन गया था।
जहा लोग अपने भाग्य को कोसते हैं और अपनी स्तिथियों से समझोता कर लेते हैं वही शंकर ने अपनी मेहनत और लगन से अपना भाग्य खुद लिखा था और बहोत ही सुनहरा था।
इसीलिए कहते हैं की भाग्य भी बदल सकता हैं सिर्फ अपनी मेहनत पे विश्वास जरुरी हैं।
बातों से कुछ नहीं होगा
एक गाव में दो किसान रहतें थे। एक था शामू और दूसरा रामू। दोनों का जो था वो खेती ही था। लेकिन शामू बहोत ही ज्यादा मेहनती था उसके उलट रामू दूसरो की मेहनत देख के जलता और उनको कोसता रहता। और दुसरे का नुकसान होने की सोच रखता। उसके इस स्वभाव से गाव वाले परिचित थे। लेकिन स्वाभाव किसीका कहा इतने जल्दी बदलता है भला।
दोनों के खेत आसपास ही थे। लेकिन शामू के खेत हमेशा रामू से अछे रहते हैं। वो अपने खेतों की बहोत ज्यादा अछे से देखभाल करता, वक़्त पे पानी और खाद देता। बिमारियों से भी अपनी फसल को बचाता। इसबार भी बारिश अछी हुई थी तो दोनों की फसल काफी अछी हुई थी। लेकिन शामू की फसल गाव में सबसे उम्दा थी। आजुबाजू वाले उसकी फसल देखने आतें थे। इस बात को लेकर रामू चिढ़ा सा रहता। और कहता, उसकी फसल में ऐसी क्या बात है जो मेरे फसल में नहीं है? गाव वाले पागल हो गए है। शामू को बेकार में सर पर चढ़ा रखा है।
सबकी फसल काटने पर जब सब किसान बेचने बाजार गए तो शामू को फसल के सही दाम मिले और बाकि सब को शामू से कम दाम ही मिले। ये सब देख के रामू को बड़ा घुस्सा आ गया। वो कहने लगा, अगले साल देखना सबसे अछी फसल मेरी ही होगी।
अगले साल जब बुआई का समय आत हैं तब सभी किसान खेतों में काम करने जुट जाते हैं लेकिन रामू अपनी कही बातें भूल जाता हैं। और काम में ढिलाई रखता है। सबकी फसले अब बढ़ने लगती हैं तो बीमारियाँ भी आने लगती हैं। शामू अपना दिमाग लगा के पूरी सावधानी से फसलो का इलाज करता है। लेकीन रामू आज करेंगे, परसों करेंगे करते करते काम को खींचता जाता हैं। इस बात का बुरा असर उसके फसलों पर होता हैं।
बीमारी की वजह से रामू की पूरी फसल बरबाद हो जाती हैं। उसके हाँथ में कुछ भी नहीं आता। वो सर पकड़ के बैठ जाता हैं। तब शामू उसको उदास देख के उसके पास चला जाता हैं। उसको पता था की रामू उसका घुस्सा करता हैं। लेकिन रामू को ऐसा देख उसको रहा नहीं गया।
रामू, तू खूब मेहनती हैं, फसल भी तेरी अछी होती हैं। लेकिन जब काम करने की बात पे तू हमेशा कल परसों करता रहता है। टालते रहता है। अरे भाई ,बातों से कुछ नहीं होगा। तू वही वक़्त फसलों की देखरेख में बिताता तो आज ऐसा दिन देखना नहीं पड़ता शामू उसके कंधे पे हाथ रख के समझाता हैं।
रामू को शामू की बात समझ आती हैं। वो बेकार में उसके बारे में हमेशा गलत सोचता था। आज उसी ने सही राह दिखाई ये सोच के रोने लगता हैं और शामू के गले लगता हैं।
सही समय का इंतेजार
राजेश अपने मातापिता का इकलौता लड़का होता हैं। उसके पिताजी एक किसान होते हैं। वो अपनी किसानी के साथ साथ फलों का बागीचा भी बना रहे थे। राजेश के मातापिता जितने मेहनती थे उसके उलट राजेश अपनी ही धुन में रहता। वो कभी किसी काम में घर वालों को मदत नहीं करता। उसके ऐसे स्वभाव से घरवाले हमेशा से चिन्ता में रहते थे।
एक दिन राजेश के पिता को लगा की अब समय आ गया हैं की राजेश को काम सिखाया जाये। उन्होंने एक योजना बनायीं। साथ में राजेश की माँ को भी लिया। उन्होंने राजेश को पास में बुलाया, सुनो बेटा राजेश। मैं कुछ काम से शहर जा रहा हु। आज तुम बागीचे से अमरुद तोड़ लेना और खेतो को पानी भी दे देना। कल बाजार में बेचने के लिए भेजना हैं। और अगर कुछ समझ न आये तो अपने मजदुर खेतों में होंगे उनसे पूछ लेना।
राजेश ने उनको सामने से हां कह तो दिया लेकिन मजदूरों से पूछ लेना ये बात उसको अछी नहीं लगी। भला मजदूरों से मैं क्यु पुछु। उनको क्या मुझसे ज्यादा की समझ है भला। मैं मालिक हु। मैं अगर उनसे पूछने जाऊंगा तो मेरी क्या इज्जत होगी? येही सोच के वो मजदूरों से बिना बात किये ही फल तोड़ने लगता हैं। राजेश को ऐसा करते देख एक मजदुर वहां पहुचता है, मालिक ये आप क्या कर रहे हो?
राजेश ने उसको बिना देखे ही जवाब दिया, अरे, दिख नहीं रहा क्या मैं अमरुद तोड़ रहा हु।
लेकिन मालिक आप तो सब…. राजेश ने उस मजदुर को बिच में ही रोक दिया। और कहा, तू जा, अपना काम कर। मुझे क्या करना हैं ये मत सिखा।
दुसरे दिन राजेश के पिताजी सुबह उठ कर तोड़े हुए अमरुद देखने जातें हैं। राजेश ने सब आधे पके हुए अमरुद तोड़े थे। जो की बाजार में बिलकुल भी मांग नहीं थी।
पिताजी ने राजेश को बुलाया। और कहा, राजेश, ये सब क्या कर दिया। सारे आधे कच्चे अमरुद तुमने तोड़ लाये और मजदुर की बात भी नहीं सुनी। वो लोग अपने यहाँ रोज काम करते है। उनको तुमसे ज्यादा समझ है। अगर खुद कुछ समझ न आये तो बेटा किसीसे कुछ पुछने में कोई बुराई नहीं।
पिताजी ने आगे कहा, कोई भी चीज का सही वक़्त होता हैं। उस सही वक़्त का इंतेजार करना चाहिए। सही वक़्त आने पर ही फलों को तोडा जाये तोही उसके सही दाम मिलते हैं बेटा। जैसे की मधुमखी जब अपना छत्ता बनाती है तो दुसरे ही दिन वहा शहद नहीं होता। उसको सही समय का इंतेजार करना पड़ता है। तब जाके मीठा शहद बनता है। तुम्हारा भी सही समय आ गया है। अभी जो भी काम सीखोगे तुम्हे जीवन में आगे काम आएंगे।
पिता की बात राजेश को पूरी समझ आ गयी थी। वो पिता के पास जाके बैठ जाता है और कहता है, मुझे माफ़ कर दो पिताजी। मैं आगे से सारे काम पूरी लगन से करूँगा और आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा।
अगर कोई काम अच्छा करना हो तो सही समय का इंतेजार करना चाहिए।
नकलची सदा दुखी
धर्मपुर नाम का एक छोटा सा गाव होता हैं। उसी गाव में बलदेव नाम का चमड़े का व्यापार करने वाला एक आदमी रहता हैं। वो जानवरों के चमड़े बेचकर अपनी और अपने परिवार का पालन पोशन करता हैं। वो बड़ा ही समजदार और मेहनती होता हैं। अपना काम भले ही छोटा हो लेकिन अपना पूरा मन लगाके काम करने में वो यकीं रखता है। लोग उसको उसके काम से उसको चिढाते लेकिन वो कभी किसिपे घुस्सा नहीं करता। उसका काम में उसकी बीवी हमेशा उसके साथ में होती और हिम्मत दिलाती।
बलदेव हमेशा गाव-गाव जाकर चमड़े इकट्ठा करता और शहर जाकर बेच आता। रास्ता जंगल से होकर जाता इसलिए कभी उसको रात भी हो जाती थी। जंगल में जानवरों का डर तो था साथ में डाकू लुटेरो से भी अकेले आदमी को डर था। एक दिन की बात है। बलदेव घर से शहर जाने के लिए निकला। आज जरा देर से निकला था। दोपहर उसको घर में ही हो गयी थी। शहर जाकर वापस भी आना था। इसलिए वो जल्दी जल्दी चलते हुए जंगल के रास्ते चला गया। शहर में उसका काम नहीं हुआ। कुछ चमड़े बिना बीके ही रह गए। अब क्या करता सो वो बाकि के चमड़े पीठ पर लेके घर की और चल दिया। लेकिन मन में एक डर था की आज रात होने वाली हैं जंगल से। जंगल में पहुचते हुए उसको काफी रात हो चुकी थी। अब उसको डर लगने लगा। उसने एक बड़ा सा पेड़ देख के उसपे चढ़ना चालू किया। चमड़े निचे रखता तो जानवर उसकी गंध सूंघते हुए आ जाते इसलिए वो सब पीठ पे लेके वो पेड़ पर चढ़ गया और रात ढलने का इंतेजार करने लगा।
काफी वक़्त हो चूका था। रात भी बहोत हो चुकी थी। उल्लू चिल्ला रहे थे। कही से भेडिये भी चिल्ला रहे थे। अचानक बलदेव को इंसानों की आवाज आने लगी। वो चुपचाप ऊपर से देख रहा था। कुछ डाकू लुट का सारा सामान लेके उसी पेड़ के निचे आकर बैठ गए जहा ऊपर बलदेव चढ़ के बैठा था। डाकू बहोत ही खतरनाक लग रहे थे। उनको देख के इधर बलदेव के पसीने छुटने लगे थे। वो सारे डाकू आपस में लुट के सामान को बाँट रहे थे। रूपये पैसे और जेवर थे। वो सब देख के बलदेव की आंखे फटी रह गयी। उसने इतने पैसे कभी देखे नहीं थे एक साथ। उसका पूरा ध्यान नीचे डाकुओ पे था। की अचानक उसके पीठ पर से चमड़े फिसलकर उन डाकुओ पे गिरने लगे। ये सब इतने अचानक होने से सब डाकू डर गए और भुत…..भुत….. करते चिल्लाते वहां से भाग गए। यहाँ ऊपर बलदेव भी डर गया था की कही उनका ध्यान ऊपर गया तो मेरी खैर नहीं। लेकिन सुबह तक वहाँ कोई वापस नहीं आया। बलदेव निचे उतरा और लुट का पैसा और उसके चमड़े एक साथ बांध के वहाँ से चला गया। घर आकर उसने बीवी को सारी हकीकत बताई। उसकी बीवी भी डर गयी लेकिन गहने पैसे देख के खुश हो गयी। ये बात बाजु में रहने वाले शंकर ने चुपके से सुन लिया।
दुसरे ही दिन वो भी कुछ चमड़े जमा कर उसी पेड़ के पास चला गया और ऊपर जाकर बैठ गया। रात हो गयी और वो डाकू अपना लुट का सामान ढूंडते हुए वहां आ गए। वहां कोई सामान नहीं था लेकिन उनको देख के इधर शंकर कापने लगा और सारे चमड़े उसने निचे फेंक दिए। कल हुई बात आज दोबारा होने से वो डाकू बिना डरे वही रुके और ऊपर देखने लगे। ऊपर शंकर दुबक कर बैठा था। उन्होंने उसको निचे उतारा और लातों और घूंसों से उसकी पिटाई की। वो जैसे तैसे वहां से भागा और अपने घर पहुंचा। उसका ये हाल देख कर बलदेव और उसकी बीवी भी उसको देखने पहुचे। शंकर ने सब अपने मुह से कबूला और जो हुआ वो बताया। तब सब बोले, नकलची सदा दुखी। और हसने लगे।
इसलिए कभी किसीकी नक़ल बिना सोच विचार नहीं करनी चाहिए। नुकसान ही होता है।
असली खजाना
एक बडे व्यापारी के चार बेटे थे। बहोत बड़ी जायदाद और जमीने होने के साथ साथ उसका व्यापार भी काफी बढ़ चूका था। लेकिन अब वो व्यापारी बुढा हो चूका था। और बच्चो को सब जायदाद के हिस्से देके वो तीरथ यात्रा में जाना चाहता था। लेकिन किसको इस जायदाद का असली वारिस करू ये उसके समझ नहीं आ रहा था। वो हमेशा इसी सोच से घिरा रहता। इधर उसके चारो लड़के बड़े ही आलसी और निक्कमे से थे। अपने बाप के कमाए हुए पैसे से खूब मौज मजा करते और आराम से अपना जीवन काट रहे थे। उनको मेहनत और कष्ट से कोई लेनादेना नहीं था। और ना ही अपने भविष्य के बारे में कोई चिंता।
येही बात उसने अपने मुनीम जानकीराम से भी बोली। जानकीराम ने उस व्यापारी को एक उपाय बताया। उसको बहोत पसंद आया। व्यापारी ने उसपर तुरंत अम्मल किया। ये बात सिर्फ जानकीरम और उसके मालिक के बिच मे ही थी।
दुसरे ही दिन व्यापारी ने अपने चारो लडको को अपने पास बुलाया। और कहा, अब मैं बुढा होते जा रहा हु। मुझसे अब काम नहीं होते। मैं अपना सारा बोझ किसी के कंधे पे डाल के मुक्त होना चाहता हु। तो क्या तुम सब तैयार हो?
सभी ने हा में हा भरी।
आगे वो व्यापारी कहता है, मैंने अपना सारा पैसा,जेवर अपने पड़ोस के खेत में छुपाये हैं। तुम सब वहां जाओ और जिसको जो मिले वो ले लो और आपस में बाँट लेना।
चारो भाई जल्दी से बाहर जातें हैं और किसीको मिलने से पहले मुझे मिले वो खजाना इसलिए कुदाल और फावड़ा लिए खेत की तरफ भागते है। जिसको जहा मिले वहां खोदते जातें हैं। सुबह से शाम हो जाती हैं लेकिन किसिके हाँथ कुछ नहीं आता। शाम को सब थके हारे घर पर आते हैं। दुसरे दिन भी सब वहां जाकर खोदना चालू करते हैं। लेकिन आज उनको खोदना कल से थोडा आसान लगता है। दिन बीतते जातें हैं लेकिन सबके हाँथ खाली। लेकिन सबको अब अछे से खुदाई आती हैं। सब सीख जाते हैं। दिन बितते जातें हैं और उनका सब्र भी अब खत्म हो जाता हैं। चारों भाई वापस अपने पिताजी के पास जातें हैं और कहते हैं, पिताजी,वहा खेत में तो कुछ भी नहीं मिला। आपने हमसे बेवजह सारा खेत खुदवा लिया। अब क्या फायदा। सारी मेहनत बेकार गयी हमारी।
इसपे वो व्यापारी बोला, अरे बेटा,मेहनत बेकार कैसे जाएगी? अब खेत तयार हो गया हैं तो अब बारिश पे वहा बिज भी डाल दो। चारों भाइयों को अपने पिता की बात टालने का मन नहीं होता। वो बारिश के आने के बाद सारे खेत में बिज डाल देतें हैं। कुछ दिनों बाद हरीभरी फसल लहलहाने लगती हैं। वो चारो भाई एक दुसरे की मदत से खेत में काम करना भी सिख जातें हैं। उनको ऐसा देख व्यापारी बड़ा खुश होता हैं और खेत पे जाता हैं। अपने चारों बेटों के कंधे पे हाँथ रख कर कहता हैं, बच्चों, यही तो हैं असली खजाना। मैंने तुम सब से झूठ कहा था। खेत में कोई खजाना नहीं था। तुम सब ने मेहनत कर के खेत को खजाने में बदल दिया हैं। मेहनत ही तुम्हारी दौलत हैं।
चारों भाइयों को ये बात पहले ही समझ आ गयी थी जब सब मिलकर काम कर रहे थे। उन्होंने अपने पिता का शुक्रिया किया और व्यापार और खेती का काम आगे से पूरी मेहनत और ईमानदारी से संभाला।
सोचना जरुरी है
एक गाव में शामु नाम का मछुआरा होता हैं। उसकी बीवी का नाम होता है निराली। शामू जितना समझदार होता है उतना ही निराली बिना सोचे समझे कुछ भी कर देती हैं। इस बात से शामू बहोत परेशान राहता हैं। वो उसको हमेशा कहता हैं, देख निराली, तेरी इसी बात से हमको एक दिन बड़ा नुकसान होगा।
उनके घर में एक कुत्ता भी होता हैं। मालिक और मालकिन जहा भी जातें वो साथ में जाता। जो भी उसको कहा जाये उसको सब समझ आ जाता। बड़ा ही वफादार और सयाना था वो। कुछ दिनों बाद शामू और निराली को एक बच्चा होता हैं। वो दोनों बहोत खुश रहने लगते है। शामू रोज समुन्दर में जाके मछलिया पकड़ कर लाता हैं और बाजार में जाकर बेचता हैं। और आये हुए पैसे से अपने परिवार के लिए खुशिया खरीदता हैं।
एक दिन शामू समुंदर में दूर तक जाता है। उसको मछलिया नहीं मिलती तो वो देर तक वाहा घुमते रहता हैं। शाम होने तक शामू वापस नहीं आया ये सोच कर यहाँ निराली का भी मन घर में नहीं लगता। वो भी अपने बच्चे को पालने में डाल कर वाहा अपने कुत्ते को रुकने को बोल कर शामू को ढूंडने निकल जाती हैं। उसको भी काफी वक़्त बित जाता हैं। यहाँ घर में एक साप घुस जाता हैं। वो बच्चे के पास जाते देख कुत्ता उसको मुह में दबाकर मार डालता हैं। उसके मुह में उस साप का खुन लग जाता हैं। वो वैसे ही बच्चे के पास बैठ कर मालिक और मालकिन का इंतेजार करते रहता है।
शाम होते होते निराली वहां आती हैं। उसकी आहट सुन कर कुत्ता बाहर आता हैं। लेकिन निराली को उसके मुह में खून लगा देख चिल्लाने लगती हैं। उसको लगता हैं की इसने मेरे बच्चे को मार डाला। वो बिना कुछ सोचे समझे पास में पड़े लोहे की सरिये से कुत्ते के सिर के ऊपर जोर जोर से मारने लगती हैं। वो बेचारा कुत्ता अपनी मालकिन की मार सहन नहीं कर पाता और वही दम तोड़ देता हैं। तब तक शामू भी वहां आ जाता है। दोनों घर के अन्दर भागते हैं। वहा का नजारा देख कर निराली और जोर से रोने लगती हैं। वाहा बच्चे के पालने के निचे एक जहरीला साप मरा हुआ होता हैं। बच्चे को बचाने के लिए कुत्ते ने उस साप को मारा था ये समझने में दोनों को देर नहीं लगाती। निराली अपने बच्चे को सीने से लगाके बाहर भागती हैं। लेकिन काफी देर हो चुकी होती हैं। सरिये की चोंट से कुत्ता मर जाता हैं।
निराली ने बिना सोचे समझे उस कुत्ते को मार डाला था। उसको अपनी गलती का बड़ा दुःख हुआ।
इसलिए सोचना जरुरी हैं। बिना सोचे कोई काम नहीं करना चाहिए।
एकता में शक्ति होती है
दूर पहाड़ों में एक घना सा जंगल होता हैं। वहां सभी जानवरों का रहने का घर था। हर तरह के प्राणी और पक्षी वहां बड़े ही शान से रहते थे। सबमे काफी दोस्ती थी।
लेकिन एक दिन एक शिकारी ने वहां का रास्ता निकाला। वो जाला लेकर उस जंगल में पंहुचा। उसने देखा की यहाँ रंग बिरंगे पक्षी हैं। अगर इनको वो पकड़ ले तो बाजार में इनको बेच कर मोटी रकम मिलेगी। येही सोच कर वो एक अछी सी जगह देख कर अपना जाला बिछाता हैं। उसके आसपास कुछ दाने डाल कर कुछ दाने उस जाले में डाल कर वो चला जाता हैं।
थोड़ी देर में वहां बहोत से कबूतर उड़ते हुए आतें हैं। दूर से ही उनको वहां दाने दिखाई देते हैं। सारे कबूतर वहां दाने खाने लगते हैं। उनको जरा भी भनक नहीं लगती की वहां कोई जाला भी हैं। लेकिन उनके साथ एक भोलू नाम का कबूतर होता हैं। वो बड़ा ही होशियार और चतुर होता हैं। वो ऊपर से देख लेता हैं की यहाँ आसपास कोई खेत नहीं हैं। तो ऐसे जंगल के बिच में इतने सारे दाने कहा से आ गए?
वो पेड़ पर रुक कर सबको आवाज देता हैं, अरे मेरे भाइयो,सुनो जरा। मुझे लगता हैं ये कोई साजिश हैं। ये दाने अचानक कहा से आ गए यहाँ? मुझे तो कोई गड़बड़ लगती हैं। तुम लोग खाना बंद करो और यहाँ पेड़ पर आकर बैठ जाओ। लेकिन भोलू की बात कोई नहीं सुनता। वो दाने खाते हुए आगे बढ़ते जातें हैं और जालें में जाकर अटक जाते हैं। अब जैसे वो सब उड़ने को जाते उनमे से कोई भी उड़ नहीं पाता। सब चिल्लाने लगते हैं। बचाओ……भोलू हमको यहाँ से निकालो। हमे मरना नहीं हैं।
मैंने कहा था की मत खाओ दाना। लेकिन किसीने मेरी बात नहीं मानी। अब भुगतो। वो शिकारी कभी भी आ सकता हैं। भोलू घुस्से से कहता हैं।
सारे कबूतर रोने लगते हैं। उन सब को देख कर भोलू कहता हैं, तुम सब चुप हो जाओ। मुझे सोचने दो।
कुछ सोच कर भोलू उन सब के पास उड़ते हुए जाता हैं, एक काम करो। तुम सब लोग अगर अलग अलग उड़ने की कोशिश करोगे तो कोई भी बच नहीं पायेगा। अगर तुम सब एक साथ एक ही दिशा में उड़ने की कोशिश करोगे तो शायद ये जाला टूट जाये और तुम सब आझाद हो जाओ।
भोलू की बात सुन कर सारे कबूतर एक ही दिशा में उड़ने की कोशिश करते हैं। उनकी एकता की ताकद से जाला उखड जाता हैं। सारे कबूतर वो जाला लेकर उड़ जातें हैं। वो सब भोलू के दिखाए हुए जगह पर पहुच जाते हैं। वहां उनका दोस्त रिंकू चूहा अपने दोस्तों के साथ तैयार होता हैं। जैसे ही सारे कबूतर वहां उतर जातें हैं, रिंकू और उसके दोस्त जाला काटने में लग जातें हैं। कुछ ही देर में सारे कबूतर आझाद हो जातें हैं। और ख़ुशी से आसमान में उड़ने लगते हैं।
सभी वापस आकर भोलू कबुतर और रिंकू चूहे को शुक्रिया करते हैं। तब भोलू कहता हैं, एकता में ही शक्ति होती हैं। हम अलग हैं तो कमजोर हैं। इसलिए हमे मिलजुल कर रहना चाहिए।
सब भोलू की हां में हां मिलते हैं।
तालाब का मेंडक
कभी हमारी परिस्तिथिया हमें जीवन की सचाई जानने का मौका नहीं देती। तब अपने आसपास जो भी होता है उसी को हम दुनिया मानने लगते हैं। उसी में जीने लगते है। और अपनी प्रगति की धारा को कही पे रोक लेते है। उसीप्रकार,जैसे कोई तालाब का मेंडक। वो तालाब को ही सारी दुनिया बना लेता है।उसके बाहर कोई दुनिया है ही नहीं ऐसे वो जीता है। और इतनी बड़ी,सात समुंदर वाली दुनिया से वो अन्जान रहता है।
ये कहानी है लक्ष्मन नाम के लडके की। वो घर का अकेला लड़का था इसलिए बहोत लाड से पाला था उसको। लक्ष्मन अपने माता पिता के साथ अपने गाव रंजनपुर में ख़ुशी से रहता था। माँ बाप का वो अकेला सहारा था। इसलिए उसको कोई काम नहीं कराते थे। कुछ भी हो लक्ष्मन को कोई परेशान नहीं करता था। वो दिन भर खाता और आराम करते रहता। उसको कोई काम करने की इच्छा नहीं होती थी। उसके साथी सब कोई न कोई काम करते और अपने घरवालों को मदत करते।
लक्ष्मन अब बड़ा हुआ। उसके दोस्त सब अपनी दुनिया में खो गए। ये खुद को अकेला महसूस करने लगा। वो भले ही कुछ काम नहीं करता हो लेकिन पढाई में होशियार था। उसका एक बचपन का दोस्त था। उसका नाम शाम था। वो पूना में कोई बड़ी सी कंपनी में नौकरी करता था। वो हमेशा से ही लक्ष्मन को कुछ काम करने की सलाह देता।
दिन बितते गए और अब लक्ष्मन की शादी की उम्र हो रही थी। तब इसको लगने लगा की कुछ करना चाहिए। वो सोचने लगा की कब तक ऐसे जीया जायेगा। लेकिन वो कभी अपने गाव से बाहर गया नहीं था। इसलिए बाहर की दुनिया का कोई अनुभव नहीं था। इसी बात से वो चिढ़ा सा रहने लगा। दिवाली का त्यौहार आने वाला था। उसका दोस्त शाम भी छुटी पे आया था।
वो एक दिन लक्ष्मन के घर आया। अरे लक्ष्मन। घर में कोई हैं के नहीं। शाम ने बाहर से आवाज लगायी।
अरे,शाम बेटा। कैसे हो?कब आये?चाची ने दरवाजे पे ही पूछ लिया।
लक्ष्मन की माँ को शाम चाची कहता था। शाम जब भी अपने दोस्त के घर जाता लक्ष्मन की माँ बहोत सारी खाने की चीजे एक प्लेट में सजाके लाकर रख देती। सो आज भी ऐसे ही हुआ। चाची ने आते ही एक प्लेट में लड्डू और सेव सामने रख दिया।
शाम बोला, चाची मैं कल ही आया हु। मैं ठीक हु लेकिन इतना सब खाके मेरी तबियत ख़राब हो जाएगी।ये कहके सब हँसाने लगे। इतने में लक्ष्मन भी आया। दोनों फिर बाहर घुमने चले गए। वो जरा परेशांन दिख रहा था। शाम ने पूछा, अरे,क्या हुआ?सब ठीक है ना?कोई परेशानी।
तब लक्ष्मन बोला, हा यार शाम,मैं कुछ करना चाहता हु। लेकिन क्या करू ये समझ नहीं आता।
तू इस तालाब से पहले बाहर निकल। दुनिया देख। तब पता चलेगा की करना क्या है और तू क्या कर सकता है। यह गाव ही तेरा तालाब है। तुने इसके बाहर की दुनिया कहा देखि है?
लक्ष्मन को शाम की बात सही लगी। उसने पास के शहर नागपुर जाने का फैसला किया।
वहा पहुँच के जो काम मिले वो करना चालू किया। साथ में उसने बच्चो को पढाना भी चालू किया।
आज लक्ष्मन एक सरकारी ऑफिस में नौकरी करता है। साथ में अपनी क्लासेस भी चलाता है। अगर वो तालाब का मेंडक बन के दुनिया को नहीं जान पाता तो शायद गाव में ही पड़ा रहता। उसके दोस्त के बताने पे उसने सही रास्ता चुना। ये सब बताते हुए लक्ष्मन खुद को खुशनसीब मानता है और अपने दोस्त शाम का शुक्रिया अदा करना वो कभी नहीं भूलता।
असंभव कुछ भी नहीं
शाम बचपन से ही बड़ा शर्मीला और डरपोक किस्म का लड़का था। उसको गाव में रोंदू शाम के नाम से भी जानते थे। पढाई में भले ही वो अव्वल आता हो लेकिन खेल कुद और हिम्मत दिखाने में वो हमेशा से ही पीछे रहता था। इस बात से उसकी माँ बहोत नाराज रहती थी। शाम बड़ा होकर भी ऐसा रहा तो उसका कैसा होगा? ये सोच कर उसकी माँ को बड़ा दुःख होता था। शाम जितना डरपोक था उतना ही चहेता था कुछ लोगो का। जिसमे उसकी दादी भी आती थी। उसको शाम पे पूरा भरोसा था की ये एक दिन बड़ा आदमी बनेगा। शाम की माँ हमेशा दादी को कहती, ये शाम आपके इस लाड प्यार से बिघड गया हैं। एक दिन मैं इसको सुधार कर ही दम लुंगी।
शाम की स्कूल की अब छुट्टिया लगने वाली थी। शाम के गाव में खेतों के पास बड़े सारे कुए थे। यहाँ बड़े बुजुर्ग सब तैरने जाते थे। उनके साथ घर के छोटे बच्चे भी जाते थे। उन्ही के साथ रहकर बच्चे तैरना भी सिख जाते थे। शाम के बगल में रहने वाली कुसुम भी अब अपने पिताजी के साथ कुए में तैरना सिख चुकी थी। कुसुम शाम की बचपन की सहेली ही। वो शाम को हिम्मत दिलाती। जब कोई उसको रोंदू कहके चिढाता तो वो उनपे घुस्सा करती। कहती, ऐ! शाम को ऐसा मत कहो। वो डरता हैं इसका मतलब यह नहीं की वो तैर नहीं सकता।
आज इतवार था। सब बच्चे तैरने के लिए जाने की तयारी करने लगे। कुसुम भी आज जाने वाली थी। उसने आवाज लगायी, अरे शाम, चलो तैरने। मेरे पिताजी तुम्हे जल्दी से तैरना सिखा देंगे। फिर तुम खुद ही तैर सकते हो।
शाम की माँ ने अन्दर से आवाज लगाई। कुसुम बेटा तुम रुको जरा। शाम डर के मारे कही छुपा होगा। मैं लेकर आती हु।
इतना कहकर शाम की माँ अन्दर गयी। श्याम ये सब छुपकर सुन रहा था। माँ ने उसको मारते हुए बाहर निकाला। शाम रो रहा था। माँ से बिनती कर रहा था।
शाम की दादी आयी। शाम को पास बुलाया। और कहा, देख शाम, अगर आज तू डरेगा, रोयेगा तो सब तुझपे हँसेंगे। तेरा मजाक उड़ायेंगे। क्या तुझे अच्छा लगेगा? नहीं ना? अरे! दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं होता। तू हिम्मत कर और कूद जा। जीने के लिए तू पानी में हाँथ पैर जरुर मारेगा। और वैसे भी इतने सारे तेरे दोस्त हैं। ये कुसुम के पिताजी हैं। तुझे कोई न कोई बचा ही लेगा। जा डर मत।
शाम को दादी की बात सही तो लगी लेकिन अन्दर से डर की वजह से उसके पैर भारी हो गए थे। जैसे कुआ नजदीक आया उसको बहोत ज्यादा डर लगने लगा। कुआ आते ही कुसुम अन्दर कूद गयी। उसको तैरना सीखे कुछ ही दिन हुए थे। लेकिन वो बहोत अछे से तैर रही थी। शाम ने कुए के अन्दर जरा सा झांक कर देखा। वहा पानी में उसके कुछ दोस्त भी थे। कुसुम के पिताजी भी थे। उन्होंने शाम को आवाज लगायी,
शाम, बेटा कूद जाओ पानी में। डरो नहीं। हम है यहाँ।
इतने में शाम को किसीने पीछे से जोर का धक्का दिया।
धपाक……….
शाम चिल्लाते हुए पानी में गिर पड़ा। वो उलट पुलट हो रह था। चिल्ला रहा था। चिल्लाने से उसकी साँस फुल चुकी थी। उसके नाक में पानी जाने से उसको बहोत तकलीफ हो रही थी। वो किसी तरह अपनी गर्दन को ऊपर रखने की कोशिश करने लगा। तभी उसको दादी की कही बात याद आयी। दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं। उसने अपने हाँथ पैर मारना चालू किये। जिससे वो ऊपर आने लगा।
ये देख के कुसुम के पिताजी तैरते हुए शाम के पास आ गए। उन्होंने उसको कमर में पकड़ लिया और हाँथ पैर कैसे मारते हैं ये सिखाने लगे। अब शाम जरा शांत हो गया था। वो अब खुद ही पानी के ऊपर तैर रहा था। कुसुम और उसके दोस्तों ने शाम की हिम्मत बढाने के लिए तालिया बजायी। शाम को बहोत अछा लगा।
ऐ शाम, चलो फिर से एक बार ऊपर से पानी में कूदते है कुसुम ने आवाज दी।
शाम अब बाहर आकर खुद ही बिना डरे पानी में कूद गया। अब वो पहले से अछा तैर रहा था। उसका डर कही भाग गया।
घर आकर उसने अपनी दादी को जाकर ये बात बताई। दादी बहोत खुश हुई। दादी ने शाम को बक्षीश भी दी।
शाम अब अपनी माँ के पास गया। और रोने लगा। माँ कहने लगी, हमारा शाम अब रोंदू नहीं हैं। वो बहादुर बच्चा हैं। ख़बरदार किसी ने उसको चिढाया तो। ऐसा कहते माँ ने शाम को गले से लगाया।
स्कूल का पहला दिन
शिखा बहोत ही होनहार और होशियार लड़की थी। उसके माँ बाप की वो अकेली संतान थी। उसके पिताजी का तबादला नये शहर होने से उसका स्कूल भी बदल गया था। आज उसके नए स्कूल का पहला दिन था।
शिखा जल्दी से तैयार होकर घर के बाहर अपनी स्कूल बस का इंतेजार करने लगी। वो अपने नये स्कूल के लिए और नये दोस्त बनाने के लिए बहोत ही ज्यादा खुश थी। वो बहोत ही ज्यादा उत्साहित और रोमांचित हो चुकी थी। वो मन में ही अपने नये स्कूल के बारे सोचने लगी थी की उसकी स्कूल बस आ गयी।
बस के अन्दर जाते ही सामने वाले सीट पे एक जगह खाली थी। शिखा ने वही बैठना चाहा। लेकिन कुछ लड़कियों ने उसको वहां बैठने से मना किया। वो ये बात समझ नहीं पायी। उसके बगल में एक लड़की बैठी थी। उसका नाम काव्या था। जान पहचान होने के बाद अब दोनों में बाते चालू हुई। काव्या का भी आज स्कूल में पहला दिन था। नई दोस्त पाकर शिखा बहोत खुश हो गयी।
इतने में काव्या जोर से चिल्लाई।
देखा के पीछे के सीट पे बैठे लडको ने उसके बालों को कही फसा दिया था। उसको बहोत तकलीफ हो रही थी। वो रोने लगी। शिखा ने उन लडको को ऐसा करने से मना किया। लेकिन उन लडको ने उसकी एक न सुनी। काव्या अब बुरी तरह डर गयी थी। वो रोते हुए स्कूल गयी। शिखा भी उसके साथ में थी। शाम को जब शिखा अपने घर गई तो उसने ये सब बात अपने माँ को बताई।
माँ ने शिखा को पास बिठाया और कहा, अगर कोई ऐसा करता है, बेवजह कोई किसीको तंग करता हैं तो हम चुप रह के उसकी हिम्मत और बढाते है। एक अच्छा इन्सान किसी के ऊपर ऐसा होते देख चुप नहीं रहता। तुम्हे भी उसको सबक सिखाना चाहिए। तुम बहादुर बेटी हो।
दुसरे दिन बस में चढ़ते ही देखा की आज काव्या पीछे की सीट पर बैठी है। कल जो हुआ उससे वो डर गयी थी। लेकिन शिखा आज भी उसी सीट पर बैठी जहा कल काव्या बैठी थी।
लडको ने आज शिखा को निशाना बनाया। शिखा के बालो में उन्होंने कागज के टुकडे डाल दिए और उसके बाल रस्सी से बांधने वाले थे की शिखा झट से उठी।
वो लड़के चौक गए।
उठते ही शिखा ने उस लड़के के गाल पे एक तमाचा जड़ दिया।
सब की आँखे खुली की खुली रह गयी। शिखा में इतनी हिम्मत देख सारी लडकिया अब शिखा के साथ खड़ी हो गयी।
काव्या तो ताली बजाने लगी। अब शिखा सामने खड़ी होकर बोलने लगी, हम जब तक चुप हैं, खामोश हैं, चुप रह के ऐसे सब कुछ सह लेते हैं तब तक ऐसे लडको की हिम्मत बढती हैं। हमे सब मिलजुलकर ऐसे लडको को सबक सिखाना चाहिए।
सब तालिया बजाते हैं। शिखा की हिम्मत की दाद देते हैं। वो लड़का भी उससे माफ़ी मांगता हैं और अपनी गलती को दुबारा न करने की कसम खाता हैं।
शिखा घर जाते ही माँ को ये सारा किस्सा बताती है। माँ उसको शाबाशी देती है।
देखो घुस्सा न करना
एक रिया नाम की लड़की होती हैं। अपने माँ बाप की सबसे चहीती होने के साथ साथ वो बहोत ही ज्यादा घुस्सेल तरह की होती हैं। उसको बचपन में बहोत लाड से पाला गया था। उसका उसपे बहोत बुरा असर हुआ। वो अब किसी की नहीं सुनती थी। हमेशा से मेरी सुनो और मैं जैसा कहती हु वैसा करो, ऐसा कुछ चल रह था। उसके ऐसे स्वभाव के कारन उसके दोस्त भी बहोत कम थे।
रिया की माँ हमेशा से कहती थी की, बेटा रिया, घुस्से से कुछ हासिल नहीं होता। घुस्सा हमारा शत्रु हैं। दिमाग शांत रख के ही इन्सान सफल होता हैं।
लेकिन रिया पे इस बात का कोई असर नहीं होता था। वो जरा सी बात पे अपने घर वालो पे चिढ़ती और हंगामा मचा देती। इस आदत की वजह से स्कूल से भी बहोत शिकायते आने लगी थी। घरवालो को अब सोचना पड रहा था की इस लड़की का आखिर करे क्या?
एक दिन रिया ने छोटी सी बात को लेकर स्कूल में मारपीट की। जब घर में पुछा गया तो उसने चुप्पी बनाये रखी थी। लेकिन जब स्कूल से लैटर आया तो सब बाते बाहर आयी। स्कूल में उसको बुलाया गया और उसके माँ बाप के सामने उसको समझाया गया। थोड़ी देर के लिए रिया समझ तो गयी लेकिन शाम होते होते सब भूल गयी। घर आते ही उसने हमेशा का चिल्लाना और घुस्सा दिखाना चालू किया।
आज पालक की सब्जी बनी थी। उसने खाने के टेबल पे ही घुस्सा निकला। मुझे आज ये सब्जी खानी नहीं हैं ऐसे बोल के अपना हाँथ कांच के टेबल पे दे मारा। टेबल का कांच थोडा टूट गया और रिया का हाँथ खून से लाल हो गया। खून गिरता देख अब रिया घबरा गयी और जोर से रोने लगी।
उसके पिताजी और माँ ने जल्दी से उसको उठा कर दवाखाने गए। दो टांके लगा कर उसकी जखम बंद करनी पड़ी। आज ये सब होने के बाद रिया एकदम शांत थी। घर आकर बिना कुछ कहे सोने चली गयी।
सुबह जल्दी उठकर अपने सारे काम कर के स्कूल के लिए तैयार होने लगी। आज नाश्ता भी खुद ही खत्म किया और वो भी बिना कुछ कहे।
सब उसको देख के अचंबित हो रहे थे।
तभी रिया की माँ उसके पास आयी। बेटा, तुम ठीक हो?
बस फिर क्या था। रिया फुट फुट कर रोने लगी। उसको अपनी गलती का एहसास हो चूका था। उसने कहा, मुझे माफ़ कर दो माँ। मैंने आप सब को बहोत परेशांन किया।
माँ ने उसको सोफे पे बिठाया और कहा, बेटा, घुस्सा आना बहोत आम बात हैं। लेकिन बेवजह घुस्सा करने से अपना ही नुकसान होता है। जैसे तुम्हारा हुआ। इसिलए घुस्सा करना गलत बात हैं बेटा।
रिया अपने आंसू पोछकर हँसते हुए अपने स्कूल जाती हैं।
कपास का फूल
एक बहोत बड़ा खेत होता है। उसमे बहोत से अलग अलग तरह के अनाज उगे होते हैं। लेकिन सब में से कपास पे आने वाले फूल बहोत ही ज्यादा सुंदर और आकर्षित कर रहे थे। उनके रंगों से आकर्षित हो कर रंगीन तितलिया भी दिन भर खेतों में मंडराते रहती थी।
इस बात से कपास के फूल को बड़ा घमंड चढ़ा। वो बहोत इतरा रहा था। बाजु में गन्ने का भी खेत था। गन्ना इतना बड़ा होकर भी उसको तोड़कर खाया जाता था। उसपे कोई फूल नहीं आते थे। और जिस भी फसल पे फूल आते थे वो कपास से ज्यादा सुंदर नहीं थे। इसी बात पर कपास का फूल सब से लड़ झगड़ लेता था की, सब से सुंदर तो मैं ही हु।
कुछ दिन के बाद जब कपास के पेड़ पर फल पकड़ना चालू हुए। तब सभी फुल मुरझा कर गिरने लगे। तब कपास के फूल को इस बात से बड़ा दुःख हुआ। उसने अपने दिल की बात गन्ने को बताई। गन्ना बेचारा उसको समझाता लेकिन उसके नाराजी के सामने उसका समझाना काम न आया।
कुछ और दिन बित जाने के बाद गन्ने को अब काट के लेके जाने लगे। जुदाई का गम कपास के फूल को और भी सताने लगा। भले ही झगडा करता था लेकिन साथ में बगल में खड़ा तो था।
अब कपास के फूल को बहोत अकेला सा लगने लगा। अब कपास का फुल फल बनकर,सुख कर फूटने लगा था। सारे खेत पर सफ़ेद कपास की चादर फ़ैल गयी। कुछ दिनों में अब कपास को निकालने के लिए बहोत सारी औरते आयी। उन्होंने कपास को पेड़ से निकाल कर बड़े बड़े थैलों में भरा। कपास के सफ़ेद फूल का अब दम घुटने लगा था वहाँ। बादमे उस कपास को बड़े से मशीनों में डाला गया और रगडा गया। उससे कपास को बड़ा दर्द हुआ।
लेकिन उसके बाद कपास का सारा कचरा साफ हो गया। और वो दूध जैसा साफ़ दिखने लगा। अब उसको बड़ी सी गाड़ी में भर के अलग अलग जगह भेजा गया। अब उससे धागा बनाया गया। कपास को बहोत अजीब लगा लेकिन मशिनो में उल्टा पुल्टा घूम के बहोत मजा आने लगा। अब उस धागे से मुलायम सा कपड़ा बनाया गया।
कपडे को काट के अलग अलग जगह भेजा गया।
कोई कपड़ा कही किसी के सर को धुप से ढकता, तो किसी के मुह को धुल से बचाता। कोई कपडा मंदिर पंहुचा। कोई उस कपडे को भगवान को चढ़ाता तो कोई उसको अपनी आँखों से लगा कर पूजता।
कपास के फूल को ये सब देख कर बड़ा अछा लगा। उसने अब घमंड करना छोड़ दिया और खेत में सब से प्यार और भाईचारे से रहने लगा।
खूबियाँ सब में होती हैं
एक बार सुंदरबन में किसी दुसरे शेर ने अपनी पूरी सेना के साथ आक्रमण कर दिया। ऐसे पता चलते ही शेरखान ने जल्दी से सभा बुलाई।
अचानक आए इस बुलावे से सभी प्राणी और पंछी डर गए। उन सब को लगा की कोई मुसीबत तो जरुर आयी हैं इसलिए ऐसे हम सब को बुलाया गया है।
शेरखान बहोत ज्यादा चिंता में थे। सब लोग सभा में जमा हो गए। शेरखान सामने मंच पर चक्कर काट रहे थे। सभी ने एक साथ उनको पूछ लिया, महाराज, क्या कोई मुसीबत आयी है क्या? हम सब को ऐसे बुलाया गया हैं। क्या बात हैं?
शेरखान ने कहा, हमारे जंगल पे कोई दुसरे जंगल के शेर ने धावा बोल दिया हैं। मैं नहीं जानता की ऐसा कैसे हुआ। लेकिन अब ये सोचने के लिए समय नहीं है। हमें जल्द से जल्द सेना बनानी होगी। मैं तुम सब को मुसीबत में नहीं छोड़ सकता। शेरखान की बातो में सब के लिए चिंता साफ़ दिख रही थी।
शेरखान ने सभा में मंत्री से बात कर के सभी को लढाई में क्या करना हैं बताना चालू किया। लेकिन उन सब में भोलू कुत्ता, रिंकू खरगोश, ढोलू गधा और मीनू गिलहरी को शामिल करने से सब नाराज हो गए। शेरखान ने सब को नाराजी का कारण पुछा।
तभी मोटू हांथी बोला, शेरखान, मुझमे बहोत ताकद हैं। मैं सब को एक साथ मार सकता हु लेकिन ये आपने कुत्ते, गधे, खरगोश और उस गिलहरी में आपने क्या देखा? वो अपने किसी काम नहीं आने वाले। कुत्ता डर के भाग जायेगा, गधा भी डरपोक ही हैं। ये खरगोश और गिलहरी तो मेरे चलने की आवाज से भाग कर छूप जाते हैं।
शेरखान ने सब शांति से सुन के कहा, मैंने ये फैसला कुछ सोच के ही लिया हैं। भोलू कुत्ता बहोत ताकदवर नहीं हैं। लेकिन वो बड़ा वफादार हैं। कोई भी काम इमानदारी से करेगा। मुझे ऐसे वफादार की जरुरत हैं लढाई में। वही रिंकू खरगोश और मीनू गिलहरी बहोत तेज दौड़ते हैं। उनको पकड़ना किसीके बस की बात हैं क्या? वो समाचार देने का काम करेंगे। खरगोश जमींन पे तो गिलहरी पेड़ो से होते हुए मेरे पास आएंगे। और रहा ढोलू गधे का। अरे, ढोलू का आवाज कभी सुना हैं? शेर की दहाड़ जैसा उसका आवाज हैं। वो दूर से हम सब को आगाह करेगा। और उसकी पीछे के पैरो से दुश्मन के मुह तोड़ देगा।
शेरखान की सुझबुझ पे सबको आज यकींन हुआ। हर एक में कोई न कोई खूबीयां होती है। ये सबको आज पता चला। मोटू हांथी ने सबकी माफ़ी मांगी और लढाई के लिए तयारी करने लगे।
लढाई हुई और शेरखान ने बाहर के शेर को सुंदरबन में घुसने नहीं दिया। बाहर से ही भगा दिया। सब ने एक दुसरे का साथ देते हुए अपने जंगल को बचा लिया था।
दोस्ती
एक गाँव में दो दोस्त रहते थे। एक का नाम था नीरज और दुसरे का नाम था सोहेल। दोनों की इतनी गहरी दोस्ती थी की सब उनकी दोस्ती की मिसाल दिया करते थे। दोनों बचपन से एक साथ बड़े हुए। साथ में स्कूल भी गए। दोनों एक दुसरे का साथ कभी नहीं छोड़ते थे। जो भी खाते मिल बाँट के खाते। ऐसी गहरी दोस्ती थी।
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जिनको इन दोनों की दोस्ती से बड़ी जलन होती थी। वो तो इसी फ़िराक में थे की कब इनकी दोस्ती में दरार आ जाये और कब इनकी दोस्ती टूट जाये।
उन्ही के गाव में चरण नाम का लड़का रहता था। घर में अमिर होने से जरा बिगडेल था। बड़ो का सम्मान क्या होता हैं ये शायद उसको घर में नहीं बताया गया था। इसलिए वो स्कूल में अपने टीचर से बुरा बरताव करता था। उसको भी नीरज और सोहेल की दोस्ती से बड़ी जलन होती थी। चरण के पीछे उसके दोस्त घूमते रहते थे लेकिन वो सब पैसे के लिए। मतलब वो उनपे खर्चा करता इसलिए उसके दोस्त उसके आसपास मख्खी की तरह भिनभिनाते रहते थे। ये चरण को भी पता था की ये उसके सच्चे दोस्त नहीं हैं।
चरण अपने दोस्तों से मिलकर नीरज और सोहेल की दोस्ती तोड़ने का एक रास्ता खोजता हैं। वो नीरज के पास जाता हैं और कहता हैं, अरे नीरज यार,तू कैसा हैं? अपने से बराबरी वालो में रहा कर। तू आमिर हैं और अछे घर का हैं। तू कहा सोहेल जैसे भिकारी लोगो के साथ घूमता हैं। ये तुझे शोभा नहीं देता। तू मेरे साथ रहा कर।
ऐसा सुनते ही नीरज को थोडा अजीब लगा लेकिन उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
कुछ दिन और जाने के बाद चरण ने अपना दूसरा दाव फेंका। अरे सुन नीरज, ये मैं क्या सुन रहा हु यार? सोहेल तेरे बारे में उलटी सीधी बातें कर रहा हैं। तू कैसे सह लेता हैं? मैं अगर झूठ बोल रहा हु तो तू स्कूल में किसीसे भी पूछ ले।
अब नीरज से रहा नही गया। शायद सब सही बोल रहे हो। उसने सोहेल से बिना कुछ बोले दुरी बनाना चालू किया। सोहेल को इसमें से कुछ भी पता नहीं था।
लेकिन एक दिन जब चरण और उसके साथी दोस्त एक दुकान पर कुछ खाने गए। साथ में नीरज भी था। चरण और उसकी टोली ने दुकान से कुछ खाने की चीज चुराई। इतने में दुकान वाले की नजर उनपे पड़ी। लेकिन चरण ने वो सब कुछ नीरज के कहने से किया ऐसे बोल के नीरज के ऊपर डाल दिया।
नीरज बेचारा मार खाता रहा और चरण वहा से भाग खड़ा हुआ।
तभी सोहेल वहाँ पहुच जाता हैं। सोहेल अपनी जेब में से पैसे दुकान वाले को देता हैं और नीरज को मार खाने से बचा लेता हैं।
नीरज की आंखे खुल जाती हैं। और कहता हैं, मुझे माफ़ करना मेंरे दोस्त। मैं उस चरण के बहकावे में आ गया था और अपनी सच्ची दोस्ती पे मैंने शक किया। तुही मेरा सच्चा दोस्त हैं।
सोहेल अपना हाँथ नीरज के बगल में डाल के उसको उठाता हैं। और अपने साइकिल पे बिठा के घर लेके जाता हैं।
मुर्ख बन्दर और चिड़ियाँ की कहानी
एक जंगल में बड़ा पीपल का पेड़ था। वहा बहोत सारे पंछियों का डेरा होता था। साथ साथ वहां कुछ बन्दर भी रात में हुल्लड़ करने आ जाते थे। रात भर रुक कर दिन भर जंगल में घूमते रहते थे।
जहा सारी चिड़ियाँ सुबह उठ कर जंगल में जा कर अपने लिए और अपने बच्चो के लिए खाने का इन्तेजाम करते, वही ये सारे बन्दर बस किसी की नक़ल उतारो या किसको तंग करो इसीमे व्यस्त रहते थे।
एक दिन भरी दोपहर में जब चिड़ियाँ दूर जाकर अपने घोंसले के लिए घास के तिनके ले आयी। तब बन्दर मस्त पैर फैला कर सोया पड़ा था। चिड़िया ने एक बन्दर से पूछा, बन्दर भाई, सब जानवर अपना घोंसला बनाने में लगे हैं। अभी कुछ दिन में बारिश चालू होने वाली हैं। लेकिन आप सब को जैसे कोई फिकर नहीं। बारिश में कहा जाओगे आप लोग।
चिड़िया का ज्ञान सुन के बन्दर को बहोत घुस्सा आया, उसने कहा, ऐ चिड़िया, अपने काम से काम रख। तुझसे दो बाते क्या कर ली मैंने तू खुदको बहोत होशियार मत समझ। और मुझे ज्ञान मत दे। मैं बना लूँगा अपना घर। उसमे वक़्त ही कितना लगता है। मेरे दो हाँथ हैं। तुझे तो वो भी नहीं हैं। ऐसा कहकर सरे बन्दर जोर जोर से हंसने लगे।
चिड़िया ने कुछ कहने से पहले बन्दर फिर से बोला, दोपहर बहोत हो चुकी हैं। मुझे सोने दे और जाकर तू भी सो जा।
ऐसे कुछ दिनों में तेज हवा चालू हुई। बारिश के आने का समय आ गया। चिड़िया अपने घोंसले में जाकर छूप गयी। बहोत जोर की हवा चलने लगाती हैं। साथ में जोरो की बारिश भी लेकर आयी। रात भर तूफान चलते रहता हैं। बन्दर बेचारा रात भर बारिश में भीगते रहता हैं और उसके थमने का इंतेजार करते रहता हैं। सुबह होते ही जब बारिश रुकी तब चिड़िया ने देखा की बन्दर अपनी भीगी हुई पूंछ को सुखाने की कोशिश कर रहा था। तभी वहा चिड़िया आयी।
अरे बन्दर भाई, तुम भीग गए क्या? मैंने तो तुम्हे पहले ही कहा था की अपना घर बना लो।बारिश आने वाली हैं। लेकिन आपने मेरी एक बात भी नहीं मानी। अब भुगतो और हँस के चली गयी।
बन्दर को बहोत घुस्सा आता हैं। वो घुस्से से चिड़ियाँ का घोंसला तोड़ देता हैं और वहां से भाग जाता हैं।
घोंसला टूटता हैं और साथ में चिड़िया भी बुरी तरह घायल होती हैं।
निचे पड़े घोंसले को देख के चिड़िया बहोत रोती हैं। और अपनी गलती पे खुद को कोसती हैं। वो उस मुर्ख बन्दर को समझाने गयी और अपना नुकसान कर बैठी।
इसलिए कभी मुर्ख लोगो के साथ बहस नहीं करनी चाहिए। उसका परिणाम हमें बेवजह भुगतना पड सकता हैं।
चालाक लोमड़ी और दुष्ट शेर की कहानी
एक जंगल में एक दुष्ट शेर रहता था। बेवजह मासूम जानवरों को मारना अब उसका खेल हो गया था। ऐसा था की कोई भी जानवर बिना डरे जंगल में घूम नहीं सकता था। हर तरफ एक डर का माहोल था।
शेर का कुछ करना पड़ेगा ऐसे सब बोलते थे लेकिन उससे लढने की हिम्मत किसी में नहीं थी। उसके इस अत्याचार से परेशां होकर जानवर अब जंगल छोड़ कर जाने का सोच रहे थे।
एक बार टिकू हिरन अपने बच्चियो के साथ जंगल में खेल रही थी। शेर ने चुपके से सब देख लिया था। उसका खेलना होते ही वहा पहुच गया। अब किसीको तो उसका शिकार होना ही था।
उस दुष्ट शेर ने कहा, अब मरने के लिए तैयार हो जाओ। पहले कौन मरेगा बताओ?
टिकू हिरन अपने बच्चो को मरने कैसे दे सकती थी। उसने अपनी जान की परवाह नहीं की। और शेर से अपने बच्चो की जान की भींख मांगी। लेकिन शेर ने उसकी एक न सुनी। फिर उसने बच्चो को जाने दिया और टिकू हिरन को अपना शिकार बनाया।
ऐसे माहौल में जानवर मरने के आतंक में जीवन गुजार रहे थे।
टीटू लोमड़ी कुछ दिन के लिए बाहर गयी थी। जंगल आने के बाद उसको ये सब बाते पता चली। टीटू बहोत चालाख और चतुर थी। अपने नाम के साथ वो अपने काम से जंगल में पहचानी जाती थी।
टीटू के आते ही सारे जंगल निवासी उसके घर पे जमा हो गए। सभी कहने लगे, टीटू दीदी, अब तुम ही हो। तुम ही हमें इस दुष्ट शेर के चंगुल से बचा सकती हो। कुछ करो अब।
टीटू ने थोडा वक़्त माँगा। वो अपने घर में सोचती रही और फिर कुछ देर के बाद वो बाहर आयी। उसने सबको यकींन दिलाया की उनको शेर से मुक्ति मिलेगी।
वो सुबह होते ही शेर की गुफा की और गयी। शेर सो रहा था। कुछ जानवारो की मदत से एक ऐसी बड़ी लकड़ी का फ़ांस बनाया जिसमे से टीटू लोमड़ी तो निकल जाये लेकिन शेर अटक जाये। वो लकड़ी उसने शेर की गुफा के बाहर ऐसे गाढ दी जैसे कोई पेड़ हो और शेर को कोई शक न हो।
अब सब कुछ सही चल रहा था।
टीटू लोमड़ी ने अब शेर की गुफा के सामने शेर को जोर की आवाज के साथ बुरा भला कहना चालू किया। सुबह सुबह लोमड़ी की आवाज सुन के शेर बाहर आया। और जोर से दहाड़ने लगा। ऐ लोमड़ी, तेरी इतनी हिम्मत? तू मुझे बुरा भला सुनाये। तुझमे इतनी हिम्मत कहा से आ गयी?
टीटू ने भी जरा हिम्मत कर के कहा, ऐ दुष्ट शेर, जंगल के सभी जानवर तुझसे नफरत करते हैं। तुझे जरा भी दया नहीं हैं। तेरा अंत करीब आ गया है। तुझमे हिम्मत हैं तो मुझे पकड़ कर दिखा।
एक छोटी सी लोमड़ी की इतनी हिम्मत देख के शेर का घुस्सा सातवे आसमान पे पहुच गया। वो बिना कुछ देखे टीटू के पीछे भागा।
शेर को आते देख टीटू उस फ़ांस की तरफ भागा। और शेर के पीछे आते ही वो उस लकड़ी से होकर बाहर निकल गया। लेकिन शेर उसमे फंस गया।
बहोत जोर लगाने पर भी वो वहा से निकल नहीं पाया। वही लटकने से और भूखप्यास से उस दुष्ट शेर की मौत हो गयी।
टीटू की होशियारी और चालाकी से उस दुष्ट शेर से मुक्ति मिल गयी। सारे प्राणी अब चैन की सांस ले सकते थे। सब ने टीटू का धन्यवाद् किया और ख़ुशी से नाचने लगे।
दुखी मोर की कहानी
एक बहोत ही बड़ा जंगल था। वहां बहोत तरह के जानवर थे, और कई तरह के पंछी भी थे। सब एक दूसरे से मिलजुल कर रहते थे। उसी जंगल में एक मोर भी था। वो हमेशा से दुखी रहता था। उसको सब ने बहोत समझाने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी।
एक दिन की बात हैं, वो मोर पेड़ के नीचे उदास बैठा था। तभी वाहा से कोयल गुजरी। उदास मोर को देख के उससे रहां न गया। वो वापस आयी और बोली, मोर भाई, मोर भाई कैसे हो?
मोर ने कोयल को बिना देखे ही जवाब दिया, हा…मैं ठीक हु।
कोयल ने फिर से उस मोर को पुछा, मैंने देखा के आप तबसे बहोत उदास बैठे हो। कोई परेशानी हो तो मुझे बताओ। शायद मैं आपकी कोई मदत कर सकू।
कोयल की बाते सुन के मोर उठ के खड़ा हो गया, देखो! ये हैं मेरी परेशानी उसने अपने पैरो को सामने किया और कोयल को दिखाने लगा। ये हैं मेरी असली परेशानी की जड़। अरे, मेरे पैर तो देखो कितने ख़राब हैं। कोई देखता भी नहीं। तुम्हारे पास तो मधुर आवाज हैं। सब तुम्हारी आवाज की तारीफ करते हैं। और मुझे सब चिढाते हैं।
कोयल को बात समझ आ गयी। वो बोली, अरे मोर भाई, आप भी न। अरे सबसे अछी चीज आपके पास हैं उसको तो आप बिलकुल भी भूल गए। आपके पास दुनियां के सबसे बेहतरीन, लाजवाब और सुंदर रंगों से भरे पंख हैं जो किसी भी पंछी के पास नहीं। आपको तो खुश होना चाहिए। और आप हैं के पैरो को लेके बैठे हो।
मोर की आँखे खुल गयी। उसको अपनी गलती का पता चल गया। उसने अपने पंखो की तरफ देखा। और बहोत खुश हुआ। उसके सवाल का जवाब उसको मिल गया था। अब वो बिलकुल भी नाराज नहीं था।
घने बादल घिर के आ गए थे। बादलो में बिजली चमक उठी थी। तभी मोर ने अपने बेहद सुंदर पंख फैलाये। और नाचने लगा। सभी प्राणी और पक्षी तालिया बजा रहे थे। आज कोई भी उसके पैरो को नहीं देख रहा था। सब उसके रंगों भरे पंखो की तारीफ कर रहे थे।
मुर्गी और गिद्ध की कहानी
एक जंगल में बहोत बड़ा पीपल का पेड़ था। वहाँ बहोत से पंछियों का डेरा था। वो पेड़ इतना विशाल था के एक गुफा जैसा बन गया था। दिन में सूरज की गर्मी कितनी भी हो लेकिन उस पेड़ के निचे शांत और ठंडी छाव मिलती थी। इसलिए पेड़ के निचे भी बहोत से जानवरों ने अपना घर बना लिया था।
उसी पेड़ पर एक बड़ी सी डाल पर एक गिद्ध ने अपना घर बनाया था। गिद्ध बहोत ताकतवर था। इसलिए सब उसको देख कर दुबक जाते। उसके ठीक निचे जमींन पर मुर्गी ने भी अपना घर बना लिया था। कुछ दिन बित गए।
ऊपर गिद्ध ने अंडे दिए थे। इधर मुर्गी ने भी अंडे दिए थे। लेकिन एक दिन बड़ा तूफान आया। किसीके घर उड़ गए तो कोई निचे गिर गया। उसी में गिद्ध का एक अंडा ऊपर से आके मुर्गी के घर में गिर गया। मुर्गी को ये खबर तक नहीं थी। और ना ही उस गिद्ध को।
मुर्गी ने अपने अंडो के साथ साथ गिद्ध का अंडा भी प्यार से रखा। कुछ दिन के बाद उसमे से बच्चे बाहर आये। ऊपर गिद्ध के भी बच्चे बड़े हो रहे थे। मुर्गी ने सारे बच्चो को अपने मुर्गी वाले ढंग में ही पालना चालू किया। गिद्ध का बच्चा भी अपने भाई लोगो के साथ चरने जाता और घर वापस आता।
कुछ दिन के बाद मुर्गी के बच्चे बड़े हुए। गिद्ध के बच्चे ने ऊपर उड़ते गिद्ध के बच्चो को देखा और अपनी माँ मुर्गी से एक सवाल किया,
माँ, ऊपर जो रहते है वो कैसे उड़ते हैं?
मुर्गी ने कहा, क्यों की वो गिद्ध हैं। वो उड़ सकते हैं।
फिर गिद्ध के बच्चे ने सवाल किया, हम क्यों नहीं उड़ सकते?
मुर्गी ने जवाब दिया, क्यों की हम मुर्गी हैं।
हम जैसे पलते हैं और बढ़ते हैं, हमारी आदते भी वैसी हो जाती हैं। और हम अपनी क्षमता को भी पहचान नहीं पाते। इस लिए हमें अपने अन्दर झांक कर देखना चाहिए।
अति-विश्वास की कहानी
दूर पहाड़ों के पार मैदानों में दो बहोत ही सुंदर राज्य हुआ करते थे। चारो तरफ से ऊँची पहाड़िया और बर्फ से लदे हुए उनके शिखर देखने से मन खुश हो जाता था।
उन्ही पहाड़ों की गोद में एक नदी बहती थी। नदी के एक बाजु में विजयगढ़ नाम का राज्य था। और नदी की दूसरी तरफ रामगढ़ नाम का राज्य था। दोनों राज्य में बहोत शांति थी। सारी प्रजा सुख से जीवन बिता रही थी। लेकिन एक दिन अचानक दोनों राज्य में छोटी सी बात पर झगडा चालू हुआ। बात इतनी बढ़ गयी की दोनों राज्य लढाई के लिए तयार हो गए।
लढाई का दिन आया। सभी लोग पहले भगवान की पूजा करने नदी के किनारे वाले मंदिर पहुचे। वहां भविष्य बताने वाली एक बुढिया थी। वो सब का भविष्य बताती थी। खास बात ये थी की वो अंधी थी।
लोगो ने पूजा की और फिर उस बूढी से भविष्य जानने के लिए जमा हो गए। उसको पुछा गया की कोन सा राज्य लढाई जीतेगा। उसने ऐसे ही हाँथ उठाया। उस बाजु में विजयगढ़ वाले खड़े थे।
फिर क्या था? विजयगढ़ के लोग ख़ुशी से झूम उठे। वो खूब त्यौहार मनाने लगे और आराम फरमाने लगे। उनको पता था की जीत तो उनकी ही होनी हैं।
इधर रामगढ़ के लोग निराश होकर अपने राज्य पहुचे। सब में यही बात चल रही थी की जब हारना ही हैं तो लड़ना कैसा?
लेकिन रामगढ़ के राजा बहोत ही हिम्मतवाला था। उसने अपने सैनिको में नया रोमांच भर दिया। जब तक हम हारते नहीं तब तक हम जीते हुए हैं। यही बार बार सबको बताता था। सब सैनिक जी जान से लढाई में उतरे। और जीत भी गए।
किसीको यकींन नहीं हुआ। रामगढ़ जीत गया था। विजयगढ़ के लोग फिर से उसी बुढिया के पास गए और पूछा, हम तो जीतने वाले थे लेकिन, हारे कैसे?
बुढिया बोली, मैं तो देख नहीं सकती। मैंने मेरा जो हाँथ ऊपर उठता हैं उसको ऊपर कर दिया। उधर कौन खड़ा था ये मुझे नहीं पता था। अति-विश्वास से विजयगढ़ वाले हारे हैं। अगर मेहनत करते तो शायद जीत भी जाते।
सब को समझ आ गया था। अति-विश्वास करना बुरा होता है।
सुनो सबकी करो मन की
एक बार दो मेंढक की दौड़ चालू थी। दोनों मेंढक बहोत ही ज्यादा तगड़े थे और ताकदवर भी थे। दौड़ तालाब से होकर, मिटटी के खदान से घूम कर वापस तालाब पर आना था।
दौड़ देखने मेंढक के रिश्तेदार और सभी दोस्त भी आये थे। दौड़ चालू हुई। दोनों बहोत जोर से कूदते हुए जा रहे थे। अब खदान का इलाका चालू हुआ। वहां बहोत बड़े बड़े मिटटी के गढ़े थे। कभी कभी तो दोनों फिसलते और फिर उठकर भागने लगते।
लेकिन अचानक दोनों मेंढक एक बड़े से गढे में जा गिरे। वहां बहोत फिसलन थी। दोनों ने बहोत प्रयास किया लेकिन कोई भी ऊपर चढ़ नहीं पाया।
सारे मेंढक के दोस्त गढ़े के ऊपर जमा हो गए। सभी चिल्ला रहे थे की गढ़ा काफी बड़ा हैं और अब तुम्हारा वहां से बाहर निकलना काफी मुश्किल हैं।
ये सुन के एक मेंढक रोने लगा और एक जगह जाकर बैठ गया।
लेकिन अचानक दूसरा मेंढक जमकर कोशिश करने लगा। वो कूदता और फिसलता। गिरता और फिरसे उठता। उठकर जोर लगा कर कूदने की कोशिश करता।
ऊपर से सारे मेंढक चिल्ला रहे थे, तुमसे नहीं होगा। कोशिश करना बेकार हैं।
मेंढक ऐसा करते करते जोर लगा के उपर आ गया। सब देख कर चौक गए। एक ने उसको पुछा, जब सभी मेंढक चिल्ला रहे थे की ,तुमसे नहीं होगा। तुम्हारी कोशिश बेकार हैं। लेकिन तुमने कर दिखाया। कैसे?
वो मेंढक बोला, मुझे दूर का कम सुनाई देता हैं। जब तुम सब ऊपर से चिल्ला रहे थे, तो मुझे लगा की सब मुझे ऊपर आने के लिए प्रोत्साहन कर रहे थे। इसीलिए मैंने अपनी पूरी ताकद लगा दी और ऊपर आ गया।
मेंढक ने कम सुनाई देने की वजह से ही सही लेकिन,लोगो की बातों को नजरंदाज किया और अपनी कोशिश जारी रखी। और वो सफल हुआ।
भेड़ की खाल में भेड़िया
राजापुर नाम का एक छोटा सा गाव था। वहाँ भेड़ चराने वाले लोग रहते थे। उनका तो बस एक ही काम था। सुबह उठना और अपने खाने पिने का सामान उठाकर अपने भेड़ों को लेकर जंगलो में जाना। दिन भर वही रहकर शाम को थके हारे घर आते थे। और जल्दी सो जाते थे। वो अपनी भेड़ों का बहोत ख्याल भी रखते थे। रात को उनमे से एक आदमी भेड़ों के बगल में सोता था। ताकि कोई भेड़िया उनको उठा न ले जाये।
एक दिन भेड़ों को जंगल से वापस आते आते शाम हो गयी। ठंडी के दीन थे। अँधेरा जल्दी हो गया। लेकिन जब सभी भेड़ घर पहुचे तो एक भेड़ गिनती में कम थी। बहोत ढूंडा लेकिन नहीं मिली। अब सभी ने सोच लिया की, एक तो वो रास्ता भटक गयी या फिर भेडिये ने उसको पकड़ लिया होगा और मार डाला होगा।
रातभर किसीको नींद नहीं आयी। सुबह उठकर भेड़ जंगल चले गए। इधर जंगल में वो भेड़ घूम रहा था। उसको देख के भेडिये ने उसको शिकार बनाया। उसकी खाल निकाल ली और अपने ऊपर ओढ़ ली। और फिर वो भेड़ों की झुन्ड में शामिल हो गया।
शाम को जब गिनती हुई तब भेड़े बराबर थी। चरवाहा भी खुश हो गया की उसकी भेड़ वापस आ गयी।
लेकिन दुसरे दिन से रोज एक भेड़ गायब होने लगी। चरवाहा बेचारा बहोत परेशांन रहने लगा। उसने सभी जगह ढूंडा लेकिंन भेड कही नहीं मिले। वो रोता और अपने आप को कोसते रहता।
उसने सोचा की अब इसका पता लगाना ही पड़ेगा। वो अब भेड़ जहा रोज जाते थे वाहां चुपके से जाने लगा। उनको चरते हुए देखने लगा।
उसने देखा की एक भेड़ सभी भेड़ों से बहोत अलग दिख रही हैं। और वो भेड़ दुसरे भेड़ों को मार रही हैं। जब उसने पास में जाकर देखा तो वो चौक गया।
हे भगवान, ये मैं क्या देख रहा हु? ये तो कोई भेड़ की खाल में भेड़िया हैं। जो मेरे ही भेड़ो के साथ रहकर उन्ही को मार रहा हैं।
उसने अपने साथी चरवाहों को बुलाया। सभी लोगो ने चारो तरफ से घेरा बनाया। सबके हांथो में लकड़ी थी। जैसे ही वो भेड़िया पास में आया सब ने उसको पीटना चालू किया। बेखबर भेडिये के लिए ये सब इतना अचानक हुआ की वो संभल नहीं पाया।
भेडिये का मुह सूज गया और पैर की हड्डी भी टूटी। वो अपनी जान बचा के जंगलो में भागा। इसतरह भेड़ों को भेडिये डर से आझादी मिल गयी।
चींटी और कबूतर की कहानी
धोलपुर नाम का एक बड़ा जंगल था। वहां भालू, भेडिये, शेर, चीते थे। और हजारो किस्म के पंछी भी थे। वो जंगल शिकार के लिए बड़ा ही मशहूर था। बड़े दूर से शिकारी लोग वहां आते थे और अपने शिकार का हुनर आजमाते थे।
एक बार की बात हैं, सोनी चीटी अपने घर में अपना खाना जमा कर रही थी। उसको बारिश के पहले ढेर सारा खाना जमा करना था। ताकि उसको बारिश में बाहर न निकलना पड़े। वो खाने की तलाश में इधर उधर घूम रही थी की अचानक उसका पैर फिसला और वो पानी में गिर गयी। तालाब बहोत गहरा था। वो बहोत हाथ पैर मार रही थी लेकिन उसको कुछ भी सहारा नहीं मिल रहा था। आखिर वो थक के चूर हो गयी।
ये सब पेड़ पे बैठे एक कबूतर ने देख लिया। उसको चीटी की दया आयी। उसने अपनी चोंच से एक पत्ता तोडा और पानी में डाला। वो बराबर चीटी के पास जाकर गिर गया। चीटी को सहारा मिल गया।। वो उसपे चढ़ कर धीरे धीरे पानी से बहार निकली। उसने मन ही मन में उस कबूतर को धन्यवाद् किया।
बहोत दिन बीत गए। बारिश का मौसम आकर चला गया। अब जंगल घने हो गए थे। अब शिकारी भी आने लगे थे। एक दिन एक शिकारी आया। उसको दिन भर घूम कर एक भी शिकार नहीं मिला। वो घुस्से से पागल हो चूका था। खाली हाँथ जाने के डर से वो अपना घुस्सा कभी पेड़ पर तो कभी अपने आप पर उतार रहा था।
तभी उसको एक पेड़ पे कबूतर बैठा दिखाई दिया। उसने अपनी बन्दुक से निशाना लगाया।
ये सब सोनी चीटी के सामने चल रहा था। सोनी ने देख लिया था कबूतर को।
हे भगवन! ये तो वही कबूतर हैं जिसने मेरी जान बचायी थी। मुझे जल्दी से कुछ करना होगा सोनी चीटी भागते हुए उस शिकारी के पैर पर चढ़ी। और अपनी बारी का इंतेजार करने लगी।
अब गोली चलने वाली थी की तभी…..
आऊऊऊ……..बापरे……..चीटी………
उसके पैर को चीटी ने काटा था। वो अपना पैर सहलाते हुए चिल्लाया। उसका निशाना चुक गया था। गोली चलने की आवाज से कबूतर उड़ गया था।
सोनी चीटी ने अपना हिसाब पूरा किया। उसने आज कबूतर की जान बचायी थी।
घमंड करना अच्छा नहीं होता
सरिता नाम की एक बड़ी नदी बहती थी। उसके बगल में घने जंगल थे और एक बाजु खेत थे। उसी नदी की वजह से लोगो को साल भर पिने का शुद्ध पानी और खेती सींचने के लिए भी यही पानी से सबका काम चलता था। आसपास की सभी बंजर जमीं को इस नदी की वजह से हरियाली मिली थी।
नदी किनारे बड़े बड़े पेड़ खड़े थे। उसमे भी एक बहोत बड़ा और सबसे ऊँचा पेड़ खड़ा था। उसको अपनी ऊँचाई पे बड़ा घमंड था। वो आजू बाजु वाले सभी पेड़ो को चिढाता। कभी उनको बराबरी में नहीं देखता था। वो जमीं पे उगी हुई घास को तो बहोत सताता था।
ऐ घास, ऊपर देखो यहाँ। क्या नजारा हैं। दूर तक नदी किनारा, पंछी, नीला आसमान, और ठंडी हवा। और तो और तुमने कभी उगता हुआ सूरज देखा हैं?
घास बोली, नहीं पेड़ भाई। हम ठहरे जमींन पर रहने वाले। हमें क्या पता ऊँचाइयो पे क्या होता है। वो तो आपको पता होगा ना।
इस बात पे पेड़ जोर जोर से हंसने लगा। हाहाहा…….हाहाहा….ये बात तो तुमने बिलकुल सही बोली। तुम इतना ऊँचा देख भी नहीं सकती। तुम तो जिंदगी भर जमीं पर ही रहोगी।
उसने कभी किसीको नहीं छोड़ा। सबको चिढाता रहता था।
एक दिन बहोत घने बादल घिर कर आ गए। बहोत बारिश हुई। उसके बाद तेज हवा चलने लगी। सभी पेड़ हवा से बचने के लिए झुक चुके थे। लेकिन बड़ा पेड़ अपने ही घमंड में खड़ा था। उसको अपने ऊपर बहोत भरोसा था।
मुझे कुछ नहीं होगा। कितनी भी तेज हवा आये, चाहे कितने भी तूफान आये। मैं नहीं झुकूँगा। ऐसा कहकर वो अकड कर खड़ा रहा।
एक तेज आंधी आयी और वो बड़ा पेड़ आधे से ही टूट कर जमीं आके गिर गया। वो अब घास के पास गिरा पड़ा था। उसको अब सब कुछ ऊँचा लग रहा था।
घास ने कहा, पेड़ भाई, हम भले ही छोटे हैं। लेकिन हम सब तूफान में झुके थे इसलिए बच गए।
इसीलिए कहते हैं की, घमंड करना अच्छा नहीं होता।
सच्ची दौलत
दौलतपुर नाम का बड़ा सा एक शहर था। वहां एक हीरे का व्यापारी रहता था। बहोत पैसा होने के साथ साथ वो बड़ा दयालु था। लोगो को अनाज बाटना, कपडे बांटना ये सब काम वो हमेशा करते आया था। उसका एक बेटा भी था। व्यापारी उसको सब कुछ देता जो उसको जीवन में कभी नहीं मिला। वो चाहता था की मेरा बेटा भी जीवन की सच्ची दौलत क्या होती हैं ये समझे। वो हमेशा यही कोशिश करते रहता था।
एक दिन हीरे के व्यापारी ने अपने बेटे के साथ अपने पुराने गाव जाने की सोची। ये बात जब उसने बेटे के सामने रखी तो वो भी तुरंत राजी हो गया। उसको भी गाव का जीवन कैसा होता है ये करीब से देखने का मौका मिलने वाला था। दोनों ने अपना सामान पकड़ा और गाड़ी मैं बैठ कर गाव की की ओर चल पड़े।
गाव पहुच कर व्यापारी के बेटे ने सबसे जान पहचान की। वो जिनके यहाँ गए थे वो लोग बहोत ही गरीब थे। वो अपने बराबरी के लडको में खूब खेला और मस्ती की। उनके साथ नदी में डूबकी भी लगायी। पेड़ से आम तोड़े, गाय का दूध अपने हाथो से निकाल कर पीया, खेतो में इधर उधर भागा। खेतो से सब्जी तोड़कर खाना बनाने में सबकी मदत भी की। रात को खुले आसमान के निचे वो कभी सोया नहीं था। इसी बहाने ये भी इच्छा उसकी पूरी हुई।
दुसरे दिन जब घर वापस जाने का वक़्त आया तब उसका मन बहोत भारी हो गया था। उसके पैर मुड नहीं रहे थे। जाने का मन नहीं हो रहा था। लेकिन जाना पड़ा।
गाड़ी में बैठकर उसने अपने नये दोस्तों को अलविदा कहा। गाड़ी चल पड़ी। कुछ दूर जाकर व्यापारी ने अपने लड़के की तरफ देखा। वो रो रहा था। उसने गाड़ी एक पेड़ के निचे रोकी। दोनों उतर गए।
व्यापारी ने अपने लड़के से पुछा, क्या हुआ? तुम उदास हो?
लड़के ने अपने पिता की तरफ देख के कहा, हमारे घर में एक कुत्ता हैं, लेकिन इनके पास तीन हैं। हम बड़े से घर में रहते हैं। मजबूत दिवारो के अन्दर हमें कोई डर नहीं। लेकिन यहाँ सब लोग खुले आसमान के निचे अपने दोस्तों से घिरे होते हैं। और वो खुश होते हैं। हम खाना खरिदते हैं लेकिन यहाँ खाना उगाया जाता हैं। हमारे पास घर में रंगीन रोशनी हैं लेकिन इनके यहाँ सितारों से भरा पूरा आकाश हैं। हम छोटे से बाथरूम में नहाते हैं और इनके यहाँ ताजे पानी के झरने हैं जो गाते हुए बहते हैं। वो संगीत अब भी मेरे कानो में गूंज रहा हैं पिताजी।
व्यापारी ने अपने लड़के को देखा।
उसने भी अपने पिता को देखा और कहा, सच्ची दौलत तो उनके पास हैं पिताजी। हम तो बहोत गरीब हैं।
व्यापारी की आँखों में आसू आ गए। वो खुद को रोक न पाया। उसने अपने लड़के को गले से लगा लिया।
व्यापारी ने अपने लड़के को सही शिक्षा दी थी ये सोच कर वो बहोत खुश हुआ।
लालची कुत्ता
बाहर बहोत तेज धुप थी। गर्मी के दिन चालू थे। सूरज आग बरसा रहा था। सारे पशु, प्राणी अपने अपने घरो में आराम कर रहे थे। लेकिन इतनी धुप में एक कुत्ता खाने के लिए भटक रहा था। उसको बहोत घुमने पर भी खाना नहीं मिला तो वो निराश होकर एक जगह जाकर बैठ गया।
दूर से कही से उसको रोटी की खुशबू आने लगी। उससे रहा नहीं गया। वो उसी तरफ भागा। उसको पक्का पाता था की यहाँ अब अपने खाने का इंतजाम हो जायेगा। वो कुछ देर बाद वहां पंहुचा। रोटी की सुगंध घर के अन्दर से आ रही थी। लेकिन बाहर कोई नहीं था। उसने आवाज लगाना चालू किया।
भूऊऊउ……भू……..
उसकी आवाज सुनकर एक औरत बाहर आयी। उसको लगा की बेचारा कुत्ता भूका हैं। वो अन्दर गयी और वहां से रोटी उठाकर लायी। और कुत्ते को डाल दी।
कुत्ते को यही चाहिए था। जैसे हो रोटी दिखी उसने लपक के अपने मुह में पकड़ी और जंगल की और भागा। उसने सोचा की अब जंगल में जाकर मैं आराम से खाऊंगा। यहाँ बैठा तो कौवे परेशां करेंगे।
अब वो जंगल पहुच गया। बाजूमे एक नदी बह रही थी। उसको बड़ी प्यास लगी थी। धुप भी बहोत थी। उसने जैसे ही पानी में देखा उसको पानी में एक और कुत्ता दिखा। उस के मन में लालच आ गया। उसके भी मुह में रोटी दिखी। कुत्ते को लगा की अगर इस कुत्ते के मुह की रोटी भी मुझे मिल जाये तो मजा आ जायेगा।
उसने पानी में दिखने वाले कुत्ते की ओर गुर्राना चालू किया। और जैसे ही उसने भोंकने के लिए मुह खोला, उसके मुह की रोटी पानी में जा गीरी। बहते पानी में वो रोटी को पकड नहीं पाया। बादमे जब पानी में देखा तो उसको वही कुत्ता दिखा, लेकिन उसके मुह में रोटी नहीं थी। वो समझ गया की, लालच में आकर उसने अपने हाथ आयी रोटी भी गवा दी। अब उसको भूके पेट ही रहना पड़ा।
इसलिए लालच कभी नहीं करना चाहिए।
कछुआ और गिद्ध की कहानी
एक बहोत बड़ा तालाब था। सारे पशु पक्षी वहां पानी पिने आया करते थे। उसी तालाब में एक चिंटू नाम का कछुआ रहता था। वो आने जाने वालो से बडे ही प्यार से बात करता था। उसका कहना यही था की कब कौन कहा काम आ जाये क्या भरोसा? इसलिए सबसे हमेशा घुल मिल के रहता था।
चिंटू का एक सपना था। उसको आसमान में उड़ना था। वो हमेशा कहता, आसमान में उड़ते हुए पंछी कितने अच्छे लगते हैं ना? उनको कितना मजा आता होगा ना?
वो तालाब पे जो भी पंछी आता उससे आसमान की ढेरो बाते करता। उनको वो पूछता, आसमान से जमींन कैसे दिखती हैं? क्या आपको मैं दिखता हु क्या? क्या ये तालाब भी दिखता है?
कुछ पंछी उसकी ये सब बाते सुन कर परेशांन होकर जल्दी से पानी पीकर उड़ जाते। लेकिन चिंटू अपनी बाते कभी बंद नहीं करता। वो सोते जागते आसमान में उड़ने का सपना देखते रहता।
एक दिन पास के पेड़ पर बहोत ही ताकतवर और खूंखार गिद्ध की सेना आ गयी। वो बहोत ही डरावने थे। जंगल में, तालाब के आसपास के जो भी जानवर मरते उनको मिनटों में खा जाते। उनके नुकीले पंजे और उससे भी खतरनाक उनकी चोंच। देखते ही किसीको डर लगे। वो जब भी तालाब पर आते तो अपनी लाल आँखों से एक बार चिंटू को देखते और पानी पीके चले जाते।
कुछ दिन ऐसे ही चला। उनके डर से उनसे कोई बात नहीं करता था।
लेकिन एक दिन चिंटू ने हिम्मत जुटाई, गिद्ध भाई, तुम कितने ताकतवर हो, तुम्हारे पैर कितने मजबूत हैं, और ये तुम्हारे पंख भी कितने बड़े हैं।
चिंटू की बातो से गिद्ध को बड़ा अच्छा लगा। उसको खुश होता देख चिंटू आगे बोला, मुझे तो लगता हैं की आप सारे पक्षी जाती में ताकतवर हो। आपको तो राजा कर देना चाहिए।
अब गिद्ध को बहोत अच्छा लगने लगा। उसने कभी अपनी इतनी तारीफ नहीं सुनी थी। उसने चिंटू से कहा, अरे कछुए, अब बस भी कर। कितनी तारीफ करेगा। अगर कोई काम हो तो बोल।
चिंटू को इसी बात का इन्तेजार था। उसने कहाँ, गिद्ध भाई, मुझे न आसमान में एक बार उड़ना हैं। आपकी तरह। क्या आप मेरी मदत करोगे?
गिद्ध को बात समझ नहीं आयी। उसने कहाँ, कैसे?
चिंटू बोला, आपको कुछ नहीं करना हैं। आप उड़ जाना। मैं आपके पैर को पकड़ के लटक जाऊंगा। बादमे मुझे यही उतार देना।
गिद्ध ने चिंटू से कहा, देख कछुए, तू उड़ नहीं सकता। अगर तू गिर गया तो ये मेरा जिम्मा नहीं। समझा क्या?
चिंटू ने जल्दी से हां कह दिया। उसने अपने मुह से गिद्ध के पैर को पकड़ लिया और गिद्ध उड़ने लगा।
निचे से ऊपर जाने की ख़ुशी चिंटू से सही नहीं गयी। वो इतना खुश हो गया की, ख़ुशी से उसकी चीख निकल गयी।
फिर क्या था। उसका मुह खुल गया और तेजी से वो जमीं पर आ गिरा। उसको बहोत मार पड़ी। शुक्र था की उसके पीठ पर कवच था इसलिए वो बच गया।
उसको अपनी गलती का एहसास हो चूका था। इसके बाद उसने उड़ने का कभी भी मन में नहीं लाया। और भगवान का शुक्रिया किया क्यों की वो आज जिन्दा था।
खुनी झील
सुंदरबन में अब नदी नाले सुखने लग गए थे। गर्मी के दिन चालू हो गए थे। पानी के लिए सभी जानवर अब तालाब पे जाने लगे थे। लेकिन उनमे से कोई भी उस खुनी झील की तरफ नहीं जाता था। खुनी झील काफी बड़ी थी और पानी भी बहोत था लेकिन वहां पानी पिने शेर भी डरता था।
सुंदरबन में टिंकू हिरन अभी अभी रहने आया था। वो बहोत ही फुर्तीला और ताकदवर था। उसके पैरो से वो लम्बी छलांग लगा सकता था।
वो घूमते हुए वही खुनी झील की तरफ गया। ठंडा पानी पीकर उसको बहोत अच्छा लगा। वही बाजु में उगी घास खाते हुए उसको पानी में बड़ी हलचल सुनाई दी। लेकिन वो डरा नहीं। वो डट कर खड़ा रहा। तभी उसने पानी में एक बड़ा सा मगरमच्छ देखा। वो तेजी से उसकी तरफ आ रह था। टिंकू ने झट से छलांग मारी और टीले पे खड़ा हुआ। उसको दूर जाते ही मगरमच्छ पानी में चला गया।
लेकिन पानी में मौत देख कर टिंकू को बाकि सबकी बड़ी चिंता हुई। वो भागता हुआ जंगल पहुचा।
रास्ते में उसको भालू मिल गया। उसको टिंकू ने कहा, भालू भय्या, अरे वो झील हैं ना…..उस झील में बड़ा मगरमच्छ हैं। वहां कोई न जाये। सबको बताने मैं जा रहां था।
भालू उसको समझाते हुए कहा, अरे टिंकू, तुम्हे नहीं पता। तुम नये हो यहाँ। वो खुनी झील हैं। जो भी पानी पिने जाता हैं वो वापस नहीं आता। लेकिन उसमे मगरमच्छ कभी किसीने नहीं देखा। या फिर जो भी गया वो जिन्दा नहीं बचा इसलिए किसीको पता नहीं चला। तुम बड़े नसीब वाले हो टिंकू।
फिर दोनों जंगल के राजा के पास गए। उन्होंने सारी बात उन्हें बताई। शेर राजा उनके साथ झील पे गया। साथ में हाथी और बहोत से जानवर साथ में थे।
झील पे सारे जानवर आते देख मगरमच्छ पानी में छुप गया। लेकिन उसकी ऊपर की खाल पानी के ऊपर दिख रही थी।
टिंकू ने ये देख लिया। भालू ने जोर से टिंकू से कहा, अरे टिंकू, तुम झूठ बोल रहे थे। यहाँ कोई मगरमच्छ नहीं हैं। ये तो लकड़ी हैं।
टिंकू ने भी जरा नाटक किया, अरे हां भालू भाई। अभी तो लकड़ी ही लग रही हैं। लेकिन मैंने मगरमच्छ देखा हैं। अपनी आँखों से देखा हैं।
तभी मगरमच्छ बोला, अरे मैं लकड़ी ही हु, लकड़ी। दिखता नहीं क्या?
ऐसे बोलते ही उसकी चोरी पकड़ी गयी। शेर राजा बहोत जोर से गुर्राया, ऐ मगरमच्छ, तू यहाँ से चला जा। ये हमारी झील हैं। तू कही और जा। वरना अच्छा नहीं होगा।
अपनी खैर नहीं देखकर मगरमच्छ झील छोड़ के चला गया। अब झील सभी के लिए खुली थी।
सभी जानवरों ने टिंकू को शाबाशी दी। और उसके चतुराई की तारीफ की।
डरपोक पत्थर
एक गाव में बहोत ही होशियार मूर्ति बनाने वाला रहता था। लोग उसकी मुर्तिया लेने दूर दूर आते थे। उसकी बनायीं मूर्तियाँ इतनी अछी होती थी की लगता था जैसे मूर्ति जिन्दा हैं।
उसका काम उसकी पहचान बन गयी। उसको देखने भी लोग आया करते थे। एक दिन गाव में मेला लगा। उस मेले में एक दूर गाव से बड़ा साहूकार आया था। उसको भी मूर्तियों का बहोत शौक था। उसने गाव में आते ही मूर्तिकार के बारे सुना था। वो उस मूर्ति बनाने वाले से मिलने चला गया।
उसने बनायीं हुई मुर्तिया देख कर वो साहूकार बड़ा खुश हुआ। आते ही मूर्तिकार को प्रणाम किया। और कहा, भाईसाहब, मैं बहोत दूर से आया हु। मुझे शंकर भगवान की मूर्ति चहिये थी। क्या आप बना के दे सकते हो? या आपके पास हो तो मैं अभी ले जाता हु।
मूर्तिकार बोला, मुझे माफ़ करो। अभी मेरे पास ऐसी मूर्ति नहीं हैं। लेकिन मैं ये मूर्ति दो चार दिन में बना के दे सकता हु।
साहूकार बोला, मैं दूर गाव से आया हु। मैं इतने दिन नहीं रुक सकता। अगर कल शाम तक मूर्ति मिल जाये तो तो मैं उसके अछे दाम भी दे सकता हु।
मूर्तिकार बोला, मैं पक्का तो नहीं बोल सकता लेकिन कोशिश करता हु।
साहूकार बाद में चला गया। मूर्तिकार उसके जाते ही काम में लग गया। उसने आजूबाजू देखा। उसके पास आज कोई भी अच्छा पत्थर नहीं था। और अभी नदी किनारे जाने का वक़्त नहीं था।
उसने देखा की एक पत्थर बहोत दिनों से घर के आंगन में पड़ा था। उसके ऊपर मुर्तिया टिकाके रखी थी।
मूर्तिकार ने सारी मूर्तियाँ हटाई। वो पत्थर मूर्तिकार को देखते ही डर गया। बोला, मुझसे मूर्ति मत बनाओ। मुझे हथोड़े से बहोत डर लगता हैं। छहनी के घाव से मुझे बहोत दर्द होगा। तुम कोई दूसरा पत्थर देख लो।
मूर्तिकार ने उस पत्थर से कहा, अरे, तुम डरो नहीं। तुम्हे जरा सी चोट से मैं एक भगवान का रूप दे दूंगा। लोग तुम्हे मंदिर में रखेंगे। रोज पूजा होगी तुम्हारी। सुख से रहोगे हमेशा।
मूर्तिकार की बात पत्थर के समझ आ गयी। वो मूर्ति बनाने के लिए तैयार हो गया।
दुसरे दिन जब साहूकार आया, मूर्ति देखकर बड़ा खुश हुआ। उसने अपने ख़ुशी से मूर्तिकार को इनाम भी दिया।
इसप्रकार डरपोक पत्थर एक मूर्ति बन गया और उसको एक नयी पहचान मिल गयी।
बेटी कभी बेटों से कम नहीं होती
रंजनपुर नाम के एक गाव में सुखीराम नाम का एक किसान था। वो नाम की तरह सुखी था। जो थोड़ी सी बची अपनी पुरखो की जमींन थी, उसमे वो खूब मेहनत करता और अपने परीवार का पालनपोषण करता। उसकी मेहनत की तारीफ सारा गाव करता। जब खेती से अनाज की उगाई हो जाये तो खेतो को वो खली पड़ा हुआ रहने नहीं देता था।
सुखीराम वाहा सब्जी उगाता। खुद रात दिन वहां रखवाली करता। और जब सब्जी निकलती तो बाजार जाकर अपने बीवी के साथ बेच कर आता। ऐसे कुछ सब बढ़िया चल रहा था।
सुखीराम ने ऐसे करते हुए पैसे जोड़ कर घर में दो गाय भी खरीद ली थी। अब उसको अलग से आमदनी भी होने लगी थी। दूध और घी भी सुखीराम बेचने शहर जाता। सुखीराम को एक लड़की थी, निर्मला। बड़ी ही होनहार। अपने पिता को वो बचपन से देखती आ रही थी। की कैसे उसके पिता ने उसको पाला और अपनी खेती संभाली। वो अपना स्कूल करने के बाद खेत में अपनी माँ को मदत करती। कभी दूध भी बेचने अपने ही गाव में घूम कर आती।
एक दिन सुखीराम शहर दूध बेचने जा रह था की उसकी साइकिल को एक ट्रक ने टक्कर मार दी। सारा दूध रास्ते पर ही बिखर गया। इसमे सुखीराम की पैर की हड्डी टूटी। उसको शहर के अस्पताल में भर्ती करवाया गया। कुछ ही दिन में सुखीराम ठीक हो गया। लेकिन अब वो मेहनत का कोई काम नहीं कर सकता था। उसकी बीवी से जो बनता वो करती। शहर दूध बेचने कौन जायेगा ये सोचकर वो हैरान होता। उसकी परेशानी उसकी लड़की से देखि नहीं गयी।
निर्मला ने चिंता का कारन पुछा, पिताजी, आप बहोत परेशांन लग रहे हैं। क्या बात हैं?
बेटी अब मैं साइकिल चला कर शहर तो नहीं जा सकता। सोच रहां हु ये गाय बेच दू। अब मुझसे ये सब नहीं होगा। तेरी माँ पे कितना बोझ डालू। वो बेबस होकर बोल रहा था।
निर्मला ने कुछ सोचा और बाहर निकली। उसने रोज शहर जा कर दूध बेचने का सोचा। वो सुबह उठकर शहर जाने वाली पहली गाड़ी से चली जाती। और स्कूल के टाइम पे घर आ जाती। ये उसका रोज का काम चालू हुआ। उसके पिता सब देख रहे थे। कुछ ही महीनो में निर्मला ने पैसे जोड़ कर दो और गाय खरीद लिया। अब वो ये सारा दूध शहर की किसी कंपनी में बेचने लगी थी। उनकी गाड़ी खुद दूध लेने गाव में आने लगी।
निर्मला ने गाव की औरतो को साथ में लेकर एक समूह बनाया। और वो सब ने मिलकर दूध बेचने का काम चालू किया। देखते ही देखते निर्मला ने अपने ही गाव में दूध डेअरी चालू की। अब शहर की गाड़ी गाव से जमा किया दूध लेने आती। ये सब देख के सुखीराम बहोत खुश होता। और खुद को बड़ा खुशनसीब समझता।
निर्मला का काम और उसके चर्चे सारे जिल्हे में चलने लगे। उसको जिल्हा कलेक्टर से सम्मान मिलने वाला था।
गाव में बड़े मंच पर सबके सामने निर्मला का सम्मान किया गया।
कलेक्टर साहब बोले, हमेशा लडको को अपने पिता का साथ देते देखा हैं। लेकिन कोई लड़की ऐसा करे और अपना और घर का नाम रोशन करे तो। निर्मला ने ये साबित किया की बेटीया कभी बेटो से कम नहीं होती। बल्कि उनसे कही ज्यादा होशियार और काबिल होती हैं।
सभी गाव वाले तालिया बजाते हैं। ऐसी होनहार बेटी पाकर सुखीराम धन्य महसूस करने लगा था।
खाने का अपमान
निहाल बड़ा ही जिद्दी लड़का था। उसको बहोत ही लाड प्यार से पाला था उसके माँ बाप ने। उसने जो चीज कही उसको मिल जाती। किसी चीज की कमी नहीं थी निहाल की जिंदगी में। बस एक चीज उसमे ख़राब थी। वो जिद्दी होने के साथ साथ खाने के बारे में अलग नखरे थे। जो भी उसकी थाली में परोसा जाता वो थोडा खाता और बाकि का वही छोड़ कर चला जाता। या कभी फेंक देता। उसकी इस आदत से घरवाले बहोत ही ज्यादा परेशांन थे। वो निहाल की ये आदत छुड़वाना चाहते थे लेकिन सभी तरीके विफल रहे।
गर्मी की छुट्टी में निहाल अपने दादा दादी के यहाँ गया। उसके दादा गाव में रहते थे। वहां जाकर नदी में नहाना. खेतों में घूमना निहाल को बड़ा अछा लगता। दादा दादी का भी बहोत लाडला था। शाम को जब निहाल खाने के लिए बैठा। करेले की सब्जी देख के उसने थोडा खाया और बाकि का खाना वही छोड़ के सोने चला गया। दादा को निहाल की इस आदत का कुछ भी पता नहीं था।
अब तो रोज का निहाल का यही करना चालू था। कभी तो बहोत सारा खाना लेकर वो आधा भी नहीं खाता था और बाकि का फेंक दिया करता। दादा ने दादी से कहा, कल निहाल को खेतों में भेजना तो। उसको कुछ दिखाना हैं।
दादी ने हां कहा और सुबह निहाल को दादा ने बताये वाले खेत पे भेज दिया।
वहा सब्जी थी, फल भी लगे थे, गाजर,मुली और फुल भी उगे हुए थे। निहाल ने खूब फल गिराए और उसमे से कुछ ही खाए और बाकि के वही छोड़ दिए।
दादा ने निहाल को अपने पास बुलाया। निहाल बेटा, तुम्हे पता हैं की ये अनाज कैसे उगता हैं?
निहाल ने कहाँ, नहीं।
आओ तुम्हे दिखता हु दादा एक जगह ले गए।
वहा एक किसान गेहू के खेत में पानी दे रहा था। कोई उसमे से कचरा साफ कर रहा था। घास काटने वाले मजदुर घास काट कर दूर कर रहे थे। कुछ लोग नये बिज डालने के लिए मिटटी की खुदाई कर रहे थे।
निहाल,ये जो गेहू तुम्हारे घर पे आता हैं न, वो ऐसे आता है। कड़ी धुप में मिटटी को चिर के किसान खेती करता हैं। दिन रात अपनी फसल की सेवा करता हैं। खाद और पानी वक़्त पर देता हैं। बीमारी से उसको बचाता हैं। तब जाकर अपने घर में रोटी बनती हैं। और अगर हम खाने का अपमान करे तो वो सिर्फ खाने का अपमान नहीं बल्कि किसान का भी अपमान हैं। उसकी मेहनत का भी अपमान हैं।
दादा की बात सुन कर निहाल सहम सा गया। उसको समझ आ गया की एक रोटी के लिए किसान खेतो में कितनी मेहनत करता हैं।
दादाजी, मुझे माफ़ कर दो। मैं अब खाने का अपमान कभी नहीं करूँगा। निहाल दादा से जाकर लिपट गया।
ईमानदारी का इनाम
ये कहानी हैं चंदू रिक्शा वाले की। चंदू बहोत ही गरीब था। उस बेचारे के पास एक साइकिल वाली रिक्शा थी। वो इसी से अपने और अपने परीवार का पालन करता था। ज्यादा पढ़ा लिखा न होने के कारण उसको कोई काम भी नहीं मिलता तो उसने इसी को अपना काम बना लिया। चंदू के अलावा उसके घर में एक बूढी माँ, बीवी और उसकी एक बिटिया थी। उसको वो रानी कहकर बुलाता था। वो अपनी बेटी को बहोत प्यार करता था। दिवाली को वो नया कपडा ना लेगा लेकिन उसी पैसे से वो अपनी रानी बिटिया को नया कपडा जरुर लेकर जाता।
एक बार की बात हैं, दोपहर के वक़्त चंदू एक पेड़ के निचे अपनी रिक्शा लगाकर ग्राहक का इंतेजार कर रहा था। काफी देर से कोई ग्राहक मिला नहीं था। वो इसी सोच में था की एक सेठ अपना सामान लेके आ गया।
अरे भाई, स्टेशन चलोगे? सेठ ने पूछा।
चंदू ने कहा, चलेंगे न साहब। दीजिये आपका सामान। ऐसा कहकर चंदू ने सेठ का सामान रिक्शा में चढ़ाया। और धक्का मारकर वो रिक्शा को चलने लगा। सोचने लगा की ऐसे सेठ लोग हमेशा ऑटो में जाते हैं आज मेरे रिक्शा में कैसे? उसने पूछ ही लिया, सेठ, आपको कभी देखा नही यहाँ। आप यहा के नहीं लगते।
सेठ ने कहा, अरे नहीं भाई, मैं तो अपने काम से आया था यहाँ। काम हो गया अब जा रहा हु।
उसके कपड़ो से लग रहा था की काफी आमिर था कोई।
स्टेशन आया और सेठ उतर कर सामान पकड कर स्टेशन के अन्दर चला गया। इधर चंदू भी अपनी रिक्शा एक जगह लगा के पानी पिने जाने वाला था की उसने रिक्शा के सीट के पास एक छोटा सा बैग देखा। वो शायद उसी सेठ का था। उसने उसको खोल कर देखा।
पूरी बैग पैसे से भरी थी। एक वक़्त के लिए चंदू को चक्कर आ गए। उसने इतने सारे पैसे एक साथ सपने में भी नहीं देखे थे।
लेकिन दुसरे ही पल उसने बैग पकड़ी और स्टेशन के अन्दर भागा। लेकिन सब जगह देखने के बाद भी वो सेठ कही नहीं मिला।
उसने वो बैग स्टेशन पे ही पुलिस का एक ऑफिस था वहां जमा की। उसने अपना नाम और पता भी लिखवा लिया।
दो दिन बीत जाने के बाद एक पुलिस का आदमी चंदू के घर आया। तब चंदू खाना खा रहा था।
पुलिसे को देख के घरवाले डर गए। लेकिन चंदू बोला, क्या हुआ साहब?
पुलिस स्टेशन चलो। बड़ा साहब बुलाता हैं। मेरे साथ गाड़ी में आकर बैठो। ऐसा कहकर पुलिस का आदमी उसको लेकर गया।
वहा वो सेठ था। उसने चंदू को गले लगाया। बड़े साहब ने चंदू की बहोत तारीफ की। कहा, रिक्शावाले, तुम बहोत इमानदार हो। इतना पैसा देख कर कोई वापस नहीं आता। लेकिन तुमने अपनी ईमानदारी का परिचय दिया।
सेठ बोला, मैं अपना बैग भूल गया था लेकिन ट्रेन चालू हो गयी थी। मैं वापस नहीं आ सका। दुसरे दिन वापस आया तो मुझे बैग का पाता चल गया। शुक्रिया मेरे भाई।
दुसरे दिन चंदू का फोटो अख़बार में आया। उसकी ईमानदारी के चर्चे होने लगे। सेठ ने चंदू को उसकी ईमानदारी का इनाम कहकर एक नयी ऑटो रिक्शा बक्षीश में दी। वो पाकर चंदू बहोत खुश हुआ।
होशियार बहु
एक गाव में दो भाई रहते थे। दोनों मजदूरी करते थे। उनके माँ बाप नहीं थे। दोनों रोज मिला तो मजदूरी का काम करते या फिर जंगल में जाकर लकडिया लाते और बाजार में जाकर बेच कर आते। जो भी मिलता उससे खाने का कुछ सामान ले आते और दोनों अलग अलग चूल्हों पर खाना बनाते और खाते।
यही उनका रोज का काम था। एक छोटा सा घर था उसमे वो दोनों अलग अलग रहते थे। साथ तो बस कहने का था।
बड़े भाई की सगाई हो गयी थी। बहोत दिन हो गये थे। तो उसको अब शादी भी करनी पड़ी। नयी बहु घर में आ गयी। दोनों भाई हमेशा की तरह सुबह उठे। और चूल्हे पे कुछ खाना बनाया। साथ में बाँध कर रख लिया जंगल में खाने के लिए और नयी बहु के लिये थोडा खाना रख कर दोनों जंगल की तरफ चले गए।
बहु को दोनों का ऐसा करना बड़ा ही अजीब लगा। उसने सबसे पहले पुरे घर की सफाई की। दो चुल्हो में से एक को तोड़ दिया। नहाने के बाद घर के दरवाजे पर उसने रंगोली निकली। तुलसी की पूजा की। दिया लगाया। एक चूल्हे को तोड़ दिया और उसके बाद में थोडा खाना खाया।
घर में थोड़े चने पड़े थे। बडोस में जाकर चनो के बदले थोडा चावल और दाल लेकर आयी। शाम होने वाली थी। उसने बढ़िया सा खाना बनाया। और अपने पति और देवर का इंतेजार करने लगी।
दोनों घर आये। आते ही टुटा हुआ चूल्हा देख कर दोनों को बड़ा घुस्सा आया। लेकिन बहु ने अन्दर से आवाज लगायी, दोनों नहा लीजिये। मैं खाना लगाती हु।
ऐसा सुनते ही दोनों को आश्चर्य हुआ। ऐसा खाना उन्होंने काफी सालों में नहीं खाया था। खाना खाकर दोनों बड़े खुश हुए।
दुसरे दिन ही बहु ने आंगन में सब्जिया के बिज डाल दिए। कुछ ही दिनों में घर की ताज़ी सब्जिया मिलने लगी। कोई लेने आता तो वो बेचने भी लगी। ऐसे करते हुए बहु ने घर में एक किराणे की दुकान चालू कर दी। अब दोनों भाई दुकान का काम देखने लगे।
देखते ही देखते कुछ ही सालो में वो एक खुशहाल परिवार बन गया।
सब बहु की होशियारी की तारीफ करने लगे। और कहने लगे, बहु हो तो ऐसी हो।
आलसी गधा
जनकपुर गाव में एक व्यापारी रहता था। उसका नाम था गोपाल। गाव पहाड़ो पर होने से उसको जो भी सामान लाना होता तो वो गधो पे लाद कर लेके आता। उसके पास बहोत दो गधे थे।
लेकिन दोनों गधो में से एक बड़ा आलसी था। उसको जो भी काम दिया जाता वो बड़े ही आराम से करता। कभी तो काम छोड़ कर भाग जाता। कभी सामान गिरा कर चला जाता। गोपाल इस बात से बड़ा ही परेशान था।
एक दिन गोपाल को नमक के बोरे निचे से पहाड़ी पे लाना था। उसने दोनों गधो के ऊपर दो-दो नामक के बोरे लाद दिए और उनको चलता किया। वो बिना मालिक के भी घर पहुच जाते थे। रास्ते में आलसी गधे को आज चलने से बड़ी तकलीफ हो रही थी। वो अपने साथी गधे से कहने लगा, अरे यार, मुझे आज कुछ भी काम करने का मन नहीं हैं।
साथी गधे ने आलसी गधे को कहा, अरे भाई, ऐसा मत कह। अगर मलिक ने सुन लिया तो हमें आज का खाना नहीं मिलेगा।
रास्ता नदी में से था तो दोनों संभल के चल रहे थे। इतने में आलसी गधे का पैर फिसल जाता हैं। वो पानी में गिर जाता हैं। उसके ऊपर रखे नमक के बोरे भी गिले हो जाते हैं। वो कैसे तो भी संभल कर खुदको खड़ा करता हैं।
अरे! यह क्या? मेरा भार तो कम हो गया। यहाँ कोई जादू हैं क्या? आलसी गधा बहोत खुश हो गया।
अब उसका ये रोज का काम हो गया। रोज नमक के बोरे लाने का काम चालू था। और आलसी गधे का रोज का नदी में गिरना और अपना भार कम करना चालू था। गोपाल को समझ नहीं आ रहा था की रोज ये गधा पानी में कैसे गिरता हैं।
एक दिन गोपाल आलसी गधे को चुपके से देख लेता हैं। वो जान बुझ के पानी में बैठता था और उठकर घर आ जाता।
गोपाल ने इस गधे को सबक सिखाने का सोचा। उसने दुसरे दिन आलसी गधे के ऊपर कपास के दो बोरे लाद दिए।
गधा हमेश की तरह नदी आने पर पानी में बैठ गया। और अब उठाने की कोशिश कर रहा था। लेकिन उसको अब नानी याद आयी। कपास पानी में भीग के और भी वजनदार हो गयी थी। इसका उस आलसी गधे को अंदाजा नहीं था।
वो पूरी ताकत लगा के उठा और गिरते उठते घर पहुचता हैं। साथी गधा उसको देख कर कहता हैं, मैंने कहा था। एक दिन तुम आफत मोल लोगे। अब भुगतो।
उस दिन के बाद से आलसी गधे को सबक मिल गया और अपना काम वो ईमानदारी से करने लगा।
जादुई गुफा
एक गाव में भोला नाम का एक बहोत ही गरीब आदमी रहता था। वो अपने गाव में लगे जंगल में से लकडिया, फल,फुल और शहद ला कर शहर जा कर बेच कर आता और अपना घर चलाता। वो बहोत गरीब था इसलिए पडोस वाले उसके उपर हँसते और अपने में आने नहीं देते थे। वो इस बात से बहोत दुखी होता लेकिन अपना काम बड़ी लगन और ईमानदारी से करता। वो ये समझता की ईमानदारी से ही इन्सान की उन्नति होती हैं।
उसको अपने गरीबी का जरा भी बुरा नहीं लगता। वो इसको भी भगवान की इच्छा कर के खुद को समझाता।
एक दिन भोला जंगल में हमेंशा की तरह लकडिया जमा कर रहा था। ऊपर एक पेड़ पर बहोत बड़ा शहद का छत्ता था। उसको उतारने के लिए पेड़ पे चढ़ना चालू किया। लेकिन जैसे ही वो ऊपर चढ़ा,वो पेड़ टूटके गिर गया। शायद वो ऊपर से सुख चूका था। सारी मक्खियाँ भोला के पीछे लग गयी। वो जान बचा कर भागा। भागते हुए भोला को कुछ बड़े से पत्थर सरकने की आवाज आयी। जैसे कोई गुफा का दरवाजा खुल रहा हो। इधर उधर भागते हुए वो एक बड़ी सी पत्थर की गुफा में चला गया। और अन्दर जाकर छिप गया।
अन्दर जाते ही उसने कहा, हे भगवान, मुझे इन मक्खियों से बचा लो।
तभी सभी मक्खिया वाहा से लौट गयी। फिर कुछ देर के लिए वो वही बैठ गया। उसने देखा की शहद का छत्ता वही पड़ा हुआ हैं। उसने वो देख के कहा, भगवन, मैं कितना बेबस हु। कितना गरीब हु। मेरे पास पैसे होते तो क्या मुझे अपनी जान जोखिम डालनी पड़ती। आज मैं आपकी वजह से बच गया। आज जैसे मेरी जान बचाई वैसे मेरी गरीबी भी दूर करदो तो आपकी बड़ी कृपा होगी भगवान।
और अचानक उसके सामने एक बडी सी पोटली आके गिरती हैं। वो देख कर चौंक जाता हैं। धीरे से उसको खोलता हैं तो उसको अपनी आँखों पर यकीं नही होता। उसमे बहोत सारे सोने के गहने, रुपये और हीरे जवाहरात होते हैं।
वो अपने भगवान् का शुक्रिया कर के वो पोटली उठा कर चला जाता हैं। घर जाकर अपने बीवी को सब हकीकत बया करता हैं। भोला की गरीबी दूर करने के लिए भगवान् ने मदत की थी। यह उसकी ईमानदारी का इनाम था।
वो दोनों की बाते बाजु वाला किशनलाल सुन लेता हैं। वो समझ जाता है की वो जादुई गुफा हैं। वो उसी समय जंगल की तरफ उसी जगह पहुच जाता है जो जगह भोला ने अपने बीवी को बताई थी।
किशनलाल बड़ा ही लालची इंसान था। वो हमेश भोला का मजाक उडाता। उसका पैसा देख के उसकी नियत बिघड गयी। गुफा में जाते ही उसने पहले भोला जैसे ही कहा, हे भगवान् मुझे बोरी भर के सोना और पैसे दे दो।
एक बोरी भर के सोना और पैसे आ गए। वो बड़ा खुश हुआ। अब उससे रहा नहीं गया। वो बस इससे ज्यादा और सोना मांगता गया। देखते ही देखते वहां ढेर लग गए। और सोने के ढेर की वजह से गुफा का रास्ता भी बंद हो गया।
लेकिन दौलत के अंधे किशनलाल को वो रात होने तक पता नहीं चला। जब अँधेरा हुआ और उसको अब वापस जाना था तो रास्ता नहीं मिल रहा था। वो सोने के ढेर के निचे दब गया और उसकी मौत हो गयी। और वो जादुई गुफा के दरवाजे भी हमेशा के लिए बंद हो गए। और इसी के साथ जादुई गुफा का रहस्य भी किसीको पता नहीं चला।
दो के झगडे में तीसरे का फायदा
एक बहोत ही सुंदर जगल था। सब तरफ हरियाली और सुकून का माहोल था। अब तो खाने पिने का सब सामान भी सभी जानवर जंगल में नहीं मिलने पर बन्दरमामा के किराणे की दुकान पर जाकर खरीद लेते। बन्दर मामा और भालू ने मिलकर ये धंदा चालू किया था। शेरखान ने खुद आकर उनके दुकान का शुभारम्भ किया था।
अब जो भी लोग दुकान पर आते तो कोई चिप्स का पैकेट लेते या कोई चोकलेट लेते और कचरा जाते हुए यहाँ वह कही भी फेंक देते।
एक बार ऐसे ही हुआ। मिंकू खरगोश घर के सामने सफाई करने के लिए बाहर निकला। देखा की कुछ पैकेट्स उसके आंगन में गिरे थे। और वही एक पैकेट ऊपर पेड़ पर बैठी गिलहरी रानी के पास भी था।
बस क्या था। मिंकू ने झगडा चालू किया। उसने बहोत बुरा भला कह दिया। वो कचरा गिलहरी ने ही वाहा गिराया था। लेकिन उसने साफ मना कर दिया।
लेकिन अब तो ये सब रोज का होने लगा। रोज मिंकू बाहर आकर सफाई करता और झगडा कर के चला जाता। गिलहरी भी कुछ कम नहीं थी। वो उसको खूब चिढाती।
एक दिन दोनों में बहोत बड़ा झगडा हुआ। वो एक दुसरे को मारने पे उतर आये। तभी झाड़ियो में एक भेड़िया छुपकर ये सब बाते सुन रहा था। उसने बिच में कूदते हुए कहा, मिंकू तुम बिलकुल सही हो। मैं तब से देख रहां हु। ये गिलहरी ही तुम्हे बेवजह परेशांन कर रही है। मैं इसका गवाह हु। चलो शेरखान के पास।
दोनों उस भेडिये के साथ शेरखान की अदालत में जाने के लिए तैयार हो गए। रास्ता दूर का था। वो झाड़ियो में से गुजर रहे थे। भेडिये ने देखा की अब यहाँ कोई नहीं हैं। अगर मैं इन दोनों को मार भी दू तो किसीको कुछ भी पता नही चलेगा।
चलते हुए गिलहरी की पूंछ मिंकू को लगी। मिंकू को उसका बहोत घुस्सा आया। वो गिलहरी पे टूट पड़ा। एक दुसरे को वो मारने लगे।
भेड़िया तो इसी बात का इंतेजार कर रहा था। एक ही झटके में दोनों पे झपट पड़ा और दोनों को मार दिया। फिर आराम से बैठ के खाने लगा।
दोनों के झगडे में तीसरे का फायदा होता हैं। बेवजह मिंकू और गिलहरी को अपनी जान गवानी पड़ी।
शेर और चूहे की दुश्मनी से दोस्ती की कहानी
एक जंगल में बड़ी सी गुफा थी। वो पहाड़ी पे होने से वहां कोई आता जाता नही था। उस गुफा में चूहों ने अपना घर बना लिया था। वो वाहा खूब खेलते और मस्ती करते। किसी की रोकटोक नहीं थी वहा।
लेकिन एक दिन अचानक सुबह वहां एक बहोत ही बड़ा और खतरनाक शेर पहुच गया। शेर ने देखा और कहा, ये तो बहोत ही बड़ी गुफा हैं और यहाँ से सारे जंगल पे मेरी नजर रहगी। मैं अब से यही रहूँगा।
शेर के साथ एक लोमड़ी भी थी। वो शेर ने बताये वाले काम कर लेती और जो भी बचा खुचा शिकार होता उसपे वो अपना पेट भर लेती।
शेर ने देखा की यहाँ गुफा में बहोत सारे चूहे हैं। शेर ने कहा, ऐ चूहों। चलो यहा से भागो। अब से यह मेरी गुफा हैं। यहाँ दिखना नहीं।
एक चूहे ने कहा, आप तो यहाँ अब आये हो। हम तो कब से यहाँ रहते है। ये हमारी गुफा हैं।
शेर जोर से दहाडा, सब भागो यहासे। वरना सबको मरना पड़ेगा।
सारे चूहे भाग जाते है। और उसी गुफा के बाजु में बील बनाकर छिप जाते हैं।
अब शेर रोज शिकार पर जाता और यहाँ लोमड़ी उसकी गुफा साफ़ करती और शेर को पिने का पानी भर के रखती।
शेर आता शिकार बाजु में रखता। चोरी से लोमड़ी थोडा सा उसमे से खा लेती। लेकिन जैसे ही दोनों सो गए। चूहे बाहर आये और पानी में कूदते रहे और सारा पानी पहाड़ी से निचे गिरा दिया।
शेर को जोरो की प्यास लगी। लेकिन वहां पानी नहीं था। वो लोमड़ी पे दहाडा। लोमड़ी बेचारी फिर से भाग के पानी ले आयी।
लेकिन जैसे ही दोनों आराम करते रहते। चूहे चुपके से सारा पानी पहाड़ी से निचे गिरा देते।
एक दिन लोमड़ी ने यह देख लिया। उसने शेर को चूहों की शिकायत की। शेर ने चूहों को मारों ऐसा आदेश दिया। लेकिन चूहे कहा किसी के हाँथ में आने वाले थे। वो अपना रोज का काम करते। रोज पानी गिराते।
लेकिन कुछ दिन के बाद शेर अचानक बदल गया। वो चूहों पे घुस्सा बिलकुल भी नहीं करता था। उनको देख के भी लोमड़ी को पकड़ने को नहीं कहता था।
चूहों को समझ नहीं आया की आखिर ऐसे कैसे हुआ। वो सब मिलकर शेर से बात करने का सोचते हैं।
वो शेर को आवाज देते हैं, शेरखान, हम रोज आपका पानी गिराते थे तो आप हम पे घुस्सा होते थे। लेकिन कुछ दिन से आप हमे कुछ भी नहीं बोलते। और हमको डराते भी नहीं। हमे समझ नही आ रहा की ऐसे हुआ कैसे?
शेर ने हँसते हुए कहा, मैंने देखा की ये ऊपर से जो पानी तुम लोग गिराते हो। वो सीधा निचे मैदान में जाकर गिरता हैं। वहां अब घास उगने लगी हैं। और जानवर वहा चरने को आने लगे हैं। मेरा काम आसान हो गया। अब मुझे दूर जंगल में शिकार के लिए जाने की जरुरत नहीं है। तुम लोगो ने मेरी मदत ही की हैं। शुक्रिया।
शेर ऐसा कहकर हंसने लगा और उन सब में अब दोस्ती हो गयी। अब शेर को भी चूहों के रहने से वाहा कोई तकलीफ नहीं थी। उनमे अब दुश्मनी बची नहीं थी। अब दोस्ती हो चुकी थी।
बन्दर और मगरमच्छ की कहानी
एक बहोत बड़ा जंगल था। उसमे एक सुंदर सा तालाब था। तालाब में सभी मौसम में पानी भरा रहता था। इसलिए बहोत से पशु और पंछी यहा पानी पिने आया करते थे। तालाब के आजूबाजू घना जंगल था। जब कभी शेर पानी पिने आया करता था तो सभी जानवर छुप जाते थे। पेड़ पे बैठे बन्दर अपनी आवाज से सबको ख़बरदार करते थे।
ऐसे ही एक पेड़ पे चीकू नाम का बन्दर था। उसकी पानी में रहने वाले मगरमच्छ से दोस्ती हो गयी थी। वो दोनों तालब के किनारे बैठ कर घंटो बाते किया करते थे। चीकू कभी इस पेड़ पर तो कभी उस पेड़ पर जाता था। सारे जंगल में घूम के आता था। उसको सारे जंगल की खबर रहती थी। चीकू की बाते सुनने में मगरमच्छ को बड़ा मजा आता।
चीकू पेड़ पे बैठ कर मगरमच्छ को ताजे,मीठे और रसीले फल तोड़कर देता। मगरमच्छ वो फल मजे से खाता। उसके बदले में मगरमच्छ उसको पानी में अपने पीठ के ऊपर बिठा कर सैर कराता। चीकू को पानी में तैरना नहीं आता था लेकिन पानी में घुमने का मजा वो ले रहां था। वो पानी में से तालाब के दूसरे किनारे तक जाकर आता।
ऐसे कुछ दी चलता रहा। एक दिन मगरमच्छ की शादी हुई और उसने बन्दर से दोस्ती की बात अपनी बीवी को बताई। बीवी ने कहा की चीकू आपको रोज ऐसे मीठे फल देता हैं। ये खुद भी रोज खाता है। तो इसका कलेजा कितना मीठा होगा। उनके मन में शैतान जाग गया। अपने दोस्त को खाने का उसने मन बना लिया। बस वो अब चीकू को फ़साने के चक्कर में था।
एक दिन ताजे फल चीकू लेकर आया। तभी मगरमच्छ बोला, अरे यार चीकू, तू हमेशा मेरे लिए इतने सारे फल लेके आता हैं। कभी मुझे भी तो तेरे लिए कुछ करने का मौका तो दे। तू आज मेरे घर चल। मेरी शादी हुई तब से तू आया नहीं। मेरी बीवी ने तुझे याद किया हैं।
चीकू झट से तैयार हो गया और मगरमच्छ के पीठ पे जाके बैठ गया। किनारे से काफी दूर जाने के बाद मगरमच्छ चीकू से बोला, चीकू तू बहोत भोला हैं। आज मैं तुझे मार कर तेरा कलेजा खाने वाला हु। तेरा कलेजा भी बहोत मीठा होगा तेरे फलों जैसा।
चिकू समझ गया की अब उसने कुछ भी गलत किया तो उसकी जान जाने वाली थी। अगर पानी में कूदता हैं तो भी जान जाने का खतरा था। कुछ सोच कर उसने होशियारी से कहा, अरे मगरमच्छ भाई! तुम भी ना।
क्या हुआ? मगरमच्छ बोला।
अरे, जब भी मैं कही बाहर जाता हु, तो अपना कलेजा वही पेड़ पर निकल के रखता हु। अब तुम्हे कलेजा खाना है, तो ये पहले बताना था वही किनारे पर। मैं साथ लेकर आता। अब वापस किनारे जाकर लाना पड़ेगा ना। चीकू बन्दर अपनी आखरी कोशिश कर रहा था।
मगरमच्छ को चीकू की बात सही लगी। वो झट से वहां से वापस पलटा। चीकू ने जैसे ही किनारा पास आते हुए देखा, फुर्ती से एक पेड़ की टहनी से लटक कर ऊपर चढ़ गया। उसकी जान में जान आ गई।
उसने मगरमच्छ से बोला, कलेजा भी कोई निकाल कर रखने की चीज है भला। तुझसे बचने के लिए मैंने अपना दिमाग लगाया। काश मैं तुझसे दोस्ती करने के पहले अपना सही दिमाग लगाता। तूने दोस्ती में दगा किया हैं। मैं आजसे तुझसे दोस्ती तोड़ता हु।
ऐसे कहते चीकू वहां से भाग गया। और इधर मगरमच्छ अपने आप को कोसता हुआ वहां से चला गया।
टोपीवाला और बन्दर की कहानी
बेलापुर नाम का एक छोटा सा गाव था। उस गाव में हरिदास नाम का एक टोपीवाला रहता था। वो बहोत गरीब होने के कारण उसके पास करने को कोई काम नहीं था तो वो टोपी बेच कर अपने घरवालो का पालन कर रहा था।
एक दिन वो घर से बहोत सारी टोपी एक गठरे में बांध के वो दुसरे गाव के लिए निकल पड़ा। गर्मी के दिन चालू थे। कुछ दूर जाकर वो एक जगह पेड़ के निचे बैठ गया। साथ में लाया हुआ खाने का सामान निकाला और खाना खाया। पानी पीकर उसको थोडा आराम करने का मन हुआ। इसलिए टोपी का गठरा अपने सिरहाने के पास रखकर जमीं पर ही लेट गया। पेड़ की ठंडी छाव से उसको नींद आ गयी।
थोड़ी देर में वहा बन्दर आ गए। खेलते हुए बंदरों ने निचे देखा। एक आदमी सो रहा है। उनमे से एक बन्दर धीरे से निचे आया। उसने गठरी खोली। उसमे से एक टोपी निकाली और अपने सर पर रखकर पेड़ पे चढ़ गया।
उसको देख के सारे बन्दर एक एक कर निचे आये। सबने टोपी पहन ली और पेड़ पर जाकर बैठ गए।
थोड़ी देर में हरिदास की नींद खुली। उसने जैसे ही आँख खोली, ऊपर बन्दर टोपी पहनकर दिखाई दिए। उसने अपनी गठरी देखी। वो खाली थी।
उसको कुछ भी सूझ नहीं रहा था। उसने एक लकड़ी उठाई। वो बंदरो पर फेंक कर मारी। बंदरों ने वही लकड़ी उसको दे मारी। वो बच गया। अब उसने एक पत्थर उठाया। बंदर भी तैयार थे। उन्होंने पत्थर से अपने आप को बचाया। और पेड़ पे लगे हुए आम उसको फेक कर मारे।
अब हरिदास हार गया। खुदको कोसने लगा और बंदरो से अपनी टोपियां मांगने लगा। लेकिन इस बात का उनपे कोई असर नहीं हुआ।
उसने थक कर अपनी टोपी उतर कर निचे रख दी और जमींन पे बैठ गया। सभी बंदरों ने देख लिया। बंदरों ने अपनी टोपी उतारी और जमीन पे फेंक दी।
हरिदास ने सारी टोपिया अपनी गठरी में बांध ली और बंदरो का शुक्रिया कर के अपने रास्ते निकल पड़ा।
भेड़िया आया रे आया
एक गाव में कुछ भेड़ चराने वाले लोग रहते। वो सारे गाव की भेड़ और बकरिया चराने का काम करते थे। पास में जंगल था। और बाजु में खेत। कभी खेतो के बाजु में अपने भेडोको चरने छोड़ देते थे। वहा कुछ खली मैदानों में ऊपर बैठ कर वो अपनी भेड़ों पर नजर रखते थे।
उन्ही के गाव में एक भेड़ चराने वाला लड़का था। उसके पास भी कुछ भेड़ बकरिया थी। लेकिन उसकी एक गलत आदत से सभी लोग बहोत ही ज्यादा परेशान थे। वो बेवजह किसी की भी मजाक कर देता था।
एक दिन उसके मन में आया की इन सब चरवाहों को जरा परेशांन किया जाये। सब उस पहाड़ी पे बैठ कर अपने भेड़ों पे नजर रखे थे। तभी इस लड़के ने चिल्लाना चालू किया, बचाओ……अरे कोई मेरी मदत करो…….भेड़िया आया रे…….मेरी भेड़ों को खा रहा हैं।
उसका ऐसा चिल्लाना सुन कर सभी चरवाहे उसकी तरफ भागने लगे। उनको आते देख वो एक झाड़ी के पीछे छुप गया।
उनके पास आते ही वो जोर जोर से हसते हुए वहां से बाहर निकला। चरवाहे बहोत घबरा गये थे। उनको बहोत चिंता हो गयी थी। लेकिन उस लड़के की हँसी देख कर समझ गए की ये मजाक कर रहा हैं।
वो उस लड़के को डाँटते हुए वाहा से चले गए।
ऐसे ही कुछ दिन जाने के बाद उस लड़के ने सोचा की, काफी दिन हो गए। इन सब को आज फिर से उल्लू बनाता हु।
आजू बाजु देख के फिर से उसने चालू किया, भेड़िया…..भेड़िया……आया रे आया…..बचाओ…….
चरवाहों को लगा इस बार शायद वो लड़का सही में परेशांन हो। वो सब लकड़ियाँ लेकर उसकी तरफ भागे। लेकिन इस बार भी उनके आते ही वो अपना पेट पकड़ कर हंसने लगा। देखो कैसे सबको मैंने उल्लू बनाया। बड़ा मजा आया।
बेचारे चरवाहे। सब ने उसको कहाँ, देख लड़के, एक दिन तू ये सब झूठ की वजह से बहोत मुसीबत में पड़ने वाला हैं। फिर तुम सच भी बोलोगे तो कोई यकीं नहीं करेगा। समझा?
उस लड़के ने चरवाहों की बात सुन ली लेकिन अपने मन में नहीं लिया।
कुछ दिन के बाद वो लड़का जंगल की तरफ अपनी भेड़ो को लेकर जा रहा था। तभी उसके सामने एक बड़ा ही डरावना, खूंखार भेड़िया खड़ा था। पहले तो उसके मुह से एक शब्द भी नहीं निकला। बादमे हिम्मत जुटा कर वो चरवाहों को आवाज देने लगा, भेड़िया….भेडीयाँ आया रे आया…..
लेकिन इस बार किसी ने ध्यान नहीं दिया। वो लड़का समझ गया की आज कोई नहीं आयेगा। वो दौड़ते हुए मैदानों के उस कोने में गया। जहा सब चरवाहे बैठे थे। उसने रोते हुए भेडिये के बारे में बताया।
चरवाहों को उसकी दया आ गयी। वो सब लाठी और कुल्हाड़ी लेकर उसकी मदत के लिए भागे। सबको आते ही भेड़िया जंगल में भाग गया।
लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। भेडिये ने बहोत सी भेड़ों को जखमी कर दिया था।
चरवाहों ने लड़के को समझाया, देखा, तुम्हारे मजाक ने तुम्हारा कितना बड़ा नुकसान कर दिया।
लड़के ने अपनी गलती मान ली और आगे ऐसे नहीं करने का वचन भी दिया।
गन्ने का रस- एक कहानी
एक बार एक लड़का एक दुकान में गया जहा गन्ने के रस मिलता था। सभी लोग वहां बाहर रखे टेबल पे बैठे थे। वो भी एक कोने में जाकर बैठ गया।
जब उसकी बारी आई तब वो रस बनाने वाले ने एक काला सा, टेढा मेढा सा दिखने वाला गन्ना लिया।
तभी उस लड़के ने जोर से कहा, अरे भाई क्या कर रहे हो? वो कितना गन्दा सा गन्ना हैं। कोई अच्छा गन्ना लो। वो हरा वाला गन्ना लो। कितना अच्छा दिख रहा हैं वो।
वो दुकानवाले ने एक बार उस लड़के की तरफ देखा। और कहा, मेरी बात सुनो बेटा, ये जो टेढ़ा सा और काला गन्ना हैं इसका रस उस हरे गन्ने से भी मीठा रहेगा।
उसपर लड़का बोला, अरे वाह! तुम पैसे तो पुरे ले रहे हो और मुझे वो ख़राब टेढ़े और काले गन्ने का रस दोगे।
दुकान मालिक ने कहा, ठीक हैं। मैं पहले तुमने कहा उस गन्ने का रस निकालता हु। उसके बाद मैंने जो पसंद किया वो खराब दिखने वाले गन्ने का रस निकालता हु। मैं तुमसे सिर्फ तुम्हारे गन्ने के रस के पैसे लूँगा। ठीक हैं?
लड़के ने कहाँ, ठीक हैं
दुकानवाले ने दोनों गन्ने का अलग अलग रस निकाला। दोनों उस लड़के के सामने रख दिए। लड़के ने पहले अपने पसंद के गन्ने का रस पीया।
वो रस बिलकुल भी मीठा नहीं था। उसने उसको आधा ही पीया। अब उसने वो ख़राब दिखने वाले गन्ने का रस पीया।
वो रस बहोत ही मीठा था। उसको पीकर वो बहोत ही खुश हुआ और अपनी गलती भी उसको समझ आ गयी।
लड़के ने अपनी गलती मानी और दुकानदार को एक रस के पैसे देके चला गया।
इसीलिए कहते की, उपरी रंग देख कर उस चीज के बारे में निर्णय लेना गलत होता है।
अंगूर खट्टे हैं
एक जंगल में रिंकू नाम की बडी ही चालाक और चतुर लोमड़ी रहती थी। उसको लोगो के मुह से खाना चोरी करके खाना, किसीको उल्लू बना के अपना काम निकालना अछी तरह से आता था।
एक दिन उसने सोचा, क्या ये रोज का झूठा खाना खाऊ। कभी तो ताजा खाना भी अपने नसीब में मिल जाये तो। कितना मजा आयेगा।
ये सोचकर वो गाव की तरफ निकली।
गाव के बाहर उसने देखा की चारो तरफ हरे भरे खेत थे। खेतों में जाकर उसने कुछ फल खाए। लेकिन उसकी नजर पड़ी ताजे, रसीले अंगूर पे। अंगूर देखते ही उसके मुह में पानी आ गया। उसका मन खाने को ललचाया। उसने सोचा के अब मन भर के ये रसीले अंगूर खा कर अपना पेट भर लेती हु।
उसने आजू बाजू देखा। सभी किसान खाना खाने अपने घर गए थे। कोई नहीं था। उसने देखा की यही मौका हैं। उसने जोर से छलांग लगायी। लेकिन वो अंगूर तक नहीं पहुच पाई। अंगूर के बेल उपर लकड़ी और तार का पंडाल बना कर चढ़ा के रखे थे। और वो काफी ऊपर थे।
लोमड़ी ने देखा की इससे बात नही बनी। उसने और जोर से कूदना चालू किया। लेकिन कुछ फायदा नही हुआ।
वो लगातार कोशिश करते रही और हर बार वो खाली हाँथ निचे आती।
अब वो बहोत थक चुकी थी। उसके पैर भी अब जवाब दे रहे थे। लेकिन मन में ताजे रसीले अंगूर खाने की लालच उसको वाहा रोके हुए थी। उसने एक आखरी बार पुरी ताकत से प्रयास किया।
लेकिन उसको कुछ भी हाँथ नहीं आया। तभी दूर से किसानो के आने की आवाज आयी।
लोमड़ी समझ गयी की अंगूर उसके नसीब नहीं हैं।
उसने कहा, हट….ये अंगूर खट्टे हैं। ऐसे अंगूर कौन खायेगा। ऐसे खट्टे अंगूर के लिए अपनी जान कौन जोखिम में डालेगा।
ऐसे बोल के लोमड़ी ने जंगल का रास्ता पकड़ लिया।
कभी ना हंसने वाली एक राजकुमारी की कहानी
एक बहोत बड़ा राज्य था। उसका राजा विक्रम सिंग बड़ा ही दानशुर और परोपकारी था। वो सदा अपनी प्रजा के बारे में सोचता और उनके भलाई के लिए नयी योजनाये बनाता।
उसका बड़ा ही नाम था। सब उसको बहोत सम्मान देते। लेकिन उसका नाम और एक बात से भी था। उसकी एक बड़ी ही प्यारी सी राजकन्या थी। उसका नाम था, सुलेखा। सुलखा बचपन से कभी हँसी नहीं थी। उसको हँसाने के कई प्रयास किये गए। लेकिन सब नाकाम रहे। वो हमेशा से दुखी रहती थी। उसकी हँसी के लिए राजा बहोत परेशांन था।
उसने अपने राज्य में एक फरमान जारी किया। जो भी मेरी लड़की को हँसाने में कामयाब होगा। उसको बड़ा इनाम दिया जाएगा।
सुन के बड़े से बड़े जादूगर और नौटंकी वाले आये। लेकिन सब विफल रहे। अब राजा थक गया और उसने हार मान लिया।
उन्ही के राज्य में गणेश नाम का एक भोला सा लड़का था। वो जरा दिमाग से कम था लेकिन उसके शरीर में ताकत पहलवान जैसे थी। उसको कोई भी काम कहा जाये तो वो उसको उल्टा कर के बिघाड देता था।
एक दिन उसके चाचा ने उसको घी लेके जाने को कहा। उसने जमा हुआ घी अपने सर पर रख कर धुप में घर तक का सफ़र तय किया। सारा घी पिघल कर उसके मुह से सारे कपड़ो पर गिर गया। घर आते ही उसकी माँ ने उसको बहोत डाटा और कहा, बेटा, घी को ऐसे नहीं लेके जाते। उसको केले के पत्ते में लपेटकर लाना चाहिए।
गणेश ने अपनी गर्दन हिलायी और चला गया।
दूसरी बार उसके चाचा ने उसको एक कुत्ते का बच्चा अपने घर लेके जाने को कहा। गणेश को अपनी माँ की बात याद आयी। उसने एक केले के पत्ते से कुत्ते को अच्छे से लिपट कर लेके गया। बेचारा बच्चा ठीक से साँस ले नहीं सका और अधमरा सा हो गया। माँ ने गणेश को बहोत डाटा। चाचा ने गणेश को कहा की, अरे गणेश, इसको अपने कंधे पे लाद कर लेके जाना था। बेटा ये मर गया होता तो?
गणेश को अपनी गलती समझ आ गयी।
लेकिन एक दिन उसके चाचा ने अपने धंदे के लिए एक गधा ख़रीदा। गणेश को कहा की इसको घर जा कर बांध देना।
गणेश को थोड़ी दूर जाते ही माँ की बात याद आयी। उसने गधे को अपने कंधे पे उठाने की कोशिश की। वो गधा था। चिल्लाने लगा और लाथ मरने लगा।
लेकिन गणेश ने पूरी ताकद लगा के उसके पैर पकड़ लिए और अपने कंधे पे लाद के चलने लगा। उसका ये तमाशा गली के सारे लोग देखने लगे। कोई ढोल बजा रहा था, तो कोई उसके सामने नाच रहा था। गणेश को देखने भीड़ उमड़ पड़ी। वो महल के पास से गुजरा।
ढोल की आवाज सुन कर राजकुमारी भी अपनी खिड़की में आयी। उसने गणेश को देखा। उसको देख के राजकुमारी को अपनी हँसी रोकी नहीं गयी। वो जोर से हंसने लगी। वो इतनी जोर से हँस रही थी की उसका अब पेट दुखने लगा। सालो से कभी हँसी नहीं थी वो। उसकी आँखों में आंसू आने लगे और उसको देख कर राजा और रानी ख़ुशी से रोने लगे।
राजा ने तुरंत गणेश को बुलाने का आदेश दिया।
गणेश को दरबार में पुरे सम्मान से बुलाया गया। उसको ढेर सारे पैसे और बक्षीश में दो गाव भी दिए गए। अछे कपडे और जेवर भी दिए गए। साथ में एक उमदा घोडा भी दिया गया।
गणेश को ऐसे घर आते देख उसकी माँ के आंसू रुक नहीं रहे थे।
गणेश को अब सम्मान मिलने लगा था और राजा को अपनी राजकुमारी की हँसी मिल गयी थी।
शेर और खरगोश की कहानी
चम्पारण्य में सुख शांति को कोई कमी नहीं थी। सारे जानवर सुख से रहते थे। कभी किसी पे कोई मुसीबत आती तो सब मिलकर उसका सामना करते थे। सारा जंगल हरेभरे पेड़ो से भरा पड़ा था। जगह जगह फलों के पेड़ थे। जिसको लगा वो तोड़कर खाता। सभी ख़ुशी में जी रहे थे। लेकिन कहते हैं ना की जहा ज्यादा ख़ुशी हो वहां किसीकी नजर लग जाती हैं। ऐसे ही कुछ हुआ चम्पारण्य में।
अचानक दूर किसी जंगल से कोई खूंखार शेर उस जंगल में आ गया। उसने आते ही दहशत मचा दी। जो मिले उसको मार देता। कभी बेवजह किसी के पीछे भागता। सबका जीना मुश्किल कर दिया था। सभी प्राणी दहशत में जी रहे थे। घरो से बाहर निकलना भी खतरे से खाली नहीं था।
सभी जानवरों ने एक सभा लेने की सोची। और मिलकर शेर के पास जाकर उससे बिनती करने की सोची। उनका सब का नेता था चीकू खरगोश। लेकिन चीकू के चाचा के यहाँ शादी थी। इसलिए वो दुसरे जंगल में गया था। उसको आने में और कुछ दिन थे। सभी जानवरों ने सोचा चीकू के आने तक समस्या और बढ़ सकती हैं। इसलिए शेर के पास जाने के लिए एक जगह जमा हुए।
सबके सामने भालू को रखा। भालू ने बोलना चालू किया। महाराज, हम सभी जानवर आपके पास एक बिनती लेकर आये हैं।
शेर ने सबको एक बार देखा और अन्देखा कर दिया। बादमे शेर बोला, बोलो, क्या काम हैं सबको मुझसे?
भालू जरा डरता हुआ बोला, सभी जानवरों का कहना हैं की, आप जानवरों को बेवजह परेशांन न करे। और उनको सामान्य तरीके से जंगल में घुमने दे।
शेर ने दहाड़ते हुए कहा, ये जंगल मेरा हैं। मैं राजा हु। तुम लोग मुझे हुकुम नहीं दे सकते।
उसका घुस्सा देखकर सब डर गए और वहां से भाग गए।
दुसरे दिन चीकू खरगोश वापस आया। भालू ने और सभी जानवरों ने मिलकर चीकू को अपनी समस्या बताई।
चीकू बोला, ह्म्म्म, ये बात हैं। इसको सबक सिखाना पडेगा।
चीकू आने की खबर शेर को मिल गयी। उसने चीकू को बुलावा भेजा।
चीकू शेर से मिलने के पहले कुछ सोच रहा था। उसने अपने मन में एक योजना बनायीं।
शेर से मिलने चीकू काफी देर से गया। इधर शेर इंतेजार करके पागल हो उठा। देर से आये चीकू को घुस्से से पूछा, तेरा दिमाग ख़राब हैं क्या चीकू। राजा ने बुलाया और तू इतना आराम से आ रहा हैं। अपनी जान प्यारी नहीं हैं क्या तुझे?
चीकू शेर के सामने झुक कर गिडगिडाने लगा, महाराज, मुझे माफ़ कर दो। मैं वक़्त से ही निकला था लेकिन रास्ते में एक दुसरे शेर ने मेरा रास्ता रोका था। जाने ही नहीं दिया। मैंने आपका नाम बताया तो भी उसने कहा की यहाँ के राजा हम हैं। अब आप ही बताओ मैं उसको कैसे मना करता।
दूसरा शेर? ये कहा से आ गया? कहा हैं ये दूसरा शेर? शेर घुस्से से तिलमिला उठा।
चीकू तो यही चाहता था। उसने कहा, यही हैं महाराज। वो बड़े से कुए के पास। जल्दी चलिए, वो शायद वही होगा।
दोनों भागते हुए उस कुए के पास पहुचे।
कुआ बहोत गहरा था। उसमे पानी भरा था। चीकू कुए के पास जाकर बोला, महाराज, वो देखो वो अन्दर छुपा हैं।
शेर जैसे ही कुए के पास जाकर अन्दर झाकने लगा, चीकू झट से पीछे हो गया। शेर को उसकी परछाई पानी में दिखने लगी। उसने जोर की दहाड़ लगायी। पानी में दिखने वाले शेर ने भी दहाड़ लगायी।
अब शेर को बहोत घुस्सा आया। उसने पानी में छलांग लगा दी। और पानी गहरा होने के कारण वो वही अटक कर उसने दम तोड़ दिया।
इधर शेर कुए में गिर गया ये बात जंगल में आग जैसे फ़ैल गयी। सभी ने मिलकर चीकू को धन्यवाद् दिया।
इस तरह चीकू ने अपनी सुझबुझ से सभी जंगल वासियों को शेर के चंगुल से आझाद करवाया।